हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सामाजिक चेतना – #47 ☆ मई दिवस विशेष – एक दिन का सम्मान ☆ सुश्री निशा नंदिनी भारतीय

सुश्री निशा नंदिनी भारतीय 

(सुदूर उत्तर -पूर्व  भारत की प्रख्यात  लेखिका/कवियित्री सुश्री निशा नंदिनी जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – सामाजिक चेतना की अगली कड़ी में  प्रस्तुत है मई दिवस पर विशेष कविता एक दिन का सम्मान  ।आप प्रत्येक सोमवार सुश्री  निशा नंदिनी  जी के साहित्य से रूबरू हो सकते हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सामाजिक चेतना  #47 ☆

☆  मई दिवस विशेष – एक दिन का सम्मान  ☆

 

किसी ने कहा

आज तो एक मई है

मजदूर काम पर नहीं आएगें।

क्यों के उत्तर में

कहा उन्होंने –

आज छुट्टी है उनकी

दिया जाता है सम्मान उनको

यह बात मन को

कांटे की तरह चुभ गई।

समर्पित कर देते हैं जो

सम्पूर्ण जीवन हमारे लिए

जिनके बिना हम एक कदम भी

बढ़ नहीं सकते हैं आगे

प्रत्येक कार्य की उन्नति में

होता है भरपूर सहयोग जिनका

दिनचर्या में घर और कार्यालय की

हमारे साथ खड़े रहते हैं जो

कारखानें जिनके बिना

मात्र मशीनी घर हैं

रोजी-रोटी चलती है जिनसे

क्या ?

अधिकारी हैं वे केवल

एक दिन के सम्मान के

क्यों नहीं दे सकते उनको

हर एक दिन सम्मान

होते हैं भूखे वे सिर्फ प्रेम के

प्रसन्न हो जाते हैं ढाई अक्षर से

मानव हैं वे भी

दिल भी रखते हैं

टूट जाते हैं दुर्व्यवहार से

आश्रित हैं हम उन पर

ये दम खम भी उन से

मजदूर कह कर

करो न उन्हें छोटा

हमारे सहयोगी सहायक हैं वे

महल हमारे खड़े हैं उनसे

एक मई तो एक बहाना है

ऐसे राष्ट्र भक्तों को तो

हर दिन सम्मान पाना है।

 

© निशा नंदिनी भारतीय 

तिनसुकिया, असम

9435533394

 

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – शपथ ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – शपथ ☆

जब भी

उबारता हूँ उन्हें,

कसकर पकड़ लेते हैं

अंग-अंग  जकड़ लेते हैं,

मिलकर डुबोने लगते हैं मुझे,

सुनो…!

डूब भी गया मैं तो

मुझे यों श्रद्धांजलि देना,

मिलकर, डूबतों को

उबारने की शपथ लेना..!

# सुरक्षित रहना है, घर में रहना है।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 35 ☆ रिश्ते भी अब मूक हैं ….. ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है  श्री संतोष नेमा जी  की एक समसामयिक कविता  “रिश्ते भी अब मूक हैं …..”। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर सकते हैं।) 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 35 ☆

☆ रिश्ते भी अब मूक हैं ..... ☆

 

मिलती सबको है सदा, कर्मों से पहिचान

जाति-धरम बौने लगें, अच्छा गर इंसान

 

जीवन जब तक आपका, कर लो कुछ शुभ काम

जाना सबको है वहाँ, बिन पैसे बिन दाम

 

जिसे करोड़ों चाहते, अंत समय बस बीस

वक्त न रहता कभी सम , कभी बीस उन्नीस

 

जब जो चाहे कीजिये, अवसर गर हो पास

कभी न कहना आप फिर, ऐसा होता काश

 

कोरोना ने खोल दी, सम्बन्धों की पोल

रिश्ते भी अब मूक हैं, रहा न इनका मोल

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मो 9300101799

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – गाथा ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – गाथा ☆

वास्तविकता,

काल्पनिकता,

एक सौ अस्सी अंश

दर्शाती भूमिकाएँ,

तीन सौ साठ अंश पर

परिभ्रमण करती

जीवनचक्र की

असंख्य तूलिकाएँ,

आदि की भोर,

अंत की सांझ,

साझा होकर

अनंत हो रही हैं,

देखो मनुज,

दंतकथाएँ, अब

सत्यकथाओं में

परिवर्तित हो रही हैं..!

 

# सुरक्षित रहना है, घर में रहना है।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

रात्रि 11.49 बजे,  28.4.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 25 ☆ नीति के दोहे ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। अब आप डॉ राकेश ‘चक्र’ जी का साहित्य प्रत्येक गुरुवार को  उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  आपके अतिसुन्दर “नीति के दोहे .)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 25 ☆

☆ नीति के दोहे  ☆

 

लोलुपता करती रही , मानव को कमजोर।

लोलुपता को छोड़कर, जीवन करें सुभोर।।

 

स्वाभाविकता सत्य है, मौलिकता है प्यार।

सरल, सहजता दिव्य है, है पावन उपहार।।

 

चंचलता करती सदा , संयम को निष्प्राण।

मानव वे ही श्रेष्ठ हैं, बांचें वेद पुराण।।

 

मादकता मद में भरे, शक्तिहीन सब बाण।

रावण से भी ना बचे, कहते वेद पुराण।।

 

नैतिकता ही श्रेष्ठ है, रखे मान-सम्मान।

तन-मन रहते हैं सबल, कभी न हो अपमान।।

 

डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001

उ.प्र .  9456201857

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 45 – एकांत के इस शोर में ☆ डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है  नका एक समसामयिक गीत  एकांत के इस शोर में।)

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य  # 45 ☆

☆ एकांत के इस शोर में ☆  

 

एकांत  के  इस  शोर  में

संशय जनित सी भोर में

दिवसाभिनंदन गान है

दिग्भ्रमित सा इंसान है।।

 

है  मनुजता  पर  चोट  ये

किसकी नियत में खोट ये

क्या सोच कर किसने किया

है  संक्रमित  विस्फोट  ये,

खाली समय,भावी समय का

कर  रहा  अनुमान  है।

दिग्भ्रमित सा इंसान है।।

 

एकांत  में  सपने  बुनें

खाली समय में सिर धुनें

या चित्त को  एकाग्र कर

बिखरे  हुए  मोती  चुनें,

नैराश्य है इक ओर,दूजी ओर

शुभ सद्ज्ञान है।

दिग्भ्रमित सा इंसान है।।

 

विस्मय हवाओं में भरा

भयभीत है  सारी धरा

उपचार अनुमानित चले

न, निदान है कोई खरा,

अध्यात्म-संस्कृति बोध के संग

खोज में विज्ञान है।

दिग्भ्रमित सा इंसान है।।

 

विश्वास है इस यक्ष को

मावस  अंधेरे  पक्ष को

मिलकर समूल मिटायेंगे

फिर से जुटेंगे लक्ष्य को,

आत्म संयम,आस्था

इस देश की पहचान है।

दिग्भ्रमित सा इंसान है।।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 989326601

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – संजय ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – संजय ☆

सारी टंकार

सारे कोदंड

डिगा नहीं पा रहे,

जीवन के महाभारत का

दर्शन कर रहा हूँ,

घटनाओं का

वर्णन कर रहा हूँ,

योगेश्वर उवाच

श्रवण कर रहा हूँ,

‘संजय’ होने का

निर्वहन कर रहा हूँ!

 

# घर में रहें, स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

रात्रि 9:14 बजे, 3अक्टूबर 2015

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 23 ☆ कविता –नारी अनुशासन की जानी  ☆ श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि‘

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी  एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू,  हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक अतिसुन्दर और  मौलिक कविता नारी अनुशासन की जानी।  श्रीमती कृष्णा जी ने  इस कविता के माध्यम से नारी शक्ति पर अपने विचार प्रस्तुत किये हैं ।  इस अतिसुन्दर रचना के लिए श्रीमती कृष्णा जी बधाई की पात्र हैं।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 23 ☆

☆ कविता  – नारी अनुशासन की जानी  ☆

 

नारी अनुशासन की जानी

बिगड़ी बात बना के  मानी

 

फँसी भँवर हिम्मत न हारती

नैया पार लगाना  है ठानी

 

अतीत बुरा बातें पुरानी

छोड़ो सभी बातें उबानी

 

आने वाला कल का सवेरा

सुखद सभी हों स्वाभिमानी

 

अज्ञानता  क्षीरण हो जाए

ज्ञान के चक्षु खोले वाणी

 

नदियों का कलरव झरनों ने

हिलमिल सबने खुशी बखानी

 

पाषाणी ह्रदय है हठीला

आँखें करती बेईमानी

 

मौन मनन करता है जब जब

गहरी थाह पढे जब ज्ञानी

 

© श्रीमती कृष्णा राजपूत  ‘भूमि ‘

अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गुनहगार कौन? ☆ – श्री कुमार जितेंद्र

श्री कुमार जितेन्द्र

 

(आज प्रस्तुत है  श्री कुमार जितेंद्र जी   की एक समसामयिक कविता  “गुनहगार कौन? ”। 

☆ गुनहगार कौन? ☆

 

इंसान के कुकर्म से, धरा हो गई वीरान,

हें! प्राणी, बेजुबान पूछ रहे हैं, गुनहगार कौन?

 

मशीनों के छेद से, धरा हो गई हैरान,

हें! प्राणी, बेजुबान पूछ रहे हैं, गुनहगार कौन?

 

दौड़ – भाग छोड़ कर, घर में कैद हो गया इंसान,

हें! प्राणी, बेजुबान पूछ रहे हैं, गुनहगार कौन?

 

परिवार की अपनों से, अब हो रही है पहचान,

हें! प्राणी, बेजुबान पूछ रहे हैं, गुनहगार कौन?

 

कचरे का ढेर लगा के, अंधा हो गया इंसान,

हें! प्राणी, बेजुबान पूछ रहे हैं, गुनहगार कौन?

 

भूखे – प्यासे तड़प रहे हैं, देख रहा है इंसान,

हें! प्राणी, बेजुबान पूछ रहे हैं, गुनहगार कौन?

 

हवाओं में जहर घोल के, छिप गया इंसान,

हें! प्राणी, बेजुबान पूछ रहे हैं, गुनहगार कौन?

 

कपड़े से मुह छुपाकर, घूम रहा इंसान,

हें! प्राणी, बेजुबान पूछ रहे हैं, गुनहगार कौन?

 

©  कुमार जितेन्द्र

साईं निवास – मोकलसर, तहसील – सिवाना, जिला – बाड़मेर (राजस्थान)

मोबाइल न. 9784853785

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ धरती है माँ हमारी ☆ – श्री नरेंद्र राणावत

श्री नरेंद्र राणावत

( आज प्रस्तुत है युवा साहित्यकार श्री नरेंद्र राणावत जी की एक समसामयिक कविता धरती है माँ हमारी.)

☆ धरती है माँ हमारी ☆

 

धरती है माँ हमारी

रखनी है लाज

हम सभी को,

लिया है जन्म

तो कर्ज चुकाने ही होंगे,

क्यू की प्रकृति हमेशा न्याय करती है,

बता दिया इस कोरोना वैश्विक महामारी ने,

कुछ भी नही चलता साथ

केवल हमारी नैसर्गिक प्रकृति ही हमे बचाती है।

 

क्या दिया हमने,क्या बोया हमने?

हिसाब तय है,

आओ हम सब मिलकर

पेड़ पौधे लगाये,

जीव,जन्तु,मनुष्य हम सब पर्यावरण को बचाये,

नही बचा गर इस धरा का

आंचलिक रूप,

तो हम कही का भी नही रह पाएंगे,

त्राहि त्राहि मच जायेगी चारों और

हाहाकर कर बेमौत मर जायेंगे हम सब,

 

इसलिए उठ मनुज

अभी वक़्त है सम्भलने का

समय रहते धरती माँ को बचा ले,

तेरे हर कृत्यों से

मुझ पर

इस तरह का प्रदूषण फैल गया है,

की अब तेरा बोया हुआ ही,

अब वापस लौटा रही हूँ में तुम्हे,

 

© नरेंद्र राणावत  

जिला सचिव रक्तकोष फाउंडेशन जालौर, युवा साहित्यकार व् लेखक

गांव-मूली, तहसील-चितलवाना, जिला-जालौर, राजस्थान

+919784881588

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