हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 106 ☆ नवगीत – एक-दूसरे को… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित नवगीत – एक-दूसरे को…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 105 ☆ 

☆ नवगीत – एक-दूसरे को… ☆

एक दूसरे को छलते हम

बिना उगे ही

नित ढलते हम।

तुम मुझको ‘माया’ कहते हो,

मेरी ही ‘छाया’ गहते हो।

अवसर पाकर नहीं चूकते-

सहलाते, ‘काया’ तहते हो।

‘साया’ नहीं ‘शक्ति’ भूले तुम

मुझे न मालूम

सृष्टि बीज तुम।

चिर परिचित लेकिन अनजाने

एक-दूसरे से

लड़ते हम।

मैंने तुम्हें कह दिया स्वामी,

किंतु न अंतर्मन अनुगामी।

तुम प्रयास कर खुद से हारे-

संग न ‘शक्ति’ रही परिणामी।

साथ न तुमसे मिला अगर तो

हुई नाक में

मेरी भी दम।

हैं अभिन्न, स्पर्धी बनकर

एक-दूसरे को

खलते हम।

मैं-तुम, तुम-मैं, तू-तू मैं-मैं,

हँसना भूले करते पैं-पैं।

नहीं सुहाता संग-साथ भी-

अलग-अलग करते हैं ढैं-ढैं।

अपने सपने चूर हो रहे

दिल दुखते हैं

नयन हुए नम।

फेर लिए मुंह अश्रु न पोंछें

एक-दूसरे बिन

ढलते हम।

तुम मुझको ‘माया’ कहते हो,

मेरी ही ‘छाया’ गहते हो।

अवसर पाकर नहीं चूकते-

सहलाते, ‘काया’ तहते हो।

‘साया’ नहीं ‘शक्ति’ भूले तुम

मुझे न मालूम

सृष्टि बीज तुम।

चिर परिचित लेकिन अनजाने

एक-दूसरे से

लड़ते हम।

जब तक ‘देवी’ तुमने माना

तुम्हें ‘देवता’ मैंने जाना।

जब तुम ‘दासी’ कह इतराए

तुम्हें ‘दास’ मैंने पहचाना।

बाँट सकें जब-जब आपस में

थोड़ी खुशियाँ,

थोड़े से गम

तब-तब एक-दूजे के पूरक

धूप-छाँव संग-

संग सहते हम।

‘मैं-तुम’ जब ‘तुम-मैं’ हो जाते ,

‘हम’ होकर नवगीत गुञ्जाते ।

आपद-विपदा हँस सह जाते-

‘हम’ हो मरकर भी जी जाते।

स्वर्ग उतरता तब धरती पर

जब मैं-तुम

होते हैं हमदम।

दो से एक, अनेक हुए हैं

एक-दूसरे में

खो-पा हम।

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१०-६-२०१६

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 30 ☆ मुक्तक ।।प्रेम की नज़र है, तो फिर मुस्कराती हुईआबाद जिन्दगी।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष में एक भावप्रवण मुक्तक ।।प्रेम की नज़र है, तो फिर मुस्कराती हुईआबाद जिन्दगी।। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 30 ☆

☆ मुक्तक ☆ ।। प्रेम की नज़र है, तो फिर मुस्कराती हुईआबाद जिन्दगी।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆ 

[1]

जियो  तो खुशियों  की   मीठी सौगात है      जिन्दगी।

भूलना भी सीखोअच्छी यादों  की बारात है जिन्दगी।।

ढूंढो  हर  पल में   खुशियों   के   लम्हें       ही    तुम।

प्रेम    नज़र से देखो मुस्काती हर बात है जिन्दगी।।

[2]

जिन्दगी और कुछ नहीं   बस जज्बात  है  जिन्दगी।

तुम्हारे अपनी   मेहनत    की करामात है जिन्दगी।।

भाईचारा मीठी जुबान हमेशा रखना     जीवन   में।

जान लो बस एक दूजे     की खिदमात है जिन्दगी।।

[3]

रोशन   चमकती   हुई     इक आफताब  है   जिन्दगी।

नफरत की रमक आ जाये तो बर्बाद      है  जिन्दगी।।

सफ़ल जीवन तुम्हारे   अच्छी  सोच विचार  का ही है।

अगर सकारात्मक  तो    फिर आबाद  है   जिन्दगी।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #153 – ग़ज़ल-39 – “तुम लफ़्ज़ सम्भाल के बोलो…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “तुम लफ़्ज़ सम्भाल के बोलो…”)

? ग़ज़ल # 39 – “तुम लफ़्ज़ सम्भाल के बोलो…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

दिल से उतरते देर नहीं लगती,

हालात बदलते देर नहीं लगती।

 

तुम लफ़्ज़ सम्भाल के बोलो,

 बात फिसलते देर नहीं लगती।

 

अरमानों पर बंदिश लगाओ,

 ख़ंजर उतरते देर नहीं लगती।

 

भरो चाहो जितनी ऊँची उड़ान,

ख़्वाब टूटते  देर नहीं लगती।

 

हौंसला बुलंद  रखो “आतिश”

जान निकलते देर नहीं लगती।

 

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – परिचय ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना – माधव साधना (11 दिवसीय यह साधना कल गुरुवार दि. 18 अगस्त से रविवार 28 अगस्त तक)

इस साधना के लिए मंत्र है – 

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

(आप जितनी माला जप अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं यह आप पर निर्भर करता है)

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

 ? संजय दृष्टि – परिचय ??

अखंड रचते हैं,

कहकर परिचय

कराया जाता है,

कुछ हाइकू भर

उतरे काग़ज़ पर,

भीतर घुमड़ते

अनंत सर्गों के

अखंड महाकाव्य

कब लिख पाया,

सोचकर संकोच

से गड़ जाता है!

© संजय भारद्वाज

सुबह 9.24, 20.11.19

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 95 ☆ ’’शरणागतम् …!” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण कविता  “शरणागतम् …!”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा 96 ☆ शरणागतम् …!” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

हे दीन बन्धु दयानिधे आनन्दप्रद तव कीर्तनम्   

हमें दीजिये प्रभु शरण तव शरणागतम् शरणागतम् ||

 

हो विश्व आधार तुम, हर भक्त के संसार तुम

हितकर कृपा जगदीश तव, शरणागतम् शरणागतम् ॥

 

मन है बँधा सब ओर से भ्रम की अपावन डोर से

हम मुक्ति हित, देवेश, तव शरणागतम् शरणागतम् ॥

 

जलनिधि सी अस्थिर साधना, धरती सी उर्वर वासना

तुम प्रभु असीमाकाश, तव शरणागतम् शरणागतम्

 

 हर दिन नई छोटी बड़ी कोई समस्या है खड़ी

विपदा विनाशक नाथ तव शरणागतम् शरणागतम्  ॥

 

मन में न कोई अभिमान हो, इतना हमें प्रभु ध्यान दो

हे विश्वनाथ महान् तव शरणागतम् शरणागतम् ॥

 

माया का फैला जाल है हर पंथ में जंजाल है

सत्पथ का दो निर्देश तव शरणागतम् शरणागतम् ॥

 

तुम गुणों के आगार हो, करुणा के पारावार हो

जग नियंता विश्वेश तव शरणागतम् शरणागतम् ॥

 

रख तव चरण पै दो सुमन, प्रभु वन्दना में लीन मन

सर्वज्ञ त्वाम् नमाम्यहम् शरणागतम् शरणागतम् ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #146 ☆ जन्माष्टमी विशेष – उपदेश दिया कृष्ण ने… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  “जन्माष्टमी विशेष – उपदेश दिया कृष्ण ने…।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 146 – साहित्य निकुंज ☆

☆ जन्माष्टमी विशेष – उपदेश दिया कृष्ण ने

विनती मेरी प्रभु सुनो,

      दे दो मुझको ज्ञान।

युद्ध नहीं करना हमें,

       रख लो सबका मान।।

 

उपदेश दिया कृष्ण ने ,

   सुनते अर्जुन मान।

चलो सत्य की राह पर,

    अंतर्मन पहचान।।

 

 पीड़ा मन में हो रही,

      कैसे समझें आप।

युद्ध भूमि में सामने,

     हो जाए ना पाप।।

 

अपने जो अपने नहीं,

  करो नहीं तुम मोह।

सच को तुम पहचान लो,

    करना नहीं  विमोह।।

   

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #133 ☆ जन्माष्टमी विशेष … मोरे केशव कुँज बिहारी ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “जन्माष्टमी विशेष…मोरे केशव कुँज बिहारी। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 133 ☆

☆ जन्माष्टमी विशेष… मोरे केशव कुँज बिहारी ☆ श्री संतोष नेमा ☆

राधा के हैं श्याम मनोहर, मीरा के गिरधारी

ललना पुकारें माँ यसोदा, देवकि के अवतारी

नन्दबाबा के प्रभु गोपाला, सखियन कृष्ण मुरारी

ग्वाल-बाल सखा सब टेरें, कह कह कर बनवारी

वृजवासी कन्हैया कहते, कर चरणन बलिहारी

चरण शरण “संतोष” चाहता, रखियो लाज हमारी

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – दुधारी तलवार ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

 ? संजय दृष्टि –  दुधारी तलवार ??

स्मृतियाँ जितना दबाओ,

उतना उभर आती हैं,

उभारो तो निर्वासन

को मचल जाती हैं,

दुधारी तलवार है

नेह की पीड़ा,

कहीं से भी थामो,

कलेजा चीर कर

निकल जाती है..!

© संजय भारद्वाज

2 जनवरी 2021, रात्रि 11.12 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 123☆ गीत – वंदेमातरम गाओ ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 120 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 123 ☆

☆ गीत – वंदेमातरम गाओ ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

आजादी की नूतन बेला

फूलों – सा मुस्काओ।

घर – घर फहरे आज तिरंगा

पावन पर्व मनाओ।।

 

बलिदानों की गौरव गाथा

भारतवासी भूल न जाना

प्राण लुटाए हँसते – हँसते

वंदेमातरम बोल गाना

 

ऐक्य भाव से बढ़ती समृद्धि

मातृभूमि बलि जाओ।

आजादी की नूतन बेला

फूलों – सा मुस्काओ।।

   

जो भी अच्छा कर सकते हम

सदा देश हित जीवन जीएँ

याद भी करना भगत सिंह को

जीवन सत्य , प्रेम रस पीएँ

 

भोगवाद में डूब न जाना

निज कर्तव्य निभाओ।

आजादी की नूतन बेला

फूलों – सा मुस्काओ।।

 

जातिवाद और क्षेत्रवाद को

तूल नहीं देना है अच्छा।

भाषा तो सब ही हैं प्यारी

संस्कृति करे सभी की रक्षा।।

 

देश बढ़ेगा हिंदी से ही

निज भाषा अपनाओ।

आजादी की नूतन बेला

फूलों – सा मुस्काओ।।

 

राजनीति से उठकर देखो

हिंसा , दंगा मत फैलाओ।

मानवता के लिए जीएँ सब

कर्तव्यों को सभी निभाओ।।

 

मानव हैं तो अच्छा सोचें

सबको मित्र बनाओ।

आजादी की नूतन बेला

फूलों – सा मुस्काओ।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य#146 ☆ गीत – देश प्रेम के गाए मंगल गान, वंदे मातरम… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का  चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण एवं विचारणीय अप्रतिम रचना “देश प्रेम के गाए मंगल गान, वंदे मातरम…”)

☆  तन्मय साहित्य # 146 ☆

☆ गीत – देश प्रेम के गाए मंगल गान, वंदे मातरम… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

अमर रहे जनतंत्र

शक्ति संपन्न रहे भारत अपना

सोने की चिड़िया फिर

जगतगुरु हो ये सब का सपना

देश बने सिरमौर जगत में

ये दिल में अरमान,

वंदे मातरम

देश प्रेम के गाएं मंगल गान, वंदे मातरम।

 

युगों युगों तक लहराए

जय विजयी विश्व तिरंगा ये

अविरल बहती रहे, पुनीत

नर्मदा, जमुना, गंगा ये,

सजग  जवान, सिपाही, सैनिक

खेत और खलिहान,

वंदे मातरम

देश प्रेम के गाएं मंगल गान, वंदे मातरम।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

अलीगढ़/भोपाल   

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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