हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 225 – अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – महिला दिवस! ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता – महिला दिवस!)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 225 ☆

☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – महिला दिवस! ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

एक दिवस क्या

माँ ने हर पल, हर दिन

महिला दिवस मनाया।

*

अलस सवेरे उठी पिता सँग

स्नान-ध्यान कर भोग लगाया।

खुश लड्डू गोपाल हुए तो

चाय बनाकर, हमें उठाया।

चूड़ी खनकी, पायल बाजी

गरमागरम रोटियाँ फूली

खिला, आप खा, कंडे थापे

पड़ोसिनों में रंग जमाया।

विद्यालय से हम,

कार्यालय से

जब वापिस हुए पिताजी

माँ ने भोजन गरम कराया।

*

ज्वार-बाजरा-बिर्रा, मक्का

चाहे जो रोटी बनवा लो।

पापड़, बड़ी, अचार, मुरब्बा

माँ से जो चाहे डलवा लो।

कपड़े सिल दे, करे कढ़ाई,

बाटी-भर्ता, गुझिया, लड्डू

माँ के हाथों में अमृत था

पचता सब, जितना जी खा लो।

माथे पर

नित सूर्य सजाकर

अधरों पर

मृदु हास रचाया।

*

क्रोध पिता का, जिद बच्चों की

गटक हलाहल, देती अमृत।

विपदाओं में राहत होती

बीमारी में माँ थी राहत।

अन्नपूर्णा कम साधन में

ज्यादा काम साध लेती थी

चाहे जितने अतिथि पधारें

सबका स्वागत करती झटपट।

नर क्या,

ईश्वर को भी

माँ ने

सोंठ-हरीरा भोग लगाया।

*

आँचल-पल्लू कभी न ढलका

मेंहदी और महावर के सँग।

माँ के अधरों पर फबता था

बंगला पानों का कत्था रँग।

गली-मोहल्ले के हर घर में

बहुओं को मिलती थी शिक्षा

मैंनपुरी वाली से सीखो

तनक गिरस्थी के कुछ रँग-ढंग।

कर्तव्यों की

चिता जलाकर

अधिकारों को

नहीं भुनाया।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१.२.२०२५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – धुआँ-धुआँ-सी नारी ज़िन्दगी ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – धुआँ-धुआँ-सी नारी ज़िन्दगी ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

सिहर उठता हूं नारी-उत्पीड़न  देखकर। 

दहल उठता हूं नारी प्रति शोषण देखकर।। 

कहीं दहेज है / कहीं घरेलू हिंसा है

कहीं बलात्कार है,

धुँआ-धुँआ-सी नारी ज़िन्दगी।

*

कहीं जघन्यता के समाचार हैं

कहीं छेड़खानी से भरे अख़बार हैं

सिहर उठता हूं निर्भया के दर्द को लेखकर।

सिहर उठता हूं नारी-दुर्दशा को देखकर।। 

कैसा आलम है, कैसा मौसम है

चारों ओर है बस दरिंदगी।

धुआँ-धुआँ-सी नारी ज़िन्दगी।। 

*

कोलकाता अस्पताल की भयावहता

हृदयविदारक हालात

चीखती-चिल्लाती एक नारी

तंत्र के मुँह पर तमाचा

व्यवस्था की हक़ीक़त का ख़ुलासा

भारी शोरशराबा,आंदोलन

हाथ की आई शून्य

धुआँ धुआँ-सी नारी ज़िन्दगी।

*

कहते हैं देवी,पर वह पीड़ित है। 

पूजते हैं हम, पर वह शोषित है।। 

उसकी काया बनी भोग का सामान है। 

गिरता जा रहा है,सम्मान है।। 

बढ़ती जा रही है देखो ज़िन्दगी। 

धुआँ-धुआँ-सी नारी ज़िन्दगी।। 

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ पल दो पल का शायर ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक ☆

डॉ जसप्रीत कौर फ़लक

☆ पल दो पल का शायर ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक 

(साहिर लुधियानवी साहिब के जन्मदिन पर विशेष)

साहिर;

वह लफ़्ज़ों का जादूगर

पल दो पल का शायर

उसने सहे

वक़्त के सितम

यहीं से बन गया उसका विद्रोही क़लम

 

कौन भूल सकता है

उसकी ज़िन्दगी की “तल्ख़ियाँ”

कौन भूल सकता है

उसके तसव्वर से उभरती “परछाइयाँ”

 

हालांकि;

लुधियाना शहर ने

उसे कुछ न दिया

रुसवाई और बेरुख़ी के सिवा

फिर भी;

उसने लगा रखा अपने सीने से

इस दयार का नाम…

 

उसके गीतों की सादगी

उसकी नज़्मों की गहराई

हर एक दिल पर… आज भी है छाई

 

उसने कहाः

“आओ कोई ख़्वाब बुनें “

ज़िन्दगी के लिए…

किसी के लिये

 

उसने तमाम उम्र तल्ख़ियों का ज़हर पिया

वह जब तक जिया अपनी शर्तों पर जिया

 

वह ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया

हर फ़िक्र को धुएं में उड़ाता चला गया…

 

उसने मज़लूमों के हक़ में

आवाज की बुलंद

औरत पर ज़ुल्म

उसे बिल्कुल नहीं था पसंद

 

इसीलिए तो उसने कहा;

“औरत ने जन्म दिया मर्दों को

मर्दों ने उसे बाज़ार दिया”।

 

उसने गीतों को इक वक़ार बख़्शा

उसने फिल्मों को इक मैयार बख़्शा

उसे जंग से नफ़रत थी बहुत

उसे अम्नो-अमां की चाहत थी बहुत

 

तुमने लुटाये  लफ़्ज़ों के गौहर

तुम्हें कौन भूल सकता है साहिर

तुमने बुलन्द किया

शहर-ए-सुख़न का नाम

ए साहिर ! तुझे सलाम…

ए साहिर ! तुझे सलाम ।

 डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक

संपर्क – मकान न.-11 सैक्टर 1-A गुरू ग्यान विहार, डुगरी, लुधियाना, पंजाब – 141003 फोन नं – 9646863733 ई मेल – [email protected]

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 150 ☆ मुक्तक – ।। नारी, तुम केंद्र, तुम धुरी, सृष्टि की रचनाकार हो ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 150 ☆

☆ मुक्तक – ।। नारी, तुम केंद्र, तुम धुरी, सृष्टि की रचनाकार हो ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष ☆

=1=

तुम केंद्र तुम धुरी तुम सृष्टि की रचनाकार हो।

तुम   धरती  पर  मूरत प्रभु  की  साकार हो।।

तुम   जगत  जननी  हो   तुम संसार  रचयिता।

माँ   बहन   पत्नी   जीवन  में  हर  प्रकार हो।।

=2=

तुम से ही ममता स्नेह प्रेम जीवित  रहता   है।

मन सच्चा कभी कपट कुछ नहीं कहता  है।।

त्याग  समर्पण  का  जीवंत  स्वरूप  हो  तुम।

तन मन में नारी तेरे प्यार का दरिया बहता है।।

=3=

तुम   से  ही घर आँगन और  चारदीवारी  है।

हरी    भरी   जीवन   की   हर फुलवारी है।।

तुमसे  ही आरोहित संस्कार संस्कृति सृष्टि में।

तुमसे ही उत्पन्न होती बच्चों की किलकारी है।।

=4=

तुमसे  ही  बनती  हर  मुस्कान  खूबसूरत  है।

दया   श्रद्धा   की  बसती  साक्षात  मूरत   है।।

तुझसे से ही  है  मानवता का आदि और अंत।

चलाने को संसार प्रभु को भी तेरी जरूरत है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा #216 ☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – आओ सोचें – … ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – आओ सोचें…। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 216

☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – आओ सोचें…  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

आओ सोचें कि हम सब बिखर क्यों रहे

स्वार्थ में भूलकर अपना प्यारा वतन

क्यों ये जनतंत्र दिखता है बीमार सा

सभी मिलकर करें उसके हित का जतन ।

*

सबको अधिकार है अपनी उन्नति का

पर करें जो भी उसमें सदाचार हो

नीति हो, प्रीति हो, सत्य हो, लाभ हो

ध्यान हो स्वार्थ हित न दुराचार हो ।

*

राह में समस्याएँ तो आती ही हैं

उनके हल के लिये कोई न तकरार हो

सब विचारों का समुदार सन्मान हो

आपसी मेल सद्भावना प्यार हों ।

*

गाँधी ने राह जो थी दिखाई उसे

बीच में छोड़ शायद गये हम भटक

था अहिंसा का वह रास्ता ही सही

उसपे चलते तो होती उठा न पटक ।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – संख्यारेखा- ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – संख्यारेखा- ? ?

बाईं ओर

ऋण संख्या होती है,

दाहिनी ओर

धन संख्या होती है,

संख्यारेखा का सूत्र

गणित पढ़ा रहा था,

दोनों ओर

एक-सा निहारता हूँ

बीचों-बीच आकर

शून्य हो जाता हूँ,

अध्यात्म में

अद्वैत मंत्र कहलाता हूँ,

शासन में

लोकतंत्र  हो जाता हूँ!

?

© संजय भारद्वाज  

संध्या 5:49 बजे, 5.3.2021

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️💥 श्री शिव महापुराण का पारायण सम्पन्न हुआ। अगले कुछ समय पटल पर छुट्टी रहेगी। जिन साधकों का पारायण पूरा नहीं हो सका है, उन्हें छुट्टी की अवधि में इसे पूरा करने का प्रयास करना चाहिए। 💥 🕉️ 

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #41 – गीत – है प्रेमिल मधुमास सखी री… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीत – है प्रेमिल मधुमास सखी री

? रचना संसार # 41 – गीत – है प्रेमिल मधुमास सखी री…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

चंचल मन आह्लादित होता,

है प्रेमिल मधुमास सखी री।

बहे पवन शीतल पावन भी,

कुसुमित फूल पलास सखी री।।

 *

ऋतु बसंत मदमाती आयी,

नव पल्लव पेड़ो पर छाए।

झूम रहे भौरे मतवाले,

अल्हड़ अमराई मुस्काए।।

पीली चूनर ओढ़े धरती,

हिय में रख उल्लास सखी री।

चंचल मन आल्हादित होता,

है प्रेमिल मधुमास सखी री।।

 *

उन्मादित नभ धरती आकुल,

यौवन का मौसम रसवंती।

महुआ पुष्पित गदराया है,

सरसों का रँग हुआ बसंती।।

नाच रही है कंचन काया,

हिय अनंग का वास सखी री।

चंचल मन आल्हादित होता,

है प्रेमिल मधुमास सखी री।।

 *

हुआ सुवासित तन गोरी का

अंग अंग लेता अँगड़ाई।

हृदय कुंज में मधुऋतु आयी,

भली लगे प्रिय की परछाई।।

मधुर यामिनी देख मिलन की ,

सभी सुखद आभास सखी री।

चंचल मन आल्हादित होता,

है प्रेमिल मधुमास सखी री।।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #268 ☆ भावना के दोहे – नारी ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं – भावना के दोहे – नारी)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 268 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – नारी ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

ममता का भंडार है, स्नेह बहाए नीर।

रखती सबका ख्याल है, रहती वही  अधीर ।।

*

त्याग, तपस्या, प्रेम का, नारी है वरदान।

जग जननी संसार की, यह नारी की शान ।।

*

शील, सती, ममता भरी, अनुपम हैं हर रूप।

सहनशीलता, त्याग की, मूरत बड़ी अनूप ।।

*

नारी में दिखता सदा, देवी का अवतार।

रणचंडी का रूप है, उसमें शक्ति अपार।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #250 ☆ एक बुंदेली गीत –  होरी में… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी – एक बुंदेली गीत – होरी में… आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 250 ☆

☆ एक बुंदेली गीत –  होरी में… ☆ श्री संतोष नेमा ☆

बिरहा  गा  रहो  श्रृंगार  होरी  में

सबै  खों छा रहो खुमार होरी में

*

रही  ने अब  सुध-बुध कोऊ खों

रंगों को  चढ़ रहो बुखार होरी में

*

ताक   लगाए   बैठी   है  बिरहन

जियरा हो  रहो बेकरार  होरी में

*

लरका –  बच्चा सभई  बौरा  रये

कोउ पै रहो ने ऐतवार  होरी  में

*

टेसू  पलाश  के  रंग  ने  दिखते

अब  छा रहो धूल गुबार होरी में

*

भंग  चढ़ा  लई  सबने  जम  खें

पी ख़ें ढूंढ रहो  अचार  होरी  में

*

ऐसों रंग  चढ़  गओ  सभई  खो

संतोष बन रहो रंगदार  होरी  में

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – धाराप्रवाह ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – धाराप्रवाह  ? ?

समय ने कहा,

मैं तुम्हारे विरुद्ध हूँ,

मैंने कहा,

तुम कब मेरे साथ थे?

और सुनो,

सदा विरुद्ध ही रहना,

मांगकर या जुगाड़ से नहीं,

श्रम और संकल्प से

लक्ष्य पाने का भाव रहा है मेरा,

धारा के विपरीत

धाराप्रवाह तैरने का

स्वभाव रहा है मेरा…!

?

© संजय भारद्वाज  

प्रात: 9:03 बजे, 5.03.2025

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️💥 श्री शिव महापुराण का पारायण सम्पन्न हुआ। अगले कुछ समय पटल पर छुट्टी रहेगी। जिन साधकों का पारायण पूरा नहीं हो सका है, उन्हें छुट्टी की अवधि में इसे पूरा करने का प्रयास करना चाहिए। 💥 🕉️ 

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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