हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 144 ☆ मुक्तक – ।।घर में प्रेम,रौनक का रंग ,भरती हैं बेटियाँ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 144 ☆

☆ मुक्तक – ।।घर में प्रेम,रौनक का रंग ,भरती हैं बेटियाँ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

=1=

बेटियाँ और आगे भी बढ़ेंगी    बेटियाँ।

बराबर हक के  लिए  भी लड़ेंगी  बेटियाँ।।

बेटों से कमतर नहीं हैं   बेटियाँ भी हमारी।

हर ऊँची सीढ़ी  पर भी चढ़ेंगी    बेटियाँ।।

=2=

विश्व पटल पर आज बेटियों का ऊंचा नाम है।

आज कर   रही  दुनिया में वह हर  काम है।।

बेटी को जो देते बेटों जैसा प्यारऔर सम्मान।

अब वही माता पिता    कहलाते  महान हैं।।

=3=

हर दुःख  सुख   साथ   में  संजोतीं  हैं बेटियाँ।

हर घर प्रेम और रौनक के फूल बोती हैं बेटियाँ।।

बड़ी होकर करती   सृष्टि की रचना बनके नारी।

प्रभु कृपा बरसती वहीं जहाँ होती हैं   बेटियाँ।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 210 ☆ कविता – बापू का सपना… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – बापू का सपना। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 210 ☆ कविता – बापू का सपना ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

बापू का सपना था—भारत में होगा जब अपना राज ।

गाँव-गाँव में हर गरीब के दुख का होगा सही इलाज ॥

*

कोई न होगा नंगा – भूखा, कोई न तब होगा मोहताज ।

राम राज्य की सुख-सुविधाएँ देगा सबको सफल स्वराज ॥

*

पर यह क्या बापू गये उनके साथ गये उनके अरमान।

रहा न अब नेताओं को भी उनके उपदेशों का ध्यान ॥

*

गाँधी कोई भगवान नहीं थे, वे भी थे हमसे इन्सान ।

किन्तु विचारों औ’ कर्मों से वे इतने बन गये महान् ॥

*

बहुत जरूरी यदि हम सबको देना है उनको सन्मान ।

हम उनका जीवन  समझें, करे काम कुछ उन्हीं समान ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #37 – गीत – जीवन एक चुनौती… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीत – जीवन एक चुनौती

? रचना संसार # 37 – गीत – जीवन एक चुनौती…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

संघर्षों के जीवन में,

बस मैंने तो प्यार किया।

जीवन एक चुनौती है,

हँस कर के स्वीकार किया।।

 **

शूल चुभे थे हिय में तो,

अंगारों की शैय्या थी।

तूफानों सा जीवन था,

और भँवर में नैय्या थी।।

धीरज खोया नहीं कभी ।

सपनों को साकार किया।।

 *

संघर्षों के जीवन में,

बस मैं ने तो प्यार किया।

**

पाषाणों के  नगरों में,

क्षुब्ध हुई शहनाई है।

प्राणों का भी मोल नहीं,

लक्ष्य हीन तरुणाई है।।

दुख का सागर जीवन भी

हिम्मत से नित पार किया।

संघर्षों के जीवन में,

बस मैं ने तो प्यार किया।

 **

दावानल सी आँधी ये,

अंगारे सँग में लाती।

ज्वार तिमिर जब जब उठता ,

उषा दूर फिर हो जाती।।

कंपित है परछाईं पर,

नहीं कभी प्रतिकार किया।

 *

संघर्षों के जीवन में,

बस मैंने तो प्यार किया।

 **

रिश्ते नाते झूठे सब,

पैसों का अब रेला है।

स्वार्थ भरा सारा जग है,

मानव हुआ  अकेला है।।

मानव ने तो पग-पग पर

रिश्तों का व्यापार किया ।

 *

संघर्षों के जीवन में,

बस मैं ने तो प्यार किया।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #264 ☆ भावना के दोहे – कुम्भ ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे – कुम्भ )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 264 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे  – कुम्भ ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

गंगा जी की धार में, बहते पुण्य अपार।

संगम तट पर कुंभ है, आए भक्त हजार।।

*

साधु संत नागा सभी, करते  जय जयकार।

महाकुंभ उत्सव सजे, लगे भक्त दरबार।।

*

 पावन डुबकी गंग में,तन – मन का आधार।

 पाप  धुले सारे यहां ,यहां मोक्ष अगार ।।

*

 मेले की है भव्यता, पावनता  संचार।

केंद्र सजा आध्यात्म का, होता बहुत प्रचार।।

*

संगम तट की रेत पर, ज्ञान भक्ति वैराग्य।

भजन भाव सब कर रहे, पूज रहे आराध्य।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #246 ☆ संतोष के दोहे … महाकुंभ ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे … महाकुंभ आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 246 ☆

☆ संतोष के दोहे … महाकुंभ  ☆ श्री संतोष नेमा ☆

सरस्वती भागीरथी, कालिंदी के घाट।

महाकुंभ संक्रांति का, संगम पर्व विराट

*

इक डुबकी से मिट रहे, सौ जन्मों के पाप

सच्चे मन से आइए, एक बार बस आप

*

अमृतमयी अवगाह का, संगम में आगाज

तीर्थ राज के घाट पर, आगत संत समाज

*

संगम में होता नहीं, ऊंच नीच का भेद

मान सभी का हो यहाँ, रहे न कोई खेद

*

होता संगम में खतम, जन्म-मृत्यु का फेर

सागर मंथन से गिरा, जहाँ अमृत का ढेर

*

साहित्यिक उत्कर्ष की, है पुनीत पहचान

गंगा- जमुना संस्कृति, तीरथराज महान

*

श्रद्धा से तीरथ करें, कहते तीरथराज

काशी मोक्ष प्रदायिनी, सफल करे सब काज

*

चारि पदारथ हैं जहाँ, ऐसे तीरथराज

करें अनुसरण धर्म का, हो कृतकृत्य समाज

*

स्वयं राम रघुवीर ने, किया जहाँ अस्नान

पूजन अर्चन वंदना, संगम बड़ा महान

*

सुख – दुःख का संगम यहाँ, पूजन अर्चन ध्यान

तर्पण पितरों का करें, पिंडदान अस्नान

*

महाकुंभ में आ रहे, नागा साधू संत

जिनका गौरव है अमिट, महिमा जिनकी अनंत

*

नागा साधू संत जन, जिनके दरश महान

करें त्रिवेणी घाट में, जो पहले अस्नान

*

महिमा संगम की बड़ी, कह न सके संतोष

तीर्थराज दुख विघ्न हर, दूर करो सब दोष

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – संवाद ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – संवाद ? ?

शब्द भी थे,

अनुभूति भी थी,

पर सेतु बन न पाया,

कोई सही नहीं,

कोई ग़लत नहीं,

पर न कोई न समझा,

न कोई समझा पाया,

समझने, समझाने

का हठ तजकर

देहकाल के रहते,

चलो मिल बैठें

और कुछ कहें,

कुछ सुनाएँ,

अभिव्यक्ति अशेष है,

संवाद अभी शेष है…!

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मकर संक्रांति मंगलवार 14 जनवरी 2025 से शिव पुराण का पारायण महाशिवरात्रि तदनुसार बुधवार 26 फरवरी को सम्पन्न होगा 💥

 🕉️ इस वृहद ग्रंथ के लगभग 18 से 20 पृष्ठ दैनिक पढ़ने का क्रम रखें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 236 ☆ महान सेनानी वीर सुभाष चन्द बोस… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 236 ☆ 

☆ महान सेनानी वीर सुभाष चन्द बोस…  ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

वीर सुभाष कहाँ खो गए

वंदेमातरम गा जाओ

वतन कर याद आपको

सरगम एक सुना जाओ

*

कतरा-कतरा लहू आपका

काम देश के आया था

इसीलिए ये आजादी का

झण्डा भी फहराया था

गोरों को भी छका-छका कर 

जोश नया दिलवाया था

ऊँचा रखकर शीश धरा का

शान मान करवाया था

*

सत्ता के भुखियारों को अब

कुछ तो सीख सिखा जाओ

वतन कर याद आपको

सरगम एक सुना जाओ

*

नेताजी उपनाम तुम्हारा

कितनी श्रद्धा से लेते

आज तो नेता कहने से ही

बीज घृणा के बो देते

वतन की नैया डूबे चाहे

अपनी नैया खे लेते

बने हुए सोने की मुर्गी

अंडे भी वैसे देते

*

नेता जैसे शब्द की आकर

अब तो लाज बचा जाओ

वतन कर रहा याद आपको

सरगम एक सुना जाओ

*

जंग कहीं है काश्मीर की

और जला पूरा बंगाल

आतंकी सिर उठा रहे हैं

कुछ कहते जिनको बलिदान

कैसे न्याय यहाँ हो पाए

सबने छेड़ी अपनी तान

ऐक्य नहीं जब तक यहां होगा

नहीं हो सकें मीठे गान

*

जन्मों-जन्मों वीर सुभाष

सबमें ऐक्य करा जाओ

वतन कर याद आपको

सरगम एक सुना जाओ

*

लिखते-लिखते ये आँखें भी

शबनम यूँ हो जाती हैं

आजादी है अभी अधूरी

भय के दृश्य दिखातीं हैं

अभी यहाँ कितनी अबलाएँ

रोज हवन हो जाती हैं

दफन हो रहा न्याय यहाँ पर

चीखें मर-मर जाती हैं

*

देखो इस तसवीर को आकर

कुछ तो पाठ पढ़ा जाओ

वतन कर रहा याद आपको

सरगम एक सुना जाओ

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #264 – कविता – ☆ खबर उड़ी हम नही रहे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

 

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी द्वारा गीत-नवगीत, बाल कविता, दोहे, हाइकु, लघुकथा आदि विधाओं में सतत लेखन। प्रकाशित कृतियाँ – एक लोकभाषा निमाड़ी काव्य संग्रह 3 हिंदी गीत संग्रह, 2 बाल कविता संग्रह, 1 लघुकथा संग्रह, 1 कारगिल शहीद राजेन्द्र यादव पर खंडकाव्य, तथा 1 दोहा संग्रह सहित 9 साहित्यिक पुस्तकें प्रकाशित। प्रकाशनार्थ पांडुलिपि – गीत व हाइकु संग्रह। विभिन्न साझा संग्रहों सहित पत्र पत्रिकाओं में रचना तथा आकाशवाणी / दूरदर्शन भोपाल से हिंदी एवं लोकभाषा निमाड़ी में प्रकाशन-प्रसारण, संवेदना (पथिकृत मानव सेवा संघ की पत्रिका का संपादन), साहित्य संपादक- रंग संस्कृति त्रैमासिक, भोपाल, 3 वर्ष पूर्व तक साहित्य संपादक- रुचिर संस्कार मासिक, जबलपुर, विशेष—  सन 2017 से महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9th की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में एक लघुकथा ” रात का चौकीदार” सम्मिलित। सम्मान : विद्या वाचस्पति सम्मान, कादम्बिनी सम्मान, कादम्बरी सम्मान, निमाड़ी लोक साहित्य सम्मान एवं लघुकथा यश अर्चन, दोहा रत्न अलंकरण, प्रज्ञा रत्न सम्मान, पद्य कृति पवैया सम्मान, साहित्य भूषण सहित अर्ध शताधिक सम्मान। संप्रति : भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स प्रतिष्ठान भोपाल के नगर प्रशासन विभाग से जनवरी 2010 में सेवा निवृत्ति। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता खबर उड़ी हम नही रहे…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #264 ☆

☆ खबर उड़ी हम नही रहे…… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

(पिछले दिनों एक साथी के साथ घटी घटना से प्रेरित एक मुक्तछंद रचना)

यहाँ-वहाँ बात चली लगी भली

पर मौका चूक गए

खबर उड़ी, हम नहीं रहे।

रेडियो, टी.वी. सोशल मीडिया

अखबारों में

शहर-शहर गाँव और

गलियों बाजारों में

किंतु, कुछ देर बाद हो गया

इसका खंडन, जीवित है

आएँ न झूठी अफवाहों में

सूचना अधिकृत आयी

मरे नहीं रामदीन

बात यह अपुष्ट थी

क्षमा सहित खंडन मंडन करके

गलती दुरुस्त की

पर सारे घटनाक्रम से व्यथित

हमने जब खुद अपने को देखा

चेहरे पर आई दुख की रेखा

साबूत पा कर हमको ये लगा

सम्भवतः नियति भी रुष्ट थी।

 

सोचा, गर हम अभी चले जाते

इस जर्जर तन से मुक्ति पाते

फिर श्रद्धांजलियों के सागर में

हर्षित हो

पुण्यमयी डुबकियाँ लगाते

अपनी यश-कीर्ति पर

गर्वित हो इतराते, ऐसे में

सचमुच ही मरण शोक भूलकर

स्वर्गीय सुख को पाते।

मृत्यु के बाद अहो!

सुख का एहसास हुआ

अपने परायों

सबसे ही मिलती दुआ

मृत्यु पर्व पावन में

अगणित सी खुशियाँ

जो मिलना एक मुश्त थी

सम्भवतः नियति भी रुष्ट थी

 

सोचा, गर असल में ही

मृत्यु को पा लेते, योजना बना लेते

फिर लेते जन्म कहीं

नये देह आवरण को देख-देख

मन ही मन मुदित

कहीं पालने में किलकाते

शैशव में स्मृतियाँ होती अब की

याद कर इन्हें रोते-मुस्काते,

किंतु साध रह गई अधूरी सी

जाते-जाते फिर से रह गए

मायावी मोह पाश में

फिर से बँध गए

मन को समझाने में लगे रहे

पर कहाँ नियंत्रण में आता है

अपनी ही चाल चले जाता है

माया मृगतृष्णाएँ, इसके दायें बायें

उकसाती उलझाती

और अधिक जीने का

लालच दे भरमाती

भीतर में वर्षो से छिपी हुई

मन के द्वारा कल्पित

अंतर में लिखी हुई

इच्छाएँ  दुष्ट थी

सम्भवतः नियति भी रुष्ट थी।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 88 ☆ सपने सोये… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “सपने सोये…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 88 ☆ सपने सोये… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

देहरी रोई

घर आँगन आँचल भीगा

छप्पर छानी तक रोये।

 

सिंहासन पर

बैठा राजा

जाँच रहा परचे

किसने कितनी

करी कमाई

खुशियों पर खरचे

किस्मत सोई

रातों में काजल भीगा

आँखों में सपने सोये।

 

डरा डरा सा

हर पल जीता

आशंकित जीवन

कब बँट जाये

गंगा जमुनी

तहजीबों का मन

नफरत बोई

नहीं कहीं बादल भीगा

राहों में काँटे बोये।

 

शिथिल बाजुओं

पर हैं साधे

शेष अशेष उमर

जीता मरकर

घटनाओं में

घायल पड़ा शहर

पीर निचोई

दर्दों में पल पल भीगा

किसने किसके दुख धोये।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – समानांतर ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – समानांतर ? ?

समानांतर चले

पर समानांतर में भी

कितना अंतर रहा,

उसने मेरा लिखा पढ़ा,

मैं उसे पढ़कर लिखता रहा..!

?

© संजय भारद्वाज  

प्रात: 9:11 बजे, 21 जनवरी 2024

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मकर संक्रांति मंगलवार 14 जनवरी 2025 से शिव पुराण का पारायण महाशिवरात्रि तदनुसार बुधवार 26 फरवरी को सम्पन्न होगा 💥

 🕉️ इस वृहद ग्रंथ के लगभग 18 से 20 पृष्ठ दैनिक पढ़ने का क्रम रखें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

 

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