English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 50 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 50 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 50) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 50 ☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

आते-जाते हैं तमाम

रंग  मेरे  चेहरे  पर,

लोग  लेते  हैं  मजा

ज़िक्र तुम्हारा कर के…

 

Keep coming  and going

Myriad hues on my face,

People teasingly enjoy by

Mentioning  your  name…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

मंज़िल तो मिल ही जाएगी

भटक कर ही सही

गुमराह तो वो हैं

जो घर से निकले ही नहीं….

 

You’ll get to the destination

may be, by wandering itself

Misguided are those, who

never venture out of house….!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

मुझ पर तुम्हारा प्यार

यूँ ही उधार रहने दो,

बड़ा ख़ूब है ये कर्ज़,

मुझे कर्ज़दार रहने दो..

 

Just simply let your love be

a perennial  loan  on  me…

This loan is so very special

Let me be a borrower only..!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

चुप्पियाँ…

प्यासी आत्मायें हैं,

जो रिश्ते…

पी जाया करती हैं…

 

Reticences …

are nothing but

The thirsty souls

devouring the relationships…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 51 ☆ बुंदेली ग़ज़ल – बात नें करियो ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित बुंदेली ग़ज़ल    ‘बात ने करियो । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 51 ☆ 

☆ बुंदेली ग़ज़ल – बात नें करियो ☆ 

बात नें करियो तनातनी की.

चाल नें चलियो ठनाठनी की..

 

होस जोस मां गंवा नें दइयो

बाँह नें गहियो हनाहनी की..

 

जड़ जमीन मां हों बरगद सी

जी न जिंदगी बना-बनी की..

 

घर नें बोलियों तें मकान सें

अगर न बोली धना-धनी की..

 

सरहद पे दुसमन सें कहियो

रीत हमारी दना-दनी की..

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य #83 ☆ ऐसा प्यारा गाँव हो ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  श्री सूबेदार पाण्डेय जी की  एक भावपूर्ण रचना  “ऐसा प्यारा गाँव हो ….। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 83 ☆ ऐसा प्यारा गाँव हो …. ☆

गौरी का गांव हो,पीपल की छांव ‌ हो

झरनों का शोर हो, बागों में ‌मोर हो।

अमवा की डाली‌ हो, कोयलिया काली‌ हो ।

नदिया में  कल-कल हो, मृगशावक चंचल हो।

चिड़ियों का गीत हो, सुंदर मन मीत हो।

नदिया में नाव हो, ऐसा प्यारा गाँव हो ।।1।।

 

पर्वत विशाल हो, देख मन निहाल हो।

ग्वालों की गइया हों, किशन कन्हैया हो ।

राजा‌ हों रानी हों,नानी की कहानी हों ।

दादा हो दादी हों, नतिनि की शादी हो।

उत्सव उमंग‌हो , यारों का संग हो।

हम सबका सपना हो, हर कोई अपना हो।

इंसानियत की, ठांव गौरी का गांव हो।

बस ऐसा प्यारा सा सुन्दर गाँव हो।।2।।

 

आग हो अलाव हो, ख्याली पुलाव हो।

राजनैतिक चिंतन हो, समस्या पर मंथन हो।

चट्टी चौबारा हो, मंदिर गुरूद्वारा हो।

पोखर तालाब हों, बगिया गुलाब हो।

मादक बसंत हो , कल्पना अनंत हो।

सुंदर शिवाले हो,पूजा की थाले हों ।

खेत हो सिवान हो, गंवइ किसान हो।

भूखा हो बचपन पर आंखों में ‌सपने हो ।

बिखरी हों खुशियां, जीवन संघर्ष ‌हो।

मेल हो मिलाप हो, ऐसा प्यारा गाँव हो ।।3।।

 

मंदिर हो मस्जिद हो, पूजा अजान हो ।

दायें में गीता और बायें कुरान हो ।

नात या कौव्वाली हो ,चैता या‌ होली हो।

राम हो रहमान हों, प्रेम गीत गूंजते सदा ।

सपनों से सुंदर हो, प्यार का समंदर‌ हो।

शांति हो समृद्धि हो, ऐसा प्यारा गाँव हो।।4।।

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.४५॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.४५॥ ☆

 

माम आकाशप्रणिहितभुजं निर्दयाश्लेषहेतोर

लब्धायास ते कथम अपि मया स्वप्नसन्दर्शनेषु

पश्यन्तीनां न खलु बहुशो न स्थलीदेवतानां

मुक्तास्थूलास तरुकिसलयेष्व अश्रुलेशाः पतन्ति॥२.४५॥

कभी स्वप्न ने प्राप्त तुम निर्दया के

लिये शून्य मे मम उठे हाथ लखकर

वन देवियो के भी हैं अश्रु झरते

सदा मोतियों सम लता पल्लवों पर

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 38 ☆ भारत की पावन माटी को प्रणाम ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा  एक भावप्रवण कविता  “भारत की पावन माटी को प्रणाम“।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 38 ☆ भारत की पावन माटी को प्रणाम ☆

 

रहे तिरंगा सदा लहराता भारत के आकाश में,

करता रहे देश नित उन्नति इसके धवल प्रकाश में ॥

लाखों वीरों ने बलि देकर के इसको फहराया है

आजादी का रथ रक्तिम पथ से ही होकर आया है ॥1 ॥

 

यह भारत की माटी पावन इसमें चन्दन – गंध है,

अमर शहीदों का इसमें इतिहास और अनुबंध है ॥

उनके उष्ण रक्त से रंजित अगणित मर्म व्यथाएँ हैं,

सतत प्रेरणादायी भावुक कई गौरव – गाथाएँ हैं ॥2 ॥

 

मनस्वियों औ ‘ तपस्वियों से इसका युग का नाता है,

राम – कृष्ण , गाँधी – सुभाष हम सबकी प्रेमल माता है ।

वीर प्रसू यह भूमि पुरातन बलिदानी, वरदानी है,

मानवीय संस्कृति की हर कण में कुछ लिखी कहानी है ॥3 ॥

 

आओ इससे तिलक करें हम सुदृढ़ शक्ति फिर पाने को,

नई पीढ़ी को अमर शहीदों की फिर याद दिलाने को ॥

जन्मभूमि यह कर्मवती धार्मिक ऋषियों का धाम है,

इसको शत – शत नमन हमारा, बारम्बार प्रणाम है ॥4 ॥

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.४४॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.४४॥ ☆

 

त्वाम आलिख्य प्रणयकुपितां धातुरागैः शिलायाम

आत्मानं ते चरणपतितं यावद इच्चामि कर्तुम

अस्रैस तावन मुहुर उपचितैर दृष्टिर आलुप्यते मे

क्रूरस तस्मिन्न अपि न सहते संगमं नौ कृतान्तः॥२.४४॥

 

प्रणय केलि में प्रिय तुम्हें रूठ जाती

विविध रंग से जब शिला पै बनाकर

यदि शांति हित देखना चाहता हॅू

स्वंय को सुमुखि तव चरण पर गिराकर

तभी फिर भरे अश्रू से दृष्टि मेरी

सदा लुप्त होती दिखाता नहीं है

भला क्रूर दुर्देव को मिलन अपना

वहां भी अरे सहा जाता नहीं है

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 90 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं   “भावना के दोहे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 90 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

विनती प्रभु वर आपसे,

करते बारंबार।

कोरोना के कहर से,

मुक्त करो संसार।।

 

महावीर अब कुछ करो,

सही न जाए पीर।

धीरे धीरे टूटता,

इंसानों का धीर।।

 

समाधान अब चाहिए,

होगा कभी निदान।

धरती देती जा रही,

इंसानों का दान।।

प्राणों की रक्षा करो,

सुनो वीर हनुमान

लाओ तुम संजीवनी ,

बचे सभी के प्राण।।

 

प्रत्याशा अब टूटती,

बची नहीं है आस।

पल पल में अब छूटती,

इंसानों की सांस।।

 

प्रत्याशा मन में रखो,

जीतेंगे संग्राम।

कोरोना के काल में,

जपा करो तुम राम।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 80 ☆ संतोष के दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं विशेष भावप्रवण कविता  “अपनी-अपनी जान बचाओ। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 80 ☆

☆ अपनी-अपनी जान बचाओ ☆

अपनी-अपनी जान बचाओ

पहले यह सबको समझाओ

 

कोरोना ने पैर पसारा

आत्मबल ही एक सहारा

मास्क मुँह पर सदा लगाओ

अपनी-अपनी जान बचाओ

 

गीता ने जो हमें सिखाया

कोरोना ने कर दिखलाया

धन-दौलत पर मत इतराओ

अपनी-अपनी जान बचाओ

 

कोई नहीं है संगी साथी

छूट गए पीछे बाराती

धीरज-धर्म सदा अपनाओ

अपनी-अपनी जान बचाओ

 

पल भर में क्या से क्या होता

क्या लाये थे.? किस पर रोता

अहम छोड़ कर अब झुक जाओ

अपनी-अपनी जान बचाओ

 

एक आस विस्वास वही है

जीवन की हर सांस वही है

प्रभु चरणों में शीश झुकाओ

अपनी-अपनी जान बचाओ

 

दो गज दूरी बहुत जरूरी

रखो समय के साथ सबूरी

जीवन में कुछ पेड़ लगाओ

अपनी-अपनी जान बचाओ

 

दिल में गर “संतोष” रहेगा

जीवन में तब जोश रहेगा

मानवता का धर्म निभाओ

अपनी-अपनी जान बचाओ

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.४३॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.४३॥ ☆

 

श्यामास्व अङ्गं चकितहरिणीप्रेक्षणे दृष्टिपातं

वक्त्रच्चायां शशिनि शिखिनां बर्हभारेषु केशान

उत्पश्यामि प्रतनुषु नदीवीचिषु भ्रूविलासान

हन्तैकस्मिन क्वचिद अपि न ते चण्डि सादृश्यम अस्ति॥२.४३॥

श्यामालता मे सुमुखि अंग की कांति

हरिणी नयन मे नयन खोजता हूं

मुख चंद्र में बर्हि में केश का रूप

जल उर्मि मे बंक भ्रू सोचता हॅू

पर खेद है मैं किसी एक में भी

तुम्हारी सरसता नहीं पा सका हूं

तरसता रहा हॅू सदा प्रिय परस को

तुम्हारे दरश भी नहीं पा सका हॅू

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पहेली ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – पहेली ?

वह कहती है ‘रचो’,

दृश्य से दृष्टि उभरती ह़ै,

अक्षरा झरने लगती है..,

तुम बिखेरते हो रंग,

छटाएँ घटती-बढ़ती हैं,

सृष्टि सिरजने लगती है..,

हम तो लेखनी के वश में हैं,

उसकी कही लिखते हैं हर बार,

पर एक बात बताओ,

यह पहेली बुझाओ,

तुम किसके वश में हो

…..सिरजनहार ?

# विश्वास रखें, कोविड हारेगा, मनुष्य जीतेगा #

©  संजय भारद्वाज

( रात्रि 3:12 बजे, 13.5.21)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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