हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 63 ☆ बुन्देली गीत – प्यारी माई… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक बुंदेली गीत  – “प्यारी माई”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 63 ✒️

?  बुन्देली गीत – प्यारी माई… ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

मोरी माई , प्यारी माई ,

कित्ती करौं बढ़ाई ।

हरई जनम रऔं तोरो लरका,

और तैं मोरी माई ।।

 

भोर भए बा चकिया पीसत ,

कुआं से पानी भरवै ,

ढोरन कों चारा डारत है ,

बऊ की सेवा करवै ,

बब्बा ने गईंयां दोह लईं ,

और माई कलेवा लाई ।

मोरी माई ——————- ।।

 

तुरंतईं से बा टिफन लगावै ,

मोय साला भिजवावे ,

मोरी सबरी कई बा मानत ,

टूसन भी पढ़वाबे ,

ऊसें बड़ों ना कोऊ जग में,

जा सबने समझाई ।

मोरी माई ——————–।।

 

रात बियारी हमें करावै ,

रोटी चुपर खवाबै ,

देह स्वस्थ जा रखबी कैंसें,

दूध लाभ समझावे ,

किस्सा  आल्हा उदल बारी ,

” सलमा ” हमें सुनाई ।

मोरी माई ——————– ।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 03 ☆ चलना है बाकी… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “चलना है बाकी।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 03 ☆ चलना है बाकी… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

कहाँ तय हुआ

फ़ासला दुख भरा

अभी कंटकों में चलना है बाकी।

 

वही रोज़ की

चिकचिकों से घिरा

दिन उजाले को ले

सूर्य द्वारे खड़ा

शाम अख़बार सी

एक बासी ख़बर

तम से हर रात

दीपक अकेला लड़ा

 

कहाँ क्या हुआ

रोती अब भी धरा

अभी पीर का तो गलना है बाकी।

 

नियम कायदे

जैसे मजबूरियाँ

घुल रही ख़ून में

एक ज़िंदा हवस

ओढ़कर बेबसी

पाँव यायावरी

लौट आये वहीं

जिस जगह थे तमस

 

लादकर बेड़ियाँ

श्रम हुआ अधमरा

अभी मंज़िलों पर पहुँचना है बाकी।

          ***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ इसका मतलब ये तो नही… ☆ श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

? कविता  ?

☆ इसका मतलब ये तो नही… ☆ श्री सुहास रघुनाथ पंडित 

(मराठी भावानुवाद ⇒ अस होत नसतं ☆ श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆)

रास्ता बंद हो गया

इसका मतलब ये तो नही

              ….कि रास्ता खत्म हो गया

 

दिये का तेल खत्म हुआ

इसका मतलब ये तो नही

              ….कि प्रकाश खत्म हो गया

 

पतझड हो गयी

इसका मतलब ये तो नही

              …. कि पेड़ मर चुका

 

हाँ, यह सच है

क्षणिक अंधेरा उद्ध्वस्त करता है मन

किन्तु,

वही क्षण दिखाता है आनेवाली किरण

 

मन का क्या भरोसा

खेलेगा वो हर पल नया खेल

बद्ध करो उसे बुद्धि की शृंखला से

 

आखिर जिंदगी क्या है ?

 

उठो, लड़ो उम्मीद से

और उड जाओ फिर एक बार

              ….फिनिक्स की तरह !

© सुहास रघुनाथ पंडित 

संपादक ई-अभिव्यक्ति (मराठी)  

सांगली (महाराष्ट्र)

मो – 9421225491

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 73 – सजल – चलो अब मौन हो जायें… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण एवं विचारणीय सजल “चलो अब मौन हो जायें…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 73 – सजल – चलो अब मौन हो जायें…

(सजल – मात्रा – 28, सामंत – ईत, पदांत – दिखता है, मात्रा भार – 28)

 मौसम में चल रहा छल कपट, न नवनीत दिखता है।

चलो अब मौन हो जायें, समय विपरीत दिखता है।।

 

नेह का पैमाना बदला कुछ, अब इस जमाने में,

जहाँ निज स्वार्थ की आशा, वही मनमीत दिखता  है ।

 

सद्भावना का अंत है, तलवारें हैं खिचीं-खिचीं ,

साहसी मानव भी अब तो, कुछ भयभीत दिखता है।

 

दिलों की गहराईयों में,अब कौन झाँकता भला ,

बेसुरे वाद्य यंत्रों में, मधुर संगीत दिखता है ।

 

दिया वरदान ईश्वर ने, सभी को नेक नीयत से,

जलाओ प्रेम का दीपक, सुखद नवगीत दिखता है ।

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – त्रिकालदर्शी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – त्रिकालदर्शी ??

भविष्य से

सुनता है

अपनी कहानी,

जैसे कभी

अतीत को

सुनाई थी

उसकी कहानी,

वर्तमान में जीता है

पर भूत, भविष्य को

पढ़ सकता है,

प्रज्ञाचक्षु खुल जाएँ तो

हर मनुज

त्रिकालदर्शी हो सकता है!

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 9.31 बजे, 9.4.2020

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 134 – दरपन दरपन रूप तुम्हारा… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपकी एक भावप्रवण रचना– दरपन दरपन रूप तुम्हारा…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 134 – दरपन दरपन रूप तुम्हारा…  ✍

दरपन दरपन रूप तुम्हारा

मुखड़ा देखूँ किस दरपन में

एक बूँद धरती पर आई

दो दिन करने पहुनाई

कटा एक दिन शूलवनों में

और एक दिन अमराई

होंठ आचमन कैसे करलें

टँकी बदरिया नीलगगन में।

 

सागर से गागर शरमाई

माँग रहा है भरपाई

जीवन था रामायन लेकिन

बँची न बाँचे चौपाई।

राम रूप में रत्ना ही तो

बैठी थी तुलसी के मन मे।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 133 – “कितनी कठिन तपस्या…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  कितनी कठिन तपस्या)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 133 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ कितनी कठिन तपस्या… ☆

जब चाची उस आरक्षक

को गाली दे  हारी

तभी बीच में बोल पड़ी

थी उस की महतारी

 

मेरा बेटा भृष्ट नहीं है

सभी जानते हैं

सत्य भाषियो की श्रेणी

का उसे मानते हैं

 

कठिनाई से भरी हुई

सेवा घंटो घंटो

करता आया बिना थके

जो ना थी लाचारी

 

ब्रत, त्योहार, दिवाली, होली

ना जाना कब  से

खडा बिताता रात और दिन

बरदी कसे कसे

 

कभी बहू के मुख पर

छाया इंतजार देखा

दोनों आंखों में रहती

पति की मूरत प्यारी

 

कितनी कठिन तपस्या,

तुम इसको गाली दे लो

लेकिन इस के समर्पणों

भावों से मत खेलो

 

भले राज्य के आरक्षक

की सेवा के ढंग से

लोग न हों खुश पर

इन की सेवा है सरकारी

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – जिजीविषा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – जिजीविषा ??

संकट, कठिनाई,

अनिष्ट, पीड़ादायी,

आपदा, अवसाद,

विपदा, विषाद,

अरिष्ट, यातना,

पीड़ा, यंत्रणा,

टूटन, संताप,

घुटन, प्रलाप,

इन सबमें सामान्य क्या है?

क्या है जो हरेक में समाता है,

उत्कंठा ने प्रश्न किया..,

मुझे इन सबमें चुनौती

और जूझकर परास्त

करने का अवसर दिखता है,

जिजीविषा ने उत्तर दिया..!

© संजय भारद्वाज 

दोपहर 3: 24 बजे, 9 मार्च 2020

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 124 ☆ # डरना छोड़ो… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# डरना छोड़ो#”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 124 ☆

☆ # डरना छोड़ो… # ☆ 

तुम सूरज की तपिश से डरकर

कब तक छुपोगे छांवों में

यह पत्थर भी तप जायेंगे

तब आग भर देंगे तुम्हारे पावों में

तुम छालों से भरे पांवों को

जब धरती पर रखने जाओगे

इन रिसते हुए घावों पर

मरहम कहां से लाओगे

यह घाव भर जाये तो भी

टीस सदा बनी रहेगी पांवों में

चाहे धूप रहे यां छांव रहे

चलते-चलते उभर आयेगी राहों में

तुम जख्म, दर्द को लक्ष्य की तरफ मोड़ो

पथरीली चट्टानों पर दम-खम से दौड़ो

फूल ही फूल होंगे तुम्हारी राहों में

यूं डर डर कर जीने की आदत छोड़ो

जो जालिमों से डर जाये

वो बुजदिल है

जो ज़ुल्म करे असहायों पर

वो संगदिल है

सबको साथ लेके चले

वो हरदिल है

जो लूटे निर्धनों को

वो तंगदिल है

डर को छोड़ो तूफानों से लड़ जाओ

हिम्मत से सैलाबों में आगे बढ़ जाओ

लहरें तुम्हे किनारे पर पहुंचा देगी

एक बार नया इतिहास

तुम मिलकर गढ़ जाओ /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 134 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media# 134 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 134) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 134 ?

☆☆☆☆☆

Sound Sleep

सो जाते हैं फुटपाथ पर

एक अखबार बिछकर…

क्या देखा है कभी किसी मजदूर

को नींद की गोली खाते…!

☆ ☆

They fall asleep by spreading

a newspaper on the pavement,

Have you ever seen any labourer

taking any pills to sleep…?

☆☆☆☆☆

Murderous Shores

ताउम्र सीखते रहे हम

लहरों से लड़ने का हुनर,

पर हमे कहाँ पता था कि

किनारे भी कातिल निकलेंगे…!

☆ ☆

All our life we kept learning the

skills of fighting the waves,

But never knew that the shores

Would also be the assassin…!

☆☆☆☆☆

New Wounds ☆

काफी दिनों से कोई

नया जख्म नहीं मिला…

अरे, जरा पता तो करो

सारे “अपने” हैं कहाँ?

☆ ☆

No new wounds have been

caused for a long time…

Try finding out, where have

all the “own” people gone?

☆☆☆☆☆

☆ Strange Anguish 

चाँद आज भी शबाब पर है

चाँदनी भी ग़ज़ब की है

लेकिन आज भी बिन तेरे

दिल में कसक अजब सी है…!

☆ ☆ 

Even the moon is in its full bloom

Even moonlight is also awesome,

But even today there’s a strange

anguish in my heart without you…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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