हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 109 ☆ अरण्य वाणी… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित अरण्य वाणी)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 109 ☆ 

अरण्य वाणी… ☆

*

मनुज पुलक; सुन अरण्य वाणी

जीवन मधुवन बन जाएगा

कंकर शंकर बन गाएगा

श्वास-आस होगी कल्याणी

*

भुज भेंटे आलोक तिमिर से

बारी-बारी आए-जाए

शयन-जागरण चक्र चलाए

सीख समन्वय गिरि-निर्झर से

*

टिट्-टिट् करती विहँस टिटहरी

कुट-कुट कुतरे सुफल गिलहरी

गरज करे वनराज अफसरी

*

खेलें-खाएँ हिल-मिल प्राणी

मधुरस पूरित टपरी-ढाणी

दस दिश गुंजित अरण्य वाणी

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२०-९-२०२२

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #158 – 44 – “ख़्वाहिशों की बारिश अब नहीं होती …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “ख़्वाहिशों की बारिश अब नहीं होती…”)

? ग़ज़ल # 44 – “ख़्वाहिशों की बारिश अब नहीं होती …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

ज़िंदगी बड़ी कठिन डगर है चला करो देख कर,

मुसीबत आ जाए सामने तो डरा करो देख कर।

सत्ता, शासन, प्रशासन, शिक्षा सब मिलता है,

ख़रीद लो ईमान सरे बाज़ार बिकता देख कर।

हुकूमती खेल में सच्चाई भी गणित है जनाब,

पलट जाते हरिश्चंद बहुमत का हिसाब देखकर।

सब्र करना बहुत मुश्किल पर तड़पना सरल है,

अपने बस का काम कर लेता आसाँ देख कर।

दुनियादारी से सजे रिश्तों में बहुत घालमेल है,

अटकी हमारी तो मुँह फेर लेते मौक़ा देख कर।

ख़्वाहिशों की बारिश अब नहीं होती सावन में,

कटोरा थाम ले ‘आतिश’ स्याह बादल देख कर।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 35 ☆ मुक्तक ।।जीवन अर्थ मर्म।। युग निर्माण की ओर प्रथम कदम।।☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।।जीवन अर्थ मर्म।। युग निर्माण की ओर प्रथम कदम।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 35 ☆

☆ मुक्तक ☆ ।।जीवन अर्थ मर्म।। युग निर्माण की ओर प्रथम कदम।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆ 

[1]

कभी   नीम सी  तो कभी मीठी है जिंदगी।

मत  ज्यादा उलझा कि सीधी है जिंदगी।।

सुख दुःख धूप छाँव हर किसी के जीवन में।

झांककर देखोगे हर किसी की आपबीती है जिंदगी।।

[2]

मत तमन्ना रख तू कोई भगवान बनने  की।

बस आरजू हो अच्छे काम कुछ इंसान बनने की।।

यह जीवन सफल होगा परोपकार कोशिश में।

हरपल कोशिश हो इंसानियत का सम्मान करने की।।

[3]

जान लो कि एक मन को दूजे से कुछ आशा होती है।

मित्रता व रिश्तों की यही इक सही परिभाषा होती है।।

बिन कहे    ही जान लें हम दूजे के भीतर व्यथा को।

हर रिश्ते में  ही परस्पर यही इक अभिलाषा होती है।।

[4]

जान लीजिए यह जीवन अर्थ निर्माण का ही कदम है।

यही मिलकर बनता जाता  युग निर्माण का धरम है।।

हम   बदलेंगे   तो  युग बदलेगा यही  एक सच्चाई।

छिपा इसी में तत्व युग निर्माण का यही सच्चा करम है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – समय ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना

समूह को कुछ दिनों का अवकाश रहेगा।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – समय ??

जो बोया

लहलहा रहा है,

समय का फेर

समझ आ रहा है,

ताउम्र निगले जिसने

हरदम सूरज,

जुगनू की रोशनी में

अब दिन बिता रहा है!

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 101 ☆ ’’जमाने का भरोसा क्या…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा श्री गणेश चतुर्थी पर्व पर रचित एक कविता  “जमाने का भरोसा क्या…”। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा 101 ☆ गज़ल – “जमाने का भरोसा क्या” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

समय हर पल बदलता है, जमाने का भरोसा क्या ?

अभी जो है, क्या होगा कल। जमाने का भरोसा क्या ?

दिया करता समय सबको अचानक ही बिना मॉगे

कभी वन या कि सिंहासन, जमाने का भरोसा क्या ?

था बनना राम को राजा, मगर जाना पड़ा वन को

किसी को था कहॉ मालूम, जमाने का भरोसा क्या ?

अचानक होते, परिवर्तन यहॉ पर तो सभी के सॅग

कहॉ बिछुडे, मिले कोई, जमाने का भरोसा क्या ?

कभी तूफान आ जाते कभी तारे चमक उठते

हो बरसातें या षुभ राते जमाने का भरोसा क्या ?

बहुत अनजान है इन्सान, है लाचार भी उतना

मिले अपयष या यष किसको, जमाने का भरोसा क्या ?

सुबह आ बॉट जाते दिन उदासी याकि नई खुषियॉ

यादें जायें समस्या कोई जमाने का भरोसा क्या ?

कभी बनती परिस्थितियॉ जो बढ़ा जाती हैं बेचैनी

कभी नये फूल खिल जाते जमाने का भरोसा क्या ?

बनी है जिंदगी षायद सभी स्वीकार करने को

मिलें कब आहें या चाहे, जमाने का भरोसा क्या ?

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – क्षण ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना

समूह को कुछ दिनों का अवकाश रहेगा।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – क्षण ??

खुद को सीमित,

उनको विस्तृत करता रहा,

वे प्रहर खरचते,

मैं क्षण संचित करता रहा..!

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #151 ☆ पनघट पर सखियाँ… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम रचना “पनघट पर सखियाँ…।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 151 – साहित्य निकुंज ☆

☆ पनघट पर सखियाँ… ☆

ये बतियाती औरतें, सुना रही है हाल।

समय मिले घर में नहीं, रहता यही सवाल।।

*

पनघट पर सखियाँ खड़ी, बांटे  सुख- दुख साथ।

हँसी ठिठोली कर रही, ले हाथों में हाथ।।

*

हम भी तो हैं मानते, अपने पति की बात।

सास ससुर को पूजना, है दिन की शुरुवात।

*

बेटा बिटिया पढ़ रहे, वो जा रहे विदेश।

कहती है दूजी सखी, अच्छा है संदेश।।

*

पानी अब भर लो सखी, देखें घर में राह।

देर हुई हमको सखी, मिलती नहीं पनाह।।

*

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #138 ☆ संतोष के दोहे – शिक्षा ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “संतोष के दोहे – शिक्षा। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 140 ☆

☆ संतोष के दोहे – शिक्षा ☆ श्री संतोष नेमा ☆

पढ़ें-लिखें आगे बढ़ें, जिससे बनें नवाब

कहते लोग पुरातनी, बढ़ता तभी रुआब

 

ज्ञान न बढ़ता पढ़े बिन, गुण का रहे अभाव

शिक्षा जब ऊँची मिले, बढ़ता तभी प्रभाव

 

बढ़े प्रतिष्ठा सभी की, मिले मान सम्मान

काम-काज अरु नौकरी, करती यह आसान

 

रोशन होती ज़िंदगी, पाता ज्ञान प्रकाश

खुद निर्भर हो मनुज तो, यश छूता आकाश

 

शिक्षा देती आत्मबल, जग में बढ़ता मान

शिक्षित होना चाहिये, कहते चतुर सुजान

 

महिलाओं को दीजिए, शिक्षा उच्च जरूर

दो कुल को रोशन करें, बढ़ता गौरव नूर

 

शिक्षा में शामिल करें, नैतिकता का पाठ

बनें सुसंस्कृत नागरिक, खुले बुद्धि की गांठ

 

शिक्षा ऐसा धन सखे, जिसमें टूट न फूट

चोर चुरा सकता नहीं, होती कभी न लूट

 

शिक्षा से हमको मिले, सदा शांति संतोष

खुशियाँ जीवन में बढ़ें, और बढ़े धन-कोष

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – खेल ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना

समूह को कुछ दिनों का अवकाश रहेगा।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – खेल ??

शब्द पहेली,

सुडोकू,

अल्फाबेटिक क्विज,

बिल्ट योअर वोकेबुलरी,

अक्षर से खेलना;

शब्द से खेलना;

ब्रह्म से खेलना,

कौन कहता है;

केवल ब्रह्म ही

मनुष्य से खेलता है?

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 128 ☆ गजल – बाँट सके तो खुशियां बाँट ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 128 ☆

☆ गजल – बाँट सके तो खुशियां बाँट  ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

सच्ची रोज कहानी लिख

      हँसती हुई जवानी लिख

 

माना मुश्किल जीना है

     बहता दरिया पानी लिख

 

कौन बुरा है, यह तू छोड़

   मन की सोच सुहानी लिख

 

जीते जी कब पूरा पड़ता

    बचपन गुड़िया रानी लिख

 

जीवन को कुछ हँसकर जी ले

       अपने को तू सानी लिख

 

देश रहेगा तू भी होगा

     खुद को हिंदुस्तानी लिख

 

बाँट सके तो खुशियां बाँट

       दादा दादी नानी लिख

 

प्यार बढ़ा ले नदियों से

    उनकी नई कहानी लिख

 

चक्र कहे पेड़ हम रोपें

  साँसों की जिंदगानी लिख

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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