डॉ भावना शुक्ल
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 106 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
अपराधी पाकर शरण,
होते धन्य सनाथ।
रहता जिनके शीश पर,
नेताजी का हाथ।।
लगा रही गोता लगन,
दो नैनों की झील।
सुध-बुध खोकर बावरा,
करता प्यार अपील।।
शिशु की पुलकन देखकर,
मन में उठी उमंग।
लगा रही है प्यार से,
माँ की ममता अंग।।
विरह प्रेम में जल रहा,
मन में एक अलाव।
शांत हुई क्रमशः जलन,
था मनुहार-प्रभाव।।
जीवन के हैं चार दिन,
करो नहीं तुम बैर।
हिल मिल कर करते रहो,
प्रेम गली की सैर।।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120, नोएडा (यू.पी )- 201307
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈