हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मजदूरों का महापलायन ☆ श्री कुमार जितेन्द्र

श्री कुमार जितेन्द्र

 

(युवा साहित्यकार श्री कुमार जितेंद्र जी  कवि, लेखक, विश्लेषक एवं वरिष्ठ अध्यापक (गणित) हैं। आज प्रस्तुत है उनकी एक समसामयिक कविता चिंतन करे पर चिंता मजदूर का महापलायन ।  मजदूरों का महापलायन एक विडम्बना है। किन्तु , वैज्ञानिक दृष्टि से पलायन से अधिक वे जहाँ हैं, उन्हें वहीँ सुरक्षित ठहराने की व्यवस्था अत्यंत महत्वपूर्ण है। )

☆ मजदूर का महापलायन ☆

 

कोरोना के कहर से, टूट गया है मजदूर!

महामारी के महापलायन से, मजबूर है मजदूर!!

 

मच गई है अफरातफरी, सड़कों पर भरपुर!

घर पहुचने की दौड़ में, मजबूर है मजदूर!!

 

सड़क पर लंबी कतारें, चल रहे हैं मजदूर!

बच्चे मां को पूछ रहे हैं, जाना कितना दूर !!

 

कोरोना के कहर से, टूट गया है मजदूर!

महामारी के महापलायन से, मजबूर है मजदूर!!

 

क्या होती है प्यास, पूछिए इन बच्चों से!

क्या होती है भूख, पूछिए इन मजदूरों से!!

 

भूखे प्यासे चल रहे हैं, छाले पड़ गए पैरों में!

इधर भूख,उधर भूख, सबसे बड़ी है घर की भूख !!

 

कोरोना के कहर से, टूट गया है मजदूर!

महामारी के महापलायन से, मजबूर है मजदूर!!

 

सड़के बोली मजदूरों से, हम पहुंचाएंगे घर!!

डिजिटल के युग में, सड़कों पर मजबूर है मजदूर!!

 

मजदूरों की मानवता से, हार जाएंगी महामारी !

कुमार जीत के शब्दों से , जीत जाएंगी मानवता!!

 

कोरोना के कहर से, टूट गया है मजदूर!

महामारी के महापलायन से, मजबूर है मजदूर!!

 

✍?कुमार जितेन्द्र

साईं निवास – मोकलसर, तहसील – सिवाना, जिला – बाड़मेर (राजस्थान)

मोबाइल न. 9784853785

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #33 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के हृदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 33 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

मन चंचल मन चपल है, भाग रहा सब ओर।   

सांस डोर से बाँध कर, रोक राख इक ठौर ।।

 आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

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Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विशाखा की नज़र से # 28 – माँ का होना ☆ श्रीमति विशाखा मुलमुले

श्रीमति विशाखा मुलमुले 

(श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  हिंदी साहित्य  की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है  एक अतिसुन्दर भावप्रवण  एवं सार्थक रचना  ‘माँ का होना ।  आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में  पढ़  सकते हैं । )

ऐसी रचना सिर्फ और सिर्फ माँ ही रच सकती है और उसकी भावनाएं संतान ही पढ़ सकती हैं ।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 28 – विशाखा की नज़र से

☆ माँ का होना ☆

 

माँ का होना मतलब ,

चूल्हे का होना

आग का होना

उस पर रखी देगची

और,

पकते भोजन का सुवास होना

 

माँ का होना मतलब,

घर का हर कोना व्यवस्थित होना

बुरी नज़र का दूर होना

और,

नौनिहालों के सर पर

आशीष का होना

 

माँ का होना मतलब,

पेट का भरा होना

तन पर चादर का होना

और,

सोते समय एक छोटी सी

कहानी का होना

 

माँ का होना मतलब,

अगरबत्ती का होना

मंत्रों का गुंजित होना

और,

घर के मंदिर में फूलों का होना

 

माँ का होना मतलब

एक व्यक्ति का सजग होना

छोटी सी चोट पर

हल्दी का मरहम होना

और,

अपने सारे तपोबल का

अंश पर निसार होना

मां का होना ….

 

© विशाखा मुलमुले  

पुणे, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच – #43 ☆ जो बाँचेगा, वही रचेगा, जो रचेगा, वही बचेगा ☆ अमृत -2 ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से इन्हें पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली  कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # 43 –  जो बाँचेगा, वही रचेगा, जो रचेगा, वही बचेगा ☆ अमृत -2 ☆

एक सुखद संयोग:
जो बाँचेगा, वही रचेगा,
जो रचेगा, वही बचेगा।..
ये मेरी पंक्तियाँ हैं जिनका उल्लेख प्रधानमंत्री जी से काशी की एक लेखिका ने किया। हमारी संस्था हिंदी आंदोलन परिवार का यह सूत्र भी है। हमारी पत्रिका ‘हम लोग’ के मुखपृष्ठ पर इसे सदा छापा भी गया है।

– संजय भरद्वाज
☆ अमृत -2 ☆

मुझे अमृत

कभी मत देना,

मिल भी जाए

तो हर लेना,

चक्रपाणि,

ये चाह मुझे

जिलाये रखती है

मंथन को

टिकाये रखती है,

मैं जीना चाहता हूँ

मैं लिखना चाहता हूँ!

 

©  संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 1 ☆ दोहा सलिला ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी रचना  ” दोहा सलिला”। )

 ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 1 ☆ 

☆  दोहा सलिला ☆ 

 

घर में रह परिवार सँग, मिल पाएँ आनंद

गीत गाइए हँसी के, मुस्कानों के छंद

 

दोहा दुनिया में नहीं, कोरोना का रोग

दोहा लेखन साधना, गीत जानिए योग

 

नमन चिकित्सक को करें, नर्स देवियाँ मान

कंपाउंडर कर्मठ बहुत, हैं समाज की जान

 

सामाजिक दूरी रखें, खुद को दें उपहार

मिलना-जुलना छोड़ दे, जो वह सच्चा यार

 

फिक्र काम की छोड़िए, कुछ दिन रह निष्काम

काम करें गृहवास कर, भला करेंगे राम

 

मनपसंद पुस्तक उठा, जी भर करिए पाठ

जो जी चाहे बना-खा, करें शाह सम ठाठ

 

घर से बाहर जो गया, खड़ी हो गई खाट

कोरोना दे पटकनी, मारे धोबीपाट

 

घरवाली को निहारें, बाहरवाली भूल

घरवाले के बाग में, खिलिए बनकर फूल

 

बच्चों के सँग खेलिए, मारें गप्पे खूब

जो जी चाहे खा-बना, हँसें खुशी में डूब

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२१-३-२०२०

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #32 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के हृदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

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☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 32 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

तीन बात बंधन बंधें, राग द्वेष अभिमान । 

तीन बात बंधन खुलें, शील समाधि ज्ञान ।। 

 आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media#1 ☆ बस रहो सिर्फ अपने घर में.. ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।)

 ☆ Anonymous litterateur of social media / सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार ☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / योर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का अंग्रेजी भावानुवाद  किया है।  इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है। वे इस अनुष्ठान का श्रेय अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना कप्तान प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। जो स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

इस सद्कार्य  के लिए कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी साधुवाद के पात्र हैं । 

इस कड़ी में आज प्रस्तुत है उनके द्वारा एक अनाम साहित्यकार की एक समसामयिक रचना  बस रहो सिर्फ अपने घर में..का अंग्रेजी भावानुवाद

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी रचना  – बस रहो सिर्फ अपने घर में..☆

 

तूफ़ां के से  हालात  हैं

 ना किसी सफर में रहो.

  पंछियों से है गुज़ारिश

   रहो सिर्फ अपने शज़र में

 

ईद का चाँद बन, बस रहो

 अपने ही घरवालों के संग,

  ये उनकी खुशकिस्मती है

   कि बस हो उनकी नज़र में…

 

माना बंजारों की तरह

 घूमते ही रहे डगर-डगर…

  वक़्त का तक़ाज़ा है अब

   रहो सिर्फ अपने ही शहर में …

 

तुमने कितनी खाक़ छानी

 हर  गली  हर  चौबारे  की,

  थोड़े  दिन की  तो बात है

   बस रहो सिर्फ अपने घर में..

 

☆  English Version  of  Classical Poem of  Anonymous litterateur of social media☆ 

☆  Keep staying in your house… by Captain Pravin  Raghuwanshi 

 

There’re stormy conditions

  Don’t set sail for any voyage

   Pleading with the avian-world

    To keep nestled in their trees

 

Even in once in blue moon,

  Don’t step out, be with family

   It’s a blissful fortune only

    That you’re before their eyes

 

Agreed, like gypsies you’ve

  Been wandering endlessly

   It’s the need of hour that

    You stay in your own town…

 

Much did you wander around

  Every nook and every corner,

   It’s a matter of few days only

    Keep staying in your house…

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अमृत ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – अमृत ☆

इस ओर असुर

उस ओर भी

असुर ही,

न मंदराचल

न वासुकि

तब भी-

रोज़ मथता हूँ

मन का सागर,

जाने कितने

हलाहल निकले

एक बूँद

अमृत की चाह में!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

प्रातः 7:11 बजे, 26.3.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #31 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

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☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 31 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

शीलवान के ध्यान से, प्रज्ञा जाग्रत होय ।

अंतर की गांठें खुलें, मानस निर्मल होय ।।

 आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य # 40 ☆ कोरोना ☆ डॉ. मुक्ता

डॉ.  मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से आप  प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की एक अति संवेदनशील  सार्थक एवं समसामयिक कविता  “ कोरोना ”.  डॉ मुक्ता जी  ने  इस नवीन त्रासदी के दोनों पहलुओं  (दो भागों में ) से रूबरू कराने का एक सार्थक एवं सफल प्रयास किया है। अब पहल आपको करना है और इस त्रासदी से उबर कर आप सब एक नए युग में पदार्पण करें ,ईश्वर से यही कामना है। समाज को सचेत  करती कविता के लिए डॉ मुक्ता जी की कलम को सादर नमन।  कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें। )     

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 40 ☆

☆ कोरोना 

कोरोना (भाग एक)

कोरोना…

‘कोई भी रोड पर न निकले’

जी हां यह संदेश है

माननीय नरेंद्र मोदी जी का

ताकि हम कोरोना वायरस की

चेन तोड़कर उसे अलविदा कह पाएं

वैसे बड़ा स्वाभिमानी है वह

बिन बुलाए मेहमान की तरह

दस्तक देगा नहीं

जब तक तुम द्वार पर खिंची

लक्ष्मण-रेखा पार कर

बाहर जाओगे नहीं

तुम सुरक्षित रहोगे

अपने आशियां में

उनके अंग-संग

अपनों के बीच

 

हां!सीमा-रेखा पार करते

वह दबोच लेगा तुम्हें इस क़दर

तुम व तुम्हारा परिवार ही नहीं

आस-पड़ोस को भी

शिकंजे में ले डूबेगा

सो!अपने घर की चौखट

को भूल कर भी पार करने की

ग़ुस्ताख़ी कभी मत करना

वरना अनर्थ हो जाएगा

 

और

कोरोना…

किसी को रोने न देना

के अर्थ बेमानी हो जाएंगे

और तुम सबको पड़ेगा उम्र भर रोना

सो! तीन सप्ताह अपनों के साथ बिताइए

ज़िंदगी भर के ग़िले-शिक़वे मिटाइए

उनकी सुनिए, कुछ अपनी सुनाइए

बच्चों के मान-मनुहार का लु्त्फ़ उठाइए

संवादहीनता से पसरे सन्नाटे को

मगर की भांति लील जाइए

अजनबीपन के बढ़ते अहसास को

ग़लती स्वीकार पाट जाइए

 

यदि तुम रहे आत्मनियंत्रण

करने में असफल

ओर भूले से निकाला

घर से बाहर कदम

तो संभव है टूट जाए

आपका उस घर से नाता

और हो जाएं सदा के लिए दूर

क्योंकि यदि कोई व्यक्ति

कोरोना से पॉज़िटिव पाया गया

तो उसे अस्पताल वाले

उठाकर ले जाएंगे उसी पल

और यदि आप बच निकले

तो आपकी तक़दीर

यदि हुआ इसके विपरीत

तो आपके मरने की सूचना

आपके परिवार को मिल जाएगी

और वे आपके अंतिम दर्शन भी

नहीं कर पाएंगे और न ही प्राप्त होगा

उन्हें अंत्येष्टि करने का अवसर

 

तो सोचिए! क्या मंजूर है

दोनों में से कौन-सा करोना

पसंद है आपको

अपनों का साथ या बाहर की

ज़हरीली आबो-हवा

जो छीन ले आपकी ज़िंदगी

व आपके अपनों से उम्र-भर का सूक़ून

■■■

 

कोरोना (भाग दो)

 

कोरोना एक मुहिम है

देशवासियों को भारतीय संस्कृति

की ओर प्रवृत्त करने की

‘हैलो-हाय’ के स्थान पर

झुक कर नमस्कार करने की

परिवारजनों के साथ मिल-बैठ कर

सुख-दुख सांझे करने की

परिवार में स्नेह, सौहार्द

व सामंजस्य स्थापित करने की

दिलों के फ़ासले मिटाने की

अजनबीपन का अहसास

व गहरा सन्नाटा

जो पसरा है हमारे बीच

उसे अलविदा कहने की

ताकि संवेदनाएं जीवित रहें

 

आओ! सब मिल बैठें

एक-दूसरे की भावनाओं को समझें

ताकि ग़लतफ़हमियाँ दूर हो जाएं

मन शांत रहे और ख़ुद से

ख़ुद की मुलाक़ात  हो जाए

मिट जाए मैं और तुम का भाव

‘हम सबके, सब हमारे’

का भाव जगे सृष्टि में

अंतर्मन में शांति का बसेरा हो जाए

और ज़िंदगी की इक नयी

शुरुआत हो जाए…

स्वर्णिम प्रभात हो जाए

 

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत।

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com

मो• न•…8588801878

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