हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – भोर भई ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – भोर भई ☆

 

सृजन तुम्हारा नहीं होता। दूसरे का सृजन परोसते हो। किसीका रचा फॉरवर्ड करते हो और फिर अपने लिए ‘लाइक्स’ की प्रतीक्षा करते हो। सुबह, दोपहर, शाम अनवरत प्रतीक्षा ‘लाइक्स’ की।

सुबह, दोपहर, शाम अनवरत, आजीवन तुम्हारे लिए विविध प्रकार का भोजन, कई तरह के व्यंजन बनाती हैं माँ, बहन या पत्नी। सृजन भी उनका, परिश्रम भी उनका। कभी ‘लाइक’ देते हो उन्हें, कहते हो कभी धन्यवाद?

जैसे तुम्हें ‘लाइक’ अच्छा लगता है, उन्हें भी अच्छा लगता है।

….याद रहेगा न?

 

# घर में रहें। सुरक्षित और स्वस्थ रहें। 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(भोर 5.09 बजे, 4.8.2019)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ World on the edge / विश्व किनारे पर # 3 ☆ जरा सा दूर हो जाओ,  कोरोना वायरस से बच जाओ ☆ डॉ निधि जैन

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

डॉ निधि जैन 

ई- अभिव्यक्ति में डॉ निधि जैन जी का हार्दिक स्वागत है। आप भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपने हमारे आग्रह पर हिंदी / अंग्रेजी भाषा में  साप्ताहिक स्तम्भ – World on the edge / विश्व किनारे पर  प्रारम्भ करना स्वीकार किया इसके लिए हार्दिक आभार।  स्तम्भ का शीर्षक संभवतः  World on the edge सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद एवं लेखक लेस्टर आर ब्राउन की पुस्तक से प्रेरित है। आज विश्व कई मायनों में किनारे पर है, जैसे पर्यावरण, मानवता, प्राकृतिक/ मानवीय त्रासदी आदि। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  आपकी एक समसामयिक कविता  “जरा सा दूर हो जाओ,  कोरोना वायरस से बच जाओ”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ World on the edge / विश्व किनारे पर # 3 ☆

☆ जरा सा दूर हो जाओ,  कोरोना वायरस से बच जाओ☆

 

जरा सा दूर हो जाओ,  कोरोना वायरस से बच जाओ,

न किसी के घर जाओ, ना किसी को घर बुलाओ,

कोरोना वायरस से बच  जाओ l

 

न दोस्तों से मिलो, पर दोस्ती निभाओ, दूर रह कर प्यार को  निभाओ,  किसी के घर मत  जाओ,

कोरोना वायरस से बच  जाओ l

 

मौसम की मार हो या बारिश की फुहार , धूप या सूरज का खुमार, जहाँ हो,  जैसे हो, वहाँ, वैसे ही खुशी मनाओ,

कोरोना वायरस से बच  जाओ l

 

कल मिलना आज रूठना, कल रूठना आज मिलना,

तुमसे मिलना ज़रूरी नहीं, तुम्हारा होना ज़रूरी है, फिर से तुम मिल जाओ, कोरोना वायरस से बच  जाओ l

 

रिश्तों पर संवेदनशील हो जाओ, सबकी जान की कीमत अपने जैसे  लगाओ l

कोरोना वायरस से बच  जाओ l

 

भगवान के मंदिर के दरवाजे बंद हो गए, गरीबों  में  भगवान का रूप देख आओ l

कोरोना वायरस से बच जाओ l

 

गुरुद्वारों के लंगर उठ जायें , भूखों का पेट भरने के लिए दान दे आओ l

कोरोना वायरस से बच जाओ l

 

आँखे बेहाल थमीं हुई सी ज़िन्दगी,  कोरोना का कहर चारों ओर,  जानें  बेहाल हैं कहती हैं  बचाओ l

कोरोना वायरस से बच जाओ l

 

आसमान मे पंछी उड़ते, इंसानो की आजादी का सवाल है, जानवरों और प्रकृति के प्रकोप को समझो ओर समझाओ l

कोरोना वायरस से बच जाओ l

 

सबके  रक्त का रंग एक है, मौत का डर भी सबका एक है, भेद भाव  छोड़ कर मानवता को बचाओ l

कोरोना वायरस से बच जाओ l

 

©  डॉ निधि जैन, पुणे

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विशाखा की नज़र से # 29 – दाना – पानी ☆ श्रीमति विशाखा मुलमुले

श्रीमति विशाखा मुलमुले 

(श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  हिंदी साहित्य  की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है  स्त्री जीवन के कटु सत्य को उजागर कराती एक सार्थक रचना ‘दाना – पानी। आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में  पढ़  सकते हैं । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 29 – विशाखा की नज़र से

☆ दाना – पानी ☆

नित रखती हूँ परिंदों के लिए दाना – पानी

वो करते हैं मेरी आवाजाही पर निगरानी

मैं रखती हूँ दाना

 

निकलती हूँ घर से , जुटाने दाना – पानी

दिखतें है कई बाजनुमा शिकारी

वो भी रखतें है मेरी आवाजाही पर निगरानी

मैं बन जाती हूँ दाना और

लोलुप जीभ का पानी

 

© विशाखा मुलमुले  

पुणे, महाराष्ट्र

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 2 ☆ गुमनाम साहित्यकारों की कालजयी रचनाओं का भावानुवाद ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।

स्मरणीय हो कि विगत 9-11 जनवरी  2020 को  आयोजित अंतरराष्ट्रीय  हिंदी सम्मलेन,नई दिल्ली  में  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  को  “भाषा और अनुवाद पर केंद्रित सत्र “की अध्यक्षता  का अवसर भी प्राप्त हुआ। यह सम्मलेन इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई भाषा कार्यक्रम तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय, हिंदी उर्दू भाषा के कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित  किया गया था। इस  सम्बन्ध में आप विस्तार से निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं :

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

 ☆ Anonymous Litterateur of Social  Media # 2/ सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 2☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / यूअर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का अंग्रेजी भावानुवाद  किया है।  इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है और इसके लिए उन्हें साधुवाद। वे इस अनुष्ठान का श्रेय  वे अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना मैडल से सम्मानित कैप्टन प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। वे स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

ज़रा सी कैद से ही

घुटन होने  लगी…

तुम तो पंछी पालने

के  बड़े  शौक़ीन थे…

 

Just a little bit of confinement

Made you feel so suffocated

 But keeping the birds caged

 You were so very fond of…!

§

अधूरी कहानी पर ख़ामोश

लबों का पहरा है

चोट रूह की है इसलिए

दर्द ज़रा गहरा है….

 

 Silent lips are the sentinels

 Of  the  unfulfilled fairytale…

 Wound is of the spirited soul

 So the pain is rather intense….

§

हंसते हुए चेहरों को गमों से

आजाद ना समझो साहिब

मुस्कुराहट की पनाहों में भी

हजारों  दर्द  छुपे होते  हैं…

 

O’ Dear, Don’t even consider that

Laughing faces are free of sorrow

Innumerable  pains are  hidden

Even behind the walls of a smile…

§

चुपचाप चल रहे थे

ज़िन्दगी के सफर में

तुम पर नज़र क्या पड़ी

बस  गुमराह  हो  गए…

 

  Was walking peacefully

  In  the  journey of the life

  Just casting a glance on you

  Made my journey go astray…

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ बस यूं ही ,,,,,,, ☆ डॉ रानू रूही

डॉ रानू रूही

( ई- अभिव्यक्ति में डॉ रानू रूही जी का हार्दिक स्वागत है। वर्तमान में सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत। कविता, गीत, ग़ज़ल, आलेख, कहानी आदि विभिन्न साहित्यिक विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर। देश प्रदेश की विभिन्न प्रतिष्ठित राष्ट्रीय स्तर की   पत्र- पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित । अब तक 4 पुस्तकें प्रकाशित एवं 15 पुस्तकें सम्पादित। अखिल भारतीय स्तर के कवि सम्मेलनों  / मुशायरों में प्रस्तुति। राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों / अलंकरणों  से  पुरस्कृत /अलंकृत।  आज प्रस्तुत है एक भावपूर्ण गीत  बस यूं ही ,,,,,,,. हम भविष्य में आपसे ऐसे ही उत्कृष्ट रचनाओं की अपेक्षा करते हैं।)

☆ गीत – बस यूं ही ,,,,,,, ☆

सुन लो ना सुन लो ना

तुम घर पर ही हो ना

जाने  दो होने दो

जो भी होगा होना

 

सुबह की आहट से

सूरज को चुन लेना

खिड़की से छनती सी

किरणों को बो लेना

 

ना मिलना तड़पाए

दिल जो भर भर आए

चुप चुप से छुप छुप के

खुद ही से कह लेना

 

गुन गुन सी आंगन में

किरणें जो छा जाएं

चेहरे को झटपट से

आंसू से धो लेना

 

भावों की आहो से

दीवारें रंग लेना

दर पर उम्मीदों की

आंखों से सो लेना

 

यादों के सिरहाने

बातें भी रख लेना

रातों के ख्वाबों में

ग़म सारे भर लेना

 

सुन लो ना सुन लो ना

तुम घर पर ही हो ना

जाने दो होने दो

जो भी होगा होना।

 

© डॉ रानू रूही

माढ़ोताल, जबलपुर (म प्र)

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 3 ☆ दोहा सलिला ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी रचना  ” दोहा सलिला”। )

 ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 3 ☆ 

☆  दोहा सलिला ☆ 

(व्यंजनाप्रधान)

केवल माया जाल है, जग जीवन जंजाल

घर तज बाहर घूमिए, मुक्ति मिले तत्काल

 

अगर कुशल से बैर है, नहीं चाहिए क्षेम

कोरोना से गले मिल, बनिए फोटो फ्रेम

 

मरघट में घट बन टँगें, तुरत अगर है चाह

जाएँ आप विदेश झट, स्वजन भरेंगे आह

 

कफ़न दफ़न की आरज़ू, पूरी करे तुरंत

कोविद दीनदयाल है, करता जीवन अंत

 

ओवरटाइम कर चुके, थक सारे यमदूत

मिले नहीं अवकाश है, बाकी काम अकूत

 

बाहर जा घर आइए, सबका जीवन अंत

साथ-साथ हो सकेगा, कहता कोविद कंत

 

यायावर बन घूमिए, भला करेंगे राम

राम-धाम पाएँ तुरत, तजकर यह भूधाम

 

स्वागत है व्ही आइ पी, सबसे पहले भेंट

कोरोना से कीजिए, रीते जीवन टेंट

 

जिनको प्रभु पर भरोसा, वे परखें तत्काल

कोरोना खुशहाल को, कर देगा बदहाल

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२१-३-२०२०

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गीतों ने चर्चित कर डाला ☆ डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया

डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया

( ई- अभिव्यक्ति  बहुमुखी प्रतिभा के धनी एवं साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर  डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया जी का हृदय से आभारी है । आपने चिकित्सा सेवाओं के अतिरिक्त साहित्यिक सेवाओं में विशिष्ट योगदान दिया है। अब तक आपकी नौ काव्य  कृतियां  प्रकाशित हो चुकी हैं एवं तीन  प्रकाशनाधीन हैं। चिकित्सा एवं साहित्य के क्षेत्र में कई विशिष्ट पदों पर सुशोभित तथा  शताधिक पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया जी  से हम अपने प्रबुद्ध पाठकों के लिए उनके साहित्य की अपेक्षा करते हैं। आज प्रस्तुत है उनका एक अतिसुन्दर भावप्रवण गीत गीतों ने चर्चित कर डाला। हम समय समय पर आपकी उत्कृष्ट रचनाओं को आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आपसे विनम्र अनुरोध है कि उन्हें आत्मीयता से आत्मसात करें। )

☆ गीतों ने चर्चित कर डाला ☆

 

मन की अनजनी पीड़ा को,गीतों ने परिचित कर डाला।

छोटी सी जीवन गाथा को,गीतों ने चर्चित कर डाला।।

कभी गीत तुलसी चौपाई,कभी कबीरा गान हुआ है।

कभी गीत रोया मीरा सा, और कभी रसखान हुआ है।

कभी गीत पद हुआ सूर का,कान्हा को अर्पित कर डाला।।

 

कभी गीत सूरज के वंशज,कभी चाँदनी बिखराई है।

कभी गीत मधुमास हो गये, कभी गीत में पुरवाई है।

कभी गीत ने लिखी उदासी,और कभी हर्षित कर डाला।।

 

कभी गीत पावन गंगाजल,कभी गीत गाये मधुशाला।

कभी गीत है सुधा भरा घट कभी गीत है बिष का प्याला।

कभी गीत ने मन के भीतर,सारा जग निर्मित कर डाला।।

 

कभी गीत हो गये पराये, और कभी अपने बन आये।

कभी गीत में चुभन शूल की,कभी सुमन कोमल मन भाये।।

कभी गीत ने मुरझाये मन,को पल में सुरभित कर डाला।।

 

कभी गीत ने प्यास लिखी तो,कभी गीत पावस का बादल।

कभी गीत है चमक मुकुट की,और कभी पैरों की पायल।।

कभी गीत ने खामोशी दी,और कभी मुखरित कर डाला।।

 

मन की अनजानी पीड़ा को ,गीतों ने परिचित कर डाला।

छोटी सी जीवन गाथा को,गीतों ने चर्चित कर डाला।।

 

© डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया

“श्री रघु गंगा” सदन,  जिया माँ पुरम फेस 2,  मेडिकल कालेज रोड सागर (म. प्र.)470002

मोबाईल:  9425635686,  8319605362

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 32 ☆ अब के पतझड़ में ☆ सौ. सुजाता काळे

सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है  सौ. सुजाता काळे जी  द्वारा  प्रकृति के आँचल में लिखी हुई एक अतिसुन्दर भावप्रवण  कविता  “अब के पतझड़ में ”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 32 ☆

☆ अब के पतझड़ में ☆

अब के पतझड़ में

कौन कौन झरेगा?

कौन जाने?

कौन कौन टूटेगा ?

कौन जाने?

 

शाख से या घर से?

डर से या दर्द से !!

दर से दरबदर होगा

या दर्द से बेदर्द होगा?

बेदर्द इलाज लाएगा

या खुद लाइलाज

बन जाएगा।

अब के पतझड़ में

कौन कौन झरेगा?

कौन जाने?

कौन कौन टूटेगा ?

कौन जाने?

 

ज़मीं से मिलेगा?

या ज़मीं ही बन जाएगा!!

दरख्त से बिछड़कर

धूल बन जाएगा,

या गर्द में फूल बनकर

डाली पर छा जाएगा!!

अब के पतझड़ में

कौन कौन झरेगा?

कौन जाने?

कौन कौन टूटेगा ?

कौन जाने?

 

एक राह चलेगा

या बेराह हो जाएगा ?

राह चलते चलते

गुमराह बन जाएगा

या गुमराह बनकर

गुमनाम हो जाएगा।

अब के पतझड़ में

कौन कौन झरेगा?

कौन जाने?

कौन कौन टूटेगा ?

कौन जाने?

 

फूलों सा बिखरेगा

या पत्ते सा झड़ जाएगा

डाली पर मलूल बनेगा

या सुर्ख हो जाएगा ।

मकाम को पाएगा

या खुद ही मकाम

बन जाएगा ।

अब के पतझड़ में

कौन कौन झरेगा?

कौन जाने?

कौन कौन टूटेगा ?

कौन जाने?

 

पतझड़ को जाएगा

तो बसंत में आएगा

या पतझड़ का गया

बारिश में आएगा ।

सावन में मिल पाएगा

या खुद सावन

बन जाएगा ।

अब के पतझड़ में

कौन कौन झरेगा?

कौन जाने?

कौन कौन टूटेगा ?

कौन जाने?

26/2/20

© सुजाता काले

पंचगनी, महाराष्ट्रा, मोबाईल 9975577684

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – त्रिकालदर्शी ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – त्रिकालदर्शी ☆

सुनता है

अपनी कहानी,

जैसे कभी

अतीत को

सुनाई थी

उसकी कहानी,

वर्तमान में जीता है

पर भूत, भविष्य को

पढ़ सकता है,

प्रज्ञाचक्षु खुल जाएँ तो

हर मनुज

त्रिकालदर्शी हो सकता है!

# घर में रहें। सुरक्षित और स्वस्थ रहें। 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

प्रात: 9.31 बजे, 9.4.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 42☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के हृदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)  

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 42 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

धर्म धर्म तो सब कहें, धर्म न समझे कोय

निर्मल मन का आचरण, सत्य धर्म है सोय  ।।

– आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga.  We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.

Email: [email protected]

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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