श्री संजय भारद्वाज
(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के लेखक श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।
श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको पाठकों का आशातीत प्रतिसाद मिला है।”
हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है इस शृंखला की अगली कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों के माध्यम से हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ संजय उवाच # 75 – अर्द्धनारी-नटेश्वर ☆
मीमांसा की दृष्टि से वैदिक दर्शन अनन्य है। देवों के देव को महादेव कहा गया और परंपरा में महादेव अर्द्धनारी-नटेश्वर के रूप में विद्यमान हैं। अर्द्धनारी-नटेश्वर, स्त्री-पुरुष के सह अस्तित्व का प्रतीक हैं। नर के अस्तित्व को आत्मसात करती नारी और नारी से अस्तित्व पाता नर।
इस दर्शन की यथार्थ के धरातल पर पड़ताल करें तो पाते हैं स्त्री पुरुष को आत्मसात नहीं करती अपितु पुरुष में लीन हो जाती है।
एक बुजुर्ग दंपति के यहाँ जाना होता था। बुजुर्ग की पत्नी कैंसर से पीड़ित थीं। तब भी सदा घर के काम करती रहतीं। उन्हें आवभगत करते देख मुझे बड़ी ग्लानि होती थी। पीछे सूचना मिली कि वे चल बसीं।
लगभग बीस रोज़ बाद बुजुर्ग से मिलने पहुँचा। वे मेथी के लड्डू खा रहे थे। मुझे देखा तो आँखों से जलधारा बह निकली। बोले, “उसने जीवन भर कुछ नहीं मांगा, बस देती ही रही। घुटनों के दर्द के चलते मैं पाले में मेथी के लड्डू खाता हूँ। जाने से पहले इस पाले के लड्डू भी बना कर गई है, बल्कि हमेशा से कुछ ज्यादा ही बना गई।”
चंद्रकांत देवल ने लिखा है कि आत्महत्या करने से पहले भी स्त्री झाड़ू मारती है, घर के सारे काम निपटाती है, पति और बच्चों के लिए खाना बनाती है, फिर संखिया खाकर प्राण देती है।
पुरुष का नेह आत्मसात करने का होता है, स्त्री का लीन होने का।
आत्मसात होने से उदात्त है लीन होना। निपट अपढ़ से उच्च शिक्षित, हर स्त्री लीनता के इस भाव में गहन दीक्षित होती है।
समर्पण से संपूर्णता की दीक्षा और लीन होने का पाठ स्त्री से पढ़ने की आवश्यकता है।
जिस दिन यह पाठ पढ़ा सुना और गुना जाने लगेगा, अर्द्धनारी-नटेश्वर महादेव घर-घर जागृत हो जाएँगे।
© संजय भारद्वाज
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
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