आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (36) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

 

द्यूतं छलयतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम्‌।

जयोऽस्मि व्यवसायोऽस्मि सत्त्वं सत्त्ववतामहम्‌।।36।।

छलियों में मैं द्यूत हॅू तेजस्वी में तेज

जय हूँ शिव संकल्प मैं सत्व हूँ सत्य परहेज।।36।।

भावार्थ :  मैं छल करने वालों में जूआ और प्रभावशाली पुरुषों का प्रभाव हूँ। मैं जीतने वालों का विजय हूँ, निश्चय करने वालों का निश्चय और सात्त्विक पुरुषों का सात्त्विक भाव हूँ।।36।।

 

I am the gambling of the fraudulent; I am the splendour of the splendid; I am victory; I am determination (of those who are determined); I am the goodness of the good.।।36।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]




हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #3 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #3 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

जब तक मन में राग है, जब तक मन में द्वेष ।

तब तक दुख ही दुःख है, मिटे न मन के क्लेश।।

– आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

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The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga.  We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.

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Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer




English Literature – Poetry ☆ Chirmritak –the Eternally Dead☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi Poetry  “चिरमृतक” published previously as संजय उवाच – चिरमृतक   We extend our heartiest thanks to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for this beautiful translation.)

☆ Chirmritak –the Eternally Dead ☆

– The day was very bad.

-Why?

– There was a death in the neighbourhood.  Went there early in the morning.  Later on, the whole day was a waste as no work could be done properly.

-How else could it be, since it is inauspicious to see the face of the deceased right in the morning.

Especially, the last sentence was said in such a way as if the person saying it, has been conferred with ‘Amarpatta’ –the robe of deathlessness.

Just ponder over this sentence as not making of a formula of Shubha-Ashubh, the auspicious and ominous.  Just a point to consider: After all, who stares at you in the mirror every morning?  Who else but yourself!… How many births have you taken to reach here. How long has been your journey of of births and rebirths… How did every life come to an end… by death only? Isn’t? And, how were you reborn from the death?  You see the face of the ‘Chirmitrak’, the eternally dead everyday! Also,  the other aspect of this cycle is that you see the face of the resurrected one who is dying daily. Between Chiramritak, the eternal dead

or Chirjanma, the eternally born, you have to decide, which one are you!!

Always remember that, not through seeing the faces physically, but it’s the internal soulful life and death from within, that makes and sustains the lives.

Jeejivisha, the Will to live  and diligence infuse the life into breath.

Look at the life; and live the life…!

 

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© Captain Pravin Raghuvanshi, NM
Pune



हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #2 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

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Shri Jagat Singh Bisht

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☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #2 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

संप्रदाय ना धर्म है, धर्म न बने दिवार ।

धर्म सिखाए एकता, धर्म सिखाए प्यार ।।

– आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (34) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

 

मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम्‌।

कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा ।।34।।

 

सर्वाहारी मृत्यु हूँ हूँ उद्भव की चाह

नारी में वाणी क्षमा कीर्ति स्मृति परवाह।।34।।

 

भावार्थ :  मैं सबका नाश करने वाला मृत्यु और उत्पन्न होने वालों का उत्पत्ति हेतु हूँ तथा स्त्रियों में कीर्ति (कीर्ति आदि ये सात देवताओं की स्त्रियाँ और स्त्रीवाचक नाम वाले गुण भी प्रसिद्ध हैं, इसलिए दोनों प्रकार से ही भगवान की विभूतियाँ हैं), श्री, वाक्‌, स्मृति, मेधा, धृति और क्षमा हूँ।।34।।

 

And I am all-devouring death, and prosperity of those who are to be prosperous; among feminine qualities (I am) fame, prosperity, speech, memory, intelligence, firmness and forgiveness.।।34।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #1 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

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Shri Jagat Singh Bisht

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☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #1 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

सदाचार ही धर्म है, दुराचार ही पाप I

पर-सेवा ही धर्म है, पर-पीड़न ही पाप II

– आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (33) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

 

अक्षराणामकारोऽस्मि द्वंद्वः सामासिकस्य च ।

अहमेवाक्षयः कालो धाताहं विश्वतोमुखः ।।33।।

 

हूँ अकार अक्षरों में द्वंद समास समास

मैं ही अक्षर काल हूँ धाता सविश्वास।।33।।

 

भावार्थ :  मैं अक्षरों में अकार हूँ और समासों में द्वंद्व नामक समास हूँ। अक्षयकाल अर्थात्‌काल का भी महाकाल तथा सब ओर मुखवाला, विराट्स्वरूप, सबका धारण-पोषण करने वाला भी मैं ही हूँ।।33।।

 

Among the  letters  of  the  alphabet,  the  letter  “A”  I  am,  and  the  dual  among  the compounds. I am verily the inexhaustible or everlasting time; I am the dispenser (of the fruits of actions), having faces in all directions.।।33।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (32) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

 

सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन ।

अध्यात्मविद्या विद्यानां वादः प्रवदतामहम्‌॥

 

आदि,मध्य औ” अंत हूँ सकल सृष्टि का पार्थ!

विद्या में अध्यात्म हूँ वाचालों में वाद।।32।।

      

भावार्थ :  हे अर्जुन! सृष्टियों का आदि और अंत तथा मध्य भी मैं ही हूँ। मैं विद्याओं में अध्यात्म विद्या अर्थात्‌ ब्रह्मविद्या और परस्पर विवाद करने वालों का तत्व-निर्णय के लिए किया जाने वाला वाद हूँ।।32।।

 

Among creations I am the beginning, the middle and also the end, O Arjuna! Among the sciences I am the science of the Self; and I am logic among controversialists. ।।32।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]




आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (30) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

 

प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम्‌।

मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम्‌।।30।।

 

सब पक्षियों में हूँ गरूड पशुओं मध्य मृगेन्द्र

दैत्यों में प्रहलाद हूँ गणकों में कालेन्द्र।।30।।

 

भावार्थ : मैं दैत्यों में प्रह्लाद और गणना करने वालों का समय (क्षण, घड़ी, दिन, पक्ष, मास आदि में जो समय है वह मैं हूँ) हूँ तथा पशुओं में मृगराज सिंह और पक्षियों में गरुड़ हूँ।।30।।

 

And, I am Prahlad among the demons; among the reckoners I am time; among beasts I am their king, the lion; and Garuda among birds.।।30।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (29) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

 

अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्‌।
पितॄणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्‌।।29।।

 

जलचर बीच में वरूण हूँ नागों बीच अनंत
पितरों में हूँ अर्थमा,नियमन कर्ता यम।।29।।

 

भावार्थ : मैं नागों में (नाग और सर्प ये दो प्रकार की सर्पों की ही जाति है।) शेषनाग और जलचरों का अधिपति वरुण देवता हूँ और पितरों में अर्यमा नामक पितर तथा शासन करने वालों में यमराज मैं हूँ।।29।।

 

I am Ananta among the Nagas; I am Varuna among water-Deities; Aryaman among the manes I am; I am Yama among the governors.।।29।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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