ई-अभिव्यक्ति: संवाद
☆ ई-अभिव्यक्ति: संवाद ☆ कोरोना आपदा के क्षण (लॉकडाउन, क्वारंटाइन और आइसोलेशन) ☆ हेमन्त बावनकर
प्रिय मित्रो,
आज हम सब जीवन के एक अत्यंत कठिन दौर से गुज़र रहे हैं। एक ऐसा कालखंड जिसकी किसी ने कभी कल्पना तक नहीं की थी।
ई-अभिव्यक्ति परिवार भी इस आपदा से सुरक्षित नहीं रह पाया। हमारे कई सम्माननीय लेखक और पाठक भी इस आपदा से ग्रसित हुए एवं अधिकतर ईश्वर की अनुकंपा से एवं आपके अपार स्नेह और दुआओं से इस आपदा से सुरक्षित निकल आए।
इस दौर से मैं स्वयं एवं श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी (संपादक – ई-अभिव्यक्ति (हिन्दी) अभी हाल ही में स्वस्थ होकर स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं।
यह ईश्वर की अनुकंपा एवं आप सब का अपार स्नेह ही है जो हम आप की सेवा में पुनः उपस्थित हो सके। हमें पूर्ण विश्वास है कि हम शनैः शनैः पुनः उसी ऊर्जा के साथ स्वस्थ एवं सकारात्मक साहित्य सेवा में अपना योगदान अविरत जारी रख सकेंगे।
आज हम किसी वैज्ञानिक फंतासी में जीवाणु युद्ध के पात्रों की तरह जीवन जीने को मजबूर हैं। जहां तक दृष्टि जाती है वहाँ तक ऐसा कोई परिवार, संबंधी या मित्र नहीं है जिसके निकट संबंधियों या मित्रगणों में किसी का कोविड से निधन न हुआ हो या कोविड से ग्रस्त न हुआ हो । ऐसा कोई दिन नहीं जाता है जब सोशल मीडिया में किसी के कोविड ग्रस्त होने या निधन का संदेश नहीं मिलता। ऐसे समय सुप्रसिद्ध शायर बशीर बद्र की पंक्ति – “अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा” अक्सर याद आती हैं। श्रद्धांजलि अर्पित करते हम सब की उँगलियाँ थक गईं है और आँसू सूख गए हैं।
वह स्वच्छंद बीता हुआ समय कब आयेगा यह भी कल्पना मात्र ही है। पता नहीं वह कभी आयेगा भी या नहीं। वह बीता हुआ एक एक क्षण स्वप्न सा लगता है। अब तो बस ‘मास्क’ और हैंड सेनिटाइजर ही जीवन के महत्वपूर्ण अंग हो गए हैं । ऐसे में फिर बशीर बद्र की कालजयी पंक्ति – “ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से रहा करो” आज के परिपेक्ष्य में सदा के लिए सचेत करती है।
इस आपदा के समय सभी लोग किसी न किसी रूप में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से मानवता में अपना योगदान दे रहे हैं। सबकी अपनी-अपनी सीमायें हैं। कोई व्यक्तिगत रूप से, कोई चिकित्सकीय सहायता के रूप से तो कोई आर्थिक सहायता के रूप से अपना योगदान दे रहे हैं।
ऐसे में कुछ लोग सम्पूर्ण मानवता के लिए अपना अभूतपूर्व आध्यात्मिक योगदान दे रहे हैं। उनका मानना है कि हमारी वैदिक परंपरा के अनुसार यदि हम सामूहिक रूप से प्रार्थना, श्लोकों का उच्चारण करें तो समस्त भूमण्डल में एक सकारात्मक ऊर्जा का संचरण होता है और “वसुधैव कुटुम्बकम” की अवधारणाना के अंतर्गत समस्त मानवता को इसका सकारात्मक लाभ अवश्य मिलता है। इस आध्यात्मिक अभियान के प्रणेता श्री संजय भारद्वाज जी के हम हृदय से आभारी हैं जिन्होंने हमारी जिज्ञासा स्वरुप ह्रदय में उत्पन्न कुछ प्रश्नों का उत्तर एक साक्षात्कार स्वरुप दिया है। इस सकारात्मकता का अनुभव मैंने स्वयं अपने “होम आइसोलेशन” के समय प्राप्त किया है।
हमें पूर्ण विश्वास है कि वर्तमान परिस्थितयों में आपदा के इन क्षणों (लॉकडाउन, क्वारंटाइन और आइसोलेशन) में अध्यात्म द्वारा स्वयं एवं अपने आसपास सकारात्मक ऊर्जा के संचरण के लिए आपकी भी अध्यात्म सम्बन्धी जिज्ञासाओं की पूर्ति आध्यात्मिक अभियान “आपदां अपहर्तारं” के इस साक्षात्कार के माध्यम से पूर्ण हो सकेगी।
विदित हो कि इस आध्यात्मिक अभियान “आपदां अपहर्तारं” एक आज एक वर्ष पूर्ण हो जायेंगे और आपके ही एक और अभियान “हिंदी आंदोलन” ने इस वर्ष अपने सफल 26 वर्ष पूर्ण किये हैं। इस निःस्वार्थ वैश्विक एवं आध्यात्मिक मानव सेवा के लिए इन दोनों अभियानों के प्रणेताओं श्री संजय भारद्वाज जी एवं श्री सुधा भारद्वाज जी को हार्दिक शुभकामनायें।
हमारी इस अनुपस्थिति के दौर में भी ई-अभिव्यक्ति (मराठी) के संपादक मण्डल के हम हृदय से आभारी हैं जिन्होने इस यात्रा को अपने व्हाट्स एप ग्रुप में जारी रखा। इस समर्पण, उत्साह, अपार स्नेह एवं सहयोग की भावना वास्तव में अनुकरणीय तथा सराहनीय कदम है। इस समर्पण की भावना एवं जिजीविषा को सादर नमन।
ई-अभिव्यक्ति परिवार की ईश्वर से करबद्ध प्रार्थना है कि जो वर्तमान में कोविड से जूझ रहे हैं उन्हें इस आपदा/पीड़ा को सहन करने की शक्ति प्रदान करे ताकि वे पुनः अपने परिवार के साथ सामान्य जीवन यापन कर सकें, दिवंगत आत्माओं को शांति प्रदान करे एवं उनके परिजनों को इस आकस्मिक दुःख को सहन करने की असीमित शक्ति प्रदान करें।
हमारा पूर्ण प्रयास है कि हम इस रविवार 23 अप्रैल से आपकी सेवा में पुनः अविरत उपस्थित हो सकें।
आपका प्रतिसाद और अपार स्नेह ही हमारा सम्बल है।
आज बस इतना ही।
हेमन्त बावनकर
19 मई 2021