आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (20) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

 

अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः ।

अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ।।20।।

 

अर्जुन! हूँ मैं आत्मा सब देहों में व्याप्त

मैं ही सबका आदि हूँ मघ्य भी और समाप्ति।।20।।

 

भावार्थ :  हे अर्जुन! मैं सब भूतों के हृदय में स्थित सबका आत्मा हूँ तथा संपूर्ण भूतों का आदि, मध्य और अंत भी मैं ही हूँ॥20॥

 

I am the Self, O Gudakesha, seated in the hearts of all beings! I am the beginning, the middle and also the end of all beings.।।20।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (19) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

 

श्रीभगवानुवाच

हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतयः ।

प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे ।।19।।

 

भगवान बोले –

अच्छा मुख्य विभूतियाँ बतलाउँगा तात

क्योंकि अखिल अनंत है अद्धुत सब की बात।।19।।

 

भावार्थ :  श्री भगवान बोले- हे अर्जुन! अब मैं जो मेरी दिव्य विभूतियाँ हैं, उनको तेरे लिए प्रधानता से कहूँगा; क्योंकि मेरे विस्तार का अंत नहीं है।।19।।

 

Very well, now I will declare to thee My divine glories in their prominence, O Arjuna! There is no end to their detailed description.।।19।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (18) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति तथा विभूति और योगशक्ति को कहने के लिए प्रार्थना )

 

विस्तरेणात्मनो योगं विभूतिं च जनार्दन ।

भूयः कथय तृप्तिर्हि श्रृण्वतो नास्ति मेऽमृतम्‌।।18।।

 

कहें जनार्दन योग औ” निज विभूति तो आप

बिना सुने विस्तार से मन को चैन अप्राप्त।।18।।

 

भावार्थ :  हे जनार्दन! अपनी योगशक्ति को और विभूति को फिर भी विस्तारपूर्वक कहिए, क्योंकि आपके अमृतमय वचनों को सुनते हुए मेरी तृप्ति नहीं होती अर्थात्‌सुनने की उत्कंठा बनी ही रहती है।।18।।

 

Tell me again in detail, O Krishna, of Thy Yogic power and glory; for I am not satisfied with what I have heard of Thy life-giving and nectar-like speech!।।18।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (17) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति तथा विभूति और योगशक्ति को कहने के लिए प्रार्थना )

 

कथं विद्यामहं योगिंस्त्वां सदा परिचिन्तयन्‌।

केषु केषु च भावेषु चिन्त्योऽसि भगवन्मया ।।17।।

 

कैसे जानूँ प्रभु तुम्हें करते चिंतन नित्य

किन किन भावों से करूँ ध्यान तुम्हारा सत्य।।17।।

 

भावार्थ :  हे योगेश्वर! मैं किस प्रकार निरंतर चिंतन करता हुआ आपको जानूँ और हे भगवन्‌! आप किन-किन भावों में मेरे द्वारा चिंतन करने योग्य हैं?।।17।।

 

How shall I, ever meditating, know Thee, O Yogin? In what aspects or things, O blessed Lord, art Thou to be thought of by me?।।17।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (16) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति तथा विभूति और योगशक्ति को कहने के लिए प्रार्थना )

वक्तुमर्हस्यशेषेण दिव्या ह्यात्मविभूतयः ।

याभिर्विभूतिभिर्लोकानिमांस्त्वं व्याप्य तिष्ठसि ।।16।।

जिन विभूति से विश्व में व्याप्त आप आभास

उन सबका भी दें मुझे कृपया सब आभास।।16।।

 

भावार्थ :  इसलिए आप ही उन अपनी दिव्य विभूतियों को संपूर्णता से कहने में समर्थ हैं, जिन विभूतियों द्वारा आप इन सब लोकों को व्याप्त करके स्थित हैं।।16।।

 

Thou shouldst  indeed  tell,  without  reserve,  of  Thy  divine  glories  by  which  Thou existeth, pervading all these worlds. (None else can do so.)।।16।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (15) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति तथा विभूति और योगशक्ति को कहने के लिए प्रार्थना )

 

स्वयमेवात्मनात्मानं वेत्थ त्वं पुरुषोत्तम ।

भूतभावन भूतेश देवदेव जगत्पते ।।15।।

 

नहीं कोई कुछ जानता सब करते अनुमान

जगत्पति पुरूषोत्तम आपको ही सच ज्ञान।।15।।

      

भावार्थ :  हे भूतों को उत्पन्न करने वाले! हे भूतों के ईश्वर! हे देवों के देव! हे जगत्‌के स्वामी! हे पुरुषोत्तम! आप स्वयं ही अपने से अपने को जानते हैं॥15॥

 

Verily, Thou Thyself knowest Thyself by Thyself, O Supreme Person, O source and  Lord of beings, O God of gods, O ruler of the world!

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (14) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति तथा विभूति और योगशक्ति को कहने के लिए प्रार्थना )

सर्वमेतदृतं मन्ये यन्मां वदसि केशव ।

न हि ते भगवन्व्यक्तिं विदुर्देवा न दानवाः ।।14।।

देव दानवों को भी नहिं है प्रभु का सच्चा ज्ञान

जो कुछ मुझसे आपने कहा सत्य भगवान।।14।।

 

भावार्थ :  हे केशव! जो कुछ भी मेरे प्रति आप कहते हैं, इस सबको मैं सत्य मानता हूँ। हे भगवन्‌! आपके लीलामय (गीता अध्याय 4 श्लोक 6 में इसका विस्तार देखना चाहिए) स्वरूप को न तो दानव जानते हैं और न देवता ही।।14।।

 

I believe all this that Thou sayest to me as true, O Krishna! Verily, O blessed Lord, neither the gods nor the demons know Thy manifestation (origin)! ।।14।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (12-13) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति तथा विभूति और योगशक्ति को कहने के लिए प्रार्थना )

 

अर्जुन उवाच

 

परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान्‌।

पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम्‌।।12।।

आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा ।

असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे ।।13।।

अर्जुन ने कहा –

परब्रम्ह अतिपावन परमधाम गुणवान

आप निरंतर दिव्य हैं आदिदेव भगवान।।12।।

सब ऋषियों ने आपका नारद देवल व्यास

कहा यही है असित ने और स्वतः भी आप।।13।।

      

भावार्थ :  अर्जुन बोले- आप परम ब्रह्म, परम धाम और परम पवित्र हैं, क्योंकि आपको सब ऋषिगण सनातन, दिव्य पुरुष एवं देवों का भी आदिदेव, अजन्मा और सर्वव्यापी कहते हैं। वैसे ही देवर्षि नारद तथा असित और देवल ऋषि तथा महर्षि व्यास भी कहते हैं और आप भी मेरे प्रति कहते हैं॥12-13॥

 

Thou art the Supreme Brahman, the supreme abode (or the supreme light), the supreme purifier, the eternal, divine Person, the primeval God, unborn and omnipresent.।।12।।

 

All the sages have thus declared Thee, as also the divine sage Narada; so also Asita, Devala and Vyasa; and now Thou Thyself sayest so to me.।।13।।

 

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (11) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( विभूति योग)

तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः।

नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता ।।11।।

उन पर करके कृपा मैं उनके मन का वास

सब अज्ञान ज तमस हर करता ज्ञान प्रकाश।।11।।

भावार्थ :  हे अर्जुन! उनके ऊपर अनुग्रह करने के लिए उनके अंतःकरण में स्थित हुआ मैं स्वयं ही उनके अज्ञानजनित अंधकार को प्रकाशमय तत्त्वज्ञानरूप दीपक के द्वारा नष्ट कर देता हूँ।।11।।

 

Out of mere compassion for them, I, dwelling within their Self, destroy the darkness born of ignorance by the luminous lamp of knowledge.

।।11।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (10) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( विभूति योग)

 

तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्‌।

ददामि बद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ।।10।।

 

उन विभोर हो भक्तिरत भक्त जो आते पास

को मैं देता बुद्धि गति भक्ति और विश्वास।।10।।

 

भावार्थ :  उन निरंतर मेरे ध्यान आदि में लगे हुए और प्रेमपूर्वक भजने वाले भक्तों को मैं वह तत्त्वज्ञानरूप योग देता हूँ, जिससे वे मुझको ही प्राप्त होते हैं।।10।।

 

To them  who  are  ever  steadfast,  worshipping  Me  with  love,  I  give  the  Yoga  of discrimination by which they come to Me.।।10।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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