Captain Pravin Raghuvanshi, NM
(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti. An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.
Captain Pravin Raghuvanshi ji is not only proficient in Hindi and English, but also has a strong presence in Urdu and Sanskrit. We present an English Version of Ms. Nirdesh Nidhi’s Classical Poetry बरगद with title “Banyan Tree” . We extend our heartiest thanks to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for this beautiful translation.)
आपसे अनुरोध है कि आप इस रचना को हिंदी और अंग्रेज़ी में आत्मसात करें। इस कविता को अपने प्रबुद्ध मित्र पाठकों को पढ़ने के लिए प्रेरित करें और उनकी प्रतिक्रिया से इस कविता की मूल लेखिका सुश्री निर्देश निधि जी एवं अनुवादक कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी को अवश्य अवगत कराएँ.
सुश्री निर्देश निधि
☆ बरगद ☆
(मेरी यादों में बसा वह बरगद जिसे कट जाना पड़ा नवनिर्माण के लिए, और (दुःखद) परिणामस्वरूप जन्मी यह रचना–)
सुनो लकड़हारे ,
हमारे पोखर वाले खेत के मुहाने पर
ये जो बरगद वाला पेड़ है न
ये सुनाता है किस्से, कहता है कहानियाँ
हमारे दादा परदादाओं की ।
कई बार मेरे सपने में आता है कोई झुकी कमर वाला बूढ़ा
और कहता है
ये बरगद नहीं, वंश वृक्ष है
आदमी जीते हैं और मर जाते हैं
ये जीवित रहता है, पीढ़ी दर पीढ़ी
इसे कभी हमारे बुज़ुर्गों ने सौंपी थी बुज़ुर्गियत
पहनाई थी पगड़ी
खड़ा है इसीलिए, हनुमान सा चिरजीवी
सुनो लकहारे तुम
तुम इसकी जड़ें तो क्या
टहनियाँ भी मत छूना
इनमें रात भर समेटता है निशाचारी चाँदनी की ठंडक
बुरकता है दुपहरी भर थोड़ी – थोड़ी
थके मांदे राहगीरों की तपती झुलसती काया पर, करीने से
सुनो लकड़हारे
तुम उसकी टहनियाँ तो क्या
पत्तियों को भी मत छूना
ये बजकर खरताल सी, सुर साधकर साथ समीरों के
सुनाती है मंद – मंद लोरियां ,गाती हैं दीपक राग
हर नई सुबह करती हैं सिंगार
लेकर उषा से ढेर सारी लालिमा
सुनो लकड़हारे
तुम इसकी पत्तियां तो क्या
इसकी हवाओं को भी मत छूना
जिन्हें ये दिन भर ठहराता है सबकी उखड़ती साँसों में
अंधेरी रात के बिछौने से रात भर बीनता है कालिमा
बुनकर कालीन बिछा देता है दिनभर के लिए
बना छोड़ी है सराय इसने अपनी घनी छाँव तले
बाबुल के घर लौटतीं गाँव की बेटियों के सिर पर
पिता के आशीर्वाद सा, सेवल को खड़ा रहता है
बालकों को पुचकारता, बूढ़ों के सुर में सुर मिलाता
यौवन के सुरमई सपनों का ,
ज्वार भाटों से भरा समंदर ये
पशु और परिंदों का,
चेतन और उनींदों का बाल सखा जो है
साथ खड़ी पोखर के सीने पर चढ़ा रहता है
हंसी ठिठोली का रिश्ता जो जोड़ रखा है
जब देखो तब, आँख बचाकर उसके धुले पुंछे आँचल पर
अपनी बेकार हुई पत्तियां ठेल देता है
सुनो लकड़हारे,
तुम लकड़हारा बनकर इसे कभी मत देखना
मासूम परिंदों के साथ ही इसने पाल रखे हैं आदम खोर भी
विमर्श करता रहता है रात भर उनसे
खड़ा रहता है चौकन्ना चौकीदार सा
वो जो हमारे पोखर वाले खेत के मुहाने पर
बरगद वाला पेड़ है न ……
© निर्देश निधि
संपर्क – निर्देश निधि , द्वारा – डॉ प्रमोद निधि , विद्या भवन , कचहरी रोड , बुलंदशहर , (उप्र) पिन – 203001
ईमेल – [email protected]
☆ Banyan Tree☆
O’, Woodcutter!
At the mouth of our farm land,
Next to the puddle pond
There is this banyan tree,
That tells stories,
Narrates fables of
Our grandfathers, great grandfathers…
Many a times, there comes
this old man in my dreams,
with a humpback…
Who proclaims
This is not just a banyan tree,
It’s a family tree
People live and die
As it lives on, generation after generation…
Long back, it was crowned with
the title of *’Ageless’* by our ancestors
Since then, it wore the ‘turban of elders’…
And, as Lord Hanuman*
it has been standing rock-solid ever since,
Steadfast forever…!
Listen you, Woodcutter!
Don’t you dare touching its twigs
Leave apart even cutting its roots…
Throughout the night,
It gathers the coolness of the nocturnal moonlight…
As it sprinkles fragrant and
soothing freshness on
the scorching bodies
of the tired travelers…
Listen, O’ Woodcutter!
What to talk of twigs,
You don’t even touch the leaves…
It plays the zither,
with a melodious sound
Singing celestial lullabies in Deepak Raga* tune
Adorning itself with the redness
of the dawn every morning…
Listen, O’ Woodcutter!
Leave apart even chopping the leaves
Don’t you dare
touching its winds
Which it puffs in everyone’s breath,
throughout the day…
Picks up the ‘Kalima’ –the darkness– of the night,
Weaves a soothing layer of carpet below, for the day…
Has made a perennial
inn under its dense shade
Envelops as the blessings of father
On the heads of the daughters of the village,
returning to their parental house…!
It fondles with the children,
Harmonises tone with
the aged ones and shows the
beautiful dreams to the youth,
A swollen sea full of tides
of animals and birds,
Inseparable childhood friend
of animate and inanimate objects,
while standing by the side of puddle,
firmly as ever..
Maintaining the relationship of joy and laughters…!
Whenever it feels like,
It quietly, dumps the wasted leaves,
On the spick and span ground below…
Listen, O’ Woodcutter!
Don’t you ever look at it as a wood-chopper…
Along with innocent birds,
it has also raised man-eaters,
as it keeps discussing
with them all night through
Standing watchful like a sentinel,
At the mouth of our puddle-farm,
That very Banyan tree …!
© Captain (IN) Pravin Raghuanshi, NM (Retd),
Pune