हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य#126 ☆ झूठा अभिनय… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का  चौकीदार”  महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर भावप्रवण रचना  “झूठा अभिनय….”)

☆  तन्मय साहित्य  #126 ☆

☆ झूठा अभिनय… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

विस्मय में आदमी, संशय में हैं

शहर मेरा दहशत में, भय में हैं।

 

फिर पड़ोसी की साँसें क्यों तेज हुई

कुछ खराबी, मेरे ही ह्रदय में  है।

 

ना रिदम,ना गला ना ही स्वर मुखर

बेसुरे  गीत  बेढंगी  लय  में है।

 

थोड़े अक्षत के दाने कुमकुम अबीर

कामना उनकी ब्रह्म से विलय में है।

 

जो सृजन शांति की बातें कर रहे

अग्रषित वे ही सृष्टि के प्रलय में हैं।

 

ये प्रदर्शनीयाँ, चित्र ये अजायबघर

कितना आनंद झूठे  अभिनय में है

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 20 ☆ गीत – योग अपनाओ यारो ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 22 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक लगभग 72 राष्ट्रीय एवं 3 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।  

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक गीत  “योग अपनाओ यारो”। 

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 20 ✒️

?  गीत – योग अपनाओ यारो —  डॉ. सलमा जमाल ?

अच्छी सेहत के लिए,

योग अपनाओ यारो ।

अपने प्यारे देश को,

निरोग बनाओ यारो ।।

 

जन्म के बाद दाई मां,

शिशु को योगा कराती,

मजबूत हड्डी होती,

चलना बैठना सिखाती,

बचपन गया तुम बालिग़,

ऊर्जा जगाओ यारो ।

अच्छी ——————— ।।

 

रोज़ सुबहा उठकर,

नित्य कर्म से फ़ारिग़ होना,

फ़िर पैदल सैर करना,

बाद में नहाना – धोना,

पड़ोसियों को बुलाकर,

महफ़िल सजाओ यारो ।

अच्छी ——————— ।।

 

बैठे हों चाहे लेटे,

व्यायाम ही करना है,

स्वस्थ शरीर बनाकर,

ग़रीबों के दुख हरना है,

आलोम – विलोम से दिल,

मजबूत बनाओ यारो ।

अच्छी———————।।

 

पद्मासन हो या बज्रासन,

हो कपाल भारती,

जीवन चर्या का हिस्सा बन,

सज जाए आरती,

छोटे – बड़े सभी का,

अब आलस भगाओ यारो ।

अच्छी ——————– ।।

 

बुरी आदतें ना रखना,

जीवन हो शाकाहारी,

फ़ल, मेवे, दूध, छांछ,

फ़िर ना लगती बीमारी,

सौगंध भारत मां की,

संकल्प उठाओ यारो ।

अच्छी ———————-।।

 

असली पूंजी है इंन्सा का,

रोग मुक्त होना,

ऑक्सीजन लेना हर दिन,

प्रकृति का है ख़जाना,

यह तन दिया ख़ुदा ने,

तुम इसको बचाओ यारो ।

अच्छी ———————-।।

 

नमाज़ में है योगा तुम,

यह बात याद रखना,

इस्लाम मानने वालो,

तुम रोज़ नमाज़ पढ़ना,

‘सलमा’ दीन और दुनियां,

दोनों सजाओ यारो ।

अच्छी ———————–।।

© डा. सलमा जमाल 

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 15 (11-15)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #15 (11 – 15) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -15

पड़ा मार्ग में बाल्मीकि ऋषिवर का आवास।

मृगमय आश्रम में किया शत्रुध्न ने निशि वास।।11।।

 

किया मुनी वाल्मीकि ने शत्रुधं का सम्मान।

तपबल अर्जित श्रेष्ठ दे पीठ-शयन व पान।।12।।

 

उसी रात्री में सिया ने जाये दो सुकुमार।

कोष-दण्ड युत धरणि के जो उज्ज्वल उपहार।।13।।

 

रामपुत्र का जन्म सुन शत्रुध्न हुये प्रसन्न।

प्रातः मुनि से मिल करी यात्रा रथ-सम्पन्न।।14।।

               

लवणासुर, कुम्मनिसी-पुत्र महत् बलवान।

रहता था मधुपध्न में जो था नगर समान।।15अ।।

 

पहुँचे जब शत्रुध्न वह आया ले उपहार।

वन जीवों की राशि का करने को आहार।।15ब।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 27 – सजल – युग बदले पर कभी न बदले… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है दोहाश्रित सजल “युग बदले पर कभी न बदले… । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 27 – सजल – युग बदले पर कभी न बदले… 

समांत- आदा

पदांत- अपदांत

मात्राभार- 30

 

कट्टरता का ओढ़ लबादा।

खुद तो बने हुए हैं दादा ।।

 

दूर रहें पढ़ने-लिखने से, 

खुद को कहते हैं शहजादा।

 

नारी को समझे हैं दासी,

सारा अपना बोझा लादा।

 

कट्टरता जग का है दुश्मन,

मानवता का हुआ बुरादा।

 

युग बदले पर कभी न बदले,

तोड़ी हैं सारी मर्यादा।

 

छद्म वेश धरकर हैं चलते,

लड़ने को होते आमादा।

 

काट पतंगें सद्भावों की

रिपु दल का है बुरा इरादा।

 

मानवता कहती है जग में

रक्त बहे न करो यह वादा ।

 

लहू एक रंग हर प्राणी में ,

फिर क्यों होता धर्म तकादा ।

 

बड़े धुरंधर क्यों बनते हो,

मानव-धर्म ही* सीधा-सादा।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

30 अगस्त 2021

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 119 – कविता – कभी बनी ममता की मूरत… ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श पर आधारित एक भावप्रवण कविता  “कभी बनी ममता की मूरत”। ) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 119 ☆

☆ कविता – कभी बनी ममता की मूरत 

कर्तव्यों का बोझ उठाती

संसार की हर एक नारी

नए वंश को जन्म देकर

बनी हुई सृष्टि पर लाचारी

 

कभी बनी ममता की मूरत

आंचल लिए स्नेह का गागर

कभी धरी देवी की सूरत

डुबाई गई नदिया सागर

 

भोर से उठकर करती काम

सब रिश्तो का संभाले भार

रख सांझ दीपक तुलसी चौरा

कहती सबको देना तार

 

सबका पेट भरती रहती

अन्नपूर्णा का रूप संभाले

करती रहती सबकी चाकरी

वफादारी का बोझ उठा ले

 

दिन-रात वो सेवा करती

पराया घर अपना बनाती

फिर भी मनुज नहीं थका

बेचारी अबला नार कहाती

 

अगर मिले थोड़ा सा मान

बनती नहीं वह पाषाण

दुख दर्द सारे भूल जाती

बिगड़ी बात बनाती आसान

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 15 (6-10)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #15 (6 – 10) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -15

दिया राम ने शत्रुघ्न को समुचिंत आदेश।

मुनियों के कल्याण हित हो निर्विघ्न प्रदेश।।6।।

 

हर विशेष, सामान्य से निश्चित होता नेक।

अतः शत्रु-संहार हित रघुकुल का कोई एक।।7।।

 

चले शत्रुघ्न राम का लेकर आशीर्वाद।

रथ पर चढ़ निर्भीक मन पुष्प पूर्ण भू-भाग।।8।।

 

राक्षस-बध हित शत्रुध्न ही तो थे पर्याप्त।

किन्तु राम ने सेना भी देना समझा आप्त।।9।।

 

राह दिखाते मुनि चले रथ अति शोभावान।

बालखिल्य से सूर्य का रथ ज्यों दिखे महान।।10।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 81 – दोहे ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 81 –  दोहे ✍

प्यार- प्यार की याद में, आकुल होता प्यार।

प्यार -प्यार की आंख से, ढुलक पढ़ा लो प्यार।।

 

शब्द नहीं मुख से कहे, सिसक रही है सांस ।

प्रेमिल अनुभूति यों, मिसरी की फांस।।

 

रेशम -रेशम तो कहा, हुई रेशमी शाम।

रेशम- रेशम सुन कहा, रेशम किसका नाम।।

 

किसे बताएं कौन अब, किसका क्या संबंध।

 हृदय बसे हो इस तरह, सुमन ज्यों सुमनों गंध।।

 

मन मोती यों चुन लिया, जैसे चुने मराल।

ह्रदय सम्हाला इस तरह, ज्यों पूजा का थाल।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत #84 – “लम्बा बहुत सफर …” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “लम्बा बहुत सफर …।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 84 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “लम्बा बहुत सफर”|| ☆

तल्ले फटे हुये जूतों के

लम्बा बहुत सफर।।

आखिर कहाँ- कहाँ

तक पसरा मेरा नया शहर।।

 

माथे से रिसने आ बैठी

धार पसीने की।

अटकी जैसे खरचे को

 तनख्वाह महीने की।

 

मोहरी  पर कीचड़ का

कब्ज़ा घुटनो चीकट  है।

देह काँपती  चलने में

ज्यों उखड़ी चौखट है।

 

औ’ किबाड़  सी छाती

काँपा करती है हरदम।

साँकल खुली अगर तो

बहने आतुर खडी नहर।।

 

मिला नहीं आटा 

अब तक केवल दो रोटी  का।

भूखा पेट दुख रहा

कल से  बेटी छोटी का।

 

समाचार में सुना सही था

मुफ्त अन्न बटना ।

राशन कार्ड बिना,

लावारिश को यह दुर्घटना।

 

नहीं अनाज दिला पाये

सारे प्रयास झूठे ।

सरकारों की तरह गई

यह जनजन उठी लहर ।।

 

मुझ पर नहीं सबूत कि

मैं अब तक भी हूँ जिन्दा ।

पटवारी प्रमाण को चाहे

होकर शर्मिन्दा ।

 

बिना प्रमाण नहीं जिन्दा

कर सकता पटवारी।

आखिर सरकारी बन्दा

होता है सरकारी ।

 

मैं चुपचाप उठा कर झोली

चला गया आगे ।

नहीं झेल पाया हूँ मैं

अब यह निर्दयी कहर।।

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

14-03-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #74 ☆ # बचपन # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय एवं भावप्रवण कविता “# बचपन #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 74 ☆

☆ # बचपन # ☆ 

मै और मेरा पोता

जो चार बरस का है छोटा

जब बगीचे में घूमते हैं

रंग बिरंगी चिड़ियों को देख

मन ही मन झूमते हैं

जब वो मुझसे

बाल सुलभ प्रश्न

पूछता है

तब मैं कुछ प्रश्नों के उत्तर

दे पाता हूं।

कुछ का उत्तर

मुझे भी नहीं सूझता है,

तब मैं उसे चाकलेट खिलाता हूँ

और चुप हो जाता हूँ।

 

उसे देख मुझे अपने

बचपन के दिन

याद आते हैं

मानस पटल पर

वो दृश्य लहराते हैं

वो गांव का छोटा सा

मिट्टी का घर

नीम के पेड़ों की छाया

रहती दिनभर

वो घर के पेड़ों के स्वादिष्ट जाम

वो ललचाते रसभरे आम

वो जामुन काली काली

निंबूओं की झुकी हुई डाली

वो मीठे मीठे बेर

सुबह सुबह लगते थे ढेर

गुलाब और चमेली के

फुलों की सुगंध

खुशबू लिए बहता

पवन मंद मंद

हमें खेलकूद की

पूरी आजादी थी

छुपने के लिए

कभी मां की गोद

तो कभी दादी थी।

 

और अब-

मेरा पोता नींद से

उठ भी नहीं पाता है

पर रोज नर्सरी में

जाता है

उसके सेहत की

हालत खस्ता है

पीठ पर उसके

बड़ा सा बस्ता है

खेल कूद उससे

छूट गया है

जैसे बचपन

उससे रूठ गया है

शिक्षा के व्यावसायिकरण का

यह एक खेल है

मासूम बच्चों के लिए

तो यह एक जेल है

क्या हम बच्चों के चेहरों पर

नैसर्गिक मुस्कान ला पाएंगे ?

या यह मासूम फूल

यूँ ही मुरझाते जाएंगे ?/

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 15 (1-5)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #15 (1 – 5) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -15

सीता का परित्याग कर राम रहे महिपाल।

सागर वेषिृत धरा का ही बस रखा खयाल।।1।।

 

लवणासुर से युद्ध में देख बड़े उत्पात।

यमुनातट वासी मुनि आये राम के पास।।2।।

 

रक्षक राजा राम थे, अतः था बड़ा सुयोग।

मुनि रक्षक बिन शांति से करते मंत्र-प्रयोग।।3।।

 

यज्ञ विध्न के नाश हित किया राम ने ध्यान।

धर्म सुरक्षा हेतु ही आते हैं भगवान।।4।।

 

लवणासुर की मृत्यु का प्रभु को दिया उपाय।

शूल-हीन हो बाण जब उस को मारा जाय।।5।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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