हिन्दी साहित्य – कविता ☆ असंख्य दीप-शिखा प्रज्ज्वलित ☆ ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं। आज प्रस्तुत है कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी  की  व्यक्तिगत मनोभावनाओं की काव्याभिव्यक्ति असंख्य दीप-शिखा प्रज्ज्वलित। )

 ☆ असंख्य दीप-शिखा प्रज्ज्वलित ☆ 

 

दुष्कर मानव जीवन-पथ पर

अनेक समस्याएँ, अकल्पनीय!

समस्त भारत  का  अनवरत

कल्याण-प्रयास,  सराहनीय!!

 

करें असंख्य दीप-शिखा प्रज्ज्वलित,

हों पूरित मनोवांछित आकांक्षाएं !

प्रधानमंत्री जी के समस्त संकल्प

पूर्ति हेतु, अनंत शुभ-कामनाएं!!

 

©  कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 40☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के हृदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)  

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 41 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

धर्म जगे तो सुख जगे, तन-मन पुलकित होय ।

धर्म छुटे तो सुख छुटे, तन-मन विकलित होय ।।

– आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

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Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ World on the edge / विश्व किनारे पर # 2 ☆ महावीर भगवान आज तुम होते, तो कोरोना ना होता ☆ डॉ निधि जैन

भगवान् महावीर जयंती विशेष 

डॉ निधि जैन 

ई- अभिव्यक्ति में डॉ निधि जैन जी का हार्दिक स्वागत है। आप भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपने हमारे आग्रह पर हिंदी / अंग्रेजी भाषा में  साप्ताहिक स्तम्भ – World on the edge / विश्व किनारे पर  प्रारम्भ करना स्वीकार किया इसके लिए हार्दिक आभार।  स्तम्भ का शीर्षक संभवतः  World on the edge सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद एवं लेखक लेस्टर आर ब्राउन की पुस्तक से प्रेरित है। आज विश्व कई मायनों में किनारे पर है, जैसे पर्यावरण, मानवता, प्राकृतिक/ मानवीय त्रासदी आदि। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य के सिद्धांत के प्रणेता भगवान महावीर जी की जयंती पर आपकी  विशेष कविता  “महावीर भगवान आज तुम होते तो कोरोना ना होता”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ World on the edge / विश्व किनारे पर # 2 ☆

☆ महावीर भगवान आज तुम होते तो कोरोना ना होता ☆

(महावीर जयंती पर शाश्वत सुख पाने के लिए सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य के सिद्धांत पर चलकर विश्व में कोरोना जैसी महामारी को हटाएं)

 

महावीर भगवान आज तुम कलयुग में होते तो,

विश्व में कोरोना जैसी महामारी नहीं होती।

 

हिंसा से अहिंसा का मूल सिखाकर मांसाहार छुड़ाते,

तो विश्व में कोरोना जैसी महामारी नहीं होती।

 

स्वच्छता और सत्य का मानव को पाठ  पढ़ा जाते,

तो विश्व में कोरोना जैसी महामारी नहीं होती।

 

अपरिग्रह (संतुष्टि) की राह दिखाते, दान धर्म को सब अपनाते,

तो विश्व में कोरोना जैसी महामारी नहीं होती।

 

जिन (आत्मा) सब में एक है, तो जात पात का भेद मिटा देते,

तो विश्व में कोरोना जैसी महामारी नहीं होती।

 

तेरा मेरा छोड़ सब का खून का रंग एक है, सब की पीड़ा एक है, विश्व को सिखा जाते,

तो विश्व में कोरोना जैसी महामारी नहीं होती।

 

मन को जीता महावीर ने, विश्व को जीता बिन लड़ाई के, हम भी जीत जाते,

तो विश्व में कोरोना जैसी महामारी नहीं होती ।

 

आओ हम सब महावीर भगवान की राह पर चले जाएं,

मानवता को मानव बन कर जी जाएं,

और इस कलयुग में कोरोना जैसी महामारी को हमेशा के लिए मिटाएं ।

 

©  डॉ निधि जैन, पुणे

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – जलाएँ एक दीप  ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – जलाएँ एक दीप  ☆

संजय दृष्टि के अंतर्गत आज की रचना प्रस्तुत करने के पूर्व हम आप सबका आभार प्रकट करना चाहेंगे। इस सन्दर्भ में श्री संजय भरद्वाज जी की  दीप प्रज्वलित करने हेतु आह्वान स्वरूप कविता को कृपया पुनः पढ़ें एवं उसमे निहित भावार्थ को आत्मसात करने का प्रयास करें।

जलाएँ एक दीप

उस दरवाजे, अंधविश्वास

जिसका प्रहरी हो,

एक दीप उस गली के आगे

भूख जहाँ आकर ठहरी हो,

एक दीप उस चबूतरे पर

भारतीयता का जिस पर बसेरा हो,

एक दीप उस कँगूरे पर

फहराता जहाँ तिरंगा मेरा हो,

एक दीप शहीदों की समाधि पर,

एक भीतर भीतर घुमड़ती

परिवर्तन की आँधी पर,

एक दीप आपदा के विरुद्ध जलाएँ,

एकता की शक्ति से

नभ-थल आलोकित हो जाएँ।

(कल  5 अप्रैल 2020 रात 9 बजे, 9 मिनट तक आपने अपने दरवाजे/बालकनी में दीप / मोमबत्ती जलाकर या मोबाइल की फ्लैश लाइट/ टॉर्च ऑन करके भारत की सामूहिकता का परिचय दिया ।इस जज्बे के लिए आप सबको सलाम। )

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 41 ☆ .. गिलहरी ….. ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनकी  एक सोचती समझती गिलहरी द्वारा सन्देश देती एक कविता   “.. गिलहरी …..  । आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की  रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे ।) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 41

☆ .. गिलहरी …..  ☆ 

एक गिलहरी

आंगन में

आती-जाती,

उछलकर फिर

भाग जाती।

कुछ कहती

कुछ सुनती,

खूब जानती ।

 

क्यों है खामोशी,

सेल्फी लेना चाहते

तो उचकती भागती,

दाना पानी देखकर

वो समझ जाती।

 

डरे हुए आदमी पर

दूर खड़ी हंसती,

उछल कूदकर

कुछ सिखा जाती।

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 40☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के हृदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)  

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 40 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

दूर रहे दुर्भावना, द्वेष होंय सब दूर ।

निर्मल-निर्मल चित्त में, प्यार भरे भरपूर ।।

 आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

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Email: [email protected]

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विशाखा की नज़र से # 29 – बावरां मन  ☆ श्रीमति विशाखा मुलमुले

श्रीमति विशाखा मुलमुले 

(श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  हिंदी साहित्य  की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है  एक अतिसुन्दर भावप्रवण रचना  ‘बावरां मन ।  आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में  पढ़  सकते हैं । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 29 – विशाखा की नज़र से

☆ बावरां मन  ☆

खिड़की से मेरे दिखती है

मुख्य सड़क

दिखते हैं आते – जाते लोग

दिख जाता है डाकिया

 

उसके दिखते ही

जाग जाता मेरा कौतूहल

देखती हूँ दूर से उसके झोले को

उसके हाथों संग संगत बिठाती

खोज में जुट जाती मेरी नजर

कुछ रंग – बिरंगे ख्वाब

 

जादूगर जिस तरह यकबयक

निकालता  रुमाल  से कबूतर

या सड़क किनारे अनेक चिट्ठियों में से

भविष्यवाणी की एक चिट्ठी चुनता सुग्गा

 

ठीक उसी तरह डाकिया भी

टटोलता  तमाम खतों में से

ख़ास पतों की डाक

कुछ एक मिनट का चलता यह खेल

तब तक कयास का मेरे होता है चरम

 

मेरा ही कौतूहल

मेरे ही प्रश्न

अंत में होती मैं ही

निराश

 

क्योंकि ,

सुस्त है चिट्ठीरसां और

मसरूफ मुझे लिखने वाला भी

करता है मीठी – मीठी बातें

बस भेजता नहीं खतों – खतूत

 

© विशाखा मुलमुले  

पुणे, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 2 ☆ पढ़ें न भेजें सँदेशे, निराधार नादान ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक समसामयिक, मानवीय एवं राष्ट्रीय हितार्थ रचित आपकी  संदेशात्मक रचना  ” पढ़ें न भेजें सँदेशे, निराधार नादान”। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 2 ☆ 

☆ पढ़ें न भेजें सँदेशे, निराधार नादान ☆ 

 

कर्ता करता है सही, मानव जाने सत्य

कोरोना का काय को रोना कर निज कृत्य

कोरो ना मोशाय जी, गुपचुप अपना काम

जो डरता मरता वही, काम छोड़ नाकाम

भीत न किंचित् हों रहें, घर के अंदर शांत

मदद करें सरकार की, तनिक नहीं हों भ्रांत

बिना जरूरत क्रय करें, नहीं अधिक सामान

पढ़ें न भेजें सँदेशे, निराधार नादान

सोमवार को किया था, हम सबने उपवास

शास्त्री जी को मिली थी, उससे ताकत खास

जनता कर्फ्यू लग गया, शत प्रतिशत इस बार

कोरोना को पराजित, कर देगा यह वार

नमन चिकित्सा जगत को, करें झुकाकर शीश

जान हथेली पर लिए, बचा रहे बन ईश

देश पूरा साथ मिलकर, लड़ रहा है जंग

साथ मोदी के खड़ा है, देश जय बजरंग

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२१-३-२०२०

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ (श्री सुजित कदम की कविता – “तिला खात्री आहे…!” का हिंदी भावानुवाद ) उसे विश्वास है ….! ☆ हेमन्त बावनकर

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

हेमन्त बावनकर

(आज मानवता अत्यंत कठिन दौर से गुजर रही है।  कई दिनों से  कोरोना की महामारी से सम्बंधित साहित्य पढ़ रहा हूँ एवं मात्र सकारात्मक एवं प्रेरक साहित्य सम्पादित कर आप तक पहुँचाने का प्रयास कर रहा हूँ। वैसे मैं मराठी  भाषी हूँ किन्तु मराठी भाषा में कदापि दक्ष नहीं हूँ।

श्री सुजित कदम जी की कविता तिला खात्री आहे…!  का हिंदी भावानुवाद करने से स्वयं को नहीं रोक पाया ।  इस त्वरित भावानुवाद में कोई त्रुटि रह गई हो तो क्षमा चाहूंगा। कृपया कोरोना रोगियों की सेवा में सेवारत कर्मियों के अंतर्द्वंद्व को समझने  एवं आत्मसात करने का प्रयत्न करें । वे भी हमारी तरह मानवीय संवेदनाएं रखते हैं । श्री सुजित कदम जी की लेखनी को सादर नमन। )

श्री सुजित कदम जी की मराठी कविता – तिला खात्री आहे…! का हिंदी भावानुवाद

☆  उसे विश्वास है ….! ☆

आज चार और

कोरोना ग्रस्त रोगियों को

अस्पताल में

भर्ती करते समय ही

पत्नी का फोन आया ..

पिछले पंद्रह दिनों से

वह यही प्रश्न पूछ रही है

आज तो आप

घर आओगे न …?

यह सुनकर,

पलकों में भर आये

आँखों से आंसू

चेहरे पर लगे मास्क के भीतर

कब आ गए

पता ही नहीं चला।

 

एक क्षण को लगा

आज ही छोड़ दूँ

देखना गुजरना

इस कोरोना की महामारी से।

 

मैं पुनः घर आ रहा हूं या नहीं

मैं नहीं जानता  ….

 

पिछले पंद्रह दिनों की तरह,

मैं बिना कुछ कहे

फोन रख देता हूँ …

किन्तु,

उसका प्रत्येक दिन

फोन करके यह पूछना

रुकता ही नहीं

कदाचित  …

उसे विश्वास है

मैं पुनः घर अवश्य आऊंगा!

 

© हेमन्त बावनकर, पुणे 

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कुछ मसीहा लड़ रहे हैं, कोरोना से  रात दिन ☆ श्री अ कीर्तिवर्धन

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

श्री अ कीर्तिवर्धन

( आज प्रस्तुत है  श्री अ कीर्तिवर्धन जी की एक समसामयिक कविता कुछ मसीहा लड़ रहे हैं,  कोरोना से रात दिन ।)

 

☆ कुछ मसीहा लड़ रहे हैं, कोरोना से  रात दिन ☆

 

हर तरफ

सन्नाटा पसरा हुआ

भय का माहौल है

चिन्तित

हर आदमी

मौत की आहट से

व्याकुल

तन्हा जीवन हो रहा|

क्या करें

कैसे करें

किससे कहें

मन की पीडा

बाँटे जिससे

ऐसा कोई

दिखता नहीं|

कठिन दौर

मानवता पर आया

दानवता ने

परचम फहराया|

दानवता के दौर मे भी

निज परिवारों को भुलाकर

कुछ मसीहा

लड रहे हैं

कोरोना

मिटाने की खातिर

रात दिन

काम कर रहे है|

 

©  श्री अ कीर्तिवर्धन

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