आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – त्रयोदश अध्याय (4) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

त्रयोदश अध्याय

(ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का विषय)

 

ऋषिभिर्बहुधा गीतं छन्दोभिर्विविधैः पृथक्‌ ।

ब्रह्मसूत्रपदैश्चैव हेतुमद्भिर्विनिश्चितैः ।।4।।

 

ऋषियों ने भी कहा जो विशद विभिन्न प्रकार

मुझसे सुन संक्षेप में, होकर के तैयार ।।4।।

 

भावार्थ :  यह क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का तत्व ऋषियों द्वारा बहुत प्रकार से कहा गया है और विविध वेदमन्त्रों द्वारा भी विभागपूर्वक कहा गया है तथा भलीभाँति निश्चय किए हुए युक्तियुक्त ब्रह्मसूत्र के पदों द्वारा भी कहा गया है।।4।।

 

Sages have sung in many ways, in various distinctive chants and also in the suggestive words indicative of the Absolute, full of reasoning and decisive.।।4।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – त्रयोदश अध्याय (3) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

त्रयोदश अध्याय

(ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का विषय)

 

तत्क्षेत्रं यच्च यादृक्च यद्विकारि यतश्च यत्‌।

स च यो यत्प्रभावश्च तत्समासेन मे श्रृणु।।3।।

 

क्या यह क्षेत्र प्रकार क्या? होते कौन विकार

होते क्यों, क्षेत्रज्ञ कौन? क्या है प्रभाव प्रकार ।।3।।

 

भावार्थ :  वह क्षेत्र जो और जैसा है तथा जिन विकारों वाला है और जिस कारण से जो हुआ है तथा वह क्षेत्रज्ञ भी जो और जिस प्रभाववाला है- वह सब संक्षेप में मुझसे सुन।।3।।

 

What the Field is and of what nature, what its modifications are and whence it is, and also who He is and what His powers are-hear all that from Me in brief.।।3।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – त्रयोदश अध्याय (2) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

त्रयोदश अध्याय

(ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का विषय)

 

क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत।

क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोर्ज्ञानं यत्तज्ज्ञानं मतं मम।।2।।

 

सब क्षेत्रों में उपस्थित , मुझे तू क्षेत्रज्ञ जान

क्षेत्र क्षेत्रज्ञ का ज्ञान है, मेरे ज्ञान समान ।।2।।

 

भावार्थ :  हे अर्जुन! तू सब क्षेत्रों में क्षेत्रज्ञ अर्थात जीवात्मा भी मुझे ही जान (गीता अध्याय 15 श्लोक 7 और उसकी टिप्पणी देखनी चाहिए) और क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ को अर्थात विकार सहित प्रकृति और पुरुष का जो तत्व से जानना है (गीता अध्याय 13 श्लोक 23 और उसकी टिप्पणी देखनी चाहिए) वह ज्ञान है- ऐसा मेरा मत है।।2।।

 

Do thou also know Me as the Knower of the Field in all fields, O Arjuna! Knowledge of both the Field and the Knower of the Field is considered by Me to be the knowledge.।।2।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – त्रयोदश अध्याय (1) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

त्रयोदश अध्याय

(ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का विषय)

 

श्रीभगवानुवाच

इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते।

एतद्यो वेत्ति तं प्राहुः क्षेत्रज्ञ इति तद्विदः।।1।।

 

श्री कृष्ण ने कहा-

 यह शरीर है कौन्तेय, क्षेत्र नाम से ज्ञात

इसे जानता जो सही, वह क्षेत्रज्ञ विख्यात।।1।।

 

भावार्थ :  श्री भगवान बोले- हे अर्जुन! यह शरीर ‘क्षेत्र’ (जैसे खेत में बोए हुए बीजों का उनके अनुरूप फल समय पर प्रकट होता है, वैसे ही इसमें बोए हुए कर्मों के संस्कार रूप बीजों का फल समय पर प्रकट होता है, इसलिए इसका नाम ‘क्षेत्र’ ऐसा कहा है) इस नाम से कहा जाता है और इसको जो जानता है, उसको ‘क्षेत्रज्ञ’ इस नाम से उनके तत्व को जानने वाले ज्ञानीजन कहते हैं।।1।।

 

This body, O Arjuna, is called the Field; he who knows it is called the Know-er of the Field by those who know of them, that is, by the sages.।।1।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – द्वादश अध्याय (20) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वादश अध्याय

(भगवत्‌-प्राप्त पुरुषों के लक्षण)

 

ये तु धर्म्यामृतमिदं यथोक्तं पर्युपासते।

श्रद्धाना मत्परमा भक्तास्तेऽतीव मे प्रियाः।।20।।

जो धार्मिक है, धर्म को पूजे यथा सजीव

श्रद्धावान परायण , वह प्रिय मुझे अतीव ।।20।।

 

भावार्थ :  परन्तु जो श्रद्धायुक्त (वेद, शास्त्र, महात्मा और गुरुजनों के तथा परमेश्वर के वचनों में प्रत्यक्ष के सदृश विश्वास का नाम ‘श्रद्धा’ है) पुरुष मेरे परायण होकर इस ऊपर कहे हुए धर्ममय अमृत को निष्काम प्रेमभाव से सेवन करते हैं, वे भक्त मुझको अतिशय प्रिय हैं।।20।।

 

They verily who follow this immortal Dharma (doctrine or law) as described above, endowed with faith, regarding Me as their supreme goal, they, the devotees, are exceedingly dear to me.।।20।।

 

ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायांयोगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे भक्तियोगो नाम द्वादशोऽध्यायः ॥12॥

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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English Literature – Poetry ☆ Stairs ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi Poetry  “सीढ़ियां ” published today as ☆ संजय दृष्टि  ☆  सीढ़ियाँ   We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation.)

☆ Stairs ☆

Generations keep

coming and going…

Stairs of age

are simply magical

As the next step is seen

the previous one

instantly disappears,

Constant potential of the

visual  delight of the mount,

Wipes out the

unknown fear of the descent…

When I start loosing

the breath

Dark fathomless bottom below

starts to loom large,

When legs start

shaking up and

Not even an

iota of courage

is left in me,

Even body starts giving

up on walking…

But, the thirst and

hunger  continue

to camp tormently,

Before that,

O’ Lord, the Granter of

the moments of life!

Grant me the departure

of my soul

And, adjust the

remaining steps of the stairs

in my next life…

I’ve always lived

the life my way,

Let me even die

my way only,

Before I become

dependent on someone

Please call me to

Your goodself !

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – द्वादश अध्याय (19) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वादश अध्याय

(भगवत्‌-प्राप्त पुरुषों के लक्षण)

 

तुल्यनिन्दास्तुतिर्मौनी सन्तुष्टो येन केनचित्‌।

अनिकेतः स्थिरमतिर्भक्तिमान्मे प्रियो नरः।।19।।

 

निंदा-स्तुति एक से, मिले जो उससे तुष्ट

स्थिर मति, अनिकेत वह, भक्त मुझे प्रिय इष्ट।।19।।

 

भावार्थ :  जो निंदा-स्तुति को समान समझने वाला, मननशील और जिस किसी प्रकार से भी शरीर का निर्वाह होने में सदा ही संतुष्ट है और रहने के स्थान में ममता और आसक्ति से रहित है- वह स्थिरबुद्धि भक्तिमान पुरुष मुझको प्रिय है।।19।।

 

He to  whom  censure  and  praise  are  equal,  who  is  silent,  content  with  anything, homeless, of a steady mind, and full of devotion-that man is dear to Me.।।19।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – द्वादश अध्याय (18) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वादश अध्याय

(भगवत्‌-प्राप्त पुरुषों के लक्षण)

 

समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयोः।

शीतोष्णसुखदुःखेषु समः सङ्‍गविवर्जितः।।18।।

शत्रु मित्र है एक से, जिसे मान- अपमान

शीत-उष्ण, सुख दुख है सम, वह अलिप्त गुणवान ।।18।।

 

भावार्थ :  जो शत्रु-मित्र में और मान-अपमान में सम है तथा सर्दी, गर्मी और सुख-दुःखादि द्वंद्वों में सम है और आसक्ति से रहित है॥18॥

 

He who is the same to foe and friend, and in honour and dishonour, who is the same in cold and heat and in pleasure and pain, who is free from attachment.

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – द्वादश अध्याय (17) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वादश अध्याय

(भगवत्‌-प्राप्त पुरुषों के लक्षण)

 

यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्‍क्षति।

शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः।।17।।

जिसे न हर्ष न शोक है ,जिसे न द्वेष न काम

शुभ औ” अशुभ से मुक्त जो ,भक्त वो प्रिय निष्काम ।।17।।

 

भावार्थ :  जो न कभी हर्षित होता है, न द्वेष करता है, न शोक करता है, न कामना करता है तथा जो शुभ और अशुभ सम्पूर्ण कर्मों का त्यागी है- वह भक्तियुक्त पुरुष मुझको प्रिय है।।17।।

 

He who neither rejoices, nor hates, nor grieves, nor desires, renouncing good and evil, and who is full of devotion, is dear to Me.।।17।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – द्वादश अध्याय (16) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वादश अध्याय

(भगवत्‌-प्राप्त पुरुषों के लक्षण)

 

अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः।

सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः।।16।।

 

जो पवित्र तत्पर प्रसन्न ,उदासीन अनपेक्ष

फल त्यागी हर कर्म का ,भक्त वो प्रिय सापेक्ष ।।16।।

 

भावार्थ :  जो पुरुष आकांक्षा से रहित, बाहर-भीतर से शुद्ध (गीता अध्याय 13 श्लोक 7 की टिप्पणी में इसका विस्तार देखना चाहिए) चतुर, पक्षपात से रहित और दुःखों से छूटा हुआ है- वह सब आरम्भों का त्यागी मेरा भक्त मुझको प्रिय है।।16।।

 

He who is free from wants, pure, expert, unconcerned, and untroubled, renouncing all undertakings or commencements-he who is (thus) devoted to Me, is dear to Me.।।16।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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