हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – दीपावली ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – ? दीपावली ?

अमावस बन

अंधेरा मुझे डराता रहा,

हर अंधेरे के विरुद्ध

एक दीया मैं जलाता रहा,

रोशनी की मेरी मुहिम

शनैः-शनैः रंग लाई,

अनगिन दीयों से

रात झिलमिलाई,

सर पर पैर रख

अंधेरा पलायन कर गया,

और-इस अमावस

मैंने दीपावली मनाई।

ई-अभिव्यक्ति के पाठकों को शुभ दीपावली ?

©  संजय भारद्वाज

20.9.2017, प्रातः 7:06 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 83 ☆ गीत – काम अच्छा ही अच्छा करो ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । 

आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण गीत  काम अच्छा ही अच्छा करो

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 83 ☆

☆ गीत – काम अच्छा ही अच्छा करो ☆ 

मुश्किलों से कभी मत डरो।

  काम अच्छा ही अच्छा करो।।

 

जिंदगी है बड़े काम की।

       श्याम की, बुद्ध की , राम की।

अनगिनत इसमें सदियाँ लगीं।

      बोलियाँ प्रेम की भी पगीं।

 

याद कर लो शहीदों के दिल

      देश हित में जिओ और मरो।

मुश्किलों से कभी मत डरो।।

    काम अच्छा ही अच्छा करो।।

 

जाग जाओ बहुत सो लिए।

     पाप सिर पर बहुत ढो लिए।

कुछ हँस लो , हँसा लो यहाँ

    जन्म से अब तलक रो लिए।

 

गलतियों से सदा सीख ले

      कुछ घड़े पुण्य के भी भरो।

मुश्किलों से कभी मत डरो।

      काम अच्छा ही अच्छा करो।।

 

आदमी देवता और असुर ।

    स्वयं ही ये बनता चतुर।

सहज जीवन तो जी ले जरा,

     प्रेम फागों से बन ले हरा।

 

साँस पूरी लिखीं हैं वहाँ पर

       पाप की गठरियाँ मत भरो।

मुश्किलों से कभी मत डरो।

    काम अच्छा ही अच्छा करो।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 6 (71-75)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #6 (71-75) ॥ ☆

 

इश्वाकु कुल में हुये नृपों में कोई ककुत्स्थ नामक ख्यात नृप थे

‘काकुत्स्थ’ से उसी गौरव की अभिव्यक्ति सब कोशलेन्द्रों की होती तब से ॥ 71॥

 

ककुत्स्थ ने इंद्र – वृषभ पै चढ़ देवासुर समर में शिवरूप धारे

अरिपत्नियों को बनाते विधवा समर में अगणित असुर थे मारे ॥ 72॥

 

ऐरावत स्वामी इंद्र के साथ बराबरी का कर प्राप्त आसन

अपने पराक्रम के बल था पाया सुरेन्द्र का भी आधा सिंहासन ॥ 73॥

 

करने उसी वंश की कीर्ति उज्जवल दिलीप उसमें हुये थे राजा

जिन्होंने एक कम कर शत महायज्ञ रूकें न शक्र कोई कर तकाजा ॥ 74॥

 

जिसके कि शासन में मदरता नारियाँ केलि के मध्य ही सो गई जो

के वस्त्र को वायु भी छू न सकता, किस हाथ में शक्ति थी छू सके जो॥ 75॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अक्षय ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – अक्षय…✍️ ?

मैं पहचानता हूँ

तुम्हारी पदचाप,

जानता हूँ

तुम्हारा अहंकार,

झपटने, गड़पने

का तुम्हारा स्वभाव भी,

बस याद दिला दूँ,

जितनी बार गड़पा तुमने,

नया जीवन लेकर लौटा हूँ मैं,

तुम्हें चिरंजीव होना मुबारक

पर मेरा अक्षय होना

नहीं ठुकरा सकते तुम..!

 

©  संजय भारद्वाज

12.11 बजे, 22.10.2020

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दीप पर्व विशेष – ।। हर रंग से भी रंगीन हो, दीपावली आपकी ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं। आज प्रस्तुत है आपके द्वारा दीप पर्व पर रचित शुभकामना स्वरुप विशेष रचना ।।हर रंग से भी रंगीन हो, दीपावली आपकी।।)

☆ दीप पर्व विशेष – ।। हर रंग से भी रंगीन हो, दीपावली आपकी ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆ 

 

।। 1।।

हर कदम पर मिले कीर्ति

हर पग पर सम्मान मिले।

हर पल क्षण आपका हो

बरसों तक पहचान मिले।।

सदैव अमिट रहे हर दिल

में याद आपके नाम की।

यही कामना इस दीवाली

आपको यूँ यशोगान मिले।।

 

।। 2 ।।

आइये सबका खुशियों से

दामन सजाते दीवाली को।

किसी भूखे को भी खाना

खिलाते हैं इस दीवाली को।।

हँसी उन जीवन में भी लायें

जो वंचित हर सुखसाधन से।

दुआ की दौलत से झोली

भराते हैं इस दीवाली को।।

 

।। 3 ।।

इस दीवाली कोई प्रेम का

दिया नया सा जल जाये।

प्यार की धारा बहे कि

नफरत किनारे लग जाये।।

अमन चैन सुख शांति की

बन जाये यह दुनिया।

रोशन महोब्बत का दीया

हर दिल में जग जाये।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

03 11 2021

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दीवाली ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल

श्री घनश्याम अग्रवाल

(श्री घनश्याम अग्रवाल जी वरिष्ठ हास्य-व्यंग्य कवि हैं. आज प्रस्तुत है उनकी एक समसामयिक  कविता दीवाली ! )

 

☆ कविता  ☆ दीवाली ! ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल ☆ 

 

एक दीये ही हैं

जो

रात में जलते हैं,

वरना

जलने वाले तो

दिन – रात जलते हैं ।

*

आप पहली किस्म के हैं

आपको

सलाम करता हूँ,

 दीवाली की अपनी शाम

आपके नाम करता हूँ ।

*

मेरा क्या  ?

मुझे जब भी

रोशनी को जरूरत होती

आपको याद कर

रोशन हो जाता हूँ,

अकेले में

दीवाली मनाता हूँ ।

नोट:- मेरे वेक्सीन के दोनों डोज हो गए। अब तो मैं, भीड़ में भी आपको याद कर, सरे आम दीवाली मना सकता हूँ।

© श्री घनश्याम अग्रवाल

(हास्य-व्यंग्य कवि)

094228 60199

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 6 (66-70)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #6 (66-70) ॥ ☆

कथन को उसके न मानता मन, कुछ इन्दुमति का लिये लगन था –

ज्यों सूर्यदर्शन की लालसा ले, कमल विकसता न शशि किरण पा ॥ 66॥

 

निशीथ गामिनी सी दीप्ति जैसी निकट से जिस नृप के बढ़ गई वह

उसी की मुख श्री भवन सी पथ के, खिली पै फीकी पड़ी क्षणिक रह ॥ 67॥

 

‘‘ मुझे चुनेगी क्या ”, पास आई को लख विकलता थी अज हृदय में

परन्तु शंका मिटाई तत्क्षण फड़क के दांयी भुजा सदय ने ॥ 68॥

 

पा सर्व गुण – रूप से युक्त अज को, बढ़ी न आगे रूकी कुमारी

कभी क्या कुसुमित रसाल तरूतज बढ़ी है आगे भी षट्पदाली ? ॥ 69॥

 

निबद्ध अज में सुप्रीति उसकी, समझ सुनंदा लगी सुनाने

और चंद्र सी इन्दुमती को अज का विसद सविस्तार लगी बताने ॥ 70॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 6 – दीप पर्व विशेष – दीपावली का पर्व यह …☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  दीप पर्व पर विशेष कविता  “दीपावली का पर्व यह …”। अब आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 6 – दीप पर्व विशेष – दीपावली का पर्व यह … ☆ 

 

मातु लक्ष्मी कृपा कर, सरस्वती दे ज्ञान ।

गणपति से आशीष ले, सभी बने विद्वान ।।

 

फुलझड़ियां मुस्कान की, जगमग जलते दीप।

खुशियों के बम फूटते, पाकर मोती सीप।।

 

दीपक घर घर में जलें, दूर हटे अज्ञान ।

तमस सभी मन के मिटें, सबका हो कल्यान।।

 

रंग बिरंगी रोशनी, झूम उठेगी शाम।

राम अयोध्या आ गए, सँबरे सबके काम।।

 

दीपावली का पर्व यह, फिर आया इस बार ।

हंसी-खुशी सब साथ में, सुखमय हो संसार।।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

 

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 6 (61-65)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #6 (61-65) ॥ ☆

 

विन्ध्याद्रि की उच्चता जिनने रोकी औं जिसने महोदधि को फिर से छोड़ा

उन महामुनि अगस्तय से पाण्ड्य नृप ने कर अश्वमेध स्नेह संबंध जोड़ा ॥ 61॥

 

पुराकाल में तृप्त लंकाधिपति ने, जन स्थान सीमा सुरक्षित बनाने

शिव से विशेषास्त्र पाये इसी पाण्ड्य से संधि की इन्द्र को भी हराने ॥ 62॥

 

पाणिग्रहण कर इसी योग्य नृप का पृथ्वी सा सागर की करधन जो धारे

दक्षिण दिशा को सपत्नी बना जो सुखद रत्नाकर की है रसना सँवारे ॥ 63॥

 

ताम्बूल वल्ली घिरे सुपारी वृक्ष, ऐला विचुम्बित अगरू तरू जहाँ हैं

वहाँ केलि हित बिछाये आस्तरण हैं तमालों की मंजुल मलय वीथिकायें ॥ 64॥

 

ये नील नीरज से श्याम नृप, तुम हो रोचना गौर शरीर वाली

बढ़ाने आपस की रूप श्शोभा, है योग धन – दामिनी का सा आली ॥ 65॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 110 ☆ ‘तू’ ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 110 ☆

☆ ‘तू’ ☆

हासते आहेस तू

लाजते आहेस तू

 

मख्ख माझा चेहरा

वाचते आहेस तू

 

तळ मनाचा खोल पण

गाठते आहेस तू

 

लाज पदराखालती

झाकते आहेस तू

 

सूर्य नाही काजवा

मागते आहेस तू

 

सृजनतेची वेदना

जाणते आहेस तू

 

जीवनाचा अर्थही

सांगते आहेस तू

 

एक भक्तीचा दिवा

लावते आहेस तू

 

सोबतीने आजही

चालते आहेस तू

 

देह आणिक भाकरी

भाजते आहेस तू

 

नाहताना चांदणे

सांडते आहेस तू

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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