हिन्दी साहित्य – कविता ☆ होली पर्व विशेष – हर्षोल्लास होली पर ☆ श्री पवन शर्मा परमार्थी

श्री पवन शर्मा परमार्थी

☆ कविता ☆ होली पर्व विशेष – हर्षोल्लास होली पर ☆ श्री पवन शर्मा परमार्थी

लेकर हर्षोल्लास वसन्त में होली आई,

बच्चे, बूढ़े, जवां, दिलों पर रंगत छाई।

 

ठट्ठा करते, खेलें होली भर पिचकारी,

सब ही जगह पर मिलकर सबने  धूम मचाई।

 

भाभी ने देवर को ज्यों ही आते देखा,

कुछ इठलाई, कुछ इतराई, कुछ शरमाई।

 

हल्ला करके लोग मूर्ख सम्मेलन करते,

हँसकर करें मजाक न देखें चाची, ताई।

 

रंग, गूलाल की कमी नहीं कोई फिर भी,

ले गारा कीच, खींच सबने थाप जमाई।

 

इक नार को थामे देखा हाथ में डण्डा,

विधुर, कुँवारे ब्याहे सबने दौड़ लगाई ।

 

वैमनस्य न पालो भैया कोई भी मन में,

सब मिलके खाओ खीर, पूड़ी और मिठाई ।

 

रंग गया तन-मन मेरा भी होली रंग में,

साथी बोले–“कैसे हो परमार्थी भाई ?”

 

© पवन शर्मा परमार्थी

कवि-लेखक, पूर्व-सम्पादक (परशुराम एक्सप्रेस, फ़ास्ट इंडिया) दिल्ली-110033, भारत ।

मो. 9911466020, 9354004140

Email : psparmarthikavi@gmail. com Tweeter : @parmarthipawan

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 83 – होली पर्व विशेष – होली ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत है  होली पर्व पर विशेष भावप्रवण कविता  “होली ।  इस  भावप्रवण एवं सार्थक रचना के लिए श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ जी की लेखनी को सादर नमन। ) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 83 ☆

?? होली पर्व विशेषहोली ??

?

होली लिए फागुन मास है आई

फूले बगिया बौरै अमराई

रंग बिरंगी रंगों से देखो

प्रकृति ने हैं सुंदरता पाई

?

कुसुम सुहासी लाली सजाई

फूले महुआ सुगंध फैलाई

बैठ के आमो की डाली पर

कोयल देखो राग सुनाई

?

रंग लिए उल्लास हैं आई

सबके जीवन खुशियां बिखराई

भूल के सब राग द्वेष फिर

परंपरा की रीत निभाई

?

सबके मन फिर बात समाई

क्या होली खेले न भाई

दुष्ट कोरोना कोई रंगना

फिर भी हाहाकार मचाई

?

घरों में बनती गुजिया मिठाई

पर भाई पड़ोसन की ठंडाई

हाय ये कैसी हो गई दुनिया

सोच- सोच अब  आए रुलाई

?

जीजा साली देवर भोजाई

बस कागज पन्नों में समाई

जानू तुम न खेलना होली

देती हूं तुम्हें पहले समझाई

?

बच्चों में ना पिचकारी आई

मौड़ी रंगों से घबराई

देख-देख व्हाट्एप में सब ने

अपनी अपनी होली मनाई

?

होली खेले ना खेले गुसाई

शुभकामनाओं की बारी आई

भूल के सब पिछली बातों को

सबको देना होली की बधाई

?

रंग बिरंगी होली आई

देखो कैसी मस्ती छाई

रंग बिना जीवन है सुना

होली की हार्दिक बधाई

सबको शुभ हो होली भाई

?

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ होली पर्व विशेष – क्या करना है इस बार होली में ? ☆ श्री आर के रस्तोगी

श्री आर के रस्तोगी

☆ होली पर्व विशेष – क्या करना है इस बार होली में ? ☆ श्री आर के रस्तोगी☆ 

जो ग़मगीन चेहरे है,रंगीन रंग भर दो उनकी झोली में |

कोई भी उदास न रहे,इस गुलाल रंगो से भरी होली में ||

 

बंद है जो बुजुर्ग घरो में,इस कठिन कोरोना काल में |

उनके साथ होली खेलो,खुश रखो उनको हर हाल में ||

 

रूठे है जो दोस्त तुमसे,गुलाल लगाओ उनको होली में |

नाचो कूदो उनके संग,गाना गाओ तुम उनकी टोली में ||

 

सीमा पर है जो तैनात जवान,रंग बरसाओ उनकी टोली में |

दुश्मन के छक्के छूट जाये,बारूद भरो तुम उनकी गोली में ||

 

सम्मान करो उन बहनो का,जिनका सिन्दूर पुछा है होली में|

फिर से उनको दुल्हन बनाओ,श्रृंगार करो उनका इस होली में ||

 

ईर्ष्या घृणा मनमुटाव का दहन करो,तुम सब इस होली में |

सबको गले लगा लो तुम,जो रूठ गए थे पिछली होली में ||

 

© श्री आर के रस्तोगी

गुरुग्राम

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.२९॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.२९॥ ☆

 

पादान इन्दोरमृतशिशिराञ्जलमार्गप्रविष्टान

पूर्वप्रीत्या गतमभुमुखं संनिवृत्तं तथैव

चक्षुः खेदात सलिलगुरुभिः पक्ष्मभिश्चादयन्तीं

साभ्रेऽह्नीव स्थलकमलिनी न प्रभुद्धां न सुप्ताम॥२.२९॥

 

प्रविशती हुई देखकर जालियो से

सुधा सृदश शीतल सुखद चंद्र किरणे

परिचित पुराने सुखद अनुभवो से

मुर उस तरफ पर तुरत मूंद अलकें

अति खेद से अश्रुजल से भरे नैन

मुंह फेरती क्लांत मेरी प्रिया को

लखोगे घनाच्छन्न दिन में धरा पर

न विकसित न मुद्रित कमलनी यथा हो

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की#44 – होली पर्व विशेष –  दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  लेखनी सुमित्र की #44 – होली पर्व विशेष –  दोहे  ✍

तितली भौरा फूल रस, रंग बिरंगे ख्वाब ।

फागुन का मतलब यही, रंगो भरी किताब ।।

 

औगुनधर्मी देह में, गुनगुन करती आग।

फागुन में होता प्रकट, अंतर का अनुराग ।।

 

फागुन बस मौसम नहीं, यह गुण-धर्म विशेष ।

फागुन में केवल चले ,मन का अध्यादेश ।

 

कोयल कूके आम पर, वन में नाचे मोर।

मधुवंती -सी लग रही, यह फागुन की भोर।

 

मन महुआ -सा हो गया,सपने हुए पलाश।

जिसको आना था उसे, मिला नहीं अवकाश।।

 

क्वारी आंखें खोजती, सपनों के सिरमौर।

चार दिनों के लिए है ,यह फागुन का दौर।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – होली ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? ‘एक भिखारिन की मौत’ के अंग्रेज़ी संस्करण का विमोचन ?

Book Launch of English Version of Ek Bhikharin ki Maut (Death of a Beggar Woman).

Authored By- Sanjay Bhardwaj

Translated by-Dr Meenakshi Pawha,

Chief Guest- Dr Ashutosh Misal,

Guest of Honour- Dhanashree Heblikar,

Part of play narrated by- Aashish Tripathi and Ankita Narvanekar,

Participation- Veenu Jamuar, Ritesh Anand,

Anchored By-Kritika Bhardwaj.

विगत दिवस सम्पन्न हुए ‘एक भिखारिन की मौत’ के अंग्रेज़ी संस्करण के विमोचन का आयोजन उपरोक्त यूट्युब लिंक पर अपलोड किया है। देखियेगा, सुनियेगा, मित्रों और परिचितों से अवश्य शेयर कीजिएगा। इस सन्दर्भ में हम अलग से एक विशेष लेख देने का प्रयत्न करेंगे।  

ई- अभिव्यक्ति की ओर से  श्री संजय भारद्वाज जी को हार्दिक शुभकामनाएं

? संजय दृष्टि – होली ?

रंग मत लगाना

मुझे रंगों से परहेज़ है

उसने कहा था,

अलबत्ता

उसका चेहरा

चुगली खाता रहा

आते-जाते

चढ़ते-उतरते

फिकियाते-गहराते

खीझ, गुस्से,

झूठ, दंभ,

कूपमंडूकता,

दिवालिया संभ्रांतपन के

अनगिनत रंग

जताता रहा,

और रँग दे,

और.., और,

इंद्रधनुष से सरोबार तन

पहाड़ी झरने-सा कोरा मन

बढ़ चली बच्चों की टोली

होली है भाई होली !

? शुभ होली। ?

©  संजय भारद्वाज

(कवितासंग्रह ‘योंही’ से।)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 43 – कई धनक रंगों में… ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत “घाटी से उतरी नदी कोई … । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 43 ।। अभिनव गीत ।।

कई धनक रंगों में …  ☆

लिये हुये

मत सम्मत

आ गया

तुम्हारा खत

 

देह की विनीता

पथरीली सी भू पर

फुदके हैं रह रह कर

दूधिया कबूतर

 

पूछती

पड़ौसी छत

भूल गये

शक सम्वत?

 

हंस निकल आये

सहमकर अँधेरों से

दूँढते रहे जिनको

कई कई सबेरों से

 

जिसकी लय

उस की गत

रागदार

स्वर सम्मत

 

ऐसे आ गूँजा है

ध्वनि की तरंगों में

और दिखा मुझे स्वतः

कई धनक रंगों में

 

खोजा किया

परबत

भूल गया

शत प्रतिशत

 

लिये हुये

मत सम्मत

आ गया

तुम्हारा खत

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

28-12-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 89 ☆ होली पर्व विशेष – होली के उड़े रंग ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं 9साहित्य में  सँजो रखा है। हमारा विनम्र अनुरोध है कि  प्रत्येक व्यंग्य  को हिंदी साहित्य की व्यंग्य विधा की गंभीरता को समझते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण से आत्मसात करें। आज प्रस्तुत है होली पर्व पर एक विचारणीय कविता होली के उड़े रंग। )  

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 89

☆ होली पर्व विशेष – होली के उड़े रंग☆

टेसू के फूल,

मुरझाए हुए हैं,

फागुनी हवा,

शरमाई हुई है,

कोरोना की अंगड़ाई से,

होली बदरंग हो गई है,

स्थगित हुईं यात्राएं,

राख कर गईं दिशाएं,

सांसों में सुलगता अलाव,

नाक में मास्क का तनाव,

कुतर रहा हर क्षण संशय,

सांसों में घर करता भय,

घुटी घुटी दिन दुपहरिया,

लुटा लुटा सा बंजर मौसम,

डरती लुटती जिंदगी,

ढल रही इक्कीसवीं सदी

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ होली पर्व विशेष – माँ, मैं कैसे होली मनाऊँ? ☆ हेमन्त बावनकर

हेमन्त बावनकर

☆ कविता ☆ होली पर्व विशेष – माँ, मैं कैसे होली मनाऊँ? ☆ हेमन्त बावनकर 

जिस बेटे ने बचपन में

तिरंगे में लिपटे पिता को

अग्नि दिया हो

अपने जख्मों को

जिंदगी भर सिया हो

तीन रंगों को ही जिया हो

तुमने अपनाया सफ़ेद रंग

हमें हरा और केसरिया

ही दिया हो

बाकी रंग फीके से लगते हैं

दीवाली के बुझे दिये से लगते हैं

माँ अब तुम्हीं बताओ

बापू प्रतिमा को कौन सा रंग लगाऊँ

माँ मैं कैसे होली मनाऊँ?

 

लोग चौराहे पर शहीदों की

प्रतिमा को लगाते हैं

फिर दिवंगत आत्मा के साथ ही

प्रतिमा को भूल जाते हैं

गाहे बगाहे राष्ट्रीय पर्व पर

फूल माला चढ़ा जाते हैं

तुम पूछती हो न

मैं कहाँ जाता हूँ

रात के अंधेरे में

बापू प्रतिमा तक जाता हूँ

दूर से चुपचाप देख आता हूँ

नहीं जानता बापू को

कौन सा रंग भाता है

कैसे पूछूं तुमसे

उन्हें कौन सा रंग लगाऊँ

माँ मैं कैसे होली मनाऊँ?

 

बापू ने तो बताया था कि

संविधान हमें देता है

सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय,

विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास

धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता,

प्रतिष्ठा और अवसर की समता

सब में व्यक्ति की गरिमा

राष्ट्र की एकता और अखंडता

सुनिश्चित करने वाली बंधुता

यदि यह सच है

तो

जाति, धर्म और भीड़तन्त्र

का रंग क्या है?

राजनीति का रंग

देश की मिट्टी और मानवता

से भी क्या कुछ नया है?

माँ अब तुम्हीं बताओ

मैं इन अनजान रंगों से

किस रंग का मास्क लगाकर

खुद को कैसे बचाऊँ?

माँ मैं कैसे होली मनाऊँ?

माँ मैं कैसे होली मनाऊँ?

 

© हेमन्त बावनकर, पुणे 

29 मार्च 2021

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #36 ☆ होली पर्व विशेष – साजन-सजनी की होली ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है होली पर्व पर एक अतिसुन्दर भावप्रवण कविता “साजन-सजनी की होली”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 36 ☆

☆ होली पर्व विशेष  – साजन-सजनी की होली ☆ 

रंगों की बौछार है

पिचकारीं में प्यार है

सजनी का इनकार है

तो, साजन बेकरार है

पिचकारी डाल रही रंगों को

भिगो रही सजनी के अंगों को

भीगी चोली, भीगी साड़ी

दिल में बढ़ा रही उमंगों को

हाथों से मुखड़ा ढाप रही हैं

सजनी इत उत भाग रहीं हैं

छुपके बैठा है उसका साजन

साजन से लाज उसे लाग रही है

पकड़ी गई जब उन्मुक्त हिरणी

साजन करने लगा मनकी अपनी

भिगो दिया अंग अंग सजनी का

सजनी की देह लगी है तपनी

सजनी ने भी कहां हार है मानी

वो भी तो है शैतान की नानी

डुबों दिया ड्रम में साजन को

करने लगी साजन संग मनमानी

साजन ने सजनी को खींचा

उसकी देह को बाहों में भींचा

रंगों में डूब गये वो दोनों

रंगीन अधेरों को चुंबन से सींचा

रंगों का खेल वो खेल रहे हैं

एक दूसरे का वार वो झेल रहे हैं

झूम रहीं हैं सारी कायनात

मस्ती में एक दूजे को ठेल रहे हैं

आओ,

हम तुम भी यह त्योहार मनायें

शालीनता से रंग लगाये

भूल जायें सारी कड़वाहट

भांग पियें, खुशियां मनायें /

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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