आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (1) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( प्रभावसहित ज्ञान का विषय )

श्रीभगवानुवाच

इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे ।

ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्‌ ।।1।।

श्री भगवान ने कहा –

शुभ चिंतक मैं बताता गुप्त ज्ञान विज्ञान

सुन जिसको हट जायेगा,अशुभ से तेरा ध्यान।।1।।

भावार्थ :  श्री भगवान बोले- तुझ दोषदृष्टिरहित भक्त के लिए इस परम गोपनीय विज्ञान सहित ज्ञान को पुनः भली भाँति कहूँगा, जिसको जानकर तू दुःखरूप संसार से मुक्त हो जाएगा।।1।।

 

I shall  now  declare  to  thee  who  does  not  cavil,  the  greatest  secret,  the  knowledge combined with experience (Self-realisation). Having known this, thou shalt be free from evil.।।1।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – अष्टम अध्याय (28) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अष्टम अध्याय

(ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर )

( शुक्ल और कृष्ण मार्ग का विषय)

 

वेदेषु यज्ञेषु तपःसु चैव दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम्‌।

अत्येत तत्सर्वमिदं विदित्वा योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम्‌।।28।।

 

वेद ज्ञान तप दान का पुण्य के फल से भिन्न

योगी पाता उच्च पद परम शांति संपन्न।।28।।

      

भावार्थ :  योगी पुरुष इस रहस्य को तत्त्व से जानकर वेदों के पढ़ने में तथा यज्ञ, तप और दानादि के करने में जो पुण्यफल कहा है, उन सबको निःसंदेह उल्लंघन कर जाता है और सनातन परम पद को प्राप्त होता है।।28।।

 

Whatever fruits or merits is declared (in the scriptures) to accrue from (the study of) the Vedas,(the  performance  of)  sacrifices,  (the  practice  of)  austerities,  and  (the  offering  of) gifts—beyond all these goes the Yogi, having known this; and he attains to the supreme primeval (first or ancient) abode।।28।।

 

ॐ तत्सदिति श्री मद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्री कृष्णार्जुनसंवादे अक्षर ब्रह्मयोगो नामाष्टमोऽध्यायः ॥8॥

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – अष्टम अध्याय (27) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अष्टम अध्याय

(ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर )

( शुक्ल और कृष्ण मार्ग का विषय)

 

नैते सृती पार्थ जानन्योगी मुह्यति कश्चन ।

तस्मात्सर्वेषु कालेषु योगयुक्तो भवार्जुन ।।27।।

इन दोनों के ज्ञान से योगी शांत अनन्त

तू भी अर्जुन योगी हो अंत से हो निश्चिंत।।27।।

 

भावार्थ : हे पार्थ! इस प्रकार इन दोनों मार्गों को तत्त्व से जानकर कोई भी योगी मोहित नहीं होता। इस कारण हे अर्जुन! तू सब काल में समबुद्धि रूप से योग से युक्त हो अर्थात निरंतर मेरी प्राप्ति के लिए साधन करने वाला हो।।27।।

 

Knowing these paths, O Arjuna, no Yogi is deluded! Therefore, at all times be steadfast in Yoga.।।27।।

 

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – अष्टम अध्याय (26) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अष्टम अध्याय

(ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर )

( शुक्ल और कृष्ण मार्ग का विषय)

 

शुक्ल कृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते ।

एकया यात्यनावृत्ति मन्ययावर्तते पुनः ।।26।।

 

शुक्ल कृष्ण दो मार्ग हैं जग के ज्ञात महान

एक में तो निर्वाण है अन्य में फिर निर्माण।।26।।

 

भावार्थ : क्योंकि जगत के ये दो प्रकार के- शुक्ल और कृष्ण अर्थात देवयान और पितृयान मार्ग सनातन माने गए हैं। इनमें एक द्वारा गया हुआ (अर्थात इसी अध्याय के श्लोक 24 के अनुसार अर्चिमार्ग से गया हुआ योगी।)– जिससे वापस नहीं लौटना पड़ता, उस परमगति को प्राप्त होता है और दूसरे के द्वारा गया हुआ ( अर्थात इसी अध्याय के श्लोक 25 के अनुसार धूममार्ग से गया हुआ सकाम कर्मयोगी।) फिर वापस आता है अर्थात्‌जन्म-मृत्यु को प्राप्त होता है।।26।।

 

The bright and the dark paths of the world are verily thought to be eternal; by the one (the bright path) a person goes not to return again, and by the other (the dark path) he returns.।।26।।

 

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – अष्टम अध्याय (25) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अष्टम अध्याय

(ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर )

( शुक्ल और कृष्ण मार्ग का विषय)

धूमो रात्रिस्तथा कृष्ण षण्मासा दक्षिणायनम्‌।

तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते ।।25।।

 

धूप रात्रि कृष्ण पक्ष दक्षिणायन छःमास

च्ंद्र ज्योति को प्राप्त कर आते फिर आवास।।25।।

 

भावार्थ :  जिस मार्ग में धूमाभिमानी देवता है, रात्रि अभिमानी देवता है तथा कृष्ण पक्ष का अभिमानी देवता है और दक्षिणायन के छः महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में मरकर गया हुआ सकाम कर्म करने वाला योगी उपयुक्त देवताओं द्वारा क्रम से ले गया हुआ चंद्रमा की ज्योत को प्राप्त होकर स्वर्ग में अपने शुभ कर्मों का फल भोगकर वापस आता है।।25।।

 

Attaining to the lunar light by smoke, night-time, the dark fortnight or the six months of the southern path of the sun (the southern solstice), the Yogi returns.।।25।।

 

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – अष्टम अध्याय (24) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अष्टम अध्याय

(ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर )

( शुक्ल और कृष्ण मार्ग का विषय)

 

अग्निर्ज्योतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम्‌।

तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः ।।24।।

 

अग्नि ज्योति दिन शुक्ल पक्ष उत्तरायण छःमास

ब्रम्ह ज्ञानियों के लिये थे अवसर है खास।।24।।

 

भावार्थ :  जिस मार्ग में ज्योतिर्मय अग्नि-अभिमानी देवता हैं, दिन का अभिमानी देवता है, शुक्ल पक्ष का अभिमानी देवता है और उत्तरायण के छः महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में मरकर गए हुए ब्रह्मवेत्ता योगीजन उपयुक्त देवताओं द्वारा क्रम से ले जाए जाकर ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। ।।24।।

 

Fire, light, daytime, the bright fortnight, the six months of the northern path of the sun (northern solstice)-departing then (by these), men who know Brahman go to Brahman.।।24।।

 

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – अष्टम अध्याय (23) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अष्टम अध्याय

(ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर )

( शुक्ल और कृष्ण मार्ग का विषय)

यत्र काले त्वनावत्तिमावृत्तिं चैव योगिनः ।

प्रयाता यान्ति तं कालं वक्ष्यामि भरतर्षभ ।।23।।

 

समय वो जब जाकर वहाँ नही लौटते लोग

पार्थ ! तुम्हें बतलाउगां कब वह शुभ संयोग।।23।।

 

भावार्थ :  हे अर्जुन! जिस काल में (यहाँ काल शब्द से मार्ग समझना चाहिए, क्योंकि आगे के श्लोकों में भगवान ने इसका नाम ‘सृति’, ‘गति’ ऐसा कहा है।) शरीर त्याग कर गए हुए योगीजन तो वापस न लौटने वाली गति को और जिस काल में गए हुए वापस लौटने वाली गति को ही प्राप्त होते हैं, उस काल को अर्थात दोनों मार्गों को कहूँगा।।23।।

 

Now I will tell thee, O chief of the Bharatas, the times departing at which the Yogis will return or not return!।।23।।

 

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – अष्टम अध्याय (22) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अष्टम अध्याय

(ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर )

( भक्ति योग का विषय )

 

पुरुषः स परः पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया ।

यस्यान्तः स्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम्‌।।22।।

 

सब जग में जो व्याप्त है जिसमें सब जग व्याप्त

परम पुरूष वह सृष्टि का परम भक्ति से प्राप्त।।22।।

 

भावार्थ :  हे पार्थ! जिस परमात्मा के अंतर्गत सर्वभूत है और जिस सच्चिदानन्दघन परमात्मा से यह समस्त जगत परिपूर्ण है (गीता अध्याय 9 श्लोक 4 में देखना चाहिए), वह सनातन अव्यक्त परम पुरुष तो अनन्य (गीता अध्याय 11 श्लोक 55 में इसका विस्तार देखना चाहिए) भक्ति से ही प्राप्त होने योग्य है ।।22।।

 

That highest Purusha, O Arjuna, is attainable by unswerving devotion to him alone within whom all beings dwell and by whom all this is pervaded.।।22।।

 

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – अष्टम अध्याय (21) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अष्टम अध्याय

(ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर )

( भक्ति योग का विषय )

 

अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहुः परमां गतिम्‌।

यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ।।21।।

 

वह अक्षर अव्यक्त है परम गति है नाम

जहाँ पहुँच विश्राम है वह है मेरा धाम।।21।।

 

भावार्थ :  जो अव्यक्त ‘अक्षर’ इस नाम से कहा गया है, उसी अक्षर नामक अव्यक्त भाव को परमगति कहते हैं तथा जिस सनातन अव्यक्त भाव को प्राप्त होकर मनुष्य वापस नहीं आते, वह मेरा परम धाम है।।21।।

 

What is called the Unmanifested and the Imperishable, That they say is the highest goal (path). They who reach It do not return (to this cycle of births and deaths). That is My highest abode (place or state).।।21।।

 

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – अष्टम अध्याय (20) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अष्टम अध्याय

(ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर )

( भक्ति योग का विषय )

 

परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातनः ।

यः स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति ।।20।।

 

सब भूतों से भिन्न पर है अव्यक्त एक भाव

जो न नष्ट होता कभी, सब से बिना प्रभाव।।20।।

 

भावार्थ :  उस अव्यक्त से भी अति परे दूसरा अर्थात विलक्षण जो सनातन अव्यक्त भाव है, वह परम दिव्य पुरुष सब भूतों के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होता।।20।।

 

But verily there exists, higher than the unmanifested, another unmanifested Eternal who is not destroyed when all beings are destroyed.।।20।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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