श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “भौंकने का अधिकार…“।)
अभी अभी # 288 ⇒ भौंकने का अधिकार… श्री प्रदीप शर्मा
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दुनिया बनाने वाले ने सभी प्राणियों को कुछ जन्मसिद्ध अधिकार दिये हुए हैं, इनमें बोलना, काटना और भौंकना भी शामिल है। मनुष्य तो खैर, इन सभी में आय एम द सर्वश्रेष्ठ है ही, क्योंकि वह दिमाग की खाता है। केवल उसमें ही नर से नारायण बनने की संभावना निहित है और केवल यही गुण जहां उसके उत्थान का कारण बनता है वहीं यही घमंड उसके पतन के लिए भी उत्तरदायी होता है।
जुबां और दिमाग का धनी यह इंसान इतना चालाक है कि इसने सभी प्राणियों से कुछ न कुछ गुण/अवगुण अपने जीवन में उतार लिए हैं। अकारण रात भर जागना, कुत्ते की तरह भौंकना और अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति के संसाधनों का सदुपयोग और दुरुपयोग दोनों ही इसमें शामिल है।।
बिना कारण सृष्टि के किसी जीव का जन्म नहीं होता। एक फूल के खिलने में जितना हाथ एक तितली का है, उतना ही एक भंवरे का भी। एक मधु मक्खी किसके इशारे पर छत्ते में शहद का निर्माण करती है, कोई नहीं जानता। मुर्गी किससे पूछकर अंडे देती है, गाय भैंस क्यों दूध देती है। एक रेशम का कीड़े से यह बुद्धिमान मनुष्य रेशम तक निकाल लेता है। और शायद इसीलिए वह इस सृष्टि का मालिक भी बन बैठा है।
अब आप एक श्वान को ही ले लीजिए ! उल्लू की तरह वह रात भर जागने के लिए अभिशप्त है। वह बिना वेतन का एक चौकीदार है। चूंकि वह बोल नहीं सकता, अतः पहरेदारी करते वक्त उसे भौंकने का अधिकार मिला है। उसके हाथ में कोई डंडा अथवा बंदूक नहीं, इसलिए अपनी सुरक्षा के लिए वह किसी को काट भी सकता है।।
आज का नर, जो नारायण भी बन सकता है, कभी वानर ही तो था। आज भी उसकी नकल करने की आदत नहीं गई। सांप की तरह डंसना और कुत्ते की तरह भौंकना भी उसमें शामिल है। हम अगर कुत्ते की भाषा समझते तो शायद उसके भावों को पकड़ पाते। वह हमसे ज़्यादा समझदार है। जैसा आप सिखाओ, सीख ही लेता है। जो इंसान खुद एक बंदर की तरह नाचता फिरता है, वह मदारी बन, पहले सड़कों पर बंदरों का नाच करता है और बाद में पढ़ लिखकर नच बलिए में शामिल हो जाता है।
बंदर से नाचने का और कुत्ते से भौंकने का अधिकार भी आज इंसान ने छीन लिया है। कुत्ता मालिक का हो या सड़क का, जिस तरह भौंकना उसका जन्मसिद्ध अधिकार है, आज राजनीति में भी भौंकने का अधिकार जितना विपक्ष के पास है उतना ही सत्ता पक्ष के पास भी।।
अंतर सिर्फ इतना है किसी के गले में सत्ता का पट्टा है तो कोई निर्विघ्न सड़क पर घूम रहा है। Have और have nots की लड़ाई हमने इन मूक प्राणियों से सीखी या इन्हें सिखाई यह कहना बड़ा मुश्किल है।
इंसान के साथ रह रहकर श्वान, इंसानों के तौर तरीके सीख गया। एक इशारे पर चुप रहना, दुम हिलाना सीख गया। काश इंसान भी इन मूक प्राणियों से कुछ सीख पाता। अपनी भाषा छोड़ इनकी भाषा में भौंकना न तो राजा को शोभा देता है और न ही प्रजा को। मीठी जुबां दी बोलने को, इसमें जहर कौन घोल गया। मैं देशभक्त, वह देशद्रोही, कानों में यह कौन बोल गया।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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