हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 199 ☆ वन तपोवन सा प्रभु ने किया… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “वन तपोवन सा प्रभु ने किया…। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 199 ☆ वन तपोवन सा प्रभु ने किया

भगवान जो करते हैं अच्छे के लिए करते हैं। कठोर निर्णय भले ही हृदय विदारक  हों किंतु न जाने कितनों को शिक्षित करते जाते हैं।

जब सब कुछ सहजता से मिलने लगे तो व्यक्ति उसका महत्व नहीं समझता ,मजाक बनाकर रख देता है। सम्मानित लोगों को अपमानित करना उसके बाएँ हाथ का खेल होता है। इस हार ने न जाने कितनों को आत्म मूल्यांकन हेतु विवश किया है। जो इस क्षेत्र के नहीं हैं वे भी कहीं न कहीं मानसिक रूप से इससे जुड़ाव कर रहे थे। एक साथ इतनी उम्मीदों का टूटना जिसकी आवाज सदियों तक ब्रह्मांड में गूंजती रहेगी।

कोई एक तत्व इसके लिए जिम्मेदार हो तो कहें पूरा का पूरा कुनबा वैचारिक रूप से अहंकारी हो गया था। बड़ बोलापन, शक्ति का केंद्रीकरण, एकव्यक्ति पूरी दुनिया बदल देगा ये भ्रम टूटना आवश्यक है। लोकतंत्र में हर व्यक्ति एक बराबर मूल्यवान है। संख्या बल योग्यता को नहीं परखता। ये सही है कि एक तराजू में सबको तौलने से योग्यता की उपेक्षा होती है जिसका दुष्परिणाम कार्यों  में झलकता है।

जब भी अयोग्य लोगों ने चालबाजियों का सहारा लिया है तो उन्हें हारे का सहारा भी नहीं मिलता है क्योंकि सत्य और ईमानदारी की ताकत के आगे कोई नहीं टिक सकता। सत्य भले ही कुछ समय के लिए बेबस दिखे किंतु सत्य अड़िग और चमकदार होता है तभी तो सत्यम शिवम सुंदरम से आगे कुछ भी नहीं होता है।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 287 ☆ आलेख – राष्ट्रीय एकता के प्रवर्तक “राम मोहम्मद सिंह आज़ाद” उर्फ शहीद उधमसिंह ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक आलेख – राष्ट्रीय एकता के प्रवर्तक “राम मोहम्मद सिंह आज़ाद” उर्फ शहीद उधमसिंह। 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 287 ☆

? आलेख – राष्ट्रीय एकता के प्रवर्तक “राम मोहम्मद सिंह आज़ाद” उर्फ शहीद उधमसिंह ?

सरदार उधमसिंह की फिलासफी सदैव सर्वधर्म समभाव और राष्ट्रीय एकता की रही।

उन्होने आत्मनिर्भर होते ही अमृतसर में पेंटर केरूप में एक दूकान शुरू की थी, जिस पर अपना नाम “राम मोहम्मद सिंह आज़ाद” लिखा था, तब उनकी आयु मात्र २० बरस रही होगी । डायर की हत्या के बाद भी जब उनकी उम्र ४० बरस थी उन्होंने पोलिस को अपना यही स्वयं से स्वयं को दिया गया नाम “राम मोहम्मद सिंह आज़ाद” ही बताया था। वे इस नाम को हिन्दू, मुस्लिम, सिख एकता के प्रतीक केरूप में देखते थे। जीवन पर्यंत सरदार उधमसिंह राष्ट्रीय एकता के प्रबल समर्थक रहे, वे दुनियां भर में हर भारतवंशी को अपने भाई की तरह भारतीय ही देखते रहे।

आज जब देश में धर्म और जातिगत ध्रुवीकरण, आरक्षण की राजनीति हो रही है तो यदि वे होते तो उन्हें कितना दुख होता, कल्पनातित है। आज जब सरदार उधमसिंह की जाति कम्बोज, अर्थात पंजाब के चर्मकार ढ़ूढ़ ली गई है, और देश की आजादी में दलित जातियों का योगदान जैसे विषयों पर दिल्ली के विश्वविद्यालय में संगोष्ठी के आयोजन हो रहे हैं, या ऐसे राष्ट्रीय एकता के विघटनकारी विषयों पर पी एच डी के शोध कार्य किये जा रहे हैं, तो भले ही सामाजिक अध्ययन की दृष्टि से यह सब कितना ही उचित क्यों न हो किन्तु यह उस शहीद उधमसिंह की आत्मा को शांति देने वाला नहीं हो सकता जिसने अपना नाम ही “राम मोहम्मद सिंह आज़ाद” रख लिया था  ।

* * * *

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 383 ⇒ प्यार की भूख… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “ककहरा।)

?अभी अभी # 383 ⇒ प्यार की भूख? श्री प्रदीप शर्मा  ?

भूख प्यास का आपस में वही संबंध है, जो दुःख दर्द का है, धूप छांव का है, दिन रात का है, जमीन आसमान का है, शरीर और आत्मा का है। हमें भूख भी लगती है और प्यास भी। भूख भोजन से ही मिटती है, और प्यास सिर्फ पानी से ही। कभी हम प्यासे मरते हैं, तो कभी भूखे। प्यासे को पानी, और भूखे को रोटी ही चाहिए।

प्यास कई तरह की होती है। हम यहां प्यार की प्यास की बात कर रहे हैं।

प्यार की प्यास किसे नहीं होती। क्या धरती और क्या आकाश, सबको प्यार की प्यास। प्यास और प्यार की कोई परिभाषा नहीं। संसार में इन दोनों का कोई विकल्प नहीं।।

क्या प्यार की भूख भी होती है। क्या भूख और प्यास की तरह हमें प्यार की प्यास और प्यार की भूख का भी अहसास होता है। शायद होता हो, लेकिन हमने कभी इस पर ध्यान ही नहीं दिया। प्यार की भूख प्यास क्या अलग अलग होती है।

कहीं कहीं, केवल प्यार से बोले दो मीठे शब्द ही यह काम कर जाते हैं, तो कहीं कहीं स्पर्श की भी आवश्यकता होती है। गर्मजोशी से हाथ मिलाना, गले मिलना, मां को बच्चे को बेतहाशा चूमना चाटना यह प्यार की प्यास है या प्यार की भूख, कहना आसान नहीं। बच्चे को भी प्यार की भूख होती है, हम उसके गाल पर पप्पी देते हैं, उसकी भूख शांत हो जाती है। आवेश, आलिंगन भी प्यार की भूख प्यास के ही संकेत हैं। अगर आप इसे अलग कर सकें तो करें।।

प्यार के मनोविज्ञान में हम नहीं चाहते, महात्मा फ्रायड दखलंदाजी करें। क्योंकि यही प्यार की भूख प्यास जब मीरा की राह पकड़ लेती है, तो मामला जिस्मानी से रूहानी हो जाता है। शायर इसे अपनी जबान में इस तरह बयां करता है ;

ये मेरा दीवानापन है

या मोहब्बत का सुरूर।

तू ना समझे तो है ये

तेरी नजरों का कुसूर।।

इंसान के पास तो जुबान है, वह अपनी बात कह सकता है, लेकिन जो पशु पक्षी बेजुबान हैं, क्या उनको भी प्यार की भूख प्यास का अहसास होता है। बिना प्रेम के कोई पशु पक्षी आपके पास नहीं फटकने वाला। जो सभी बेजुबान पशु पक्षियों को एक ही लठ से हांकते हैं, उन्हें जल्लाद कहा जाता है, इंसान नहीं।

गाय कुत्तों से हमारा बचपन से साथ रहा है। हमने इन्हें कभी पाला नहीं, बस जब कभी सामने आए, एक रोटी डाल दी और उन्हें पुचकार लिया, गाय की पीठ पर हाथ फेर दिया। गाय का शरीर प्रेम का स्पर्श पा सिहर उठता है, और कुछ ही देर में वह मुंह ऊंचा कर देती है, इस अपेक्षा के साथ कि आप उसकी गर्दन पर भी हाथ फेर देंगे। चौपायों के कहां हाथ होते हैं। इस वक्त हमें हमारी पीठ याद आ जाती है, जहां तक हमारे पूरे हाथ नहीं पहुंच पाते।।

पालतू पशु पक्षियों की अच्छी देखभाल होती है, अतः सावधानीपूर्वक उन्हें स्पर्श किया जा सकता है।

कुत्ता तो वैसे ही स्वामिभक्ति के लिए बदनाम है। स्वामी के लिए भक्ति का भाव कहें, अथवा कृतज्ञता का भाव, वह उसके चेहरे पर साफ झलकता है। इन प्राणियों का भाव इनकी आंखों में आसानी से पढ़ा जा सकता है। इनकी आंखें प्यार के लिए तरसती हैं, ये हमेशा प्यार के भूखे होते हैं।

उम्र और समझ में छोटे, लेकिन आकार में बड़े, इनके साथ बच्चे भी खेलते हैं, और बड़े भी।

बच्चों को इनके पिल्लों के साथ खेलने में बड़ा मजा आता है। आखिर उस उम्र में उनमें कहां भेद बुद्धि। फिर भी बड़ों की डांट तो खानी ही पड़ती है, छि: चलो घर, चलो हाथ पैर धोओ।

अगर इन पालतू कुत्तों को अनुशासित नहीं किया जाए, तो कभी कभी इनका प्यार महंगा भी पड़ सकता है। वह नासमझ प्राणी चाहता है, आप उसके साथ बच्चों की तरह खेलो। इस लाड़ प्यार में कभी उसके नाखून तो कभी उसके दांत आपको नुकसान पहुंचा सकते हैं। आखिर है तो वह जानवर ही।।

पक्षियों को पिंजरे में रखना अपराध है, फिर भी तोता पालना हमारी पुरानी परम्परा है। भागवत कथाओं में तो आपको, कहीं ना कहीं, एक शुकदेव जी पिंजरे में नजर आ ही जाएंगे। प्यार तो प्यार है, घरों में मछलियां भी पाली जाती हैं और कछुआ और खरगोश भी।

अजीब है यह, प्यार की भूख प्यास, कभी लौकिक, कभी अलौकिक ..!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 382 ⇒ विषय… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “विषय…।)

?अभी अभी # 382 ⇒ विषय ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

अगर विचार ही शून्य हों, तो विषय कहां से सूझे। सुबह परीक्षा तो देने जा रहे हैं, लेकिन पेपर किस विषय का है, यह ही पता नहीं, तो परीक्षा क्या खाक देंगे। बिना तैयारी परीक्षा नहीं दी जाती। लेकिन जहां जीवन में रोज परीक्षा चल रही हो, वहां बिना प्रश्न पत्र और बिना विषय के ही परीक्षा देनी पड़ती है।

अभी अभी मेरी रोज परीक्षा लेता है, आज भी ले रहा है। जब तक विषय वस्तु समझ नहीं पाता, विषय प्रवेश कैसे करूं। मुझे तो लगता है, यह विषय शब्द ही विष से बना है, क्योंकि जहां विषय है वहां विकार अवश्य ही होगा। जितना संबंध विषय का विकार से है, उतना ही वासना से भी है।।

अगर इस दृष्टिकोण से विषय सूची बनाई जाए तो उसमें विषधर और विषकन्या भी शामिल हो जाएंगे। विषपान तो केवल विश्वेश्वर नीलकंठ महादेव ही कर सकते हैं, हां विष वमन के लिए राजनीति के विषधर अवश्य मौजूद हैं।

तो क्या विषयांतर नहीं किया जा सकता। विषय में रहते हुए विषयांतर इतना आसान नहीं होता।

ज्ञानेंद्रियों द्वारा प्राप्त रस, पदार्थ या तत्त्व (जैसे—गंध और स्वाद का विषय)।

आधारिक कल्पना (जैसे अभी अभी का विषय क्या होगा)

अध्ययन की सामग्री, सब्जेक्ट आदि।

विवेचन, विचार, मैटर ..

वैसे विषय का शाब्दिक अर्थ, ज्ञानेंद्रियों द्वारा प्राप्त रस, पदार्थ या तत्त्व (जैसे—गंध और स्वाद का विषय) है। विषय का एक और व्यावहारिक अर्थ

आधारिक कल्पना अर्थात् theme और सब्जेक्ट है।।

संसार के सभी विषयों में तो सुख दुख हैं। जीव दुख से भागना चाहता है, उसे सिर्फ सुख की चाह है। सुख के विषय उसे प्रिय हैं,

अनंत सुख वह जानता नहीं, इसलिए विषय भोग में उलझा रहता है। नीरस जीवन किसे अच्छा लगता है, रसना बिना जीवन में रस ना। विषयासक्त और अनुरक्त से बेहतर स्थिति होती है, एक विरक्त की। विषय में विकार है, विरक्त में कोई विकार नहीं। सूरदास हमारी स्थिति बेहतर जानते हैं, शायद इसीलिए इस विषय को एक खूबसूरत मोड़ देकर कहते हैं ;

मेरो मन अनत कहां सुख पावै।

जैसे उड़ि जहाज कौ पंछी पुनि जहाज पै आवै॥

कमलनैन कौ छांड़ि महातम और देव को ध्यावै।

परमगंग कों छांड़ि पियासो दुर्मति कूप खनावै॥

जिन मधुकर अंबुज-रस चाख्यौ, क्यों करील-फल खावै।

सूरदास, प्रभु कामधेनु तजि छेरी कौन दुहावै॥

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 286 ☆ आलेख – उधमसिंह भारत पाकिस्तान में बराबरी से चाहे जाते हैं ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक आलेख – उधमसिंह भारत पाकिस्तान में बराबरी से चाहे जाते हैं। 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 286 ☆

? आलेख – उधमसिंह भारत पाकिस्तान में बराबरी से चाहे जाते हैं ?

स्वतंत्रता संग्राम में प्राणों को न्यौछावर करने वाले देश के महान सपूतों को डाक विभाग उन पर टिकिट जारी कर सम्मान देता है। भारतीय डाक विभाग ने ३१ जुलाई १९९२ को शहीद ऊधम सिंह की फोटो की एक रुपए की डाक टिकट जारी की थी। इस की दस लाख टिकिटें जारी कि गईं थी। इस टिकिट का डिजाइन श्री शंख सामंत द्वारा किया गया है। जिससे देश की युवा एवं भावी पीढ़ी को शहीदों के बलिदानों के प्रति जागरूक किया जा सके। टिकिट जारी करते हुये प्रथम दिवस आवरण भी जारी होता है जिस पर उधमसिंह के संदर्भ में प्रामाणिक जानकारियां संजोई गई हैं। किन्तु उसका दोबारा कोई रिप्रिंट नही किया गया इसलिये ऐसा लगता है कि डाक विभाग केवल एक बार ही शहीदों को याद कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेता है। इस समय देश के किसी भी डाकघर में शहीद ऊधम सिंह से सम्बन्धित डाक टिकट प्रचलन में नहीं है। फिलाटेली में रुचि रखने वाले संग्रह कर्ताओ के पास अवश्य वह टिकट संग्रहित हैं। डाक टिकट पुनः जारी नहीं करने का कारण जानने के बारे में आरटीआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार किसी विशेष विषय पर विभाग केवल एक बार डाक टिकट इश्यू करता है, जबकि वाइल्ड लाइफ, एन्वॉयरमेंट, ट्रांसपोर्ट, नेचर, चिल्ड्रन डे, फिलाटैलि डे, सीजनल ग्रीटिंग्स इत्यादि विषयों पर रेगुलर डाक टिकट फिर फिर जारी होते रहते हैं।

पाकिस्तान में भी शहीद उधम सिंह पर डाक टिकट जारी करने की मांग की गई है।

शहीद भगत सिंह, शहीद उधम सिंह, लाला लाजपत राय जैसे स्वातंत्रय वीर संयुक्त भारत में आजादी से पहले आज के पाकिस्तान से थे। कुछ वर्ष पहले लाहौर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के लॉन में उधम सिंह का ८०वां शहीदी दिवस मनाया गया था। शहीद उधम सिंह क्रांतिकारी के साथ एडवोकेट भी थे। उन्होंने विदेश में रह कर ही वकालत की थी। पाकिस्तान ने शहीद भगत सिंह के बाद उधम सिंह को भी अपना शहीद मान लिया है। पाकिस्तान में उधमसिंह के शहीदी दिवस की बरसी पर कैंडल मार्च निकाला गया था और उनकी शहादत को नमन किया गया। इस मौके पर वक्ताओं ने उधम सिंह की देश की आजादी के लिए दी गई कुर्बानी को याद किया गया। भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन पाकिस्तान के चेयरमैन एडवोकेट इम्तियाज कुरैशी और अब्दुल रशीद ने पाकिस्तान सरकार से अपील की कि शहीद उधम सिंह के नाम पर डाक टिकट जारी किया जाए और पाकिस्तान में किसी एक सड़क का नाम उनके नाम पर रखा जाए।

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© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

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मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 86 – देश-परदेश – उधो का लेना ना माधो का देना ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख # 86 ☆ देश-परदेश – उधो का लेना ना माधो का देना ☆ श्री राकेश कुमार ☆

उपरोक्त चित्र में कुतुर हमारे देश की बहुत बड़ी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व का प्रतीक हैं। चित्र में कुतुर गांव में हो रहे किसी कार्यक्रम की जानकारी बहुत दूर से ले रहा हैं।

ये ही हाल, हमारे जैसे फुरसतिये जो दिन भर सोशल मीडिया के व्हाट्स ऐप, यू ट्यूब, एक्स, फेस बुक पर तैयार शुदा मैसेज को तेज़ी से आदान प्रदान करते रहते हैं, जिनको राजनीति से कुछ भी लेना देना नहीं है। आज सुबह से घर के टीवी पर चैनल बदल बदल कर परिणामों की बाट जोह रहे हैं।

अधिकतर सेवानिवृत है, कोई भी सरकार बने इन पर कोई सीधा प्रभाव नहीं पड़ता हैं। लेकिन सोशल मीडिया के मंच से इतनी चिंता व्यक्त करते है, मानो इनका कोई सगा वाला चुनाव में प्रत्याशी हो। गडरिया की बैलगाड़ी  के नीचे छाया में चलने वाले कुतुर की गलतफहमी की कहानी याद आ गई।

ये लोग अपनी नौकरी के समय में भी काम की चिंता का जिक्र करने में अग्रणी रहा करते थे। कार्यालय में कहां/ क्या चल रहा है, इसकी पूरी जानकारी इन्हें कंठहस्त रहती थी, सिवाय इनकी सीट के कार्य को छोड़कर।

अधिकतर व्हाट्स एपिया साथी क्षेत्र के एमएलए छोड़ कॉरपोरेटर तक को कभी ना मिले होंगे। कभी किसी नेता की सभा या रोड़ शो में भी नहीं गए होंगे, लेकिन राजनीति के सैंकड़ो मैसेज प्रतिदिन कॉपी/ पेस्ट करने में इनका कोई सानी नहीं।

टीवी पर महीनों से हो रही स्तरहीन बहस को इतने गौर से  सुन कर अपनी तत्काल टिपण्णी करने में ये लोग अव्वल रहते हैं। कभी भी किसी दल को या सामाजिक संस्थाओं को सामाजिक/ आर्थिक सहयोग भी नहीं किया होगा, ऐसे लोगों द्वारा, लेकिन जन सहयोग के ज्ञान की गंगा बहाने में सबसे आगे रहते हैं।

नई सरकार के गठन में एक सप्ताह तक लग सकता है, तब तक ये टीवी चैनल चोबीस घंटे चुनाव विश्लेषण कर घिसी पिटी दलीलें परोसते रह जायेंगे।

“जो जीता वो सिकंदर” जैसे गीत सुनाए जायेंगें। पुराना गीत ” आज किसी की हार हुई है, और किसी की जीत रे” भी इन समय खूब मांग में रहता हैं।

चुनाव में पराजित उम्मीदवारों के लिए उर्दू जुबां के जानकार कहने लगेंगे ” गिरते है शहसवार ही मैदाने जंग में….” चुनाव पर टीका टिप्पणियां करने वालों का मुंह बंद करवाने के लिए कहा जाएगा” every thing is fair in love, war and elections.

हम टीवी और समाचार पत्र प्रेमियों का कुछ नहीं हो सकता है। चुनाव परिणाम से अति उत्साहित या निरुत्तर मत हों। ऐसे ही जीवन चलता रहेगा।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान)

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 380 ⇒ दिनदहाड़े… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “दिनदहाड़े।)

?अभी अभी # 380 ⇒ दिनदहाड़े? श्री प्रदीप शर्मा  ?

सुनने में यह शब्द अजीब भले ही लगे, लेकिन इसका मतलब सब जानते हैं। अक्सर दोपहर और शाम के स्थानीय समाचार पत्रों में ऐसी खबरें अधिक प्रकाशित होती हैं। ये खबरें सनसनीखेज होती हैं, जिनमें दिनदहाड़े लूट, हत्या, डाका और नकबजनी जैसी आपराधिक घटनाएं शामिल होती हैं।

ईश्वर ने रात सोने के लिए बनाई हैं, फिर भी आसुरी शक्तियां रात को ही उत्पात करती हैं, लेकिन जब ये शक्तियां दिन में भी अपनी काली करतूतों से बाज नहीं आती, तो प्रचंड अग्निपुंज आदित्य नारायण का मन बड़ा क्षुब्ध हो जाता है, दिन अपनी वेदना किससे कहे, उसका दिल ऐसे कुकृत्यों को देख दहाड़ उठता है, और हम लाचार ऐसी दिनदहाड़े घटनाओं को फटी आंखों से देखते रह जाते हैं। शायद इसी को कलयुग कहते हों।।

व्याकरण का ऐसा कोई नियम नहीं है, किस शब्द का कब, कहां और कैसे प्रयोग किया जाए। दिनदहाड़े शब्द में प्रमुख दिन है। जो शब्द प्रचलन में आ गया, वह हमें भा गया। अगर भरी दोपहर में कोई आपसे घर मिलने आए, तो आप यही कहेंगे न, अरे भरी दोपहरी में कैसे कष्ट किया, आइए, थोड़ा सुस्ताइए, ठंडा गरम लीजिए। क्या आप यह कह सकते हैं, दिनदहाड़े कैसे तशरीफ लाए। अगर कह भी दिया, तो इसमें क्या गलत है।

जो काम दिनदहाड़े हो रहे हैं, उनको हम स्वीकार क्यों नहीं करते। क्यों हमने दिनदहाड़े शब्द को गलत अर्थ में ही स्वीकार किया है। और अगर किया भी है, तो आप खुलकर उसका दिनदहाड़े प्रयोग क्यों नहीं करते।।

दुनिया में हर काम आपकी मनमर्जी से नहीं होते। दिनदहाड़े लूट चल रही है, आप क्या कर सकते हैं।

दिनदहाड़े इतनी गर्मी पड़ रही है, आप स्वीकार क्यों नहीं करते। हमारी आज की परिभाषा तो यही है, जो भी काम दिन में चल रहा है, वह दिनदहाड़े चल रहा है, और धड़ल्ले से चल रहा है। सही गलत का फैसला करने वाले आप कौन होते हैं।

आईआईटी और आईआईएम में मोटिवेशन स्पीच, और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के साथ साथ ध्यान और पूजा अर्चना के कोर्स भी रखे जाएंगे, क्योंकि एक निरुत्तर योगी आज वहां इसका लाइव डिमॉन्सट्रेशन (सजीव प्रदर्शन) कर रहा है। ध्यान रात में किया जाए, अथवा दिनदहाड़े चमत्कार तो साक्षात् नजर आ ही जाता है।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 243 – असार का सार ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 243 ☆ असार का सार ?

मनुष्य के मानस में कभी न कभी यह प्रश्न अवश्य उठता है कि उसका जन्म क्यों हुआ है? क्या केवल जन्म लेने, जन्म को भोगने और जन्म को मरण तक ले जाने का माध्यम भर है मनुष्य?

वस्तुत: जीवन समय का साक्षी बनने के लिए नहीं है अपितु समय के पार जाने की यात्रा है। अपार सृष्टि के पार जाने का, मानव देह एकमात्र अवसर है, एक मात्र माध्यम है। यह सत्य है कि एक जीवन में कोई बिरला ही पार जा पाता है, तथापि एक जीवन में प्रयास कर अगले तिरासी लाख, निन्यानवे हजार, नौ सौ निन्यानवे जन्मों के फेरे से बचना संभव है। मानव देह में मिले समय का उपयोग न हुआ तो कितना लम्बा फेरा लगाकर लौटना पड़ेगा!

जीवन को क्षणभंगुर कहना सामान्य बात है। क्षणभंगुरता में जीवन निहारना, असामान्य दर्शन है। लघु से विराट की यात्रा, अपनी एक कविता के माध्यम से स्मरण हो आती है-

जीवन क्षणभंगुर है,

सिक्का बताता रहा,

समय का चलन बदल दिया,

उसने सिक्का उलट दिया,

क्षणभंगुरता में ही जीवन है,

अब सिक्के ने कहा,

शब्द और अर्थ के बीच,

अलख दृष्टि होती है,

लघु से विराट की यात्रा

ऐसे ही होती है.. !

ज्ञान मार्ग का जीव मनुष्येतर जन्मों को अपवाद कर देता है, एक छलांग में इन्हें पार कर लौट आता है फिर मनुज देह को धारण करने, फिर पार जाने के लिए।

मनुष्य जाति का आध्यात्मिक इतिहास बताता है कि ज्ञानशलाका के स्पर्श से शनै:-शनै: अंतस का ज्ञानचक्षु खुलने लगता हैं। अपने उत्कर्ष पर ज्ञानचक्षु समग्र दृष्टिवान हो जाता है महादेव-सा। यह दर्शन सम्यक होता है। सम्यक दृष्टि से जो दिखता है, अद्वैत होता है विष्णु-सा। अद्वैत में सृजन का एक चक्र अंतर्निहित होता है ब्रह्मा-सा। ज्ञान मनुष्य को ब्रह्मा, विष्णु, महेश-सा कर सकता है। सर्जक, सम्यक, जागृत होना, मनुष्य को त्रिदेव कर सकता है।

जिसकी कल्पना मात्र से शब्द रोमांचित हो जाते हैं, देह के रोम उठ खड़े होते हैं, वह ‘त्रिदेव अवस्था’ कैसी होगी! भीतर बसे त्रिदेव का साक्षात्कार, द्योतक है सृष्टि के पार का।

असार है संसार। असार का सार है मनुष्य होना। सार का स्वयं से साक्षात्कार कहलाता है चमत्कार। यह चमत्कार दही में अंतर्निहित माखन-सा है। माखन पाने के लिए बिलोना तो पड़ेगा। माँ यशोदा ने बिलोया तो साक्षात श्याम को पाया।

संभावनाओं की अवधि, हर साँस के साथ घट रही है। अपनी संभावनाओं पर काम आरंभ करो आज और अभी। असार से केवल ‘अ’ ही तो हटाना है। साधक जानता है कि अ से ‘आरंभ’ होता है। आरंभ करो, सार तुम्हारी प्रतीक्षा में है।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

निमंत्रण- 🕉️ रामोत्सव

रविवार दि. 2 जून 2024, प्रात: 10:30 बजे, स्थान- श्रीराम मंदिर, खडकी, पुणे

सद्मार्ग मिशन के पाँचवें वर्ष में प्रवेश के अवसर पर रामोत्सव आयोजित किया जा रहा है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित आयोजन होंगे-

1) राम, राम-सा।

प्रभु श्रीराम के विभिन्न आयामों पर ज्ञानमार्ग के पथिक संजय भारद्वाज का संगीतमय प्रबोधन।

2) सामूहिक श्रीरामरक्षास्तोत्रम् पाठ। 3) सामूहिक श्रीराम स्तुति। 4) सामूहिक हनुमान चालीसा।

आप सब रामोत्सव में सादर आमंत्रित हैं। कृपया अपनी उपस्थिति की पुष्टि करें। इससे व्यवस्था में सुविधा रहेगी। साधुवाद।

संयोजक, सद्मार्ग मिशन, 9890122603

🕉️ 💥 श्री हनुमान साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र ही दी जाएगी। 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 379 ⇒ अथ श्री महाभारत कथा… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “अथ श्री महाभारत कथा।)

?अभी अभी # 379 ⇒ अथ श्री महाभारत कथा? श्री प्रदीप शर्मा  ?

भारत की यह कथा आजादी से शुरू होती है।  सन् १९४७ में भारत आजाद हुआ, बंटवारे के साथ। नेहरू गांधी जिम्मेदार, कुबूल, आगे बढ़ें। भारत को इंडिया भी कहा जाता था।  एक ही सिक्के के दो पहलू थे, भारत और इंडिया।  केवल सिक्के पर ही नहीं, हर भारतीय मुद्रा पर हिंदी में भारत और अंग्रेजी में India, आज भी अंकित है, और साथ में गांधी जी का चित्र भी।  

जग में सुंदर हैं दो नाम,

चाहे कृष्ण कहो या राम

की तर्ज पर चाहे इंडिया कहो या भारत, दोनों शब्दों में करोड़ों भारतीयों का दिल बसता है।  बड़े गर्व से याद आता है, मेक इन इंडिया, शाइनिंग इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया और डिजिटल इंडिया। भारत माता की जय और आय लव माय इंडिया।।

लोकतंत्र में राजा नहीं होता, सत्ता पक्ष और विपक्ष होता है। पहले देश का बंटवारा, और अब नाम का बंटवारा।  स्वार्थ की राजनीति ने, और सत्ता के मोह ने, एक नया इंडिया राजनीतिक गठबंधन खड़ा कर दिया, और बेचारा भारत देखता ही रह गया।  भारत और इंडिया के नाम पर धर्म और अधर्म की राजनीति भी शुरू हो गई।

सत्ता के लिए एक और महाभारत।

महाभारत के समय में तो कौरव पांडव भी भाई भाई थे, लेकिन वहां भी धर्म अधर्म की लड़ाई थी।  एक तरफ महाराज धृतराष्ट्र – गांधारी पुत्र दुर्योधन और उसके सौ भाई और दूसरी ओर पांच कुंती पुत्र पांडव।  आज के महाभारत में हमें धृतराष्ट्र, दुर्योधन, दानवीर कर्ण, शकुनि, द्रोणाचार्य और कई कृपाचार्य तो नजर आते हैं, लेकिन धर्मराज युधिष्ठिर, वीर अर्जुन, महात्मा विदुर, ज्ञानी उद्धव और सारथी श्रीकृष्ण कहीं नजर नहीं आते।।

इतिहास साक्षी है, जब भी राम रावण युद्ध हुआ है, अथवा महाभारत हुआ है, सदा सत्य की और धर्म की ही विजय हुई है।  जो सनातन सत्य है, वह कभी बदल नहीं सकता।  देवासुर संग्राम में भी सदा देवताओं की ही विजय हुई है।  

आज एक स्वयंभू श्रीकृष्ण हमें कलयुग और द्वापर की जगह वापस त्रेता युग में ले जाने को तत्पर हैं।  राम और कृष्ण की तरह वे ही भारत और इंडिया के प्रतीक हैं, भारत फिर एक बार चैन की बंसी बजाएगा, अधर्म का नाश होगा, रामराज्य फिर से आएगा।  इंडिया इज भारत, भारत इज इंडिया।  नो मोर महाभारत।  

मेरा भारत महान।  

जय भारत..!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 378 ⇒ सनातन में संशोधन… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सनातन में संशोधन ।)

?अभी अभी # 378 ⇒ सनातन में संशोधन? श्री प्रदीप शर्मा  ?

सनातन कोई संविधान नहीं, जिसमें संशोधन किया जा सके। संविधान के निर्माता होते हैं,  वह लिखित में होता है, इसलिए समय और परिस्थिति के अनुसार उसमें संशोधन किया जा सकता है। सनातन के साथ ऐसा कुछ नहीं। जो सत्य है, वही सनातन है। सनातन शब्द सत् और तत् से मिलकर बना हुआ है। हमारे देश में वैदिक धर्म का इतिहास बहुत पुराना है। जो शाश्वत है, वही सनातन है।

जो सत्य है, शाश्वत है, वही सनातन है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता को धर्म से लिंक करना बहुत जरूरी है, क्योंकि हिंदू धर्म के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश ही इस सृष्टि के जन्मदाता, पालक और संहारक हैं।।

हमने पहले राजनीति को धर्म से लिंक किया और फिर धर्म को सनातन से लिंक कर दिया। जिस तरह आपके बैंक अकाउंट को आधार और पैनकार्ड से लिंक करना जरूरी है, उसी तरह धर्म का राजनीति और सनातन से लिंक करना भी उतना ही जरूरी है।

आज सनातन से सत्य गायब है, क्योंकि उसे धर्म और राजनीति से जोड़ दिया गया है। जो सत्य है वह सनातन नहीं, जो सनातन है वही सत्य है।

आपने सुना नहीं,  सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं।।

वैसे भी आजकल सत्य को कौन परेशान कर रहा है।

सारे मनोरथ जब झूठ के सहारे पूरे हो रहे हों, तो सत्य को परेशान नहीं किया जाता। हमने फिर भी सत्य को सम्मान देने के लिए उसे राम नाम से जोड़ दिया है। राम नाम सत्य है, और यह निर्विवाद सत्य है।

हमें जब भूख लगती है, तो हम सच की सौगंध खा लेते हैं, थाने में हमें सच उगलवाना आता है। सच उगलवाने के लिए हमने मशीन भी इजाद की है।

पद और गोपनीयता की शपथ तो हमने कई बार खाई है, जब जब भी दल बदला है, पार्टी बदली है।।

सत्य सनातन नहीं, सनातन धर्म ही सत्य है। बस इसे राजनीति से लिंक करवाना जरूरी है। उसी से धर्म की रक्षा संभव है, सनातन सुरक्षित है। हमने सनातन में सिर्फ इतना संशोधन जरूर कर दिया है,  सत्य सनातन नहीं, सनातन धर्म ही सत्य है। जाओ सत्य, तुम आजाद हो..!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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