हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 80 ☆ जो मिला, सो मिला ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता “जो मिला, सो मिला । )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 80 ☆

☆ जो मिला, सो मिला ☆

चाहत थी कितनी , ग़मगुसार ना मिला

होना हो जो सो हो, किसी से क्या गिला

 

घाव सारे धो दिए, मिटा दिए निशान

जो फिर घाव दिखा, उसको मैंने सिला

 

दुनिया घूम डाली, क़रार था रूह में

सहलाया प्यार से, चाहत का फूल खिला

 

जिगर की डालियों पर. बहार ही बहार है

शुरू हो गया जैसे कोई, प्यार का सिलसिला

 

ग़मगुसार की चाहत नहीं, न ही कोई आहट

क़ुबूल किया मुस्कुराकर, जो भी मुझे मिला

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सूत्र ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – सूत्र  ?

उदासीन हो

उदासीनता बयान करो,

इस विषय पर

एक रचना हो सकती है,

कुछ नहीं लिखता

यह सोच कर, जो

सूत्र, सूक्ति ना दे पाठक को

भला कविता कैसे हो सकती है?

# घर में रहें। सुरक्षित रहें, स्वस्थ रहें। शुभ प्रभात #

©  संजय भारद्वाज

(प्रातः 10:19 बजे, 19 अप्रैल 2020)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ सकारात्मक कविता – विरासत ☆ श्री हेमन्त बावनकर

हेमन्त बावनकर

☆ सकारात्मक कविता – विरासत ☆ हेमन्त बावनकर 

( एक सच्ची घटना से प्रेरित )

एक कोरोना संक्रमित

पिच्यासी वर्षीय बुजुर्ग ने

अपनी बेड

एक कोरोना संक्रमित युवा को

यह कह कर दे दी कि –

“ मैं तो अपनी जिंदगी जी चुका

और

इस नौजवान के सामने सारी जिंदगी पड़ी है”

 

तीन दिन बाद

वे संसार से चले गए

और

दे गए विरासत में काफी कुछ

जिसको लौटाया नहीं जा सकता

बस

दिया जा सकता है

अगली पीढ़ी को

विरासत में।

 

© हेमन्त बावनकर, पुणे 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.४७॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.४७॥ ☆

 

संक्षिप्यन्ते क्षन इव कथं दीर्घयामा त्रियामा

सर्वावस्थास्व अहर अपि कथं मन्दमन्दातपं स्यात

इत्थं चेतश चटुलनयने दुर्लभप्रार्थनं मे

गाढोष्माभिः कृतम अशरणं त्वद्वियोगव्यथाभिः॥२.४७॥ 

कैसे घटे यह महारात्रि क्षण सम

दिवस भी तथा किस तरह शांतिप्रिय हो

हे चपल नयने तुम्हारे विरह की

जलन ने किया व्यथित मेरे हृदय को

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की#47 – दोहे – वीणापाणि स्तवन ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  लेखनी सुमित्र की #47 –  दोहे  ✍

✍ वीणापाणि स्तवन✍ 

 

हंसरूढा शारदे, प्रज्ञा प्रभा निकेत ।

कालिदास का कथाक्रम, तेरा ही संकेत।।

 

शब्द ब्रह्म आराधना, सुरभित सुफलित नाद।

उसका ही सामर्थ्य है, जिसको मिले प्रसाद ।।

 

वाणी की वरदायिनी, दात्री विमल विवेक।

सुमन अश्रु अक्षर करें, दिव्योपम अभिषेक।।

 

तेरी अंतः प्रेरणा, अक्षर का अभियान ।

इंगित से होता चले, अर्थों का संधान ।।

 

कवि साधक कुछ भी नहीं, याचक अबुध अजान।

तेरा दर्शन दीप्ति से,     लोग रहे पहचान ।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 46 – बापू के कुर्ते के छेद से … ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत “बापू के कुर्ते के छेद से …  । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 46 ।। अभिनव गीत ।।

☆ बापू के कुर्ते के छेद से  …  ☆

बापू के कुर्ते के छेद से |

घर जीवन दर्शन समझ सका,

उद्धरण लगा मुझको

जैसे ऋग्वेद  से ||

 

या जैसे झाँक रहा

पिछला इतिहास कोई

भौगोलिक स्थिति या

गतिका समास कोई

 

बापू के कुर्ते के छेद से |

रिस आयी जीवन की –

कईकई विपदाएं ,आर्थिक –

समीकरणों में बहते स्वेद से ||

 

या कोई पहचानी

टीस फिर उभर आयी

या घर की चौखट पर

आ बैठी परछाँई

 

बापूके कुर्ते के छेद से |

सिमट गई छुईमुई सी माँ

घर के कोने में

संभावित खेद से ||

 

या घर की स्थितियाँ

आ बदलीं अचरज  में

या कोई संशय फिर

आ बैठा धीरज में

 

बापू के कुर्ते के छेद से |

नहीं मिटी  कटुता भ्रातत्व में

असमंजस में हैं सब

घर के मतभेद से ||

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

09-03-2019

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चित्र ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – चित्र ?

वर्णित शब्दों के आधार पर

चित्रकार उकेर देते हैं

अनदेखे चेहरों के चित्र..,

पढ़ता हूँ कविताएँ,

पढ़ता हूँ कहानियाँ,

अनगिनत रचनाकारों के

मूल चित्र संग्रहित हैं

मेरे मन के संग्रहालय में..!

# घर में रहें। स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें। आपका दिन मंगलमय हो #

©  संजय भारद्वाज

(प्रात: 5:57 बजे, 13.5.21)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सकारात्मक कविता # 93 ☆ अच्छी खबरें ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।

अभी 11 मई को आपकी सकारात्मक कविता प्रकाशित की थी और 22 मई को सुबह आपका सन्देश आता है “सुबह सुबह आज फिर अस्पताल से याद कर रहा हूँ। पोस्ट कोविड लफड़े हैं दोस्तों ये। सतर्कता जरूरी है कोविड से ठीक होने के बाद भी ये अपना हंटर बीच-बीच में घुमाता ही है। इसलिए सभी दोस्त भाई हर दम सतर्क रहिएगा। मास्क और दो गज दूरी, और हंसी के साथ मस्त रहने की आदत।”  इस सन्देश के साथ ही कविता ” मैं यादों का किस्सा खोलूं तो, कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं ….”.  बंधुवर, यह समय भी निकल जायेगा और हम प्रस्तुत करेंगे आपकी प्यारी सी कविता आपके अगले साप्ताहिक अंक में। ईश्वर से कामना आपके शीघ्र स्वास्थ्य के लिए)

आज प्रस्तुत है आपकी एक सकारात्मक कविता  अच्छी खबरें’)  

☆ सकारात्मक कविता ☆ अच्छी खबरें ☆

खबरों की 

दुनिया में,

 

लगातार बुरी 

खबरों के बीच, 

 

कुछ अच्छी 

खबरें भी आती हैं, 

 

जो जीवन के प्रति 

हमारी आस्था को 

मज़बूत करती हैं ,

 

जैसे कि

गुलमोहर ने आज

छकौड़ी के घर

बरसात कर दी,

 

कल्लू की गाय

बियानी हो गई,

 

लल्ला की बेटी

सयानी हो गई,

 

मुल्लू की फसल

इस बार दुगनी हो गई,

 

शंभू का बैंक लोन

का ब्याज माफ हो गया,

 

जर्जर बीमार भाई

कोविड से ठीक हो गया,

 

मोची बाबा का

लोन पास हो गया,

 

साहब आपदा में

अवसर से अमीर

और अमीर हो गया।

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

[7:52 am, 22/05/2021]

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #37 ☆ # छूकर चली गई # ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है महामारी कोरोना से ग्रसित होने के पश्चात मनोभावों पर आधारित एक अविस्मरणीय भावप्रवण कविता “# छूकर चली गई #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 37 ☆

☆ # छूकर चली गई # ☆ 

 

हर लम्हा,हर पल,

मेरी किस्मत छली गई

मौत भी आई थी

बस छूकर चली गई

 

मेरे अपने रो रहे थे

हालत को देखकर

मेरी सांसे नहीं रूकी

बस चलती ही चली गई

 

चारों तरफ अजीब सा

डरा रहा था सूनापन

जैसे किसी अजीज़ की

अर्थी चली गई

 

शवदाह गृह सजे हुए थे

वीरान था हर शहर

मौत चरम पर थी

जिंदगी सिमटती चली गई

 

बिखर गए कितने आशियाने

टूट गये कितने परिवार

बिलख रहे हैं आश्रित

उनकी छत्रछाया चली गई

 

ना जाने कितनी लहरें

अभी आना बाकी है

“श्याम” यह तो दूसरी है

पहली आई और चली गई

 

© श्याम खापर्डे 

14/05/21

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.४६॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.४६॥ ☆

 

भित्त्वा सद्यः किसलयपुटान देवदारुद्रुमाणां

ये तत्क्षीरस्रुतिसुरभयो दक्षिणेन प्रवृत्ताः

आलिङ्ग्यन्ते गुणवति मया ते तुषाराद्रिवाताः

पूर्वं स्पृष्टं यदि किल भवेद अङ्गम एभिस तवेति॥२.४६॥

सरस देवतल किसलयो से सुगंधित

दक्षिण दिशा ओर वाही पवन से

तुम्हारा परस ले चला सदगुणे हो

यही सोचकर शांति पाता मिलन से

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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