हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 226 – कथा क्रम (स्वगत)… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 226 – कथा क्रम (स्वगत)… ✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

क्रमशः आगे…

वर्तमान की परिधि में,

फिर भी

उत्तर नहीं पाता।

सोच नहीं पाता

तुम्हारे युग की

सामाजिक व्यवस्था

कर नहीं पाता

रहस्य भेदन।

पहुँच नहीं पाता

तुम्हारी जीवन कथा के

मर्म तक ।

तुम आज होतीं

तो

कही जातीं रूपाजीवा ।

संभवतः

घटना क्रम ने

जगाया हो

तुम्हारा स्त्रीत्व,

शायद

इसीलिये

हो गईं थीं

स्वयंवर से विमुख ।

और तपोवन

गमन?

शायद

प्रायश्चित के लिये।

हम

कैसे सुनायें

तुम्हारे त्याग

समर्पण

और

रहस्य की कथा

अपनी बेटियों को?

आश्वस्त  हैं

 हम

कि

हमारी बेटियाँ

 नियति

या

वरदान की डोर में बंधी

 गौएँ में नहीं है।

 प्रश्न अनुतरित है,

 माधवी

तुम

नारी, नदी या पाषाणी हो?

 – समाप्त – 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 226 – “नई नई है धरती-…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत नई नई है धरती...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 226 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “नई नई है धरती...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

अरे, इसी अंगना

टूट गया री कंगना

कुछ पता चला है क्या

तुझे आज को बहिना

 

सोनजुही के फूलों

नव सरिता के कूलों

नहीं मिली चाभी

पता तुम्हें भाभी

 

यह सारी अमराई

बात नहीं सुन पायी

व्यर्थ गई कैसे दुआ

कहती है बड़ी बुआ

 

नई नई है धरती

बड़ी उड़ाने भरती

हवाई अडडे अमौसी*

अपनी छुटकी मौसी

 

बैठी है एकाकी

कुछ सपने ले बाकी

पहने हुये खाकी

सीलमपुर से काकी

 

करती बहुत गुस्सा

कहती यह है किस्सा

बोली तू निकम्मा

बताती मेरी अम्मा

* लखनऊ का हवाई अड्डा

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

16-02-2025

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – ऊँचाई ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – ऊँचाई ? ?

बहुमंजिला इमारत की

सबसे ऊँची मंज़िल पर

खड़ा रहता है एक घर,

गर्मियों में इस घर की छत

देर रात तक तपती है,

ठंड में सर्द पड़ी छत

दोपहर तक ठिठुरती है,

ज़िंदगी हर बात की कीमत

ज़रूरत से ज्यादा वसूलती है

छत बनने वालों को ऊँचाई

अनायास नहीं मिलती है..!

?

© संजय भारद्वाज  

रात्रि 3:29 बजे, 20 मई 2019

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मकर संक्रांति मंगलवार 14 जनवरी 2025 से शिव पुराण का पारायण महाशिवरात्रि तदनुसार बुधवार 26 फरवरी को सम्पन्न होगा 💥

 🕉️ इस वृहद ग्रंथ के लगभग 18 से 20 पृष्ठ दैनिक पढ़ने का क्रम रखें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 208 ☆ # “संत रैदास…” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता संत रैदास…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 208 ☆

☆ # “संत रैदास…” # ☆

जो मनुष्य मनुष्य में भेद करें

वह कैसा है धर्म

देह  है तो मिट जाते हैं

रह जाते हैं कर्म

 

जात-पात को छोड़िए

यह है सब बकवास

इन रूढ़ियों को तोड़िए

तब खत्म होगा वनवास

 

जीवन भर जिसने दुत्कारा

ना कभी आंसू पोंछा

ना प्रेम से पुचकारा

जिन्होंने किया सदा प्रताड़ित

वह सिखा रहे हैं भाईचारा

 

कल तक छूना भी पाप था

साया पड़ जाए तो अभिशाप था

तिरस्कृत थे सब वाल्मीकि

संत रविदास उनका ही तो बाप था

 

अब आप सबको जागना होगा

इस पाखंड को त्यागना होगा

तोड़कर गुलामी की जंजीरें

सत्य के मार्ग पर भागना होगा

 

आज समय की पुकार है

भविष्य में बस अंधकार है

यह जंग है सदियों पुरानी

अब लड़नी आर पार है

 

सबसे पहले शिक्षित बनिए

उसके बाद संगठित बनिए

भुलाकर आपस के मतभेद

अधिकारों के लिए संघर्ष करिए

 

स्वाभिमान से जीना है तो

लड़ना होगा

उच्च शिक्षा लेकर आगे बढ़ना होगा

छीनकर अपने अधिकारों को

नया इतिहास गढ़ना होगा

 

आइये हम सब मिलकर मनाएं

रविदास जयंती का यह पर्व

हम सब रविदास जी के वंशज है

हम सबको है गर्व

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – आसमां से गिरकर कहां जाएंगी… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण कविता आसमां से गिरकर कहां जाएंगी।)

☆ कविता – आसमां से गिरकर कहां जाएंगी… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

जमीन पर गिरेंगी भटक जाएंगी,    

रेत के गर्म टीले पर गिरकर,

भाप बनकर उड़ जाएंगी,

फिर बादलों से मिल जाएंगी,

आसमा से गिरकर कहां जाएंगी,    

*

कोई आसमां पर देखता होगा,

आशा से उसे तकता तो होगा,

खेतों की सूखी मिट्टी को देख,

आशा थमेगी, वहीं पर गिरेंगी,

खेतों की फसलों में लहराएंगी,

आसमां से गिरकर कहां जाएंगी,

*

रातों को कोई बेचैन होकर,

चांद के सफर में,साथ होकर,

आसमां पर, सूनी आंखें लिए,

जब निहारता होगा एकटक,

आंखों में आंसू बन गिर जाएंगी

आसमां से गिरकर कहां जाएंगी.

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 224 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

 

? Anonymous Litterateur of social media # 224 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 224) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 224 ?

☆☆☆☆☆

मुस्कराहट में छुपा कर

तेरा ग़म  रखते  हैं…

ज़िंदगी आज भी हम

तेरा बहुत भरम रखते हैं…

☆☆

Concealed in the smile, 

I  keep  your deep sorrows…

O’ life! Even today, I’m euphoric 

About  your  great illusions…!

☆☆☆☆☆

तुम मोहब्बत के सौदे भी

अजीब करते हो ,

बस मुस्कुरा देते हो

और अपना बना लेते हो…

☆☆

You make strange

deals in love, too…

Just  by a simple smile

You make others your own…!

☆☆☆☆☆

आह़िस्ता-आह़िस्ता बढ़ रहीं

चेहरे की लकीरें

शायद नादानी और तजुर्बे में

बँटवारा हो रहा है..

☆☆

Slowly-slowly the face

Wrinkles  are increasing

Probably innocence and 

experience are being divided…

☆☆☆☆☆

तुझसे नाराज होकर

तुझसे ही बात करने का मन

ये दिल का सिलसिला भी

कभी न समझ पाये हम…

☆☆

Despite being annoyed with you

Mind just likes talking to you only

I could never understand

Such mysteries of the heart

☆☆☆☆☆

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 223 – पूर्णिका – गौरैया मुंडेर पर ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक पूर्णिका – गौरैया मुंडेर पर!)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 223 ☆

☆ पूर्णिका – गौरैया मुंडेर पर ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

हुई भोर मुस्काइए

सूर्य कहे उठ जाइए

 *

गौरैया मुंडेर पर

आई भोग लगाइए

 *

फुदक गिलहरी नच रही

करतल ध्वनि गुंजाइए

 *

तितली के पर निकलेंगे

कैंची नहीं चलाइए

 *

कली-भ्रमर मत दूर हों

सहजीवन समझाइए

 *

कड़वी बातें बहुत हुईं

खुश हो कुछ फरमाइए

 *

स्नेह साधना कर सलिल

संजीवित हो जाइए

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१३.२.२०२५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कविता ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – कविता ? ?

अच्छा हुआ

नहीं रची गई

और छूट गई

एक कविता,

कविता होती है

आदमी का अपना आप

छूटी रचना के विरह में

आदमी करने लगता है

खुद से संवाद,

सारी प्रक्रिया में

महत्त्वपूर्ण है

मुखौटों का गलन

कविता से मिलन

और उत्कर्ष है

आदमी का

शनैः-शनैः

खुद कविता होते जाना,

मुझे लगता है

आदमी का कविता हो जाना

आदमियत की पराकाष्ठा है!

?

© संजय भारद्वाज  

सोमवार दि. 30 .05 .2016, संध्या  7:15  बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मकर संक्रांति मंगलवार 14 जनवरी 2025 से शिव पुराण का पारायण महाशिवरात्रि तदनुसार बुधवार 26 फरवरी को सम्पन्न होगा 💥

 🕉️ इस वृहद ग्रंथ के लगभग 18 से 20 पृष्ठ दैनिक पढ़ने का क्रम रखें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 148 ☆ गीत – ।। सबको चाहिए स्वर्ग पर मरने को तैयार नहीं है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 148 ☆

☆ गीत – ।। सबको चाहिए स्वर्ग पर मरने को तैयार नहीं है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

सबको  चाहिए  स्वर्ग  पर  मरने  को  तैयार  नहीं है।

सुख के सब साथी पर दुख में कोई सरोकार नहीं है।।

**

ग़मों का इस   दुनिया में    अब कोई खरीदार नहीं है।

चाहते हैं खुशी पर खुशियों का कोई बाजार   नहीं है।।

प्रेम विश्वास हवा से अदृश्य इनका कोई व्यापार नहीं है।

सबको   चाहिए  स्वर्ग  पर  मरने  को  तैयार  नहीं  है।।

****

एक पल में भी आदमी का दिल जीता और हारा जाता है।

दुआ देने वाला आदमी ही  हर किसी का सहारा पाता है।।

सोने चांदी चम्मच वाले   कभी दुख से हुए दो चार नहीं हैं।

सबको    चाहिए   स्वर्ग  पर   मरने  को  तैयार  नहीं  है।।

****

इंसान का महत्व नहीं   होता है उसके अच्छे स्वभाव का।

सदा दुनिया ही  चर्चा करती है मधुर वाणी के प्रभाव का।।

कर्मफल परिणाम स्वर्ग इसपर किसीका अधिकार नहीं है।

सबको   चाहिए    स्वर्ग   पर   मरने  को  तैयार  नहीं  है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #40 – गीत – साॅंझा-चूल्हे  टूट गए अब… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतसाॅंझा-चूल्हे  टूट गए अब

? रचना संसार # 40 – गीत – साॅंझा-चूल्हे  टूट गए अब…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

साॅंझा-चूल्हे  टूट गए अब  

 

पीपल -बरगद सूख  चुके सब,

कोयल नहीं दिखाई दे।

गौरेया पानी को तरसे,

मैना नहीं सुनाई दे।।

 *

मिटी  झोपड़ी  की यादेंं हैं,

आँखों में पल रही नमी।

पनघट ने पहचान गँवाई

होती जल की नित्य कमी।।

बिखरे रंग  प्रेम के सारे ,

रूठे वन-अमराई दे।

 *

व्याकुल है ये साँझ सुनहरी,

भोर निराशा भरी रहे ।

क्रंदन करते बच्चे प्यारे,

भीषण तृष्णा धार बहे।।

मानव निष्ठा हुई अगोचर,

छलना को गहराई दे।

 *

साॅंझा-चूल्हे  टूट गए अब,

बदली भोली गाँव छटा।

हवा लगी शहरों की सबको,

झीलों का सौन्दर्य घटा।।

निश्छल हँसी नहीं अधरों पर,

गुल्लक टूटी पाई दे।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares