English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 129 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media# 129 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 129) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 129 ?

☆☆☆☆☆

“मैँ अपने खिलाफ बातें    

 ख़ामोशी से सुन लेता हूँ,

 मैंने जवाब देने का हक़

 वक़्त को दे रखा है..!”

☆☆

I listen to the things

 against me quietly,

 I have given the right

 to answer to the time..!

☆☆☆☆☆ 

“बहुत ही आसान है, ज़मीं पर…

 आलीशान मकान बना लेना…”

 दिल में जगह बनाने में …

 ज़िन्दगी गुज़र जाया करती है..!

☆☆

It’s  very  easy  to  make a

 grand  house  on  the  land…

 Whole  life passes in making

 place  in  someone’s  heart…!

☆☆☆☆☆

मजबूरियाँ ओढ़ के निकलता हूँ

 घर  से  आजकल  मैं,

 वरना शौक तो आज भी है

 बारिशों में भीगने का…!

☆☆

Clad with  compulsions, I come

 out  of  the house, these  days

 Otherwise, I am  still fond  of

 getting drenched in the rains…

☆☆☆☆☆

  शर्तों में कब बांधा है,

 तुझे  ऐ  ज़िंदगी…

 ये उम्मीद के धागे हैं,

 कभी हैं, तो कभी नहीं…

☆☆ 

O’ life, when  have  I ever  tied

You up in terms and conditions

These are threads of expectations

Sometimes there, sometimes not

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 128 ☆ सॉनेट – नदी – ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  सॉनेट “~ नदी ~”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 128 ☆ 

सॉनेट ~ नदी ~ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

नदी नहीं है सिर्फ नदी।

जीवन-मृत्यु किनारे इसके।

सपने पलें सहारे इसके।।

देख नदी में अगिन सदी।।

मरु को मधुवन नदी बनाती।

मिले मेघ से जितना पानी।

सागर को जा देती दानी।।

जीवन को जीना सिखलाती।।

गर्मी-सर्दी, धूप-छाँव में।

पर्वत-जंगल नगर गाँव में।

बहती रुके न एक ठाँव में।।

जननी जन्मे, विहँस पालती।

काम न किंचित कभी टालती।

नव आशा का दीप बालती।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२१-२-२०२२, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #178 – 64 – “हम मुहब्बत के फ़साने को यूं न रुस्वा करें…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “हम मुहब्बत के फ़साने को यूं न रुस्वा करें…”)

? ग़ज़ल # 64 – “हम मुहब्बत के फ़साने को यूं न रुस्वा करें…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

क्या पता था मुहब्बत  का  यह अंजाम होगा,

सूजी पलकों पर यह आख़िरी सलाम होगा। 

महकती फ़िज़ा कल तलक रोशनी पुरनूर थी,

बंद लिफ़ाफ़ा तुम्हारी जुदाई का पैग़ाम होगा।

हम मुहब्बत के फ़साने को यूं न रुस्वा करें,

सोचते क्यों नहीं इश्क़ हमारा बदनाम होगा।

अब कोर्ट के दर से फ़लाँ वल्द फ़लाँ गूंजेगा,

शर्तिया हमारा नाम अब नहीं गुमनाम होगा।

वो साथ उठते-बैठते खाते-पीते गुनगुनाते थे,

अब बैंक खातों का खुलासा सरे आम होगा।

दिन तो गुज़रेगा टूटे प्यालों को समेटने में,

शाम घिरते सूखे उदास होंठों पर जाम होगा।

भटकी ज़िंदगी बियाबान झाड़ी में उलझ गई,

आतिश आशिक़ी पर सितम हर बाम होगा। 

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 56 ☆।।मत हारो मन को, कि हार के बाद मिलती जीत है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।। मत हारो मन को, कि हार के बाद मिलती जीत  है।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 56 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।। मत हारो मन को, कि हार के बाद मिलती जीत  है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

सदियों से ही चल, रही यही   रीत है।

हार के बाद ही, मिलती     जीत है।।

गर नहीं छोड़ी प्रीत, जोशो   जनून से।

सफलता बन जाती, हमारी   मीत है।।

[2]

परिश्रमऔर व्यवहार, यही दो  मंत्र हैं।

बुद्धिऔर विवेक, जीत के दो   तंत्र  हैं।।

सहयोग और सरोकार को बनाना मित्र।

साहस और उत्साह,जीत के दो यंत्र हैं।।

[3]

बनना सफल तो ,कर्मशीलता साथ रखो।

सबसे मिला कर हाथों में, तुम हाथ रखो।।

मंजिल खुद चलकर,पास तुम्हें बुलाती है।

बस निरंतर अभ्यास, का सूत्र याद रखो।।

[4]

व्यवहार लोकप्रियता, सिक्के के दो पक्ष हैं।

सफल  होते  वो  सब, जो बोलने में दक्ष हैं।।

जो अनूठा  कार्य  करते, वो स्थान बना लेते।

जीत का हार पहनते, जो रखते कुछ लक्ष्य हैं।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 119 ☆ कविता  – “प्रार्थना…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “दिखते जो है बड़े उन्हें वैसा न जानिये…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #120 ☆  कविता  – “प्रार्थना…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

भगवान तुम्हारी माया को जग समझ सके आसान नहीं ।

तुम करुणा के आगार अमित जिसका जग को अनुमान नहीं ।।

जग में माया का मायापति तुमने ऐसा विस्तार किया

कण कण में आकर्षण भर कर सबको सुन्दर संसार दिया।

पर नयन बावरे देख सकें इसका उनको तो भान नहीं ।। 1 ।।

दुनियाँ ने की उन्नति बहुत पर सच अब भी अज्ञानी है

विज्ञानी ने कीं खोज कई, पर तज न सका नादानी है।

उस पार तुम्हारी इच्छा के जा सकता है विज्ञान नहीं ॥ 2 ॥

लेकर एक सीमित आयु यहाँ प्राणी जग में क्यों आते हैं ?

रहते, हँसते, गाते, रोते फिर छोड़ चले क्यों जाते हैं?

अब भी रहस्य है उलझा सा, हो पाया अनुसंधान नहीं ॥। 3 ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #170 ☆ भावना के दोहे… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है  भावना के दोहे।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 170 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे… ☆

रोटी

बच्चे मेरे चार है, दो रोटी है पास।

हिस्से उनके कर दिए, और बची है प्यास।।

गुलाब

खुशबू हमको घेरती, घेर रहे है ख्वाब।

महक रहा है बस यहाँ, प्यारा लाल गुलाब।।

मुँडेर

हमको तो आने लगी, काँव काँव आवाज।

बोले काग मुँडेर पर, पाती आती आज।।

पाती

पाती तो आई नहीं, बीत गई है शाम।

मन में हमने लिख दिया, तेरा विजयी नाम।।

पलाश

खिलते फूल पलाश के, बढ़ी बाग की शान।

देख उसे खिलने लगी, कलियों की मुस्कान।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #156 ☆ “हमें जो भाता है…” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण रचना  हमें जो भाता है। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 156 ☆

☆ हमें जो भाता है ☆ श्री संतोष नेमा ☆

तुम्हें  मुस्कराने  से  कौन  रोकता  है

तुम्हे दिल  लगाने से कौन  रोकता है

क्या होती है मोहब्बत तुम्हें पता नहीं

तुम्हे  आजमाने  से  कौन  रोकता  है

बात दिल की छिपाया न करो

डर हो तो दिल लगाया न करो

मुहब्बत कुछ चीज ही ऐसी है

इसे  यूँ  ही तुम गंवाया न करो

आईना देख कर संवरने लगे हैं

दिल  में  वो  मेरे  उतरने  लगे हैं

राज छुपते नहीं कभी छुपाने से

अब तो नजरों से बिखरने लगे हैं

प्यार कभी  ठुकराना  मत

बाधा  से    घबड़ाना   मत

बहकावे में कभी किसी के

तुम  जरा  भी   आना   मत

जो दिल में आता है  लिख देते हैं

हमें  जो   भाता  है   लिख  देते हैं

माँ  शारदे  देतीं    हैं   जब   प्रेरणा

कलम दिल चलाता है लिख देते हैं

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “प्रेम का गान” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ कविता ☆ “प्रेम का गान”  ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

जीवन में वरदान प्रेम है,उजली है इक आशा ।

अंतर्मन में नेह समाया,नही देह की भाषा ।।

 

लिये समर्पण,नेहिल निष्ठा,

भाव सुहाना प्रमुदित है।

प्रेम को जिसने पूजा,समझा,

वह तो हर पल हर्षित है।।

दमकेगा फिर से नव सूरज,होगा दूर कुहासा।

अंतर्मन में नेह समाया,नहीं देह की भाषा  ।।

 

राधा-श्याम मिले जीवन में,

याद सदा शीरी-फरहाद।

ढाई आखर महक रहा जब,

तब लब पर ना हो फरियाद।।

नये दौर ने दूषित होकर,बदली क्यों परिभाषा।

अंतर्मन में नेह समाया,नहीं देह की भाषा ।।

 

अंतस का सौंदर्य प्रस्फुटित,

बाह्रय रूप बेमानी है।

प्रीति को जिसने ईश्वर माना,

उसकी सदा जवानी है।।

उर सबके होंगे फिर उजले,यही आज प्रत्याशा ।

अंतर्मन में नेह समाया ,नहीं देह की भाषा ।।

 

जीवन की रुत नवल,सुहानी,

लिए हुए अरमान।

जो होते हैं प्रेम विभूषित,

उनका नित जयगान।।

आज मनुज शारीरिक होकर,फिरता लिए पिपासा।

अंतर्मन में नेह समाया ,नहीं देह की भाषा ।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नमन वीर को… ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

(साहित्यकार श्रीमति योगिता चौरसिया जी की रचनाएँ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों/पत्र पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में सतत प्रकाशित। कई साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय मंच / संस्थाओं से 150 से अधिक पुरस्कारों / सम्मानों से सम्मानित। साहित्य के साथ ही समाजसेवा में भी सेवारत। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करते रहेंगे।)  

☆ कविता ☆ नमन वीर को … ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

(विधा-जयानंदिनी छंद)

अमन शांति मन धरते, वही पीर जन हरते ।

सदा देश भक्ति करे ,खड़े वीर शौर्य  भरे ।।

सदा शीर्ष  जो लहरे, तिरंगा  बना फहरे।

धरे वीरता चलते, सदा शत्रु मन खलते ।।

करे जंग जीवन की ,सहारा बने जन की ।

नमन वीर को करते, शहादत चमन भरते ।।

कहे योगिता सब से, बने आस जन कब से ।

भरी ठंड हो गहरी, खड़े रात-दिन प्रहरी ।।

लुटा प्राण जग रहते, खुशी देश जन बहते।

सुरक्षा बना चलते, सदा प्रार्थना पलते ।।

© श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’

मंडला, मध्यप्रदेश

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साक्षात्कार ☆ चाहतें… ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ कविता ☆ चाहतें… ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

फ्रिज के करीब जाने से

बहुत डरने लगा हूं

पता नहीं इसमें

किसके सपने

किसकी चाहतें काट काट कर

कोई ठूंस गया हो !

सच ! कितना खौफनाक है

यह मंजर

जब फ्रिज में किसी की चाहतें

टुकड़ा टुकड़ा गोश्त के रूप में

सदा के लिए बंद कर दी जाती हैं

लेकिन इन्हें कहीं ठिकाने नहीं लगा पाते

क्योंकि चाहतें कभी

मर नहीं सकतीं

कभी कट नहीं सकतीं

कभी खत्म नहीं हो सकती !

दुनिया के सभी मर्दो

सुन लो !

वह मर कर भी

सदा जिंदा है !

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  

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