श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि – जिजीविषा ☆
संकट, कठिनाई,
अनिष्ट, पीड़ादायी,
आपदा, अवसाद,
विपदा, विषाद,
अरिष्ट, यातना,
पीड़ा, यंत्रणा,
टूटन, संताप,
घुटन, प्रलाप,
इन सबमें सामान्य क्या है?
क्या है जो हरेक में समाता है,
उत्कंठा ने प्रश्न किया..,
मुझे इन सबमें चुनौती
और जूझकर परास्त
करने का अवसर दिखता है,
जिजीविषा ने उत्तर दिया..!
घर में रहें। सकारात्मक रहें।
© संजय भारद्वाज, पुणे
दोपहर 3: 24 बजे, सोमवार 9 मार्च 2020
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603