हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #238 ☆ आज लुटेरे घूम रहे हैं… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  आपकी रचना आज लुटेरे घूम रहे हैं…  आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 238 ☆

☆आज लुटेरे घूम रहे हैं☆ श्री संतोष नेमा ☆

भीड़ भाड़ से बच  कर रहना

जेब कटे तो फिर  ना कहना

रखते नजर जेब पर आपकी

पर्स  संभालो  अपनी  बहना

साथ वक्त के तुम भी ढहना

पहनो मत स्वर्ण  के  गहना

आज   लुटेरे   घूम   रहे  हैं

गड़ा के अपने लोभी  नयना

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “खोज…” ☆ सुश्री प्रणिता खंडकर ☆

सुश्री प्रणिता खंडकर

 ☆ कविता  – “खोज” 🦋 ☆ सुश्री प्रणिता खंडकर ☆

कैसे खो गया, कहाँ खो गया,

चलो ढूंढ लेते हैं हम सब!

किसने चुराया, किसने छिपाया,

चलो ढूंढ निकालें हम सब!

*

फाड़ के फेंके इस नकाब को,

ठुकरा के ये जाली बड़प्पन,

सारी समस्याएँ और चिंता,

उतार लो आँखों से ये ऐनक!

*

करे संपर्क दोस्तों से फिर से,

मिलने का संकल्प करे हम,

स्थलकाल को निश्चित करके,

करें आमंत्रित वो सुनहरे पल!

*

अवश्य करना नियम का पालन,

अपना अहम्, न लाना भीतर,

साथी पुराने बनकर केवल,

कदम बढाना अपना अंदर!

*

खेल, मस्ती और जी भर बातें,

खिलखिला के हँसेगे फिर से,

खुशियों को लगाएंगे गले,

यादों की बारात से मिल के!

*

न गुम हुआ, न खोया है,

ये तो अपने ही पास है,

चंचल, अल्हड, बचपन ये,

मन में संजोकर रखा है!

   ☆        

© सुश्री प्रणिता खंडकर

ईमेल – [email protected] वाॅटसप संपर्क – 98334 79845.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मंथन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – मंथन ? ?

?

मंथन के लिए

अनिवार्य नहीं,

सुर और

असुर होना,

मंथन,

विचार कर सकनेवालों

के बीच होता है,

ये बात दीगर है कि

जो नहीं चाहते

मथना विचारों को,

हठधर्मिता और

दुराग्रह के चलते

न चर्चा करते हैं,

न बदलते हैं विषय,

शनैः शनैः

असुरों के

पक्षधर हो जाते हैं..,

सत्याग्रही,

सदैव परिष्कृत करते रहते हैं

वैचारिकता,

भांजते और

माँजते रहते हैं विचार,

मंथन अनिवार्य है,

हम न चाहें तब भी

मथना अखंड रहता है..,

अलबत्ता,

हमारा विमर्श

तय करेगा कि

भविष्य की पुस्तक में

हम असुर दर्ज़ होंगे

या सुर कहलाएँगे..!

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  श्री लक्ष्मी-नारायण साधना सम्पन्न हुई । अगली साधना की जानकारी शीघ्र ही दी जाएगी💥 🕉️   

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 227 ☆ बाल गीत – बमचक-बमचक करें गिलहरीं… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 227 ☆ 

बाल गीत – बमचक-बमचक करें गिलहरीं  ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

बमचक-बमचक करें गिलहरीं।

एक नहीं हैं , सात गिलहरीं।

 *

इधर-उधर को भागा करतीं।

बदन फुला गुड़िया-सी दिखतीं।

बाल हैं कोमल लगतीं बहरी।

बमचक-बमचक करें गिलहरीं।

 *

पौधों से ये करें दुश्मनी।

तुलसी नौचतीं, प्लांट मनी।

पहुँच गाँव से हो गईं शहरी।

बमचक-बमचक करें गिलहरीं।

 *

 अपनी धुन में मस्त मगन हैं।

फल,दाना इनका भोजन है।

चिड़ियों की शत्रु हैं गहरी।

बमचक-बमचक करें गिलहरीं।

तीन तिरंगी पट्टी ओढ़े।

इतराएँ यह बदन को मोड़े।

बच्चों की रक्षक हैं प्रहरी।

बमचक-बमचक करें गिलहरीं।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #254 – कविता – प्रीत ☆ … ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता  “प्रीत” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #254 ☆

☆ प्रीत… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

है अनित्य ही सत्य,

नियति की यही रीत है

सिर्फ खेल ये,

नहीं किसी की हार जीत है

जितना समय मिला है

हमें यहाँ रहने का,

एक ध्येय जन जन से

करते रहें प्रीत है।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 78 ☆ वन का हिरन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “वन का हिरन…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 78 ☆ वन का हिरन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

मन! फिर हुआ

वन का हिरन

*

लिए तिनके की आस

दबा होंठों में प्यास

खोजता फिर रहा

ज़िंदगी का अमन।

*

पत्थरों पर लिखी

प्यार की बोलियाँ

गीत झरना कोई

गुनगुनाता हुआ

रास्ते ओढ़कर

बैठे ख़ामोशियाँ

एक झोंका हवा

सरसराता हुआ

*

साँस भर दौड़ना

बस यही कामना

यूँ ही होता रहे

उम्र भर आचमन।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिंदी साहित्य – कविता ☆ सांझ… ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ कविता ☆ सांझ ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सांझ

वापसी का उत्सव है !!

कलरव है

सौ सौ चिड़ियों का,

जो गगन नापकर लौट आती हैं

दरख्तों पर

अपने अपने नीड़  में

चूजों के पास !!

 

    रव है

उन कोमल किरणों का

जो पौ फटने से लेकर

दिन के

अंतिम क्षण तक

उड़ेलती हैं उजाले

अनथक !!

 

     अनुभव है

उनका जो एक पूरी

उम्र जैसा दिन जीकर

निविड़ कोलाहल से

थककर चूर

चले आते हैं

खुद तक !!!

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 82 ☆ इबादत सिखाता मुहब्बत की सबको… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “इबादत सिखाता मुहब्बत की सबको“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 81 ☆

✍ इबादत सिखाता मुहब्बत की सबको… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

जमीं रो रही आसमां रो रहा है

नहीं रहनुमा अम्न का दूसरा है

 *

बहे आदमी का लहू चार सू अब

ये इंसान को आज क्या हो गया है

 *

इबादत सिखाता मुहब्बत की  सबको

वही आज मज़हब लड़ाने लगा है

 *

चले थाम औरों की बैशाखियाँ जो

कहाँ अपने पैरों पे होता खड़ा है

 *

जो औरों को खोदा है गढ्ढे हमेशा

ये तय आसमां भी उसी पर गिरा है

 *

तुम्हें राजदां मैं बना कब का लेता

फ़रेबों का रुकता नहीं सिलसिला है

 *

बड़ी कीमतों और महसूल से हम

मलें हाथ क्यों तुझको नेता चुना है

 *

बड़ी स्याह है ये सियासत की गलियाँ

चला इनमें जो उसका ईमां गिरा है

 *

अरुण इश्क़ में ज़ख्म पाकर भी ख़ुश हूँ

निशानी में उसने मुझे कुछ दिया है

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ ‘निर्वाण’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Nirvana…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poetry निर्वाण.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि – निर्वाण  ? ?

?

असीम को जानने की

अथाह प्यास लिए,

मैं पार करता रहा

द्वार पर द्वार,

अनेक द्वार,

अनंत द्वार,

अंतत: आ पहुँचा

मुक्तिद्वार…,

प्यास की उपज

मिटते नहीं देख सकता मैं,

चिरंजीव जिज्ञासा लिए

उल्टे कदम लौट पड़ा मैं,

मुक्ति नहीं तृप्ति चाहिए मुझे,

निर्वाण नहीं सृष्टि चाहिए मुझे!

?

© संजय भारद्वाज  

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

?~ Nirvana ~??

With an immense thirst to know the infinite,

I kept crossing doors after doors,

many doors,

infinite doors,

Finally reached Muktidwar, the door of salvation…,

I cannot see the fruits of thirst disappearing,

Driven by the eternal inquisitiveness, I turned back,

I don’t want the liberation,

I want contentment.

I want creation, not the Nirvana!

??

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 78 – बोझ ज्यों सिर से उतारा हमने… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – बोझ ज्यों सिर से उतारा हमने।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 78 – बोझ ज्यों सिर से उतारा हमने… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

वक्त, ऐसा भी गुजारा हमने 

बोझ, ज्यों सिर से उतारा हमने

 *

जिसको फेंका उतार, नजरों से 

उसको देखा न दुबारा हमने

 *

अपनी इच्छाओं के हैं कातिल हम 

तेरी खातिर, उन्हें मारा हमने

 *

उसके चेहरे पे, देख मायूसी 

दाँव जीता हुआ, हारा हमने

 *

तुमने, इक बार भी नहीं देखा 

बारहा, तुमको पुकारा हमने

 *

हम तो, फूलों से बिछ गये होते

तेरा, पाया न इशारा हमने

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares
image_print