हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 93 ☆ ज़िंदगी ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता “ज़िंदगी। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 93 ☆

☆ ज़िंदगी ☆

ज़िंदगी बन गयी है

कुछ ऐसे दरख़्त सी

जिसकी जड़ें खोज रही हैं

कोई ऐसी मुलायम मिट्टी

जिसको पकड़ कर वो खड़ी हो सकें,

और चूस सकें पानी और वो धातु

जिससे दरख़्त पनपता रहे

और ख़ुशी में झूमे-गाये…

 

पर नहीं मिलती मुलायम मिट्टी कहीं,

सारी ज़मीन हो गयी है रेत के जैसी-

फिसल रहा है दरख़्त,

फिसल रही है ज़िंदगी,

फिसल रहे हैं हम! 

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 4 – सजल – जग में एक सभी का ईश्वर… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ ” मनोज साहित्य“ में आज प्रस्तुत है सजल “जग में एक सभी का ईश्वर…”। अब आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 4 – सजल – जग में एक सभी का ईश्वर … ☆ 

सजल

समांत-अम

पदांत-है

मात्राभार- १६

 

वे कहते हैं बड़ा धरम है।

आती अब तो बड़ी शरम है।।

 

जग में रोती है मानवता,

अब तो उस पर करो रहम है।

 

जीने का अधिकार सभी को,

जीवों पर अब रहो नरम है।

 

अंध भक्ति में डूबा मानव,

कब उबरेंगे अभी भरम है।

 

बने लोग आतंकी अब तो

गला काटती लाल कलम है।

 

जग में एक सभी का ईश्वर,

इसमें उनको बड़ा वहम है।

 

प्रेम शाँति बंधुत्व भाव में,

जीवन जीना बड़ा अहम है।

 

चलें मिसाइल हैं जनता पर,

मरता मानव बुरा करम है।

 

कट्टरता से नाता तोड़ें,

सभी उठाएँ नया कदम है।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल ” मनोज “

20 मई 2021

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – प्यार कभी मरता नहीं है! ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – प्यार कभी मरता नहीं है! ?

वह सस्ता-सा

पुराना होटल,

जहाँ लेकर

उसका हाथ

अपने हाथ में,

पूछा था उसने-

क्या अपने नाम के आगे

मेरा नाम लगाना चाहोगी?

जवाब में उसने अपनी

बोलती निगाहें झुका दी थीं…

 

बाहर निकल कर,

होटल की पिछली दीवार के

एक पत्थर से एक पत्थर पर

उकेर दिया था उसने

‘प्यार कभी मरता नहीं है…’

 

फिर ढहा दिया गया वह होटल,

ढहते हर पत्थर और ईंट के साथ

दरकी, किरचीं और ढही थी

उसकी मोहब्बत भी…

 

बाद में बनने लगा वहाँ

एक आलीशान होटल या मॉल,

ठीक से पता नहीं उसे,

क्योंकि उधर जाने का

उसका मन फिर कभी हुआ ही नहीं…

 

बनने तो लगा

पर जाने किसकी आह लगी,

प्रॉपर्टी की कोई चिकचिक

या कानून की कोई झिकझिक,

किसी दुखी आँख का नीर

या किसी टूटे मन की पीर,

अब तक नहीं बन सका वह होटल,

आज भी पुराना मलबा पड़ा है,

तिमंज़िला भी पूरा होने की

उम्मीद में खड़ा है…

 

आज बरसों बाद

यूँ ही गुज़रा उधर से तो

जाने कैसे खिंचते चले गये उसके पैर

पिछवाड़े पड़े उस मलबे की ओर…

 

सारा मलबा झाड़-झंखाड़,

घास-फूस से ढका पड़ा है था

पर कमाल है,

मलबे की एक ओर

‘प्यार कभी मरता नहीं है’,

उकेरा हुआ पत्थर अब भी खड़ा था..!

 

©  संजय भारद्वाज

(संध्या 5:14 बजे, 18 अक्टूबर 2021)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 5 (66-70)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #5 (66-70) ॥ ☆

 

जागो सुधी, रात गई प्रातः आया, है धाता ने जगभार तुम दो पै डाला

एक तो पिता आके जो सजग नित हैं, और आप धुर संग में जिसने सम्हाला॥66।

 

निशि नीदं में आपसे हो उपेक्षित, खण्डित सी जिस चंद्र सँग तब थी मुख श्री

वह भरि उसे तज प्रतीची में डूबा उठा नाथ अपनी गहो आनन श्री ॥ 67॥

 

नयनों औं कमलों के सॅग सॅग उन्मलिन में समता सुन्दरता की आभा बिखराइये

नेत्रों की पुतलियों को भ्रमरों सा कमलों में संचालित करते अब झटसे उठ जाइये ।

 

तब मुख सौरभ का भूखा प्रातः समीर वृक्षों के पुष्पों की सौरभ चुराता है

सूरज की किरणों को देख खिले कमलों संग खेल खेलता है प्रीति उत्सव मनाता है

 

वृक्षों के नवल ताम्र पव्तो पर ओस बिन्दु, निर्मल मणिमुक्ता सी शोभा बरसाते है

आपके ललास लाल अधरों पर रदन-पंक्ति शोभित मनमोहिनी मुस्कान से सुहाते है॥ 70 ॥

 

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की#60 – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  लेखनी सुमित्र की #60 –  दोहे 

 

आंसू बहते रात दिन, चिथड़ा हुआ नसीब ।

कोई धनी धोरी नहीं, कितना सही गरीब।।

 

आंसू बहते हैं मगर के, पहचानेगा कौन।

 नेता आंसू बाज हैं, तुरत बदलते ‘टोन’।।

 

आंसू को मोती कहें, और आंख को सीप।

उसकी उतनी अहमियत, जितना रहे समीप।।

 

गर्व गरूरी को लगे, तृण भी तीर समान ।

इसीलिए तो कर रहे, आंसू का अपमान।।

 

कोहिनूर है आंख का, आंसू है अनमोल ।

तीन लोक की संपदा, सके न इसको तोल।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 60 – कानपुर-  उन्नाव से ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “कानपुर-उन्नाव से । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 60 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || कानपुर-  उन्नाव से || ☆

 

एक ठोकर  भर बचा हूँ

बस तुम्हारे पाँव से |

क्यों करोगे याद  मुझको अब

भला गुड़गाँव से ||

 

धुल गया अहसास मीठा 

जल तरंगों का |

लौटआया स्नेह दिलकश 

धनक रंगों का |

 

बहुत धीमी बजी मादल

देह छत की छाँव से ||

 

आँख मेरी तभी से

कहती रही है क्या ?

गोमती जैसे अवध

बहती रही गोया |

 

थक गया है बहुत आँचल  

कानपुर- उन्नाव से ||

 

बिखरती जैसे रूई

बस थम गई है ना !

फिर पिघलती बर्फ की

चुप – चुप लगी मैना |

 

भर गई है नेह छागल 

अधूरे ठहराव  से ||

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

07-05-2019

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – जाई ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – जाई ?

वह कहकर

दर्शाती रही

अपना नेह,

वह लिखकर

जताती रही

अपना स्नेह,

मैं बावरा

डूबा रहा

अनुभूति में ही,

माना कि

अभिव्यक्ति की

अपनी गहराई होती है,

पर सुनो,

अभिव्यक्ति,

अनुभूति की जाई होती है!

©  संजय भारद्वाज

(रात्रि 10.11 बजे, 25.9.19)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #50 ☆ #  रामराज्य  # ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी नवरात्रि पर्व पर विशेष कविता “#  रामराज्य  #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 50 ☆

☆ #  रामराज्य  # ☆ 

हमने लोगों का अनुकरण किया

दशहरे के पर्व में साथ दिया

हर्ष और उल्लास से

दशानन का दहन किया

 

सोना बांटा, हाथ मिलाया

सबको अपने गले लगाया

चेहरे पर मुखौटा लगाए

कृत्रिम हंसी से दिल बहलाया

 

रात को सोये, सुबह को जागे

दौड़ में शामिल भागे भागे

भूल गये सब ज्ञान की बातें

“अर्थ” ही है सबसे आगे

 

जीवन में जरूरी है दाम

पद, प्रतिष्ठा, ऊंचा नाम

जीवन-मूल्य गौण हो गये

ना कोई रावण, ना कोई राम

 

सत्य-असत्य में द्वंद है

सत्य पिंजरे में बंद है

असत्य का है बोलबाला

सत्य के नाम पर पाखंड है

 

ना हम राम सा बन पायें

ना हम रावण को भूल पायें

दोनों हममे विद्यमान है

देश में,

फिर रामराज्य कैसे आये?

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 5 (61-65)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #5 (61-65) ॥ ☆

 

ज्यों चंद्र को देख हर्षित उदधि उर्मिमाला उठा करता सत्कार विधु का

वैसे ही अज आगमन से मुदित भोज ने स्वतः बढ किया स्वागत अतिथि का॥ 61।

 

अगवानी कर पथ दिखा अज को जिसने विनत भाव से सच समर्पित किया जब

उस भोज की देख के भावना उसके समझे अतिथि अज को गृहस्वामी सा सब 62।

 

जहाँ पूर्व द्वारे की बेरी पै जल से भरे घट रखे गये थे भृत्यों के द्वारा

वहाँ नये भवन में था रघुपुत्र अज का मदन सदृश यौवन में आवास प्यारा ॥ 63॥

 

उसी रूपसी की प्रबल लालसा ले थे जिसके स्वयंवर में कई नृपति आये

नवोढ़ा वधू सी बड़ी देर में रात्रि, निद्रा नयन अज के सायास पाये ॥ 64॥

 

कुण्डल औं अंगराग जिसके थे घर्षित वे अज सुबह गान से गये जगाये

चारण तरूण जो थे अति वाक्पटु, उननें विरूदावली में मधुर गीत गाये ॥ 65॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 62 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 62 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 62) ☆

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 62 ☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

इल्जाम तो हर हाल में

काँटों  पर  ही  लगेगा…

ये सोचकर कुछ फूल भी

चुपचाप ज़ख्म दे जाते हैं…!

 

As such, blame will always be

there on the thorns only….

Considering this even some flowers

quietly inflict the wounds….!

  ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

रहने दो कि अब तुम भी

मुझे पढ़ न सकोगे

बरसात में काग़ज़ की

तरह भीग गया हूँ  मैं ..!

 

Let it be, now even

you can’t read me

I’m like the paper

drenched in the rain…!

  ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

मैं हूँ दिल है,

तन्हाई भी है

तुम भी होते,

तो अच्छा होता…

 

I’m there, heart is there,

loneliness is also there

It would have been nice,

If you were there too..!

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

अगर कभी फ़ुर्सत मिले तो

पानी की लहरों को पढ़ लेना,

हर इक दरिया हज़ारों साल

का अफसाना लिखता है…

 

If you ever get time, then

read the waves of water,

Every single river writes

tales of many of eras…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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