हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – प्रेम ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – प्रेम ? ?

हरेक ने किया प्रेम,

किसीने भोगी, व्यक्त न

कर पाने की पीड़ा,

कोई अभिव्यक्त होने की

वेदना भोगता रहा,

किसीका प्रेम होने से पहले

झोंके के संग बह गया,

किसीका प्रेम खिलने से

पहले मुरझा गया,

किसीका अधखिला रहा,

किसीका खिलकर भी

खिलखिलाने से

आजीवन वंचित रहा,

प्रेम का अनुभव

किसीके लिये मादक रहा,

प्रेम का अनुभव

किसीके लिये दाहक रहा,

जो भी हो पर

प्रेम सबको हुआ..,

प्रेम नित्य है, प्रेम सत्य है,

प्रेम कल्पनातीत, प्रेम तथ्य है,

पंचतत्व होते हैं, काया का आधार,

प्रेम होता है पंचतत्वों का सार !

?

© संजय भारद्वाज  

11:07 बजे , 3.2.2021

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मकर संक्रांति मंगलवार 14 जनवरी 2025 से शिव पुराण का पारायण महाशिवरात्रि तदनुसार बुधवार 26 फरवरी को सम्पन्न होगा 💥

 🕉️ इस वृहद ग्रंथ के लगभग 18 से 20 पृष्ठ दैनिक पढ़ने का क्रम रखें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #39 – गीत – बलिदानों की पुण्य भूमि… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतबलिदानों की पुण्य भूमि

? रचना संसार # 39 – गीत – बलिदानों की पुण्य भूमि…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

 बलिदानों की पुण्य भूमि को,

नमन समर्पित भाव करो।

वीर शिवाजी के वंशज हम

दुश्मन का घेराव करो ।।

 **

वीरों की गाथा तुम गाओ,

कुर्बानी को मान मिले।

धरती ये राणा प्रताप की

वीरों की पहचान मिले।।

रहो यहाँ मिलजुल- कर सबसे

नित अच्छा बर्ताव करो।

 *

 बलिदानों की पुण्य भूमि को

 नमन समर्पित भाव करो।।

 **

 वीर सिपाही हो भारत के,

 दुश्मन पे हो वार सदा।

 करते गद्दारी जो हम से

 उनका भी संहार सदा।।

 हमें जान से प्यारी धरती,

 छाती पर मत घाव करो।

 *

  बलिदानों की पुण्य भूमि को

  नमन समर्पित भाव करो।।

 **

 मानवता का पाठ पढ़ाओ,

 सदा शांति उद्घोष रहे।

 कर्मों की गीता समझा दो,

 सच का ही जयघोष रहे।।

जन्म भूमि पर जान लुटादो,

 जीवन में बदलाव करो ।

 *

 बलिदानों की पुण्य भूमि को,

 नमन समर्पित भाव करो।।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #266 ☆ गीत – बसंत ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं आपका  गीत – बसंत)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 266 – साहित्य निकुंज ☆

☆ गीत – बसंत ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

जो पिया की नजर प्यार से पा गया   

बसंती पवन संग लहरा गया.

*

 सज रही है धरा में पीली चुनरी

हवा में मधुर घोल  घुलता गया

गीत गाती टहनियां झूमती बाग़ में

बाहों में आके तेरी सिमटता गया

*

सजी धूप पीली लहर खेत में

गुलाबो में प्यार का रंग छा गया

गगन की भी रंगत निखरने लगी

रंग बसंत का बातों में आता गया  .

*

झनझनाती है पायल कहे चूड़ियाँ

राग कोयल की मैं गुनगुनाता गया

चली है हवा सनसनी प्यार की

बसंती बयार में खोता गया..

*

सुन रहे हो मेरे प्यार के गीत को

भावों की मैं सरिता सजाता  गया

ओढ़ ली है बसंती चुनरिया तूने

मैं तो तेरी ही सुध में  खोता गया।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #248 ☆ संतोष के दोहे – महाकुंभ ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे – महाकुंभ  आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 248 ☆

☆ संतोष के दोहे – महाकुंभ ☆ श्री संतोष नेमा ☆

सरस्वती भागीरथी, कालिंदी के घाट।

महाकुंभ संक्रांति का, संगम पर्व विराट

*

इक डुबकी से मिट रहे, सौ जन्मों के पाप

सच्चे मन से आइए, एक बार बस आप

*

अमृतमयी अवगाह का, संगम में आगाज

तीर्थ राज के घाट पर, आगत संत समाज

*

संगम में होता नहीं, ऊंच नीच का भेद

मान सभी का हो यहाँ, रहे न कोई खेद

*

होता संगम में खतम, जन्म-मृत्यु का फेर

सागर मंथन से गिरा, जहाँ अमृत का ढेर

*

साहित्यिक उत्कर्ष की, है पुनीत पहचान

गंगा- जमुना संस्कृति, तीरथराज महान

*

श्रद्धा से तीरथ करें, कहते तीरथराज

काशी मोक्ष प्रदायिनी, सफल करे सब काज

*

चारि पदारथ हैं जहाँ, ऐसे तीरथराज

करें अनुसरण धर्म का, हो कृतकृत्य समाज

*

स्वयं राम रघुवीर ने, किया जहाँ अस्नान

पूजन अर्चन वंदना, संगम बड़ा महान

*

सुख – दुःख का संगम यहाँ, पूजन अर्चन ध्यान

तर्पण पितरों का करें, पिंडदान अस्नान

*

महाकुंभ में आ रहे, नागा साधू संत

जिनका गौरव है अमिट, महिमा जिनकी अनंत

*

नागा साधू संत जन, जिनके दरश महान

करें त्रिवेणी घाट में, जो पहले अस्नान

*

महिमा संगम की बड़ी, कह न सके संतोष

तीर्थराज दुख विघ्न हर, दूर करो सब दोष

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 231 ☆ ऋतुराज बसंत सुहावत है… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना ऋतुराज बसंत सुहावत है…। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 231 ☆ ऋतुराज बसंत सुहावत है… ☆

चारों ओर उल्लास का वातावरण, आम्र बौर की आहट, सरसों के फूलों का खिलना, पूरा परिवेश मानो पीताम्बर के रंग में डूबा हुआ माँ शारदे की आराधना कर रहा है। पीला रंग बौद्धिकता को बढ़ाता है, गुरु की कृपा, वाणी में दिव्यता, चहुँओर मानो एक आह्लादित नाद सुनाई दे रहा हो ऐसा अहसास होने लगता है। ऐसे में रसिक मन गुनगुना उठाता है…

बसंत वयार सुशोभित होय,

चलो सखि बाँगन आज अभी।

लुभावत पीत बसे मन आय,

अली कलियाँ खिल जाय सभी।।

कहे मनमीत यही अब चाह,

बजे सुर साज सुहाय तभी।

करूँ कुछ नेक सिया वर राम,

कृपा कर दर्शन होय कभी।।

*

सखि मंगल गान सुनाय रहीं,

मधु कोकिल कंठ लुभावत है।

सब भक्त कहें प्रिय शारद माँ,

ऋतुराज बसंत बुलावत है।।

अलि आन बसी हिय पावनता

जब कोयल कूक सुनावत है।

सब पीतमयी अब कुंजन में

दिन- रैन यही गुण गावत है।।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – संकल्प ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

?संजय दृष्टि – संकल्प ? ?

अपनी सुविधा,

अपना गणित,

समीकरणों का

स्वानुकूल फलित,

सुविधाजीवी जब

बाएँ मुड़ रहे हों,

समझौते ठुकराने का

विवेक जगाए रखना

दाएँ मुड़ने का अपना

संकल्प बनाए रखना।

?

© संजय भारद्वाज  

रात्रि 11:03 बजे, 1 फरवरी 2024

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

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💥 मकर संक्रांति मंगलवार 14 जनवरी 2025 से शिव पुराण का पारायण महाशिवरात्रि तदनुसार बुधवार 26 फरवरी को सम्पन्न होगा 💥

 🕉️ इस वृहद ग्रंथ के लगभग 18 से 20 पृष्ठ दैनिक पढ़ने का क्रम रखें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 332 ☆ कविता – “चलन से बाहर हुए सिक्के…” ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 332 ☆

?  कविता – चलन से बाहर हुए सिक्के…  ? श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

भिखारी भी अब

कम से कम

दस रुपए चाहता है

क्यू आर कोड का स्टीकर

लगा रखा है उसने

दान दाताओं की

मदद के लिए

उस दिन मैं

टैक्सी से उतरा

निकालने लगा मीटर पर दिखते इकसठ रुपए सत्तर पैसे

तो ड्राइवर बोला रहने दो साहब , बस साठ रुपए दे दीजिए

या फिर पे टी एम ही कर दीजिए

उसे पैंसठ रुपए देकर मैने उसकी दरियादिली से निजात पाई

अब सिक्के बस बैंक के ब्याज के हिसाब में एक पासबुक एंट्री भर

बनकर रह गए हैं।

गुम हो चुकी है

सिक्कों की खनक

बस रुपए की गर्मी बची है

मोबाइल वैलेट में

चलन से बाहर हो चुके हैं

सिक्के।

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 238 ☆ गीत – हर शहादत देश की इक शान है… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 238 ☆ 

☆ गीत – हर शहादत देश की इक शान है…  ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

हर शहादत देश की इक शान है।

कह रहा यह पूर्ण हिंदुस्तान है।

देश पर जो मर- मिटे वे वीर हैं,

शौर्य का गाता सकल जग गान है

=1=

हर किसी को ये मेरा पैगाम है

एक रब रहमान वो घनश्याम है

तोड़ना मत भूल कर निज देश को

एकता से देश का सम्मान है।।

=2=

फूट ने ही डस लिया इतिहास है

आज भी जयचंद का क्या वास है

प्रेम की गंगा दिलों से बह रही

भारतीयता की यही पहचान है।।

=3=

गुरुजनों को मान दें सम्मान   दें

पश्चिमी क्यों सभ्यता पर ध्यान दें

 हिन्द की मिट्टी उगाती स्वर्ण है

रत्न मणियों का वतन ये खान है

=4=

वे फिदा हैं इस वतन पर आज भी

कर रहे हैं और इस पर नाज भी

गा रहे हैं स्वर्ग से मन गीत ये

हर कोई सुख से जिए तो मान है।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #266 – कविता – ☆ नर्मदा जयंती विशेष – नर्मदा नर्मदा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी द्वारा गीत-नवगीत, बाल कविता, दोहे, हाइकु, लघुकथा आदि विधाओं में सतत लेखन। प्रकाशित कृतियाँ – एक लोकभाषा निमाड़ी काव्य संग्रह 3 हिंदी गीत संग्रह, 2 बाल कविता संग्रह, 1 लघुकथा संग्रह, 1 कारगिल शहीद राजेन्द्र यादव पर खंडकाव्य, तथा 1 दोहा संग्रह सहित 9 साहित्यिक पुस्तकें प्रकाशित। प्रकाशनार्थ पांडुलिपि – गीत व हाइकु संग्रह। विभिन्न साझा संग्रहों सहित पत्र पत्रिकाओं में रचना तथा आकाशवाणी / दूरदर्शन भोपाल से हिंदी एवं लोकभाषा निमाड़ी में प्रकाशन-प्रसारण, संवेदना (पथिकृत मानव सेवा संघ की पत्रिका का संपादन), साहित्य संपादक- रंग संस्कृति त्रैमासिक, भोपाल, 3 वर्ष पूर्व तक साहित्य संपादक- रुचिर संस्कार मासिक, जबलपुर, विशेष—  सन 2017 से महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9th की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में एक लघुकथा ” रात का चौकीदार” सम्मिलित। सम्मान : विद्या वाचस्पति सम्मान, कादम्बिनी सम्मान, कादम्बरी सम्मान, निमाड़ी लोक साहित्य सम्मान एवं लघुकथा यश अर्चन, दोहा रत्न अलंकरण, प्रज्ञा रत्न सम्मान, पद्य कृति पवैया सम्मान, साहित्य भूषण सहित अर्ध शताधिक सम्मान। संप्रति : भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स प्रतिष्ठान भोपाल के नगर प्रशासन विभाग से जनवरी 2010 में सेवा निवृत्ति। आज प्रस्तुत है नर्मदा जयंती पर विशेष – माँ नर्मदा वंदन गीत “नर्मदा नर्मदा…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #266 ☆

☆ नर्मदा नर्मदा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

(नर्मदा जयंती पर विशेष – माँ नर्मदा वंदन गीत)

 

नर्मदा – नर्मदा, मातु श्री नर्मदा

सुंदरम, निर्मलं, मंगलम नर्मदा।

*

पूण्य  उद्गम  अमरकंट  से  है  हुआ

हो गए वे अमर, जिनने तुमको छुआ

मात्र दर्शन तेरे पुण्यदायी है माँ

तेरे आशीष हम पर रहे सर्वदा।

नर्मदा—–

*

तेरे हर  एक कंकर में, शंकर बसे

तृप्त धरती, हरित खेत फसलें हँसे

नीर जल पान से, माँ के वरदान से

कुलकिनारों पे बिखरी, विविध संपदा।

नर्मदा—–

*

स्नान से ध्यान से,भक्ति गुणगान से

उपनिषद, वेद शास्त्रों के, विज्ञान से

कर के तप साधना तेरे तट पे यहाँ

सिद्ध होते रहे हैं, मनीषी सदा।

नर्मदा—–

*

धर्म ये है  हमारा, रखें स्वच्छता

हो प्रदूषण न माँ, दो हमें दक्षता

तेरी पावन छबि को बनाये रखें

ज्योति जन-जन के मन में तू दे माँ जगा।

नर्मदा—–

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 90 ☆ सुनो शहर जी… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “सुनो शहर जी…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 90 ☆ सुनो शहर जी… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सुनो शहर जी

गांव पधारो

नेह निमंत्रण

तो स्वीकारो।

 

यहां हवा

स्वछंद घूमती

धूप धरा का

भाल चूमती

नदी निर्मला

के पानी में

अपने मैले

पांव पखारो।

 

पगडंडी को

सड़कें घूरें

गड्ढों वाले

घाव न पूरें

सफर हादसे

छोड़ जरा तुम

मेंड़ों वाली

गैल निहारो।

 

खेत हमारे

पूजन अर्चन

चौपालों पर

भजन कीर्तन

शाम सुहानी

भोर नित नई

आकर थोड़ा

समय गुजारो।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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