आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – चतुर्दश अध्याय (18) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
चतुर्दश अध्याय
गुणत्रय विभाग योग
(सत्, रज, तम- तीनों गुणों का विषय)
ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः ।
जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः ।।18।।
सतोगुणी की उच्च गति, रजोगुणी की मध्य
धृवित वृतित क तामसी, अधोगति बीच विरूद्ध ।।18।।
भावार्थ : सत्त्वगुण में स्थित पुरुष स्वर्गादि उच्च लोकों को जाते हैं, रजोगुण में स्थित राजस पुरुष मध्य में अर्थात मनुष्य लोक में ही रहते हैं और तमोगुण के कार्यरूप निद्रा, प्रमाद और आलस्यादि में स्थित तामस पुरुष अधोगति को अर्थात कीट, पशु आदि नीच योनियों को तथा नरकों को प्राप्त होते हैं।।18।।
Those who are seated in Sattwa proceed upwards; the Rajasic dwell in the middle; and the Tamasic, abiding in the function of the lowest Guna, go downwards.।।18।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८
मो ७०००३७५७९८