हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ समीक्षा ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ समीक्षा ☆

आज कुछ

नया नहीं लिखा?

उसने पूछा..,

मैं हँस पड़ा,

वह देर तक

पढ़ती रही मेरी हँसी,

फिर ठठाकर हँस पड़ी,

लंबे अरसे बाद मैंने

अपनी कविता की

समीक्षा पढ़ी!

 

©  संजय भारद्वाज

रात्रि 12.46, 23.12.19

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

मोबाइल– 9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 73 – कविता –2021 का करें अभिनंदन …. ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत नववर्ष के शुभागमन पर आपकी एक अतिसुन्दर कृति “2021 का करें अभिनंदन….। ) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 73 ☆

? 2021 का करें अभिनंदन …. ?

खोया हमने बहुत अपनों को

गम भी है उनका हमको

भाग्य लिखा टल न सका

दिए सांत्वना हैं सबको

 

मिलकर नमन करते हैं सब

गुरु गंगा गीता गौ गायत्री को

जिनके संस्कारों टिका हुआ

दुनिया में ऊंचा भारत को

 

ठिठुरन भरी ठंडक में भी

मनाते हैं संक्रांत यहां

गुड़ तिल जैसे मिले रहे

ऐसा मिलता प्यार कहां

 

मिला संस्कार बड़ों से यहां

नित्य पूजन की बजती घंटी

2020 के कोरोना में भी

काम आई हमारी तुलसी बट्टी

 

याद करें सुन्दर लम्हों को

सुखद बनाएं जो जीवन

भूलकर 2020 का गम

2021 का करें अभिनंदन

 

अलौकिक सुंदर जीवन

शुभ कर्मो से पाया हैं

नूतन वर्ष मंगलमय हो

हम सब ने आस लगाया हैं

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दिसंबर 2020 ☆ सुश्री सरिता त्रिपाठी

सुश्री सरिता त्रिपाठी

(युवा साहित्यकार सुश्री सरिता त्रिपाठी जी CSIR-CDRI  में एक शोधार्थी के रूप में कार्यरत हैं। विज्ञान में अब तक 23 शोधपत्र अंतरराष्ट्रीय जर्नल में सहलेखक के रूप में प्रकाशित हुए हैं। वैज्ञानिक एवं तकनीकी क्षेत्र में कार्यरत होने के बावजूद आपकी हिंदी साहित्य में विशेष रूचि है । आज प्रस्तुत है  नववर्ष के शुभागमन पर आपकी  अतिसुन्दर कविता “दिसंबर। )

☆ दिसंबर 2020 ☆  

बूढ़ा हो चला दिसम्बर,

बीतने वाला दो हजार बीस,

जवानी छायी सदी तुझको,

आने वाला दो हजार इक्कीस।

 

खुशियाँ भर-भर लाये इक्कीस,

दिलों में छाये सबके इक्कीस,

दूर हो जाये कोरोना सभी से,

भूल जाये अब दो हजार बीस।

 

दौर इक्कीसवीं सदी का,

दिखलाये नये-नये व्यवधान,

लाने वाला क्या है बाकी,

नहीं जाने कोई इन्सान।

 

है इंतजार तेरा जनवरी,

बेसब्री से सभी को,

कितनी जल्दी बीत जाये,

ये दिसम्बर माह अंतिम।

 

© सरिता त्रिपाठी

जानकीपुरम,  लखनऊ, उत्तर प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१४॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१४॥ ☆

 

प्रत्यासन्ने नभसि दयिताजीवितालम्बनार्थी

जीमूतेन स्वकुशलमयीं हारयिष्यन प्रवृत्तिम

स प्रत्यग्रैः कुटजकुसुमैः कल्पितार्घाय तस्मै

प्रीतः प्रीतिप्रमुखवचनं स्वागतं व्याजहार॥१.४॥

पर धैर्य धारे शुभेच्छुक प्रिया का

कुशल वार्ता भेजने मेघ द्वारा

गिरि मल्लिका के नये पुष्प से पूजकर,

मेघ प्रति बोल, सस्मित निहारा

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय 

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 78 ☆ पाचोळा ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 78 ☆ पाचोळा ☆

मी मृत्यूच्या काठावरती बसून आहे

मृत्यू पुरता माझ्यावरती रुसून आहे

 

काठावरती ऐकू येते खळखळ त्याची

याच मृत्युने केली आहे माझी गोची

कळते त्याला मी तर गेलो खचून आहे

 

झाडावरती सडून जाणे नको नशिबी

दाणे भरले छाटा आता लवकर ओंबी

पडूदेत रे फळ जे गेले पिकून आहे

 

फळा फुलांना हिरवी पाने कवेत घेती

पानगळीचा ऋतू कसा हा खुडतो नाती

डोळ्यांमधले गेले पाणी सुकून आहे

 

आठवणींचा पाडा होता माझ्या सोबत

त्याच त्याच त्या जुनाट गप्पा असतो मारत

भूतकाळ तो रोज काढतो पिसून आहे

 

आत्मा गेला देहाचे ह्या हलके ओझे

तरी वाटते छानच आहे नशीब माझे

पाचोळा मी  तरी मातिला धरून आहे

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे । )

✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  ✍

पहर पहर दिन चढ़ गया, पकी समय की धूप।

आंखों में अंजन लगा, सपनों का प्रारूप।।

 

ग्रंथ, पिटक किया पुस्तकें, कर न सके उद्धार।

मुक्ति चाहिए तो भरो, अपने मन में प्यार।।

 

प्यार नहीं करता कभी, प्रियतम को स्वच्छंद।

यदि उसका ही वश चलें, रखे नयन में बंद।।

 

धड़कन बढ़ती हृदय की, सुनने को पदचाप।

दीवारें ही गुन रही, मन का मौन प्रलाप।।

 

पागल के पल भोगता, पल पल है बैचेन।

कहां चैन की चांदनी, खोज रहे हैं नैन।।

 

आस उड़ी बनकर तुहिन, हत आशा अंगार।

दरपन दरका तो हुआ, नष्ट भ्रष्ट  श्रृंगार।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 30 – अँधियारा जोड़ रहा …☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत “अँधियारा जोड़ रहा … । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 30– ।। अभिनव गीत ।।

☆ अँधियारा जोड़ रहा … ☆

उतर गई

मगरे* से धूप

 

इघर-उधर फैल गया

कहरीला सन्नाटा

अँधियारा जोड़ रहा

दिन भर का घाटा

 

रोशनी नहीं

दिखी अनूप

 

लालटेन जल्दी में

ढिबरियाँ तलाशती

ओसारे में सिमटी

बड़ी बहू खाँसती

 

देवर चुप खड़ा

शिव सरूप

 

ससुर बहुत दीन

खूब चिटखाता उँगलियाँ

साँस थामतीं भरसक

सासू की पसलियाँ

 

धान फटकती

भरभर सूप

 

* मगरे= कच्चे घरों में खपरैल का ऊपरी हिस्सा

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

10-12-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ अपनापन ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ अपनापन … ☆

 

मिलावट बीजों में है या

माटी ने रंग बदला है

सचमुच नहीं जानता मैं…,

अपनापन बो कर भी, ताउम्र

अकेलापन काटता रहा मैं…!

 

©  संजय भारद्वाज

प्रातः 8:43 बजे 25.12.18

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

मोबाइल– 9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ निधि की कलम से # 28 ☆ तुम सा मैं बन जाऊँ ☆ डॉ निधि जैन

डॉ निधि जैन 

डॉ निधि जैन जी  भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण  कविता  “तुम सा मैं बन जाऊँ”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 28 ☆ 

☆ तुम सा मैं बन जाऊँ

हे भास्कर, हे रवि, तुम सा मैं बन जाऊँ,

तुम सा मैं चमक उठूं, हे सूरज तुम सा मैं बन जाऊँ।

 

अंधकार के कितने बादल आये,

नीर की कितनी बारिश हो जाये,

रात की कितनी कलिमा छा जाये,

हे भास्कर, हे रवि, सारे अंधकार सारा नीर थम जाये,

तुम सा मैं चमक उँठू, हे सूरज तुम सा मैं बन जाऊँ।

 

हर दिन चन्द्रमा तारे, काली रात को दोस्त बनाकर सबका मन लुभाते हैं,

रात की कलिमा सब प्रेमियों का दिल लुभाते हैं,

ये रात झूठी हो जाये, सूरज की किरणें छूने की आस लगाये,

तू एक उजाला, तू एक सूरज सारे जगत को रोशन करता,

तू असीम, तू अनन्त, तू आरुष का साथी ।

 

हे भास्कर, हे रवि, तुम सा मैं बन जाऊँ,

तुम सा मैं चमक उँठू, हे सूरज तुम सा मैं बन जाऊँ।

 

©  डॉ निधि जैन,

पुणे

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #23 ☆ रिश्ते ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है जिंदगी की हकीकत बयां करती एकअतिसुन्दर कविता “रिश्ते”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 23☆ 

☆ रिश्ते ☆ 

यह कैसे रिश्ते हैं

जिनके घाव

जीवन भर रिसते है

कोई मलहम या दवाई

जो आपने घाव पर लगाई

वो गर घाव नहीं भर पाई

तो वो कभी कभी

नासूर बन जाते है

हर कदम पर

तड़पाते हैं

और घाव अगर

भर भी जाये

तो भी टीस

बाकी रहती है

जो आखरी साँस तक

साथ साथ बहती है

पूरा जीवन चक्र भी

अधूरा पड़ जाता है

झूठा अहम बेवजह

अड़ जाता है

अगर कोई बिगड़े

रिश्ते सुधारना भी चाहें

महीन धागों से

बुनना भी चाहें

तो वो, पुरानी बातें

भूल जायें

रिश्तों में

मिठास घोल आयें

तब भी टूटे रिश्ते

जुड़ते जुड़ते

जुड़ते हैं

अथक प्रयास के

बाद ही

सही राह पर

मुड़ते हैं

क्योंकि कटुता

धीमा धीमा ज़हर है

रिश्तों के लिए कहर है

इसलिए,

क्यों ना हम

झूठे “मैं” को

भूल जायें ?

“मैं” की जगह

“हम” को अपनाये ?

क्योंकि मित्र,

रिश्ते बीते हुए

कल की अमानत है

आज के वर्तमान की

हकीकत है

और

आने वाले कल की

वसीयत है।

 

© श्याम खापर्डे 

भिलाई  05/12/20

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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