हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 43 ☆ द्विपदियाँ (अश’आर) ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी  द्वारा रचित  ‘द्विपदियाँ (अश’आर).’। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 43 ☆ 

☆ द्विपदियाँ (अश’आर) ☆ 

*

आँख आँख से मिलाकर, आँख आँख में डूबती।

पानी पानी है मुई, आँख रह गई देखती।।

*

एड्स पीड़ित को मिलें एड्स, वो हारे न कभी।

मेरे मौला! मुझे सामर्थ्य, तनिक सी दे दे।।

*

बहा है पर्वतों से सागरों तक आप ‘सलिल’।

समय दे रोक बहावों को, ये गवारा ही नहीं।।

*

आ काश! कि  आकाश साथ-साथ देखकर।

संजीव तनिक हो सके, ‘सलिल’ के साथ तू।।

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.५७॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.५७॥ ☆

 

तं चेद वायौ सरति सरलस्कन्धसंघट्टजन्मा

बाधेतोल्काक्षपितचमरीबालभारो दवाग्निः

अर्हस्य एनं शमयितुम अलं वारिधारासहस्रैर

आपन्नार्तिप्रशमनफलाः संपदो ह्य उत्तमानाम॥१.५७॥

तभी यदि प्रभंजन चले , वृक्ष रगड़ें

औ” घर्षण जनित दाव वन को जलायें

ज्वालायें यदि क्लेश दें चमरि गौ को

तथा पुच्छ के केश दल झुलस जायें

उचित तब तुम्हें तात ! जलधार वर्षण

अनल को बुझा जो सुखद शांति लाये

सफलता यही श्रेष्ठ की संपदा की

समय पर दुखी आर्त के काम आये

 

शब्दार्थ … प्रभंजन… तेज हवा , आंधी

घर्षण जनित दाव … वृक्षो के परस्पर घर्षण से उत्पन्न आग

चमरि गौ    … चमरी गाय जिसकी पूंछ के सफेद बालों से चौरी बनती है

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 30 ☆ गीत – शांति दे माँ नर्मदे !☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा  माँ नर्मदा जयंती पर्व पर रचित “गीत – शांति दे माँ नर्मदे !“।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

यूट्यूब लिंक >> गीत – शांति दे माँ नर्मदे!

गीत – प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव “विदग्ध”

स्वर-संगीत – सोहन सलिल & दिव्या सेठ

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 30 ☆

☆ गीत – शांति दे माँ नर्मदे! ☆

सदा नीरा मधुर तोया पुण्य सलिले सुखप्रदे

सतत वाहिनी तीव्र धाविनि मनो हारिणि हर्षदे

सुरम्या वनवासिनी सन्यासिनी मेकलसुते

कलकलनिनादिनि दुखनिवारिणि शांति दे माँ नर्मदे ! शांति दे माँ नर्मदे !

 

हुआ रेवाखण्ड पावन माँ तुम्हारी धार से

जहाँ की महिमा अमित अनुपम सकल संसार से

सीचतीं इसको तुम्ही माँ स्नेहमय रसधार से

जी रहे हैं लोग लाखों बस तुम्हारे प्यार से ! शांति दे माँ नर्मदे !

 

पर्वतो की घाटियो से सघन वन स्थान से

काले कड़े पाषाण की अधिकांशतः चट्टान से

तुम बनाती मार्ग अपना सुगम विविध प्रकार से

संकीर्ण या विस्तीर्ण या कि प्रपात या बहुधार से ! शांति दे माँ नर्मदे !

तट तुम्हारे वन सघन सागौन के या साल के

जो कि हैं भण्डार वन सम्पत्ति विविध विशाल के

वन्य कोल किरात पशु पक्षी तपस्वी संयमी

सभी रहते साथ हिलमिल ऋषि मुनि व परिश्रमी  ! शांति दे माँ नर्मदे !

 

हरे खेत कछार वन माँ तुम्हारे वरदान से

यह तपस्या भूमि चर्चित फलद गुणप्रद ज्ञान से

पूज्य शिव सा तट तुम्हारे पड़ा हर पाषाण है

माँ तुम्हारी तरंगो में तरंगित कल्याण है  ! शांति दे माँ नर्मदे !

 

सतपुड़ा की शक्ति तुम माँ विन्ध्य की तुम स्वामिनी

प्राण इस भूभाग की अन्नपूर्णा सन्मानिनी

पापहर दर्शन तुम्हारे पुण्य तव जलपान से

पावनी गंगा भी पावन माँ तेरे स्नान से  ! शांति दे माँ नर्मदे !

 

हर व्रती जो करे मन से माँ तुम्हारी आरती

संरक्षिका उसकी तुम्ही तुम उसे पार उतारती

तुम हो एक वरदान रेवाखण्ड को हे शर्मदे

शुभदायिनी पथदर्शिके युग वंदिते माँ नर्मदे  ! शांति दे माँ नर्मदे !

 

तुम हो सनातन माँ पुरातन तुम्हारी पावन कथा

जिसने दिया युगबोध जीवन को नया एक सर्वथा

सतत पूज्या हरितसलिले मकरवाहिनी नर्मदे

कल्याणदायिनि वत्सले ! माँ नर्मदे ! माँ नर्मदे !  ! शांति दे माँ नर्मदे !

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अनुवादक ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि –  अनुवादक ☆

हर बार परिश्रम किया है

मूल के निकट पहुँचा है

मेरी रचनाओं का अनुवादक,

इस बार जीवट का परिचय दिया है

मेरे मौन का उसने अनुवाद किया है,

पाठक ने जितनी बार पढ़ा है

उतनी बार नया अर्थ मिला है,

पता नहीं

उसका अनुवाद बहुआयामी है

या मेरा मौन सर्वव्यापी है…!

 

©  संजय भारद्वाज

प्रात: 10.40 बजे, 19.01.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ आईने में सूरत तेरी नजर आती है ☆ डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव

डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव 

(आज  प्रस्तुत है  डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव जी  की एक भावप्रवण रचना आईने में सूरत तेरी नजर आती है 

☆ आईने में सूरत तेरी नजर आती है ☆

 

सोच रही हूँ खुद को देख कर

जब भी देखती हूँ आईना सूरत तेरी नजर आती है

लगता है आईने की नजर सीधे दिल की तरफ जाती है

 

तुझे देखा नहीं बरसो से पर जहां भी देखूं

तेरी तस्वीर नजर आती है लगता है

आईने की नजर सीधे दिल की तरफ जाती है

 

तू है तो नहीं है वीरान, नहीं है पतझड़

हर तरफ बहार ही बहार नजर आती है

लगता है आईने की नजर सीधे दिल की तरफ जाती है

 

जब भी छिड़ता है जिक्र तेरा

होठों ही होठों में एक मुस्कान उतर आती है

लगता है आईने की नजर सीधे दिल की तरफ जाती है

 

जब भी देखती हूं आईना सूरत तेरी नजर आती है

लगता  है आईने की नजर सीधे दिल की तरफ जाती है

 

© डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव

मो 9479774486

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.५६॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.५६॥ ☆

 

आसीनानां सुरभितशिलं नाभिगन्धैर मृगाणां

तस्या एव प्रभवम अचलं प्राप्य गौरं तुषारैः

वक्ष्यस्य अध्वश्रमविनयेन तस्य शृङ्गे निषण्णः

शोभां शुभ्रां त्रिनयनवृषोत्खातपङ्कोपमेयम॥१.५६॥

आसीन कस्तूरिमृग नाभि की गंध

से रम्य जिसकी शिलायें सुगंधित

उसी जान्हवी के प्रभव स्त्रोत गिरि जो

हिमालय धवल हिम शिखर सतत मंडित

पहँच कर वहाँ मार्ग श्रम को मिटाने

किसी श्रंग पर लग्न लोगे सहारा

तो शिव के धवल वृषभ के श्रंग में लग्न

कर्दम सदृश रूप होगा तुम्हारा

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – दृष्टि (2) ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि –  दृष्टि (2) ☆

तुमने देखी उसकी

निर्वसन,अनावृत्त देह?

पुलिया पर खड़ा जनसमूह

नदी में मिले नारी शरीर पर

कुजबुजा रहा था,

मैं पशोपेश में पड़ गया,

निर्वसन देह होती है या दृष्टि !

 

©  संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 82 ☆ अंतर्मन ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  किशोर मनोविज्ञान पर आधारित एक  भावप्रवण  “अंतर्मन। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 82 – साहित्य निकुंज ☆

 अंतर्मन

मन के झरोखे

में झाँका

मन को आँका।

हुई कुछ आहट

कैसी है फड़फड़ाहट।

 

वे थे ……

अंतर्मन के पृष्ठ

जिनमें थी यादें

जिनमे है प्यार-अपार

मनाते थे ख़ुशी से हर त्यौहार

माँ खूँट कर देती थी कजलियां

साथ थी सहेलियां…..

रहता था शाम का इन्तजार

हाथ में देते थे सब ममत्वरूपी धन

खुश हो जाता था मन

घर-घर मिलता था प्यार

वो पल था कितना यादगार

मन में रहेगी सदा चाहत

न होगी उन पलों की कभी आहट।

 

इसलिये

उन पलों को सहेजकर रख देते है

जब मन हुआ खोलकर चख लेते है।

काश अंतर्मन के झरोखे खुले रहे

खुली आँखों से सब सदा देखते रहे।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 72 ☆ संतोष के दोहे☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  “संतोष के दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 72 ☆

☆ संतोष के दोहे  ☆

धनवानों को क्या पता, भूख-प्यास का पाठ

दर्द कभी देखा नहीं, उनके ऊँचे ठाठ

 

मोबाइल के दौर में, सिमट गए अब लोग

लेते खुद की सेल्फी, लगा नया इक रोग

 

राजनीति से बुझ रहे, जलते हुए चिराग

मधुर मोहक मधुबन में, कौन लगाता आग

 

कुत्ते ने जब भौंक कर,दी चमचे को सीख

दोनों तलवे चाटते, होकर के निर्भीक

 

बचपन में ही हो गये, बच्चे सभी जवान

मोबाइल के दौर में, कहाँ  रहे  नादान

 

रामायण का पाठ कर, खूब किया अभिमान

प्रेम, समर्पण, शीलता, पर इनसे अनजान

 

बातन हाथी पाइए, बातन हाथी पाँव

वाणी ही पहिचान बन, देती सबको छाँव

 

सुख-दुख अपने कर्म से, कोउ न देवनहार

जो बोया वह ही मिले, खुद ही तारणहार

 

सद्गुण जीवन में मिलें, होता जब सत्संग

आगे जिसके सभी सुख, हो जाते हैं तंग

 

काशी,मथुरा,द्वारका, सभी प्रेम के धाम

प्रेम कभी मरता नहीं, प्रेम ईश का नाम

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.५५॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.५५॥ ☆

 

तस्याः पातुं सुरगज इव व्योम्नि पश्चार्धलम्बी

त्वं चेद अच्चस्फटिकविशदं तर्कयेस तिर्यग अम्भः

संसर्पन्त्या सपदि भवतः स्रोतसि च्चाययासौ

स्याद अस्थानोपगतयमुनासंगमेवाभिरामा॥१.५५॥

 

सुरगज सदृश अर्द्ध अवनत गगनगंग

अति स्वच्छ जलपान उपक्रम करो जो

चपल नीर की धार में बिम्ब तो तब

दिखेगा कि अस्थान यमुना मिलन हो

 

शब्दार्थ .. गगनगंग..आकाशगंगा

अस्थान यमुना मिलन .. गंगा यमुना मिलन स्थल तो प्रयाग है , पर अस्थान  अमिलन अर्थात  प्रयाग के अतिरिक्त कही अंयत्र मिलना

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

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