आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (28) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक्‌।

प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः ।।28।।

शस्त्रों में मैं वज्र हॅू कामधेनू हूँ गाय

प्रजनन में मैं काम हूँ वासुकि सर्प निकाय।।28।।

भावार्थ :  मैं शस्त्रों में वज्र और गौओं में कामधेनु हूँ। शास्त्रोक्त रीति से सन्तान की उत्पत्ति का हेतु कामदेव हूँ और सर्पों में सर्पराज वासुकि हूँ।।28।।

 

Among weapons I am the thunderbolt; among cows I am the wish-fulfilling cow called Surabhi; I am the progenitor, the god of love; among serpents I am Vasuki.।।28।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Yoga Asanas: Yoga Asanas: Chandra Namaskara: Salutations to the Moon  – Video #4 ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  Yoga Asanas: Chandra Namaskara: Salutations to the Moon ☆ 

Video Link >>>>

YOGA: VIDEO # 4

This posture develops balance and concentration; the breathing pattern becomes more demanding – inhalation, exhalation and breath retention are all prolonged.

The lunar energy flows within ida nadi. It has cool, relaxing and creative qualities.

The word ‘chandra’ means the moon. Just as the moon, having no light of its own, reflects the light of the sun, so the practice of chandra namaskara reflects that of the surya namaskara.

The sequence of the asanas is the same as surya namaskara except that ‘ardha chandrasana’, the half moon pose, is performed after ashwa sanchalanasana.

Also, in ashwa sanchalanasana the left leg is extended back in the first half of the round, activating ida nadi, the lunar force. In the second half of the round, the right leg is extended back.

The inclusion of ardha chandrasana is a significant change. The posture helps develop balance and concentration, adding another dimension to the practice. A further effect is that the breathing pattern becomes more demanding; inhalation, exhalation and breath retention are all prolonged.

The contra indications and other details: same as surya namaskara.

For complete details, please refer:

ASANA PRANAYAMA MUDRA BANDHA

BY SWAMI SATYANANADA SARASWATI

 

Caution – This is only a demonstration to facilitate practice of the asanas. It must be supplemented by a thorough study of each of the asanas. Careful attention must be paid to the contra indications in respect of each one of the asanas. It is advisable to practice under the guidance of a yoga teacher.

 Reference book:
ASANA PRANAYAMA MUDRA BANDHA  by Swami Satyananda Saraswati

Music:

I Don’t See the Branches, I See the Leaves by Chris Zabriskie is licensed under a Creative Commons Attribution licence (https://creativecommons.org/licenses/…)

Source: http://chriszabriskie.com/dtv/

Artist: http://chriszabriskie.com/

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga
We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.
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Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (27) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

 

उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्धवम्‌।

एरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम्‌।।27।।

अश्वों में उच्चैश्रवा,मंथन से उद्भूत

ऐरावत गजराज मैं पुरूषों में हूँ भूप।।27।।

 

भावार्थ :  घोड़ों में अमृत के साथ उत्पन्न होने वाला उच्चैःश्रवा नामक घोड़ा, श्रेष्ठ हाथियों में ऐरावत नामक हाथी और मनुष्यों में राजा मुझको जान।।27।।

 

Know Me as Ucchaisravas, born of nectar among horses; among lordly elephants (I am) the Airavata; and among men, the king।।27।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 37 – गझल – ………. आले चांदणे! ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  उनकी  एक प्यारी सी ग़ज़ल “……. आले चांदणे!.  सुश्री प्रभा जी की  यह गजल चन्द्रमा की चाँदनी को जीवन  दर्शन से जोड़ती हुई प्रतीत  होती है। चन्द्रमा अमावस्या से प्रारम्भ होकर पूर्णिमा  के पूर्ण चन्द्रमा तक अपनी कलाओं  और आकार से हमारे जीवन से सामंजस्य बनाये रखता है।  सुश्री प्रभा जी ने इस सामंजस्य को अपनी ग़ज़ल में बेहतरीन तरीके से एक सूत्र में पिरोया है। इस अतिसुन्दर  ग़ज़ल  के लिए  वे बधाई की पात्र हैं। उनकी लेखनी को सादर नमन ।  

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 37 ☆

☆ गझल – ………. आले चांदणे! ☆ 

 

मध्यरात्री जन्मताना घेऊन आले चांदणे

गर्द काळ्या त्या तमाला भेदून  आले चांदणे

 

जन्म जेथे जाहला त्या गावात माझा चांदवा

त्याच गावी  आठवांचे ठेवून आले चांदणे

 

ती किशोरी धीट स्वप्ने गंधाळली तेजाळली

मी दुपारी तप्त सूर्या देवून आले चांदणे

 

नेहमी मी मोह फसवे हेटाळले या जीवनी

संशायाचे बीज का हो पेरून आले  चांदणे

 

दूषणे सा-या जगाची सोसून मी तारांगणी

पौर्णिमेने ढाळलेले वेचून  आले चांदणे

 

जीवनाचे गीत गाता आसावरी झंकारली

आर्ततेचे सूर सारे छेडून  आले चांदणे

 

तारकांचा गाव  आता देतो “प्रभा” आमंत्रणे

शुभ्र साध्या भावनांचे  लेवून  आले चांदणे

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (26) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

 

अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः ।

गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः ।।26।।

 

देवर्षियो में नारद,वृक्षों में अश्वत्थ

सिद्धों में मैं कपिल मुनि,चित्ररथ हूँ गंधर्व।।26।।

      

भावार्थ :  मैं सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष, देवर्षियों में नारद मुनि, गन्धर्वों में चित्ररथ और सिद्धों में कपिल मुनि हूँ।।26।।

 

Among the  trees  (I  am)  the peepul ;  among  the  divine  sages  I  am  Narada;  among Gandharvas I am Chitraratha; among the perfected the sage Kapila.।।26।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (25) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

 

महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्‌।

यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः ।।25।।

 

 महर्षियों में भृगु ऋषि ,भाषा में ओंकार

 यज्ञों में जप यज्ञ मैं अचलों में गिरिराज।।25।।

 

भावार्थ :  मैं महर्षियों में भृगु और शब्दों में एक अक्षर अर्थात्‌‌ओंकार हूँ। सब प्रकार के यज्ञों में जपयज्ञ और स्थिर रहने वालों में हिमालय पहाड़ हूँ।।25।।

 

Among the great sages I am Bhrigu; among words I am the monosyllable Om; among sacrifices I am the sacrifice of silent repetition; among immovable things the Himalayas I am.।।25।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (24) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

 

पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम्‌।

सेनानीनामहं स्कन्दः सरसामस्मि सागरः ।।24।।

 

पुरोहितों में मुख्य मैं वृहस्पति सम्मान्य

सेनानियों में स्कंद मैं जलाशयों में सिंधु।।24।।

 

भावार्थ :  पुरोहितों में मुखिया बृहस्पति मुझको जान। हे पार्थ! मैं सेनापतियों में स्कंद और जलाशयों में समुद्र हूँ।।24।।

 

And, among  the  household  priests  (of  kings),  O  Arjuna,  know  Me  to  be  the  chief, Brihaspati; among the army generals I am Skanda; among lakes I am the ocean!।।24।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (23) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)।

 

रुद्राणां शङ्‍करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम्‌।

वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम्‌।।23।।

 

रूद्रों में शंकर हूँ मैं औ” यक्षों में कुबेर

वसुओं में पावक हूँ मैं शिखरों में हूँ मेरू।।23।।

 

भावार्थ :  मैं एकादश रुद्रों में शंकर हूँ और यक्ष तथा राक्षसों में धन का स्वामी कुबेर हूँ। मैं आठ वसुओं में अग्नि हूँ और शिखरवाले पर्वतों में सुमेरु पर्वत हूँ॥23॥

 

And, among the Rudras I am Shankara; among the Yakshas and Rakshasas, the Lord of wealth (Kubera); among the Vasus I am Pavaka (fire); and among the (seven) mountains I am the Meru.

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (22) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

 

वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः ।

इंद्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना ।।22।।

 

देवों में हूँ इन्द्र मैं वेदों में सामवेद

इंद्रियों में हदय मन ,जीवों में संचेत।।22।।

 

भावार्थ :  मैं वेदों में सामवेद हूँ, देवों में इंद्र हूँ, इंद्रियों में मन हूँ और भूत प्राणियों की चेतना अर्थात्‌जीवन-शक्ति हूँ।।22।।

 

Among the Vedas Iamthe Sama Veda; I am Vasava among the gods; among the senses I am the mind; and I am intelligence among living beings.।।22।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (21) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

 

आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान्‌।

मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी ।।21।।

 

आदित्यों में विषय हूँ दीप्तिवान में सूर्य

मरूतों मारिचि हूँ नक्षत्रों में शशि रूप।।21।।

 

भावार्थ :  मैं अदिति के बारह पुत्रों में विष्णु और ज्योतियों में किरणों वाला सूर्य हूँ तथा मैं उनचास वायुदेवताओं का तेज और नक्षत्रों का अधिपति चंद्रमा हूँ।।21।।

 

Among the (twelve) Adityas, I am Vishnu; among the luminaries, the radiant sun; I am Marichi among the (seven or forty-nine) Maruts; among stars the moon am I.।।21।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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