English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 120 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 120 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 120) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 120 ?

☆☆☆☆☆

जरा संभाल कर ही करना

गैरों से हमारी बुराई,

जो तुम्हारे अज़ीज़ हैं

वो हमारे भी मुरीद हैं…!

Must you talk ill of me to others,

Then, do it with utmost care,

Those who are close to you,

are my ardent admirers, too…!

☆☆☆☆☆

मुद्दतों के बाद जब उसने

निगाह-ए-लुत्फ जो डाली,

दिल तो बहुत खुश हो गया

मगर बेहिसाब आँसू छलक पड़े…!


After ages when he cast

his zestful sight…

My heart got overjoyed

but the tears welled up…!

☆☆☆☆☆ 

उस शख़्स से फ़क़त  इतना

सा ताल्लुक है मेरा…

वो परेशान होता है तो

नींद मुझे नहीं आती है…!

Just so much of relation

I have with that person

If he ever gets upset

I just can’t even sleep…

☆☆☆☆☆

इश्क़ में पाने जैसा

कुछ भी नहीं है,

जिसने भी दिल से किया

बस सिर्फ दिया ही है…!

 

There is nothing like

gaining something in love,

Whoever did it from the heart

has landed up giving only…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 120 ☆ ~ श्री राधे ~ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित “~ श्री राधे ~ ”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 120 ☆ 

☆ ~ श्री राधे ~ ☆

[अभिनव प्रयोग – मुक्तिका – (प्रथमाक्षर स्वर)]

अनहद-अक्षर अजर-अमर हो श्री राधे

आत्मा आकारित आखर हो श्री राधे

 

इला इडा इसरार इजा हो श्री राधे

ईक्षवाकु ईश्वर ईक्षित हो श्री राधे

 

उदधि उबार उठा उन्नत हो श्री राधे

ऊब न ऊसर उपजाऊ हो श्री राधे

 

एक एक मिल एक रंग हो श्री राधे

ऐंचातानी जग में क्यों हो श्री राधे? 

 

और न औसर और लुभाओ श्री राधे

थके खोजकर क्यों ओझल हो श्री राधे

 

अंत न अंतिम ‘सलिल’ कंत हो श्री राधे

अ: अ: आहा छवि अब हो श्री राधे

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१४-१२-२०१९

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ जन्म दिवस विशेष – श्री अटल बिहारी – 25 दिसंबर ☆ श्री गौतम नितेश  ☆

श्री गौतम नितेश

☆ जन्म दिवस विशेष – श्री अटल बिहारी – 25 दिसंबर ☆ श्री गौतम नितेश 

तारीख है 25 दिसंबर,

तो झूम उठा है सारा अंबर,

दिन है आज रवि,

और हम जिन्हें याद कर रहे वो हैं एक कवि,

अटल थे उनके इरादे,

पूरे किए हरदम अपने सारे वादे,

देश-विदेश में सब करते थे इनकी प्रशंसा,

विरोधियों को भी करनी पड़ जाती थी अनुशंसा,

देश हित में मर मिटने की सदा ही रही है मंशा,

संवाद ऐसा मानो बोल रहा हो जन-जन सा,

जब भारत के प्रधानमंत्री थे श्री अटल बिहारी,

कारगिल में दुश्मनों को धूल चटाई थी हमने करारी,

आओ सब मिलकर करें इनके जन्मदिवस की तैयारी,

एक कविता ऐसी पढ़ो तुम, इक गज़ल वैसी कहूँ मैं!

सुनकर जिसे इस मातृभूमि में, होना चाहे हर कोई बलिहारी।

© श्री गौतम नितेश

गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
9926494244.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आत्मानंद साहित्य #152 ☆ कविता – डाक्टर ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 152 ☆

☆ ‌कविता – डाक्टर ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

डाक्टर भगवान था,

                 शैतान बन गया।

वो रहम दिल इंसान था,

                   हैवान बन गया।

 क्या हो! अगर जो डाक्टर,

                 इंसान बन जाए।

चरित्र उसका बाइबिल, गीता,

                   कुरआन बन जाए।

रोता हुआ जो कोई,

                   उनके दर पे आए।

पाए सुकून दिल में,

             हंसता हुआ घर जाए।

दिल को करार आए,

             इनकी सूरत देखकर।

 श्रद्धा से सिर झुके,

             इनकी रहमत देख कर।

पाए खुदा का दर्जा,

              इंसानियत के नाते।

बन के फकीर सबको,

              जो अपनी खुशियां बांटें।

चरक सुश्रुत संहिता,

              लिख गए जो भाई।   

धनवंतरी जी बन कर,

                   करते जगत भलाई ।।

पर आज के कुछ डाक्टर,

                   दौलत को पूजते हैं।

बन राह के लुटेरे,

                   लोगों को लूटते हैं।

सींचते हैं अपने बाग को,

                   लोगों के खून से।

भरते हैं अपनी झोलियां,

                     लूटे गए धन से।

वो चीरते जिगर है,

                   गुर्दे भी बेचते हैं।

जिंदों की बात छोड़िए,

                  मुर्दा भी बेचते हैं।

इंसानियत के दुश्मन,

                 इंसान के हत्यारे।

मुर्दे भी कैद करते,

                 पैसों के लिए प्यारे।

कर्मों पे आज इनके,

                 मानवता रो रही है।

ये पत्थर दिल है भाई,

                  सद्भावना नहीं है।

खाते कमीशन खूब,

               भगवान से न डरते।

पैसों की खातिर देखो,

               हर काम गलत करते।

 इनकी वजह से पेशा,

                 बदनाम हो रहा है।

इनके वजह से सम्मान,

         ‌         नीलाम हो रहा है।।

चाहत भी इनकी बदली,

                इनको दया न आई।

वो डाक्टर थे भाई,

                   ये डाक्टर है भाई।।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #169 – 55 – “तुम भी अपने गरेबाँ में झाँककर देखो…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “तुम भी अपने गरेबाँ में झाँककर देखो…”)

? ग़ज़ल # 55 – “तुम भी अपने गरेबाँ में झाँककर देखो…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

हम भी हँसते हैं ग़म छुपाने के लिये,

सब ग़म होते नहीं दिखाने के लिये।

कलम पहले लड़ती थी सच की लड़ाई,

अब खूब चलने लगी कमाने के लिये।

उसने दबी ज़ुबान कहा कि वो ख़ुश है,

फिर फ़ोन किया ख़ुशी जताने के लिए।

अपराध ने पुलिस से कर ली सगाई,

राजनीति का रिश्ता निभाने के लिए।

चालाक औलाद बूढ़ी माँ को छोड़ आये,

वृद्धाश्रम की व्यवस्था दिखाने के लिए।

तुम भी अपने गरेबाँ में झाँककर देखो,

आतिश लिखता  नाम सजाने के लिए।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चयन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥अगली साधना – आज शनिवार 24 दिसम्बर से श्री भास्कर साधना आरम्भ हो गई है। 💥

इसमें जाग्रत देवता सूर्यनारायण के मंत्र का पाठ होगा। मंत्र इस प्रकार है-

।। ॐ भास्कराय नमः।।

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – चयन  ??

समुद्र में अमृत पलता,

समुद्र ही हलाहल उगलता,

शब्दों से गूँजता ऋचापाठ,

शब्द ही कहलाते अवाच्य,

चिंतन अपना-अपना,

चयन भी अपना-अपना!

© संजय भारद्वाज 

रात्रि 11.31, 14.9.20

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 46 ☆ मुक्तक ।।जो पत्थर चोटों से तराशा जाता…।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।।जो पत्थर चोटों से तराशा जाता…।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 46 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।। जो पत्थर चोटों से तराशा जाता… ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

रोज  लाख  शुकराना अदा  करो  भगवान  का।

अनमोल  चोला  दिया  कि  हमको इंसान  का।।

दुआएं  लो और  दुआएं  दो इस एक जिंदगी में।

जानो छिपा इसी में खजाना हमारे नेक नाम का।।

[2]

दूसरे से पहले अपना मूल्यांकन तुम रोज करो।

कहां भीतर कमी तुम्हारे इसकी तुम खोज करो।।

भावना,  संवेदना  आभूषण हैं अच्छे मानव के।

कभी किसी को देकर दर्द मत तुम मौज  करो।।

[3]

कर्म वचन वाणी से सदा सबका तुम उद्धार करो।

किसी सहयोग का तुम मत कभी अपकार करो।।

यह मानव  जीवन मिला जीने  और जिलाने को।

मानवता  रहे  जीवित  तुम   यह उपकार करो।।

[4]

क्षमा करने से बड़ा कोई और   दान नहीं है।

स्वयं जानने से बड़ा कोईऔर ज्ञान नहीं है।।

रोज खुद को गढ़ते रहो तुम छेनी हथौड़ी से।

जानो बुराई करने सेआसान कोई काम नहीं है।।

[5]

छीनने से देने वाला ही बस महान कहलाता है।

आचरण में उतारने वाला ही विद्वान कहलाता है।।

जो खुशी देते हैं हम दुगनी होकर वापिस आती।

पत्थर चोटों से तराशा जाता भगवान कहलाता है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 111 ☆ ग़ज़ल – “’सद्भाव औ’ सहयोग में ही…”☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “’सद्भाव औ’ सहयोग में ही…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #111 ☆  ग़ज़ल  – “’सद्भाव औ’ सहयोग में ही…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

हो रहा उपयोग उल्टा अधिकतर अधिकार का

शान्ति-सुख का रास्ता जबकि है पावन प्यार का।

 

जो जुटाते जिंदगी भर छोड़ सब जाते यहीं

यत्न पर करते दिखे सब कोष के विस्तार का।

 

सताती तृष्णा सदा मन को यहाँ हर व्यक्ति के

पर न करता खोज कोई भी सही उपचार का।

 

लोभ, लालच, कामनायें सजा नित चेहरे नये

लुभाये रहते सभी को सुख दिखा संसार का।

 

वसन्ती मौसम की होती आयु केवल चार दिन

मनुज पर फँस भूल जाता लाभ षुभ व्यवहार का।

 

ऊपरी खुशियां किसी की भी बड़ी होतीं नहीं

फूल झर जाते हैं खिलकर है चलन संसार का।

 

इसलिये चल साथ सबके प्यार का व्यवहार कर

सिर्फ पछतावा ही मिलता अन्त अत्याचार का।

 

सहयोग औ’ सद्भावना में ही सदा सब सुख बसा

नहीं कोई इससे बड़ा व्यवहार है उपहार का।      

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – समीकरण ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥अगली साधना – शनिवार 24 दिसम्बर से 6 जनवरी 2023 तक श्री भास्कर साधना सम्पन्न होगी। 💥

इसमें जाग्रत देवता सूर्यनारायण के मंत्र का पाठ होगा। मंत्र इस प्रकार है-

।। ॐ भास्कराय नमः।।

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि –  समीकरण ??

मन और मस्तिष्क में

संघर्ष चलता रहा,

जगत का समीकरण

सदा टेढ़ा बना रहा,

बड़प्पन समझकर जिसका,

जिसके भी निकट गया,

संकीर्णता जानकर उसकी

उससे दूर होना पड़ा…!

© संजय भारद्वाज 

17 दिसम्बर 2022, रात्रि 10:58 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #161 ☆ भावना के दोहे – हनुमान जी का लंका गमन /सीता की खोज – शेष ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है “भावना के दोहे।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 161 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – हनुमान जी का लंका गमन /सीता की खोज – शेष

अंत समय अब आ गया, हुए लंका में पाप।

ब्रह्म सत्य अब हो गया,  मिला बड़ा ही शाप।।

 

 सीता की इस खोज में, हम है तेरे साथ।

मिलजुल कर हम खोजते, रघु का सिर पर हाथ।।

 

सूक्ष्म रूप से आपने, किया लंका प्रवेश।

सोते देख रावण को, आया है आवेश।।

 

चकित हुए यह देख कर, सुना राम का नाम।

रावण के इस राज्य में, कौन कहेगा राम ।।

 

परिचय पाकर आपका, हर्षित हुए हनुमान।

भाई छोटा लंकपति, है विभीषण नाम।।

 

भक्त राम के आप हैं, मैं भी भक्त श्री राम ।

देखा सीता माता को, पता कहां श्रीमान।।

 

सीता मैया सुरक्षित, वाटिका है विशाल।

घेरे रहती राक्षसी, करते नयन सवाल।।

 

कहे विभीषण पवन से, प्रभु से कहो प्रणाम।

चरणों में माथा झुके, विनती है श्री राम।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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