हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – ऋतुराज ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – ऋतुराज ? ?

हर क्षण

तन छीज रहा,

हर क्षण

मन रीझ रहा,

जितना छीजता,

उतना रीझता,

छीजना, रीझना,

स्वयं पर खीजना,

विरोध का

आभास अथाह,

विरुद्ध का

समानांतर प्रवाह,

तब पाट का आकुंचन होना,

समानांतर का मिलन होना,

अब न छीजना,

अब न रीझना,

भीतर-बाहर

मानो संत होना,

देहकाल में

ऐसा भी वसंत होना…!

© संजय भारद्वाज  

(11:15 बजे, मकर संक्रांति 2024)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘शॉर्टकट …’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Shortcut…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem शॉर्टकट.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि –  शॉर्टकट ? ?

रातों रात

वे कहलाना चाहते हैं सिद्ध,

तिस पर रात भी

बारह घंटे की नहीं चाहते,

सुनो उतावलो!

मूलभूत में

कभी परिवर्तन नहीं होता,

तपस्या का

कोई शॉर्टकट नहीं होता..!

© संजय भारद्वाज

(रात्रि 9:56 बजे, शुक्र. 4.12.2015)

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

?~ Shortcut… ~??

?

Overnight,

They want to be

called perfect,

-a dexterously

established one..!

 

And yet,

they don’t even want the

night to be of twelve hours…

 

Listen,

You impatient ones!

 

The fundamental

never changes

 

There is no shortcut

to the arduous penance..!

?

~ Pravin Raghuvanshi

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #221 ☆ – भावना के दोहे… – ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  भावना के दोहे…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 221 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे… ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

भोला भाला मन कहे, विनती सुनो अपार।

करते मन से याचना, हमको  प्रभु दो तार ।।

*

खानपान का सुख मिले, कभी न हूं लाचार ।

इतना देना प्रभु हमें, देना शक्ति अपार।।

*

रोटी हमको चाहिए, बचती उससे जान।

रखने को डिब्बा मिले, नहीं चाहिए शान।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #203 ☆ बाल गीत – मेरे पप्पा… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है बाल गीत – मेरे पप्पाआप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 202 ☆

☆ बाल गीत – मेरे पप्पा.. ☆ श्री संतोष नेमा ☆

पप्पा   मेरे    सबसे   प्यारे

लगते मुझको सबसे  न्यारे

पप्पा   मेरे   सबसे    प्यारे

*

घोड़ा  बन  कर मुझे घुमाते

कंधों  पर    अपने    बैठाते

लाते  खूब  खिलौने मुझको

कहते  मुझे  आँख  के  तारे

*

पप्पा ने   चलना सिखलाया

अंदर खुद  विश्वास  जगाया

बच्चे  बन  कर  खुद ही  मेरे

साथ  खेलते   कभी  न  हारे

*

मेरे    पप्पा    सबसे    सच्चे

बच्चों  के  संग  बनते   बच्चे

वे  जीवन  बगिया   के माली

याद  सभी  पल  संग  गुजारे

*

मेरी   सांस  सांस    में  पप्पा

मेरी   बात   बात  में    पप्पा

रग-रग  में  है खून उन्हीं  का

देते     हैं      संतोष     सहारे

पप्पा     मेरे     सबसे    प्यारे

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – शॉर्टकट ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  शॉर्टकट ? ?

रातों रात

वे कहलाना चाहते हैं सिद्ध,

तिस पर रात भी

बारह घंटे की नहीं चाहते,

सुनो उतावलो!

मूलभूत में

कभी परिवर्तन नहीं होता,

तपस्या का

कोई शॉर्टकट नहीं होता..!

© संजय भारद्वाज 

( प्रात: 9:30 बजे, 12 अगस्त 2022)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #35 ☆ कविता – “तेरी फितरत…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 35 ☆

☆ कविता ☆ “तेरी फितरत…☆ श्री आशिष मुळे ☆

जीने जाऊ गर तेरे पीछे

मुझे जिंदगी नहीं दोगे

आदत तेरी ऐसी

के मौत भी नहीं दोगे

*

उसूल तेरे ऐसे

सारा खेल तुम खेलते हों

हम खेलने जाए गर

तो जितने नहीं देते हों

*

क्या करें हम

ये कभी बताते नहीं हों

गर हातों पर हात रखें बैठे

तो नामर्द कहते हों

*

सब समझ कर

नासमझ बनते हों

खुलकर कहने जाऊ

तो वाहायात कहते हों

*

अब सब छोड़ बस फ़कीर ही बनूं

उससे तुम्हारी ही जीत हों

मगर फितरत नाज़ुक तुम्हारी

अब हम जो नहीं…

तो ख़ुद पर कहर बरसाते हों..

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 194 ☆ बाल गीत – मुन्ना खाएँ ले चटकारे ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 194 ☆

☆ बाल गीत – मुन्ना खाएँ ले चटकारे ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

सेब बेसनी बड़े करारे।

मुन्ना खाएँ ले चटकारे।।

मिर्च मसाला बड़ा चटपटा।

जिह्वा चाहे  खूब खटमिठा।

दिव्या को भी साथ खिलाकर,

मुन्ना जी खुश होते प्यारे।

सेब बेसनी बड़े करारे।।

 *

साथ खेलते छूई – छुआ।

तभी आ गई प्यारी बुआ।

बच्चो खेलो मिलजुल करके,

नहीं झगड़ते लाल दुलारे।

सेब बेसनी बड़े करारे।।

 *

गेंद से खेलें लप्पी – लप्पा।

कभी पी रहे पानी – पप्पा।

सुन लो कविता हमसे बुआ,

बड़े सुरीले कंठ हमारे।

सेब बेसनी बड़े करारे।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #218 – कविता – ☆ आज के संदर्भ में – तीन मुक्तक… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय रचना  “आज के संदर्भ में – तीन मुक्तक…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #218 ☆

☆ आज के संदर्भ में – तीन मुक्तक… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

☆ 1 – कहाँ देश से प्रेम…. ☆ 

मजहब, धर्म-पंथ,

अगड़े,पिछड़े में बँटे हुए हम लोग

भिन्न-भिन्न जातियाँ,

एक दूजे से कटे हुए हम लोग

वोटों की विषभरी

राजनीति ने सब को अलग किया

कहाँ देश से प्रेम,

कुर्सियों से अब सटे हुए हम लोग।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

2 – सौ चूहे खा कर… ☆ 

सौ चूहे खा कर बिल्ली ने,

यूँ ही बैठ विचार किया

पूण्य कृत्य यह तो, उन शुद्र

प्राणियों का उद्धार किया

बिल से बाहर उछलकूद,

उत्पात किया जिसने जब भी

निर्ममता से हमने तब

ऐसों का ही आहार किया।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

3 – अहम की बेलें…. ☆ 

बात दो-दो क्या हुई

फिर दिन-ब-दिन बढ़ती गई

अहम की बेलें,

घने से वृक्ष पर चढ़ती गईं

बंद से संवाद,

मन है खिन्न अवसादों भरा,

हरितिमा निज की

निरन्तर पीत सी पड़ती गई।….

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 42 ☆ ओ चिड़िया… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “ओ चिड़िया…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 42 ☆ ओ चिड़िया… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

ओ चिड़िया

आँगन मत झाँकना

दानों का हो गया अकाल

 

धूप के लिबासों में

झुलस रही छाँव

सूरज की हठधर्मी

ताप रहा गाँव

ओ चिड़िया

दिया नहीं बालना

बेच रहे रोशनी दलाल।

 

मेंड़ के मचानों पर

ठिठुरती सदी

व्यवस्थाओं की मारी

सूखती नदी

ओ चिड़िया

तटों को न लाँघना

धार खड़े करेगी सवाल।

 

अपनेपन का जंगल

रिश्तों के ठूँठ

अपने अपनों पर ही

चला रहे मूँठ

ओ चिड़िया

सिर जरा सँभालना

लोग रहे पगड़ियाँ उछाल।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कहें लोग कहने कई शेर लेकिन… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “कहें लोग कहने कई शेर लेकिन“)

✍ कहें लोग कहने कई शेर लेकिन… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

नहीं कोई क़ीमत रही अब बशर की

ये दुनिया फ़क़त हो गई माल- ओ- ज़र की

 *

है जिन के दिलों में तअस्सुब उन्होंने

फ़ज़ा चंद पल में उजाड़ी नगर की

 *

सभी को दे साया समर फूल अपने

फरिश्तों सी फ़ितरत लगे है शज़र की

 *

वो रूठा तो मुझ से बहारें भी रूठी

बताऊँ किसे क्या है हालत इधर की

 *

गली में रक़ीबों के फेरे पे फेरे

अलग होगी रंगत तुम्हारे उधर की

 *

चटानों में वो चींटियों को ग़िज़ा दे

करूँ फ़िक़्र में क्यों गुज़र की बसर की

 *

न गिरने दे मुझको न ही मुझको थामे

यही बात खटके मेरे हम सफ़र की

 *

कहें लोग कहने कई शेर लेकिन

न मफ़हूम में बात होती असर की

 *

लुभाते तो है फूल कलियां मुझे पर

अलग ही कसक होती उनके अधर की

 *

जो बातों से ही छोड़ दे तख़्त नाज़िम

हमें चाह बिलकुल नहीं है ग़दर की

 *

गुनाहों का सरताज़ बगुला भगत था

खुली असलियत आज उस मोतबर की

 *

मुरादें सभी उसके  दर से हों पूरी

जरूरत भटकने की क्यों दर -ब-दर की

 *

बना मेरा मुरशिद मेरा इल्म सीखा

जरूरत नहीं अब उसे राहबर की

 *

बढ़ाते बताओ भला कैसे गणना

अगर खोज भारत न करता सिफ़र की

 *

सदारत से मुझको बचाना खुदाया

फ़ज़ीयत बड़ी हो रही है सदर की

 *

जो दरिया में देखा नहीं है उतरकर

अरुण वो न समझेगा ताकत भँवर की

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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