हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “बची रहेंगी निशानियां” ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

  ☆ कविता ☆ “बची रहेंगी निशानियां ? ” ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

राजधानी में हूँ 

भरा पड़ा है

नेताओं के चेहरों से

सब जैसे

एक दूसरे से ज्यादा

लोकप्रिय दिखने की होड़ में !

पहले कुछ घाट,  कुछ समाधियां आईं

समर्थकों ने संभाली इनकी स्मृतियां जैसे !

कितनी कोशिश रहती है इंसान की

अपनी निशानियां छोड़ने की !

बड़े बड़े राजे महाराजा भी

यही करते आये !

सब मिट्टी में मिलता रहा !

पिरामिड के अंदर भी

कुछ न मिला

और ताजमहल के भीतर भी खालीपन !

काल पात्र तक !

कोई निशानी न बची किसी की !

फिर हम

किस अंधी दौड़ में शामिल हैं ?

क्या पाने के लिए ?

जैसे पानी में कंकर फेंकते हैं

वैसे ही मैं पूछता हूँ खुद से

कोई जवाब नहीं

बस पानी की तरंगों

जैसी हलचल है !!!

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 57 ☆ स्वतंत्र कविता – भोर का आगमन… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण स्वतंत्र कविता “भोर का आगमन”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 57 ✒️

?  भोर का आगमन… ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

(स्वतंत्र कविता)

चांदनी रात,

उस पर तुम्हारा साथ ।

कह गई पवन ,

अनकही सी बात ।।

 

अधर है टेसू से,

चंचल चितवन ।

रात है भीगी सी

भीगा हुआ है मन की ।।

 

देह की महक,

बहकती हुई सांसें ।

थरथराती,

बाहों में बाहें ।।

 

विहग चहचहाये,

सिहर उठे हम ।

जगाये नेह से,

भोर का आगमन ।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “शिवालय” ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

☆ कविता ☆ “शिवालय”  ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

ओ दूर है शिवालय, शिवका मुझे सहारा

शिव के बिना यहा तो, कोई मुझे न प्यारा

जा ना सके वहा तो, दिल में उसे बिठाकर

हर साँस को बनालो, शिव नाम एक नारा

ये जान धूल मिट्टी, आकार तू बनाया

हर एक आदमी को, तूने किया सितारा

कैलाश घर तुम्हारा, दिल मे किया बसेरा

जाने कहा कहा पर, संसार है तुम्हारा

कश्ती तुफान में थी, मैंने तुम्हे पुकारा

आँखे खुली खुली थी, था सामने किनारा

भगवान दान माँगे, मैने नही सुना था

सजदा किया हमेशा, सौदा किया न यारा

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “तू और चाँद” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ कविता ☆ “तू और चाँद”  ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

इतराता है चाँद तो, पा तुझ जैसा रूप।

सच,तेरा मुखड़ा लगे, हर पल मुझे अनूप।।

 

चाँद बहुत ही है मधुर, इतराता भी ख़ूब।

जो भी देखे,रूप में, वह जाता है डूब।।

 

कभी चाँद है पूर्णिमा, कभी चाँद है ईद।

कभी चौथ करवा बने, करते हैं सब दीद।।

 

जिसकी चाहत वह सदा, इतराता है नित्य।

आसमान,तारे सुखद, चाँद और आदित्य।।

 

इतराने में है अदा, इतराने में प्यार।

इतराना चंचल लगे, अंतस का अभिसार।।

 

इतराकर के चाँद तो, देता यह पैग़ाम।

जो तेरे उर में बसा, प्रीति उसी के नाम।।

 

इतराकर के चाँद तो, ले बदली को ओट।

पर सच उसके प्यार में, किंचित भी नहिं खोट।।

 

कितना प्यार चाँद है, कितना प्यारा प्यार।

नेह नित्य होकर फलित, करे सरस संसार।।

 

छत से देखो तो करे, चाँद आपसे बात।

कितना प्यारा दोस्त की, मिली हमें सौगात।।

 

अमिय भरा है चाँद में, किरणों का अम्बार।

चाँद रखे युग से यहाँ, अपनेपन का सार।।

           

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 71 – मनोज के दोहे – ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 71 – मनोज के दोहे – ☆

1 रोटी

रोटी दुनिया से कहे, धर्म-कर्म-ईमान।

मुझसे ही संसार यह, गुँथा हुआ है जान।।

2 गुलाब

मुखड़ा सुर्ख गुलाब-सा, नयन झील कचनार।

ओंठ रसीले मद भरे, घायल-दिल भरमार।।

3 मुँडेर

कागा बैठ मुँडेर पर, सुना गया संदेश।

खुशियाँ घर में आ रहीं, मिट जाएँगे क्लेश।।

4 पाती

पाती लिखकर भेजती, प्रियतम को परदेश।

होली हम पर हँस रही, रूठा सा परिवेश।।

5 पलाश

मन में खिला पलाश है, होली का त्यौहार।

साजन रूठे हैं पड़े, सुबह-सुबह तकरार ।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर एक कविता-  मायोपिआ ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर एक कविता-  मायोपिआ ??

वे रोते नहीं,

धरती की कोख में उतरती

रसायनों की खेप पर,

ना ही आसमान की प्रहरी

ओज़ोन की

पतली होती परत पर,

दूषित जल, प्रदूषित वायु,

बढ़ती वैश्विक अग्नि भी,

उनके दुख का

कारण नहीं, अब…,

विदारक विलाप कर रहे हैं,

इन्हीं तत्वों से उपजी

एक देह के

मौन हो जाने पर…,

मनुष्य की आँख के

इस शाश्वत मायोपिआ का

इलाज ढूँढ़ना

अभी बाकी है..!

मायोपिआ- निकट दृष्टिमत्ता जिसमें दूर का स्पष्ट दिखाई नहीं देता।

© संजय भारद्वाज 

( कवितासंग्रह ‘योंही’ से।)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 कृपया आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना जारी रखें। होली के बाद नयी साधना आरम्भ होगी 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 128 – गीत – आओ तो केवल तुम आओ… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण गीत – आओ तो केवल तुम आओ…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 128 – गीत – आओ तो केवल तुम आओ…  ✍

आओ तो केवल तुम आओ

मत सपनों की भीड़ लगाओ।

 

संवादी सपने जब अति

यादों की बाती उकसाते

दिया नहीं घाव की मरहम

किन्तु नमक तो मत छिड़काओ।

आओ तो केवल तुम आओ ।

 

सपनों की तासीर गर्म है

अश्रु, आँख का देह धर्म है

विषम भूमि में क्या उपजेगा

मत पानी में आग लगाओ।

आओ तो केवल तुम आओ।

 

एक नाग का एक वंश है

एक दाह है, एक देश है

सुधबुध खो दे समय सपेरा

कोई ऐसा राग सुनाओ।

आओ तो केवल तुम आओ।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 127 – “तर्कशीला.. जैसे नहीं रही…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  “तर्कशीला जैसे नहीं रही)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 127 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

तर्कशीला… जैसे नहीं रही

सुबह सुबह फोन पर

कहा मेरे बॉस ने-

” नीम फूल आये

पड़ौस में

 

देख लेना !

बदल कर चश्मे

वर्तमान मौसम

के करिश्मे

 

दिन ऐसे

लगते जैसे

गाये गये

मालकोंस में

 

धानी सी सूरत

जो हुई

शाख शाख

जैसे छुई मुई

 

है न आश्चर्य

जो आ ठहरा

साहब की

धौंस में

 

कंचनी काया

कमनीय है

पत्ती पत्ती

वंदनीय है

 

तर्कशीला

जैसे नहीं रही

सहजिन

अफसोस में

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

28-02-2021

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – बुआई ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – बुआई ??

मैंने पौधा रोपा,

फलत: पेड़ पनपा,

तुमने काँक्रीट बोया,

नतीज़ा बंजर रहा…!

© संजय भारद्वाज 

(संध्या 6:48 बजे, 21 फरवरी 2023)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 महादेव साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र दी जाएगी। 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 118 ☆ # परीक्षा की यह कठिन घड़ी है… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# परीक्षा की यह कठिन घड़ी है … #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 118 ☆

☆ # परीक्षा की यह कठिन घड़ी है… # ☆ 

सब बच्चों की रंगत उड़ी है

परीक्षा की यह कठिन घड़ी है

 

यह छोटू, यह मोटू

यह गुड्डू, यह गुड़िया

यह मुन्ना, यह मुनिया

यह सन्नी,  यह हनी

यह जॉन, यह जेनी

यह बंटी, यह बबलू

यह वसीम, यह वहीदा

यह अब्दुल, यह रशीदा 

यह करतार, यह कौर

यह धम्म दीप, यह उपासिका

यह  अरण्यक, बहुत सारे और

सब पर आफत आन पड़ी है

यह परीक्षा की कठिन घड़ी है

 

परीक्षा नहीं इतनी आसान

मम्मी पापा है परेशान

पढ़ाते हैं बच्चों को दिन रात

सूझती नहीं और कोई बात

बच्चों के पीछे भागते है

दिन रात बस जागते हैं

प्रतिस्पर्धा बहुत कड़ी है

परीक्षा की यह कठिन घड़ी है

 

बच्चों से है सब का मान

परिणाम देख ना टूटे सम्मान

लगे हुए हैं बच्चों को मनाने

शिक्षा का मतलब समझाने

टाॅफी, पिज्जा, लालीपाप

हाजिर है जो बोलो आप

रट जाओ तुम टेबल सारे

गणित में अव्वल आओगे प्यारे

कितनी सरल यह बाराखड़ी है

परीक्षा की यह कठिन घड़ी है

 

जो लायेंगे  अच्छे नंबर

कालोनी में होंगे सिकंदर

हर कोई प्यार करेगा

सर आंखों पर धरेगा

आदी अगली क्लास चढ़ेगा

मम्मी पापा का रुतबा बढ़ेगा

 

गोल्डी क्लास में अव्वल आया

दादा-दादी से साइकिल  पाया

झूम उठे मम्मी-पापा, दादा-दादी

हीरो बन गया (गोल्डी) आदी

गोल्डी ने अपनी किस्मत गढ़ी है

परीक्षा की यह कठिन घड़ी है /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares