श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
(आज आपके “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद साहित्य “ में प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण , समसामयिक एवं ओजस्वी रचना – वो वीर तिरंगे का वारिस था। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – वो वीर तिरंगे का वारिस था ☆
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जलाया होगा खुद का जिस्म बारूद गोलों से,
और फिर अनेकों गोलीयां सीनें पर खाई होगी।
दुश्मन के खून से खेली होगी सीमा पर होली,
इस तरह वतन परस्ती की रस्म निभाई होगी।।1।।
हिम्मत से मारा होगा दुश्मन को सरहद पे,
इस तरह मां की आबरू उसने बचाई होगी।
पहना होगा तिरंगे का कफन हमारी खातिर,
इस तरह अपनी पूंजी वतन पे लुटाई होगी।।2।।
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घर बार वतन वो छोड़ चला,चमन चहकता छोड़ चला ।
दुश्मन की कमर तोड़ने वह,अंधी मां को घर छोड़ चला।
गलियों में गांव के पला बढ़ा, सबका राज दुलारा था।
अंधी की कोख से पैदा था, उसके जीवन का सहारा था।।1।।
आंखों से देख सकी न उसे, खुशबू से पहचानती थी।
पदचापों की आहट से, वह अपने लाल को जानती थी।
जब लाल सामने होता तो, उसको छू कर दुलराती थी।
मुख माथा चूम चूम उसका, उसको गले लगाती थी।।2।।
वह पढ़ा लिखा जवान हुआ, सेना का दामन थाम लिया था ।
उस दिन टटोल वर्दी हाथों से, मां ने उसको सहलाया था।
अब वतन लाज तेरे हाथों, वर्दी का मतलब बतलाया था।
उसको गले लगा करके,अपनी ममता से नहलाया था।।3।।
वतन पे मरने का मकसद ले, सरहद की तरफ बढ़ा था वह।
अपने ही वतन के गद्दारों की, नजरों में आज चढ़ा था वह।
जम्मू कश्मीर जल रहा था, थे नौजवान बहके बहके।
आगे दुश्मन की गोली थी, पीछे हाथों में पत्थर थे।।4।।
वह अभिमन्यु बन चक्रव्यूह में,खड़ा खड़ा बस सोच रहा।
समझाउं उसको या मारूं, ना समझ पड़ा बस देख रहा।
क्या करें वो कैसे समझाये, कानून के हाथों बंधा हुआ।
सीने में गोली सिर पे पत्थर,खाता फिर भी तना हुआ ।।5।।
पीछे अपनों के पत्थर है, आगे दुश्मन की गोली है।
मेरे शौर्य उठती उंगली है कुछ लोगों की कड़वी बोली है।
इस तरह खड़ा कुछ सोच रहा, उसको बस समझ नहीं आया।
अपनों से बच गैरों से निपट यह सूत्र काम उसके आया।।6।।
अपनों की मार सही उसने,उफ़ ना किया ना हाथ उठा,
अंतहीन लक्ष्य साथ ले सरहद पे चला वह क़दम बढ़ा।
अपनी तोपों के गोलों से दुश्मन का हौसला तोड़ दिया। ।
पीछे को दुश्मन भाग चलाउनके रुख को वह मोड़ दिया ।।7।।
धोखे से बारूद पे पांव पड़े तब उसमें विस्फोट हुआ।
मरते मरते जय हिन्द बोला सरहद पे उसकी जली चिता।
सरहद पे जिसकी चिता जली वो असली हिंदुस्तानी था।
जो जाति धर्म से ऊपर उठकर मातृभूमि बलिदानी था ।।8।।
कर्मों से इतिहास लिखा इक अंधी मां का बेटा है।
उसने भी अपने सीने में इक हिंदुस्तान समेटा है।
अपनों के नफरत से वह घायल था बेहाल था।
वो वीर तिरंगे का वारिस था भारत मां का लाल था ।।9 ।।
© सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”
संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208
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