हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 131 – “ऐसी क्या सामाजिक रचना होती है शहरी?…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  ऐसी क्या सामाजिक रचना होती है शहरी?)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 131 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

ऐसी क्या सामाजिक रचना होती है शहरी?… ☆

कपडा धोने की मशीन को

देख देख महरी

मेरी कब होगी यह उसकी

इच्छा है गहरी

 

हाथों में छाले मलकिन क्यों

भोंका करती है

बात बात पर उसको यों ही

टोका करती है

 

इतना समझाती पर मेरी

सुनती नहीं कभी

मुझ को लगता हो बैठी वह

निश्चित ही बहरी

 

एक रबर की इक टायर की

चप्पलको पहने

एल्यूमिनियम के हाथों में

शोभित हैं गहने

 

और क्षीण जर्जर साड़ी

का मतलब बेमानी

इसकी काया पर लोगों की

नजरें हैं ठहरी

 

शीश झुका लोगों के घर में

आती जाती है

बेचारी मरते खटते

खुद से शरमाती है

 

लोगो की आदत स्वभाव को

जान चुकी रमिया

ऐसी क्या सामाजिक रचना

होती है शहरी ?

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

15-03-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 122 ☆ # ये तख्त रहेगा ना ताज रहेगा… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# ये तख्त रहेगा ना ताज रहेगा… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 122 ☆

☆ # ये तख्त रहेगा ना ताज रहेगा… # ☆ 

ये तख्त रहेगा ना ताज रहेगा

ये महल रहेगा ना राज़ रहेगा

जहां सज रही थी रंगीन महफ़िले

ये रंगमहल रहेगा ना साज रहेगा

कुछ पल की ये रंगीनियां हैं

नाचती तितलियों की झलकियां हैं

कुछ प्रेम कहानियां बनी थी

वो आज भी अमर कहानियां हैं

ये ऊंचे ऊंचे महल ऐश्वर्य  बताते हैं

अपने वैभव की झलक दिखाते हैं

जिन्होंने जीती है कठिन लड़ाइयां

अपने शौर्य की निशानियाँ दर्शाते हैं

कितने हुए राजे रजवाड़े

उन्हें आज कौन याद करते हैं

जिन्होंने लगा दी जान की बाजी

ऊन शूरवीरों को जांबाज कहते हैं

उनके ही लगे हैं स्टेच्यू

हर शहर, हर चौराहे पर

उनके चरण छूकर ही

आजादी का आगाज़ करते हैं

जिन्होंने गद्दारी की वे मिट गये जमाने में

जिन्होंने मक्कारी की वे तिरस्कृत हैं फसानों में

जमाना वीरों को याद रखता है

जो गीत बनकर गाए जाते हैं दीवानों में

अहंकार, घमंड विनाश की राह है

छल कपट से आक्रमण बुजदिलों की चाह है

सत्य की जगह झूठ को मानने वाले

इतिहास में कायर, डरपोक, कमजोर और तानाशाह हैं /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मातारानी के दोहे” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

“मातारानी के दोहे” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

मातारानी है नमन्,सदा झुका यह माथ।

जननी तेरा नित रहे,मेरे सिर पर हाथ।।

नौ रूपों में आप तो,रहतीं हरदम भव्य।

रोशन तेरी दिव्यता,महिमा हर पल श्रव्य।।

साँचा है दरबार माँ,है कितना अभिराम।

जिसने भी श्रद्धा रखी,बनते उसके काम।।

माँ तुम हो नेहमय,देतीं हो आलोक।

सिंहवाहिनी की दया,करे परे हर शोक।।

नवरातें मंगल करें,शुभ करती हैं नित्य।

दिवस उजाला कर रहे,बनकर के आदित्य।।

विन्ध्यवासिनी माँ तुम्हें,बारंबार प्रणाम।

तुम से ही बनते सदा,मेरे बिगड़े काम।।

भक्त आपका कर रहे,श्रद्धामय हो जाप।

प्रबल शक्ति,आवेग है,प्रखर आपका ताप।।

संयम को मैं साधकर,शरण आपकी आज।

माता हे! सुविचारिणी,सब पर तेरा राज।।

माता हरना हर व्यथा,देना जीवनदान।

चलूँ धर्मपथ,नीतिपथ,कर पूरण अरमान।।

सदा आप में है भरा, ज्ञान, भक्ति, तप,योग।

हरतीं हो हे मातु ! नित,काम,क्रोध अरु रोग।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नवसंवत्सर… ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

(साहित्यकार श्रीमति योगिता चौरसिया जी की रचनाएँ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों/पत्र पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में सतत प्रकाशित। कई साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। दोहा संग्रह दोहा कलश प्रकाशित संग्रह प्रकाशाधीन विविध छंद कलश।राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय मंच / संस्थाओं से 200 से अधिक पुरस्कारों / सम्मानों से सम्मानित। साहित्य के साथ ही समाजसेवा में भी सेवारत। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करते रहेंगे।)  

☆ कविता ☆ नवसंवत्सर… ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

चैत्र मास तिथि प्रतिपदा , बहुत हर्ष है आज।

नवसंवत्सर वार है , बनते शुभमय काज।।1!!

भजते माँ अम्बे रहे , नवसंवत्सर वार।

जले ज्योति है नौ दिवस , माँ करती उद्धार।।2!!

माँ अम्बे का सज रहा , खूब बड़ा दरबार।

रखे मात अम्बे कदम, हरती कष्ट अपार।।3!!

पूजा घर पर ही करें , भगवा ध्वज फहराय।

चरण शरण मैया पड़े , जीवन का सुख पाय।।4!!

धर्म जाति कोई रहे , माने खुश त्योहार।

भक्ति भाव मन में सजे , सुखद बने संसार।।5!!

नव कलिका मन की खिली , अब आनन्द विभोर।

नव संवत्सर की किरण , मन मे करती शोर।।6!!

चैत्र शुक्ल संवत रहे , सुखमय हो परिवेश।

बुरी बला जग से मिटे , मिले सुखद संदेश।।7!!

भारतीय नव वर्ष में , मना रहे त्योहार।

सत्य सनातन धर्म यह , नवसंवत शुभ सार।।8!!

जले ज्योति हर घर  सजे , हुआ तिमिर का नाश।

कलश स्थापना कर रहे , करते दूर निराश।।9!!

जीवन जी इस वर्ष में , करना सदा विशेष ।

ऊँचाई छूना सदा , अंतस मत रख द्वेष ।।10!!

© श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’

मंडला, मध्यप्रदेश

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 132 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media# 132 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 132) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 132 ?

☆☆☆☆☆

Footprints ☆

अरे नादान, नक्शा-ए-कदम

किधर ढूँढता है तू…

जब तक चलेगा नहीं तब तक तेरे

कदमों के निशान बनेंगे कैसे…!

☆☆

O’ dimwit! What imprints of

your steps you’re looking for

Unless you begin to walk,

how will footprints be made…!

☆☆☆☆☆

हमने ऐसी भी क्या खता कर दी,

जो काबिले माफी नहीं…

तुम्हें देखा नहीं कितने दिनों से,

क्या ये सजा काफी नहीं…

☆☆

What mistake have I committed

That is not firgivable…

Haven’t seen you for so many days,

isn’t this punishment enough…!

☆☆☆☆☆

☆ Effulgent Soul 

सोचो तो तमाम सिलवटों

से भरी है रूह,

देखो तो एक शिकन भी

नहीं है लिबास में …

☆☆

One may envisage that

soul is full of crumples

When envisioned, there’s not

even a wrinkle on attire…

☆☆☆☆☆

हो सकता है हमारे जैसे

हजारों मिल जाएँ तुम्हें

पर अफसोस अब तुम्हें

हम कभी नहीं मिलेंगे…!

☆☆

May be you will find

thousands like me…

But alas! You shall

never find me again…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 131 ☆ – सॉनेट – नूपुर… – ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  गीत “~ ओ! मेरी रचना संतानों आओ… ~”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 130 ☆ 

~ सॉनेट ~ नूपुर ~ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

नूपुर निखिल देश कर शोभा।

मात भवानी भुवन पधारी।

पाँव परौं, छवि दिव्य निहारी।।

जीव करो संजीव हृदय भा।।

मैया! तोरी करे साधना।

तबई धन्न हो मनु-मन्वन्तर।

तरै प्रियंक पगों पै सर धर।।

मातु सदय हो जेई कामना।।

तुहिना सी निर्मल मति होए।

जस गाऊँ नित रचौं गीतिका।

नव आशा हर श्वासा बोए।।

माँ मावस खों पूनम कर दो।

अर्पित मन राजीव अंबिका!

मति मयंक खों भक्ति अमर दो।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२४-३-२०२३, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #182 – 68 – “अरमानों की खुलेआम बग़ावत होती है…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “अरमानों की खुलेआम बग़ावत होती है…”)

? ग़ज़ल # 68 – “अरमानों की खुलेआम बग़ावत होती है…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

शायरों ने कहा दिलों में मुहब्बत होती है,

हमने कहा जनाब इंसानी कुदरत होती है।

आती है जवानी जिस्म परवान चढ़ता है,

हसीन अन्दाज़ उनकी ज़रूरत होती है।

राह में कोई मेहरवान कद्रदान मिलता है,

बहकना-बहकाना मजबूर फ़ितरत होती है। 

जिंस बाज़ार में खुलते हैं सफ़े दर सफ़े,

अरमानों की खुलेआम बग़ावत होती है।

मुहब्बतज़दा दिलों में झाँकता है ‘आतिश’

आशिक़ी फ़रमाना सबकी हसरत होती है।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 60 ☆ ।। हे माँ दुर्गा पापनाशनी,तेरा वंदन बारम्बार है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।। हे माँ दुर्गा पापनाशनी,तेरा वंदन बारम्बार है।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 60 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।। हे माँ दुर्गा पापनाशनी,तेरा वंदन बारम्बार है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

सुबह शाम की आरती और

माता का जयकारा।

नौदिवस का हरदिन बन गया

शक्ति का भंडारा।।

केसर चुनरी चूड़ी रोली हे माँ

तेरा श्रृंगार सब करें।

सिंह पर सवार माँ दुर्गा आयी

बन भक्तों का सहारा।।

[2]

तेरे नौं रूपों में समायी शक्ति

बहुत असीम है।

तेरी भक्ति से बन जाता व्यक्ति

बहुत प्रवीण है।।

हे वरदायनी पापनाशनी चंडी

रूपा कल्याणी तू।

दुर्गा नाम मात्र हो जाता व्यक्ति

भक्ति तल्लीन है ।।

[3]
नौं दिन की नवरात्रि मानो कि

ऊर्जा का संचार है।

भक्ति में लीन तेरे भजनों की

माया अपरम्पार है।।

कलश कसोरा जौ और पानी

आस्था के प्रतीक।

हे जगत पालिनी माँ दुर्गा तेरा

वंदन बारम्बार है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 124 ☆ ग़ज़ल – “अधर जो कह नहीं पाते…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक गावव ग़ज़ल  – “अधर जो कह नहीं पाते …” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण   प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #124 ☆  गजल – “अधर जो कह नहीं पाते …” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

अचानक राह चलते साथ जो जब छोड़ जाते हैं

वे साथी जिन्दगी भर, सच, हमेशा याद आते हैं।

 

बने रिश्तों को हरदम प्रेम जल से सीचते रहिये

कठिन मौकोें पै आखिर अपने ही तो काम आते हैं।

 

नहीं देखे किसी के दिन हमेशा एक से हमने

बरसते हैं जहाँ आँसू वे घर भी जगमगाते हैं।

 

बुरा भी हो तो भी अपना ही सबके मन को भाता है

इसी से अपनी टूटी झोपड़ी भी सब सजाते हैं।

 

समझना सोचना हर काम के पहले जरूरी है

किये कर्मो का फल क्योंकि हमेशा लोग पाते हैं।

 

जहाँ  पाता जो भी कोई परिश्रम से ही पाता है

जो सपने देखते रहते कभी कुछ भी न पाते हैं।

 

बहुत सी बातें मन की लोग औरों से छुपाते हैं

अधर जो कह नहीं पाते नयन कह साफ जाते हैं।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गीत – “गाँव की बेटी-दोहों में” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ गीत – “गाँव की बेटी-दोहों में” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

बेटी भाती गाँव की,जो गुण से भरपूर। 

जहाँ पहुँच जाती वहाँ, बिखरा देती नूर।। 

बेटी प्यारी गाँव की,प्रतिभा का उत्कर्ष। 

मायूसी को दूरकर,जो लाती है हर्ष।। 

बेटी जो है गाँव की,करना जाने कर्म। 

हुनर संग ले जूझती,सतत् निभाती धर्म।। 

गाँवों की बेटी सुघड़,बढ़ती जाती नित्य।

चंदा-सी शीतल लगे,दमके ज्यों आदित्य।। 

कुश्ती लड़ती,दौड़ती,पढ़ने का आवेग। 

गाँवों की बेटी लगे,जैसे हो शुभ नेग।। 

बेटी गाँवों की भली, होती है अभिराम। 

जिसके खाते काम के,हैं अनगिन आयाम।। 

खेतों से श्रम का सबक,बढ़ना जाने ख़ूब। 

गाँवों की बेटी प्रखर,होती पावन दूब।। 

करती बेटी गाँव की,अचरज वाले काम। 

मुश्किल में भी लक्ष्य पा,हासिल करती नाम।। 

गाँवों को देती खुशी,रचती है सम्मान। 

बेटी मिट्टी से बनी,रखती है निज आन।। 

राजनीति,सेना गहे,कला और विज्ञान। 

गाँवों की बेटी करे,पूरे सब अरमान।। 

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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