हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 3 – नफरत का बीज कहाँ पैदा होता है? ☆ – श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी  अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता  नफरत का बीज कहाँ पैदा होता है?

 

Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>>  मृग  तृष्णा  

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 3 – नफरत का बीज कहाँ पैदा होता है?  ☆

 

उड़ना चाहता हूँ आसमान की ओर,

देखना चाहता हूँ नफरत का बीज कहाँ पैदा होता है ||

उड़ना चाहता हूँ परिंदो की तरह,

देखना चाहता हूँ दुनिया में पाप कहाँ पैदा होता है ||

 

रहना चाहता हूँ दोस्तों में घुल मिलकर,

देखना चाहता हूँ अब सुदामा सा दोस्त कहाँ होता है ||

रहना चाहता हूँ रिश्तों की हवेली में,

देखना चाहता हूँ रिश्तों का धागा कैसे मजबूत होता है ||

 

जीना चाहता हूँ मैं सब के लिए,

देखना चाहता हूँ मेरे लिए दुनिया में कौन जीना चाहता है ||

माफ़ी चाहता हूँ सबसे अपनी हर गलती के लिए,

देखना चाहता हूँ खुद की गलतियां मान कौन मुझे गले लगाता है ||

 

© प्रह्लाद नारायण माथुर 

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 32 ☆ हमको दर्द छिपाने होंगे ☆ श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी  एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू,  हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण कविता हमको दर्द छिपाने होंगे। 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 32 ☆

☆ हमको दर्द छिपाने होंगे ☆

 

अपने दूर ठिकाने होंगे

हमको दर्द छिपाने होंगे.

 

हमें पता तुम नहीं मिलोगे

तुम पर कई बहाने होंगे.

 

इस जग की तो रीति पुरानी

हमको मन समझाने होंगे.

 

बसे तुम्हीं तन-मन में मेरे

सब इससे अनजाने होंगे.

 

टीस उठी है मन में कोई

रिसते घाव पुराने होंगे.

 

© श्रीमती कृष्णा राजपूत  ‘भूमि ‘

अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ डॉ सुमित्र के दोहे ☆डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। अपनी  कालजयी रचना याद के संदर्भ में दोहे  को ई- अभिव्यक्ति  के पाठकों के साथ साझा करने के लिए आपका  हृदय से आभार।)

 ✍  डॉ सुमित्र के दोहे ✍

 

फूल अधर पर खिल गये, लिया तुम्हारा नाम।

मन मीरा -सा हो गया, आंख हुई घनश्याम ।।

 

शब्दों के संबंध का, ज्ञात किसे इतिहास ।

तृष्णा कैसे  मृग बनी, कैसे  दृग आकाश।।

 

गिरकर उनकी नजर से, हमको आया चेत।

डूब गए मझदार में ,अपनी नाव समेत।।

 

ह्रदय विकल है तो रहे, इसमें किसका दोष।

भिखमंगो के वास्ते, क्या राजा क्या कोष ।।

 

देखा है जब जब तुम्हें, दिखा नया ही रूप ।

कभी धधकती चांदनी, कभी महकती धूप ।।

 

पैर रखा है द्वार पर, पल्ला थामे पीठ ।

कोलाहल का कोर्स है, मन का विद्यापीठ ।।

 

मानव मन यदि खुद सके, मिले बहुत अवशेष।

दरस परस छवि भंगिमा, रहती सदा अशेष।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

9300121702

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दस दोहे ☆ डॉ मनोहर अभय

डॉ मनोहर अभय

(ई- अभिव्यक्ति पर बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी ख्यातिलब्ध शब्द-साधक डॉ मनोहर अभय जी का हार्दिक स्वागत है।  आपका स्नेहाशीष ई-अभिव्यक्ति पर पाकर हम गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं ।

साहित्यिक यात्रा : जन्म 3 अक्टूबर 1937 को तत्कालीन अलीगढ़ जिले के नगला जायस नामक गाँव में हुआ। आपने वाणिज्य में पीएचडी के अतिरिक्त एलटी, साहित्यरत्न और आचार्य की उपाधि अर्जित की। ग्यारह वर्ष के अध्यापन के बाद हरियाणा के राज्यपाल के लोक संपर्क अधिकारी का कार्यभार सम्हाला। तत्पश्चात इक्कतीस वर्ष तक अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवी संस्था आईपीपीएफ लन्दन के भारतीय प्रभाग (एफपीए इंडिया) में विभिन्न वरिष्ठ पदों पर कार्य करते हुए संस्था के सर्वोच्च पद (महासचिव) से 2004 में अवकाश ग्रहण किया। राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सभा-सम्मेलनों, कार्यशालाओं, परिसंवादों में प्रतिनिधि वक्ता के रूप में आपने चीन, जापान, कम्बोडिया, इजिप्ट, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल, थाईलैंड तथा भारत के प्रायः सभी महानगरों, ग्रामीण क्षेत्रों, आदिवासी अंचलों का सर्वेक्षण-अध्ययन-प्रशिक्षण-मूल्यांकन हेतु परिभ्रमण किया। डॉ.अभय की प्रथम कहानी 1953 में प्रकाशित हुई। वर्ष 1956 में हिंदी प्रचार सभा, सादर, मथुरा की स्थापना की।

आपने हस्तलिखित पत्रिका ‘नव किरण’ से लेकर संस्था के मुखपत्र हिमप्रस् के अतिरिक्त ग्राम्या, माध्यम, पेन जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं के साथ बीस पुस्तकों का सम्पादन-प्रकाशन किया।  ‘एक चेहरा पच्चीस दरारें’, ‘दहशत के बीच’ (कविता संग्रह), ‘सौ बातों की बात’ (दोहा संग्रह), ‘आदमी उत्पाद की पैकिंग हुआ’ (समकालीन गीत संग्रह) के अतिरिक्त श्रीमद्भगवद्गीता की हिन्दी-अंग्रेजी में अर्थ सहित व्याख्या, रामचरित मानस के सुन्दर कांड पर शोध-प्रबंध (करि आये प्रभु काज), ‘अपनों में अपने’ (आत्म कथा) आपकी विशष्ट कृतियाँ में हैं। साहित्यिक सेवाओं के लिए महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी ने 2014 में डॉ. अभय को संत नामदेव पुरस्कार से सम्मानित किया। इसके अतिरिक्त राष्ट्र भाषा गौरव, काव्याध्यात्म शिरोमणि, सत्कार मूर्ती आदि अनेक अलंकारों से अलंकृत डॉ. अभय नवी मुम्बई से प्रकाशित ‘अग्रिमान’ नामक साहित्यिक पत्रिका के प्रधान संपादक हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके “दस  दोहे”।)

☆ कविता  – दस दोहे ☆

चलो धूप तो तेज है राह उगलती ज्वाल

कहीं मेघ की छतरियाँ लेंगी हमें सम्हाल

 

परदे बदले रोशनी नाट्यमंच आकार ,

बदलेंगे संवाद औ ‘कथा कथ्य किरदार .

 

खाने को भोजन दिया रहने को आवास

साईँ आकर देखलो कितना किसके पास

 

कबिरा बैठा देखता जोड़- तोड़ की होड़ ,

किसे सुहाएँ साखियाँ ढाई आखर जोड़

 

इंजन  पलटा  रेल  का  ब्रेक हुए  बेकार

जाँच  हुई  पकडे  गए  क्लीनर  सेवादार

 

संत गुफाओं में छुपे  हंस  गए सुरधाम

बाकी  तो  मयुरा   बचे  मिट्ठू  तोताराम

 

लजवन्ती नदियाँ हुईं निर्वसना सी आज

हँसी उड़ाने में लगी धूप खडी निर्लाज

 

कुछ बौछारें दे गईं पावस का आभास

रहे नगाड़े पीटते मेघ चढ़े आकाश

 

हम भीगे भीगी धरा भीगे नदी कछार

छुपे पखेरू धूप के भीगे पंख सँवार

 

मेघ घिरे बूँदें झरीं नदिया उठी तरंग

जलतरंग सी बज रही हर तरंग के संग

 

© डॉ मनोहर अभय

संपर्क : आर.एच-111, गोल्डमाइन, 138-145, सेक्टर – 21, नेरुल, नवी मुम्बई- 400706, महाराष्ट्र,

चलभाष: +91 9167148096

ईमेल: [email protected][email protected]

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ चुप्पियाँ-13 ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ चुप्पियाँ-13 ☆

 

चुपचाप उतरता रहा

दुनिया का चुप

मेरे भीतर..,

मेरी कलम चुपचाप

चुप्पी लिखती रही।

# सजग रहें, स्वस्थ रहें।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(प्रातः 9:26 बजे, 2.9.18)

( कवितासंग्रह *चुप्पियाँ* से।)

 ☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 40 ☆ वो चीखें ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “ वो चीखें  ”।  यह कविता आपकी पुस्तक एक शमां हरदम जलती है  से उद्धृत है। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 40 ☆

☆ वो चीखें  ☆

सुनो,

औरतों की यह गूँजती चीखें

मुझसे बर्दाश्त नहीं होतीं-

भेद जाती हैं मेरे कानों को,

टुकड़े कर देती हैं मेरे ज़हन के

और मुझे हिला जाती हैं!

 

मेरे देश में

जहां देवियाँ पूजी जाती हैं,

वहीँ आजन्म कन्याओं को

कोख में ही मार दिया जाता है;

जब दम तोड़ते हुए

वो लडकियां चीखती हैं ना-

मेरे दिल का एक कोना

सुन्न हो जाता है!

 

आज भी मेरे देश में

दहेज़ के नाम पर

एक बेचारा पिता

सब कुछ गिरवी रख देता है,

अपना घर, अपना खेत, अपनी इज्ज़त;

पर फिर भी जलाई जाती हैं

उनकी बेटियाँ…

जब कोई बेटी इस तरह

अपने प्राण त्यागते वक़्त चीखती है ना-

तड़प उठता है मेरा मन!

 

अभी कुछ दिन पहले

बड़ा हल्ला मचा था

जब दामिनी का बलात्कार कर

उसे निर्दयता से मार दिया गया था-

कहाँ बंद हुई है अभी भी

वो निष्ठुरता?

अब भी लडकियां और औरतें

हैवानियत का शिकार बनती ही रहती हैं

और जब वो चीखती हैं न-

एक खामोशी मेरे ज़हन को घेर लेती है!

 

सुनो,

इन औरतों से कह दो ना

वो चुप रहा करें-

न बोला करें कुछ भी,

सब कुछ सह लिया करें

और चीखा तो बिलकुल न करें…

मेरा दम घुटता है!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गिरा जो कल वो ख़ून था…. ☆ श्री मनीष खरे “शायर अवधी”

श्री मनीष खरे “शायर अवधी”

(श्री मनीष खरे “शायर अवधी”जी का परिचय उनके ही शब्दों में – “मैंने 300 से अधिक शायरी, गजल, कविताएं लिखीं किन्तु, कभी इस तरह से प्रकाशित करने की कोशिश नहीं की। इस लॉकडाउन में मैंने महसूस किया कि मुझे अपनी इस सोच नुमा चौकोर कमरे से बाहर आना चाहिए और अपनी “अभिव्यक्ति” को अपनी डायरी से बाहर डिजिटल मीडिया में ले जाना चाहिए। मैं ऑटोमोबाइल क्षेत्र के एक प्रसिद्ध संस्थान में मानव संसाधन टीम का सदस्य हूँ। अपने समग्र कैरियर के दौरान  मैं ऐसे कई लोगों से मिला हूँ, जिन्होंने मेरे मस्तिष्क में विभिन्न  संवेदनाओं को जगाने का प्रयास किया है और उनके साथ उनकी भावनाओं को जिया है। मेरी सभी रचनाएँ उन सभी को समर्पित हैं जिन्होंने अब तक मेरे जीवन के विभिन्न पहलुओं को स्पर्श किया है।”  आज प्रस्तुत है आपकी द्वितीय विश्वयुद्ध में भाग लेने वाले परिवारों की संवेदनाओं की पृष्ठभूमि पर आधारित एक  भावप्रवण रचना  गिरा जो कल वो ख़ून था….।)

☆ कविता  – गिरा जो कल वो ख़ून था….

 

गिरा जो कल वो ख़ून था

मरा जो था वो जुनून था

कुछ ठहाके लग गए बस

पर मिला नहीं जो वो सुकून था

 

रात थी जो ढल गयी पर आंधियाँ थमी नहीं

सूखे थे सैलाब आँसुओं के पर गयी नमी नही

आह थी सुलग रही और बाजू थे उलझ रहे

जो था वो झुलस रहा वो शहर बस रंगून था

 

गिरा जो कल वो ख़ून था….

मरा जो था वो जुनून था….

 

कट गये हज़ारों ख़्वाहिशों की शान पे

लुट गयीं थीं मांगें बस बेसुरी सी तान पे

याद जो रह गयी और बात सब ये कह गयी

जो टूटे थे वो रिश्ते थे वो वक़्त का क़ानून था

अंगार थे बरक़रार थे और बस्तियां उजड़ रही

जो था वो झुलस रहा वो शहर बस रंगून था

 

गिरा जो कल वो खून था…

मरा जो था वो जुनून था….

 

© श्री मनीष खरे “शायर अवधी”

पुणे, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 50 – कविता – जन्म जन्म की प्रीत निभाने…….☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी  एक अप्रतिम कविता  “जन्म जन्म की प्रीत निभाने……..।  भारत में वैवाहिक बंधन की रस्में अविस्मरणीय तो होती ही हैं साथ ही एक एक पल  भी अविस्मरणीय होता है जिसके एक अंश को श्रीमती सिद्धेश्वरी जी  ने  इस शब्दचित्र के माध्यम से बखूबी लिपिबद्ध किया है।  इस सर्वोत्कृष्ट  रचना के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 49 ☆

☆ कविता  – जन्म जन्म की प्रीत निभाने ……..

 

पांव की सुंदरता देख

लग गई दिल पर हाजिरी

लाल लाल मेहंदी सजी

पहने राजस्थानी मोजरी

 

नूपुर की सुंदरता धामे

झूलन मोतियों की लगी

पांवों की सुंदरता सोच

मुख देखन की आस लगी

 

थम थम  जब चलेगी गोरी

खन खन खनकेगा कंगना

सुर ताल छेड़ती नूपुर भी

जाएगी पिया के अंगना

 

सिर सिंदूरी लाल लगाई

हाथों लाली लाली सजाई

घूंघट की ओर से दिखे

सुर्ख लाल होठों की लाली

 

देख लाल जोडे पर दुल्हन

साजन भी लजाए लाल

जनम जनम साथ निभाने

मांथे  तिलक लगाए लाल

 

प्रकृति की सुंदर रचना

मेंहदी ने दिखाया अपना रंग

जन्म जन्म की प्रीत निभाने

सात फेरे लिए दोनों संग संग

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 5 – सुखी रहें सब … ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है उनका अभिनव गीत  “सुखी रहें सब …”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ #5 – ।। अभिनव गीत ।।

☆ सुखी रहें सब …. ☆

 

मुँह बिचकाती लगी गाँव की

तिरस्कृता पछुआ

यहाँ गुजरते हुये शहर ने

जब जब उसे छुआ

 

सड़क उधर की बेशक

आकर सत्‍वर यहाँ मिली

शीलवती, संयमी दिखी है

ग्राम्या गली गली

 

चौपालों का दर्द अनसुना

कर चौराहे भी

जगमग करते रहे सम्हाले

सब अपना बटुआ

 

स्वीमिंग पूल नहाये तन को

जब छू गई नदी

लगा वर्ष के हिस्से आयी

पूरी एक सदी

 

यहाँ कीमियागर सपनों का

स्वयं खोजने को

मॉलों बाजारों से हटकर

सुन्दर लगा सुआ

 

कुंठा, घुटन, तनाव, प्रदूषण,

कचरा नहीं मिला

गाँव, प्राकृतिक कुशल प्रबंधन

का मजबूत किला

 

औद्योगिको तनिक तो मानवता

की खातिर तुम

”सुखी रहें सब” हाथ उठा कर

ऐसी करो दुआ

 

© राघवेन्द्र तिवारी

21-04-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ ज्योतिर्गमय ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ ज्योतिर्गमय☆

 

अथाह, असीम

अथक अंधेरा,

द्वादशपक्षीय

रात का डेरा,

ध्रुवीय बिंदु

सच को जानते हैं

चाँद को रात का

पहरेदार मानते हैं,

बात को समझा करो

पहरेदार से डरा करो,

पर इस पहरेदार की

टकटकी ही तो

मेरे पास है,

चाँद है सो

सूरज के लौटने

की आस है,

अवधि थोड़ी हो

अवधि अधिक हो,

सूरज की राह देखते

बीत जाती है रात,

अंधेरे के गर्भ में

प्रकाश को पंख फूटते हैं,

तमस के पैरोकार,

सुनो, रात काटना

इसे ही तो कहते हैं..!

( ध्रुवीय बिंदु पर रात और दिन लगभग छह-छह माह के होते हैं।)

# सजग रहें, स्वस्थ रहें।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(रात्रि 3:31 बजे, 6.6.2020)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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