श्री राजेन्द्र तिवारी
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय आलेख ‘थोड़ा और…‘।)
☆ आलेख – थोड़ा और… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆
पेरिस ओलंपिक, अब समापन की ओर है। करीब करीब सभी खेल हो चुके हैं और ओलंपिक क्लोजिंग सेरेमनी करीब आ गई है। देश के 140 करोड़ लोगों में से 117 लोगों का दल, 16 स्पर्धा में, 70 पुरुष और 46 महिलाएं ओलंपिक खेलों में भाग लेने के लिए पेरिस गया था।
हम अभी तक केवल एक सिल्वर और पांच ब्रांज मेडल प्राप्त कर सके हैं। क्या हम इसी से खुश हैं, या हमें थोड़े और मेडल मिलना चाहिए थे? हम आकलन करें, हमसे कहां भूल हुई कि जिन खेलों में हम चौथे स्थान पर रहे, हम तीसरे स्थान पर आ सकते थे। जिनमें तीसरे पर रहे उससे और आगे जा सकते थे। हम एक दूसरे को शाबाशी दे रहे हैं, एक दूसरे को बधाई दे रहे हैं कि हम एक सिल्वर और चार पांच मेडल लेकर लौटे हैं।
इसको लेकर भी बातें हो रही हैं, कि हम कहां पर पिछड़ गए? क्या कमी रह गई हमारे खिलाड़ियों की ट्रेनिंग में? क्या हम और बेहतर सुविधा अपने देश में खिलाड़ियों को दे सकते थे? क्या हम उनके लिए और अच्छी परिस्थितियों का निर्माण कर सकते थे? अगर 28 राज्यों से हम खिलाड़ी देखें तो क्यों नहीं? राज्यों की प्रतिस्पर्धा में जिन राज्यों के खिलाड़ी नहीं पहुंच पाए, उनमें क्या कमी है क्या वह राज्य इस बात का आकलन करेंगे कि वह अपने खिलाड़ियों को और अधिक सुविधा देकर उन्हें अच्छे ग्राउंड, अच्छी ट्रेनिंग, अच्छी डाइट, अच्छे उपकरण देकर तैयार करेंगे ताकि देश की टीम में उनका भी प्रतिनिधित्व हो सके। जो अभी बहुत कम है, छोटे-छोटे देश हमसे आगे निकल गए, छोटे-छोटे देशों में, खेलों पर अधिक राशि खर्च की जाती है, खिलाड़ियों को शुरू से ही बेहतर तकनीक और बेहतर साधन मुहैया कराए जाते हैं। अच्छे विदेशी कोच उन्हें ट्रेनिंग देते हैं, जो हमारे यहां नहीं है हमारे यहां खेल संघो पर उनका कब्जा है जो कभी खेले ही नहीं। जो कभी खेल नहीं खेला, वह खिलाड़ियों की मनोदशा को नहीं समझ सकता। वह खेलों में नए-नए किस्म की टेक्नोलॉजी के बारे में बात नहीं कर सकता। आजकल खेल केवल शारीरिक क्षमता से नहीं बल्कि तकनीकि और मनोवैज्ञानिक ढंग से खेले जाते हैं, परंतु जो कभी खेला ही नहीं, वह यह सब बातें जान ही नहीं पाता। इस तरह हम खेलों में पिछड़ते जाते हैं। फिर आती है बात खेलों में राजनीति की, भाई भतीजावाद की, यह सब खेल का ही हिस्सा है। खैर हम तो यह कहेंगे कि थोड़ी मेहनत और, थोड़ा और…
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© श्री राजेन्द्र तिवारी
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