हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कविता – संजय ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – कविता – संजय   ??

दिव्य दृष्टि की

विकरालता का भक्ष्य हूँ,

शब्दांकित करने

अपने समय को विवश हूँ,

भूत और भविष्य

मेरी पुतलियों में

पढ़ने आता है काल,

वरद अवध्य हूँ,

कालातीत अभिशप्त हूँ!

©  संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 105 ☆ कविता – शस्य श्यामला माटी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । 

आज प्रस्तुत है आपका एक सार्थक एवं भावप्रवण कविता  “शस्य श्यामला माटी”.

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 105 ☆

☆ शस्य श्यामला माटी ☆ 

अपनी संस्कृति को पहचानो, इसका मान करो।

शस्य श्यामला माटी पर, मित्रो अभिमान करो।।

 

गौरव से इतिहास भरा है भूल न जाना।

सबसे ही बेहतर है होता सरल बनाना।

करो समीक्षा जीवन की अनमोल रतन है,

जीवन का तो लक्ष्य नहीं भौतिक सुख पाना।

 

ग्राम-ग्राम का जनजीवन, हर्षित खलिहान करो।

शस्य श्यामला माटी पर मित्रो अभिमान करो।।

 

उठो आर्य सब आँखें खोलो वक़्त कह रहा।

झूठ मूठ का किला तुम्हारा स्वयं ढह रहा।

अनगिन आतताइयों ने ही जड़ें उखाड़ीं,

भेदभाव और ऊँच-नीच को राष्ट्र सह रहा।

 

उदयाचल की सविता देखो, उज्ज्वल गान करो।

शस्य श्यामला माटी पर मित्रो अभिमान करो।।

 

तकनीकी विज्ञान ,ज्ञान का मान बढ़ाओ।

सादा जीवन उच्च विचारों को अपनाओ।

दिनचर्या को बदलो तन-मन शुद्ध रहेगा,

पंचतत्व की करो हिफाजत उन्हें बचाओ।

 

भारत, भारत रहे इसे मत हिंदुस्तान करो।

शस्य श्यामला माटी पर मित्रो अभिमान करो।।

 

भोग-विलासों में मत अपना जीवन खोना।

आपाधापी वाले मत यूँ काँटे बोना।

करना प्यार प्रकृति से भी हँसना- मुस्काना,

याद सदा ईश्वर की रखना सुख से  सोना।

 

समझो खुद को तुम महान  श्वाशों में प्राण भरो।

शस्य श्यामला माटी पर मित्रो अभिमान करो।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 15 (86-90)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #15 (86 – 90) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -15

 

यज्ञ पूर्ण कर विदा कर ऋषि और अतिथि तमाम।

पुत्र केन्द्रित प्रेम रख विवश रह गये राम।।86।।

 

युधाजित की विनय पर सिंधु देश का राज्य।

दिया राम ने भरत को सहित प्रेम अविभाज्य।।87।।

 

जीत वहाँ गन्धर्वों को दे वीणा और गान।

भरत प्रभावी नृपति बन जीत सके सम्मान।।88।।

 

तक्ष और पुष्कल सुतों को दे अपना राज्य।

भरत लौट आये पुनः भ्रात राम के पास।।89अ।।

 

तक्षशिला और पुष्पपुर थी उनके आवास।

जो दोनों हुई बाद में उन्हीं नाम से ख्यात।।89ब।।

 

रामाज्ञा से लखन ने बना दिया निज हाथ।

अंगद व चंद्रकेतु को कारापथ का नाथ।।90।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 22 ☆ कविता – खुशियों की बरसात — ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 22 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक लगभग 72 राष्ट्रीय एवं 3 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।  

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक कविता  “खुशियों की बरसात”। 

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 22 ✒️

?  कविता – खुशियों की बरसात — डॉ. सलमा जमाल ?

ख़ुशियों की भी ज़िन्दगी में ,

बरसात होना चाहिए ।

सह लिए ग़म बेशुमार ,

अब तो जश्न होना चाहिए ।।

 

जैसे बारिश में गिरते

कच्ची मिट्टी के मकान ,

कल तक थी गुलज़ार बस्ती

बन गई आज मसान ,

दूसरी लहर गई हाल

बेहतर होना चाहिए  ।

ख़ुशियों की ————— ।।

 

आंधियां ऐसी चलीं 

अपने टूटते तारे हुए ,

नेताओं और ख़ुदग़र्ज़ों

के वारे – न्यारे हुए ,

तान छेड़ो पपीहा की

मोर रक़्स होना चाहिए ।

ख़ुशियों की ————– ।।

 

बिजली गिरे ओले बरसें

छाई हो घनघोर घटा ,

एक जैसा मौसम ना रहता

महकेगी फ़िर से फ़िज़ा ,

जो बहा दे रंज़ो ग़म

ऐसी बाढ़ होना चाहिए ।

ख़ुशियों की —————– ।।

 

बूंदा – बांदी रहमतों की

रिमझिम सावन की झड़ी ,

देखो तो नज़रें उठाकर

सामने उल्फ़त खड़ी ,

मांझी भूलने का ‘ सलमा ‘

हौसला होना चाहिए ।

ख़ुशियों की —————- ।।

 

© डा. सलमा जमाल 

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 15 (81-85)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #15 (81 – 85) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -15

 

‘‘माँ धरती ले गोद में, हूँ मैं यदि निष्पाप।

पति प्रति अर्पित रहे नित तन-मन कार्यकलाप।।81।।

 

इतना सुन धरती फटी, निकली प्रभा महान।

करने को सीता को लय निज में बातें मान।।82।।

 

शेष नाग के शीश पर सिंहासन आसीन।

सिंधु मेखला भूमि माँ प्रकटी दुखी मलीन।।83।।

 

सीता थी श्रीराम को एकटक रही निहार।

राम ने रोका, धरा संग गई पर तज संसार।।84।।

 

राम को यह सब देख था क्रोध और सन्ताप।

भाग्य प्रबल कह ऋषि ने धैर्य बँधाया आप।।85।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 29 – सजल – पीढ़ियों को दे रहा जो फल निरंतर… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है दोहाश्रित सजल “पीढ़ियों को दे रहा जो फल निरंतर… । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 29 – सजल – पीढ़ियों को दे रहा जो फल निरंतर… 

समांत- अना

पदांत- – है

मात्राभार- 21

 

आंँधियों से जूझ कर ही वह तना है।

काटना उस वृक्ष को बिल्कुल मना है।।

 

छा गईं हरियालियाँ देखो चतुर्दिक

जिंदगी को साँस देने तरु बना है ।

 

पीढ़ियों को दे रहा जो फल निरंतर,

वह कुल्हाड़ी देखकरअब अनमना है।

 

तप रही धरती उबलते तापक्रम से

रोपना है पौधों को बस कामना है।

 

जब धरा की गोद का शृंगार होगा,

स्वस्थ होगी यह प्रकृति सद्भावना है।

 

घूमने जाते हैं पर्यटक देश में,

बिखरी सभी विरासतें सहेजना है ।

 

वृक्षों से वरदान जगत को है मिला ,

मिली सम्पदा ईश की समेटना है।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

30 अगस्त 2021

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कविता – आत्मघात ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – कविता – आत्मघात  ??

उसके भीतर

ठंडे पानी का

एक सोता है,

दुनिया जानती है..,

 

उसके भीतर

खौलते पानी का

एक सोता भी है,

वह जानता है..,

 

मुखौटे ओढ़ने की

कारीगरी

खूब भाती है उसे,

गर्म भाप को कोहरे में

ढालने की कला

बखूबी आती है उसे..,

 

धूप-छाँव अपना

स्थान बदलने को हैं

जीवन का मौसम

अब ढलने को है..,

 

जैसा है यदि

वैसा रहा होता

शीतोष्ण का अनुपम

उदाहरण हुआ होता..,

 

अपनी संभावनाएँ

आप ही निगल गया

गंगोत्री-यमुनोत्री

होते हुए भी

ठूँठ पहाड़ ही रह गया…!

©  संजय भारद्वाज

(सांझ 4:52 बजे, 13.5.2021)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆  ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 15 (76-80)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #15 (76 – 80) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -15

 

शुद्ध ऋचा सावित्री ज्यों जाती रवि के पास।

त्यों मुनि सीता सहित सुत पहुँचे रामनिवास।।76।।

 

सजल नयन भगवा वसन शील-राशि, गुणखान।

शांत भाव लख सभी ने किया शुद्ध अनुमान।।77।।

 

जैसे खुद जाती है झुक पकी धान की बालि।

झुक गई आँखें सभी की दोषारोपन वाली।।78।।

 

मुनि बोले- ‘‘पुखी सिया सबका तुम पर नेह –

पति समक्ष जन-मन बसा, दूर करो संदेह’’।।79।।

 

सीता ने कर आचमन पावन जल ले हाथ।

जो ला शिष्यों ने दिया बोली सात्विक बात।।80।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 83 – दोहे ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 83 –  दोहे ✍

बादल आकर ले गए, उजली उजली धूप ।

अंधियारे में चमकते, यादों के स्तूप ।।

 

हिरन सरीखी याद है, भरती खूब कुलांच।

 चूक जरा – सी यदि हुई ,गड़े पांव में कांच ।।

 

याद हमारी आ गई, या कुछ किया प्रयास ।

अपना तो यह हाल है, यादें बनी लिबास ।।

 

फूल तुम्हारी याद के, जीवन का अहसास।

वरना है यह जिंदगी जंगल का रहवास।।

 

पैर रखा है द्वार पर, पल्ला थामें पीठ।

कोलाहल का कोर्स है, मन का विद्यापीठ।।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत #86 – “सारी रात देख कर सपने…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – सारी रात देख कर सपने…”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 86 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “सारी रात देख कर सपने…”|| ☆

छींके पर थीं तीन रोटियाँ

रखीं मटेली* में ।

जो ब्यालू से बचीं

निहित थीं इसी पहेली में।।

 

दरसल बँटवारे में आयीं

तीन-तीन रोटीं ।

किन्तु बच रही एक कि

जिस पर बात हुई खोटी ।

 

अत: तय किया दो-दो

खा कर ,रखें तीन रोटीं।

खायेंगे हम सुबह फूस

की इसी हवेली में ।।

 

ऐसा किये विचार सो गये

दोनों पति -पतनी।

आले में रख कर वे भूले

इमली की चटनी ।

 

बहुत प्रयासों बाद गिरा पायी भूरी रोटी ।

खायी छक उद्दंड बिलैया

पकड़ हथेली में।।

 

सारी रात देख कर सपने

दम्पति जब जागे ।

चकित रह गये देख तमाशा

विधना के आगे ।

 

फिर  हो कर हैरान विचारों में खोये खोये।

डाल दिया चिन्ता में प्रभु

क्यों नई-नवेली में ।

*मटेली=रोटी रखने का मिटटी का बर्तन

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

11-03-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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