आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (21) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( सकाम और निष्काम उपासना का फल)

 

ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालंक्षीणे पुण्य मर्त्यलोकं विशन्ति।

एवं त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना गतागतं कामकामा लभन्ते ।।21।।

 

स्वर्ग भोग क्षय पुण्य पर कर इहलोक प्रवेश

पड़ चक्कर में भोग के सहते विविध कलेश।।21।।

 

भावार्थ :  वे उस विशाल स्वर्गलोक को भोगकर पुण्य क्षीण होने पर मृत्यु लोक को प्राप्त होते हैं। इस प्रकार स्वर्ग के साधनरूप तीनों वेदों में कहे हुए सकामकर्म का आश्रय लेने वाले और भोगों की कामना वाले पुरुष बार-बार आवागमन को प्राप्त होते हैं, अर्थात्‌ पुण्य के प्रभाव से स्वर्ग में जाते हैं और पुण्य क्षीण होने पर मृत्युलोक में आते हैं।।21।।

 

They, having enjoyed the vast heaven, enter the world of mortals when their merits are exhausted; thus abiding by the injunctions of the three (Vedas) and desiring (objects of) desires, they attain to the state of going and returning.।।21।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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English Literature ☆ Article ☆ How high should I rise? ☆ Mr. Ashish Kumar

Mr Ashish Kumar

(It is difficult to comment about young author Mr Ashish Kumar and his mythological/spiritual writing.  He has well researched Hindu Philosophy, Science and quest of success beyond the material realms. I am really mesmerized.  I am sure you will be also amazed.  This article “How high should I rise?” will change your thinking.)    

 ☆ How high should I rise? ☆ 

It was one seemingly ordinary day when I decided to QUIT… All of a sudden, I made a decision to quit my job, my relationship and finally my spirituality. I just wanted to quit my life.

But before that, I went to the wood to have one last talk with God.

I started: “God, can you give me one good reason not to quit?”

His answer really surprised me: “Look around”, He said. “Do you see the fern and the bamboo?”

I replied: “Yes. When I planted the fern and the bamboo seeds, I took very good care of them. I gave them light. I gave them water. The fern quickly grew from the earth.

Its brilliant green covered the floor. Yet nothing came from the bamboo seed. But I did not quit on the bamboo. In the second year the Fern grew more vibrant and plentiful.

But still, nothing came from the bamboo seed. But I did not quit on the bamboo.

He said: “In year three there was still nothing from the bamboo seed. But I would not quit. In year four, again, there was nothing from the bamboo seed. I would not quit.”

“Then in the fifth year a tiny sprout emerged from the earth.

Compared to the fern it was seemingly small and insignificant…But just 6 months later the bamboo rose to over 100 feet tall.

It had spent the five years growing roots. Those roots made it strong and gave it what it needed to survive. I would not give any of my creations a challenge it could not handle.”

After that, He asked me: “Did you know, my child, that all this time you have been struggling, you have actually been growing roots. I would not quit on the bamboo. I will never quit on you.”

“Don’t compare yourself to others.” He added.  “The bamboo had a different purpose than the fern. Yet they both make the forest beautiful.” God said to me: “Your time will come”

“You will rise high”.

I asked: “How high should I rise?”

“How high will the bamboo rise?” He also asked.

I was confused: “As high as it can?”

” Yes.” He said, “Give me glory by rising as high as you can.”

After this conversation I left the forest and I wrote this amazing story. I really hope that these words can help you to see that God will never give up on you.

You should never, never, never, Give up.

Don’t tell the Lord how big the problem is, tell the problem how great the Lord is!…………………….

 

© Ashish Kumar

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (20) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( सकाम और निष्काम उपासना का फल)

 

त्रैविद्या मां सोमपाः पूतपापायज्ञैरिष्ट्‍वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते।

ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोकमश्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान्‌ ।।20।।

 

रचते ज्ञानी यज्ञ से स्वर्ग प्राप्ति का योग

पुण्य प्राप्त कर स्वर्ग में करते सुख उपभोग।।20।।

 

भावार्थ :  तीनों वेदों में विधान किए हुए सकाम कर्मों को करने वाले, सोम रस को पीने वाले, पापरहित पुरुष (यहाँ स्वर्ग प्राप्ति के प्रतिबंधक देव ऋणरूप पाप से पवित्र होना समझना चाहिए) मुझको यज्ञों के द्वारा पूजकर स्वर्ग की प्राप्ति चाहते हैं, वे पुरुष अपने पुण्यों के फलरूप स्वर्गलोक को प्राप्त होकर स्वर्ग में दिव्य देवताओं के भोगों को भोगते हैं।।20।।

 

The knowers of the three Vedas, the drinkers of Soma, purified of all sins, worshipping Me by sacrifices, pray for the way to heaven; they reach the holy world of the Lord of the gods and enjoy in heaven the divine pleasures of the gods.।।20।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (19) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( सर्वात्म रूप से प्रभाव सहित भगवान के स्वरूप का वर्णन )

 

तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्‌णाम्युत्सृजामि च ।

अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्चाहमर्जुन ।।19।।

 

तपता मैं ही सूर्य बन करता घन निर्माण

अमर भी हूँ पर मृत्यु भी ,हूँ जीवन का प्राण।।19।।

 

भावार्थ :  मैं ही सूर्यरूप से तपता हूँ, वर्षा का आकर्षण करता हूँ और उसे बरसाता हूँ। हे अर्जुन! मैं ही अमृत और मृत्यु हूँ और सत्‌-असत्‌ भी मैं ही हूँ।।19।।

 

(As the sun) I give heat; I withhold and send forth the rain; I am immortality and also death, existence and non-existence, O Arjuna!।।19।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (18) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( सर्वात्म रूप से प्रभाव सहित भगवान के स्वरूप का वर्णन )

 

गतिर्भर्ता प्रभुः साक्षी निवासः शरणं सुहृत्‌ ।

प्रभवः प्रलयः स्थानं निधानं बीजमव्ययम्‌।।18।।

 

गति,भर्ता,प्रभु साक्षी हूँ निवास,विश्राम

जन्म मरण दाता अमर बीज प्रदीप ललाम।।18।।

 

भावार्थ :  प्राप्त होने योग्य परम धाम, भरण-पोषण करने वाला, सबका स्वामी, शुभाशुभ का देखने वाला, सबका वासस्थान, शरण लेने योग्य, प्रत्युपकार न चाहकर हित करने वाला, सबकी उत्पत्ति-प्रलय का हेतु, स्थिति का आधार, निधान (प्रलयकाल में संपूर्ण भूत सूक्ष्म रूप से जिसमें लय होते हैं उसका नाम ‘निधान’ है) और अविनाशी कारण भी मैं ही हूँ।।18।।

 

I am the goal, the support, the Lord, the witness, the abode, the shelter, the friend, the origin, the dissolution, the foundation, the treasure-house and the imperishable सीड। ।।18।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (17) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( सर्वात्म रूप से प्रभाव सहित भगवान के स्वरूप का वर्णन )

 

पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामहः ।

वेद्यं पवित्रमोङ्कार ऋक्साम यजुरेव च ॥

 

मै ही जग का पिता हूँ माता धाता वेद

मैं पवित्र ओंकार हूँ ऋक साम व यजुर्वेद।।17।।

 

भावार्थ :  इस संपूर्ण जगत्‌ का धाता अर्थात्‌ धारण करने वाला एवं कर्मों के फल को देने वाला, पिता, माता, पितामह, जानने योग्य, (गीता अध्याय 13 श्लोक 12 से 17 तक में देखना चाहिए) पवित्र ओंकार तथा ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद भी मैं ही हूँ।।17।।

 

I am the father of this world, the mother, the dispenser of the fruits of actions, and the grandfather; the (one) thing to be known, the purifier, the sacred monosyllable (Om), and also the Rig-,the Sama-and Yajur Vedas.।।17।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (16) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( सर्वात्म रूप से प्रभाव सहित भगवान के स्वरूप का वर्णन )

 

अहं क्रतुरहं यज्ञः स्वधाहमहमौषधम्‌ ।

मंत्रोऽहमहमेवाज्यमहमग्निरहं हुतम्‌ ।।16।।

मै ही कृति हूँ यज्ञ हूँ,स्वधा,मंत्र,घृत अग्नि

औषध भी मैं,हवन मैं प्रबल जैसे जमदाग्नि।।16।।

भावार्थ :  क्रतु मैं हूँ, यज्ञ मैं हूँ, स्वधा मैं हूँ, औषधि मैं हूँ, मंत्र मैं हूँ, घृत मैं हूँ, अग्नि मैं हूँ और हवनरूप क्रिया भी मैं ही हूँ।।16।।

 

I am the Kratu; I am the Yajna; I am the offering (food) to the manes; I am the medicinal herb and all the plants; I am the Mantra; I am also the ghee or melted butter; I am the fire; I am the oblation.।।16।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (15) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( भगवान का तिरस्कार करने वाले आसुरी प्रकृति वालों की निंदा और दैवी प्रकृति वालों के भगवद्भजन का प्रकार )

 

ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ते यजन्तो मामुपासते।

एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम्।।15।।

 

अन्य ज्ञान औ” यज्ञ से करते मुझे प्रणाम

पूजा करते विविध विधि दे विश्वेश्र्वर नाम।।15।।

 

भावार्थ :  दूसरे ज्ञानयोगी मुझ निर्गुण-निराकार ब्रह्म का ज्ञानयज्ञ द्वारा अभिन्नभाव से पूजन करते हुए भी मेरी उपासना करते हैं और दूसरे मनुष्य बहुत प्रकार से स्थित मुझ विराट स्वरूप परमेश्वर की पृथक भाव से उपासना करते हैं।।15।।

 

Others also, sacrificing with the wisdom-sacrifice, worship Me, the all-faced, as one, as distinct, and as manifold.।।15।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (14) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( भगवान का तिरस्कार करने वाले आसुरी प्रकृति वालों की निंदा और दैवी प्रकृति वालों के भगवद्भजन का प्रकार )

 

सततं कीर्तयन्तो मां यतन्तश्च दृढ़व्रताः ।

नमस्यन्तश्च मां भक्त्या नित्ययुक्ता उपासते ।।14।।

 

योगी ज्ञानी भक्ति से करते कीर्तन गान

और दृढव्रती कर नमन देते सब सम्मान।।14।।

      

भावार्थ :  वे दृढ़ निश्चय वाले भक्तजन निरंतर मेरे नाम और गुणों का कीर्तन करते हुए तथा मेरी प्राप्ति के लिए यत्न करते हुए और मुझको बार-बार प्रणाम करते हुए सदा मेरे ध्यान में युक्त होकर अनन्य प्रेम से मेरी उपासना करते हैं।।14।।

 

Always glorifying Me, striving, firm in vows, prostrating before Me, they worship Me with devotion, ever steadfast.।।14।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (12) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( भगवान का तिरस्कार करने वाले आसुरी प्रकृति वालों की निंदा और दैवी प्रकृति वालों के भगवद्भजन का प्रकार )

 

मोघाशा मोघकर्माणो मोघज्ञाना विचेतसः ।

राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिताः ।।12।।

 

उनकी आशा कर्म ओै” ज्ञान सभी हैं व्यर्थ

क्योकिं भ्रामक आसुरी प्रकृति ही उनका अर्थ।।12।।

      

भावार्थ :  वे व्यर्थ आशा, व्यर्थ कर्म और व्यर्थ ज्ञान वाले विक्षिप्तचित्त अज्ञानीजन राक्षसी, आसुरी और मोहिनी प्रकृति को (जिसको आसुरी संपदा के नाम से विस्तारपूर्वक भगवान ने गीता अध्याय 16 श्लोक 4 तथा श्लोक 7 से 21 तक में कहा है) ही धारण किए रहते हैं।।12।।

 

Of vain  hopes,  of  vain  actions,  of  vain  knowledge  and  senseless,  they  verily  are possessed of the deceitful nature of demons and undivine beings.।।12।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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