डॉ नीलम खरे
(ई-अभिव्यक्ति में डॉ नीलम खरे जी का हार्दिक स्वागत है। पूर्व सहायक प्राध्यापक। हिन्दी साहित्य की गद्य एवं पद्य विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर। तीन पुस्तकें प्रकाशित। विभिन्न राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक पत्र पत्रिकाओं में चार हजार से अधिक रचनाएँ प्रकाशित। दूरदर्शन/राष्ट्रीय/स्थानीय टी वी चेनल्स/आकाशवाणी से रचनाओं का नियमित प्रकाशन। कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों/अलंकारणों से पुरस्कृत/अलंकृत। कई सामाजिक/सांस्कृतिक/साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित। आज प्रस्तुत है आपकी एक समसामयिक गीत – “सावन”.)
☆ गीत – सावन ☆
बरखा, बादल, बिजली, पानी, पावस के आयाम ।
शीतल-मंद समीर, फुहारें, सब सावन के नाम ।।
कभी रूठ जाते हैं बादल,
कभी झड़ी लग जाती
सावन में तो बरखा रानी,
नित नव ढंग दिखाती
पर्व-तीज, त्यौहार अनेकों, सब ही हैं अभिराम।
शीतल-मंद समीर, फुहारें, सब सावन के नाम ।।
मोर नाचता है कानन में,
भीतर भी इक मोर
मिलन-विरह के मारे सब ही,
भीतर पलता चोर
गरज रहे घन, चपल दामिनी, कौन करे आराम ।
शीतल-मंद समीर, फुहारें, सब सावन के नाम ।।
बचपन के लम्हों में खोई,
राह देखती बाबुल की,
हर नारी को पीहर भाता,
यादें आतीं पल-पल की
रक्षाबंधन पर्व सुहाना, लगता तीरथधाम ।
शीतल-मंद समीर, फुहारें, सब सावन के नाम ।।
© डॉ.नीलम खरे
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