हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 40 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है नववर्ष एवं नवरात्रि  के अवसर पर एक समसामयिक  “भावना के दोहे ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 40 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे 

 

शक्ति

नारी तू नारायणी, स्वयं शक्ति अवतार।

नारी के हर रूप की, महिमा अपरंपार ।

 

देवी

नारी अब अबला नहीं, नारी बड़ी महान।

देवी सी गरिमा मिले, देवी सा सम्मान।।

 

शारदा

मां मैहर की शारदा,  सजे सदा दरबार।

आल्हा करें आरती,नित्य नवल श्रंगार।।

 

शैलपुत्री

लक्ष्मी दुर्गा अम्बिका,शैलसुता हर रूप।

नारी को सब पूजते,देवी लगे अनूप।।

 

श्रद्धा

नारी मूरत प्रेम की,श्रद्धा की तस्वीर।

नारी से बनती सदा,सबकी ही तकदीर।।

 

नवबर्ष

आया है नववर्ष ये, सबका हो उद्धार।

कोरोना के कहर से,बचा रहे संसार।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नववर्ष ☆ डॉ निधि जैन

डॉ निधि जैन 

( ई- अभिव्यक्ति में डॉ निधि जैन जी का हार्दिक स्वागत है। आप भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक  कुछ लम्हे आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। यह काव्य संग्रह दो भागों में विभक्त है प्रथम भाग व्यक्तिगत पहलू पर आधारति है एवं दूसरा भाग सामाजिक पहलू पर आधारित है।  आज प्रस्तुत है आपकी नव वर्ष पर एक कविता ” नववर्ष”।)

KUCH LAMHEIN (Hindi Edition) by [Jain, Dr. Nidhi]

अमेज़न लिंक >> कुछ लम्हे 

☆ नववर्ष  ☆

 

हर स्वागत के नियम को दोहराते हुए,

हम फिर आये हैं इस परंपरा को नववर्ष में निभाते हुए।

 

स्वागत नियम है प्रकृति का, स्वागत करें हम मानव आकृति का,

सुबह की भोर ने स्वागत किया प्रकृति का सूरज के उजाले से,

हम करते हैं अपने पड़ोसियों का स्वागत तिलक के आलिंगन से,

हर स्वागत के नियम को दोहराते हुए,

हम फिर आये हैं इस परंपरा को नववर्ष में निभाते हुए।

 

द्वार की रंगोली से करते हैं हम स्वागत,

गिफ्ट पैकिंग से करते हैं हम स्वागत,

आपकी बिंदिया ने किया आपके श्रृंगार का स्वागत,

हर स्वागत के नियम को दोहराते हुए,

हम फिर आये हैं इस परंपरा को नववर्ष में निभाते हुए।

 

फूलों ने किया, अपनी खुशबू का स्वागत,

मुर्गे की बाँग ने किया सुबह की रोशनी का स्वागत,

शिक्षकों ने किया अपनी ज्ञान ज्योति का स्वागत,

हर स्वागत के नियम को दोहराते हुए,

हम फिर आये हैं इस परंपरा को नववर्ष में निभाते हुए।

 

प्यार की धरोहर को  लौटाना चाहते हैं अपने घनिष्ठों को,

सम्मान देना चाहतें हैं अपने गुरुवर की प्रतिष्ठा को,

सहयोग देना चाहते हैं और दिखाना चाहते हैं अपनी निष्ठा को,

हर स्वागत के नियम को दोहराते हुए,

हम फिर आये हैं इस परंपरा को नववर्ष में निभाते हुए।

 

©  डॉ निधि जैन, पुणे

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हिन्दी साहित्य☆ साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 31 ☆ संतोष के समसामयिक दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है  श्री संतोष नेमा जी  के  “संतोष के समसामयिक दोहे ”। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर  सकते हैं . ) 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 31 ☆

☆ संतोष के समसामयिक दोहे   ☆

 

शक्ति

माता इतनी शक्ति दे, कटे अंधेरी रात

हमको यह विस्वास है, होगा नवल प्रभात

 

शैलपुत्री

करें शैलपुत्री नमन , प्रथम दिवस नवरात

हरती विघ्न बाधाएं, देती नव सौगात

 

शारदा

ज्ञान दे माँ शारदे, हरिये भव के पीर

शरण चरण हम आपकी, करें नीर का क्षीर

 

श्रद्धा

दे दो श्रद्धा, भक्ति माँ, हम बालक नादान

दया आपकी बढ़ाती, हम सबका सम्मान

 

नववर्ष

स्वागत सब मिल कर करें, संवत्सर नववर्ष

खत्म आपके हों सभी, जीवन के संघर्ष

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मो 9300101799

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #30 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के हृदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 30 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

गंगा जमुना सरस्वती, शील समाधि ज्ञान ।

तीनों का संगम हुवे, प्रकटे पद निर्वाण ।।

 आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

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Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ प्रकृति और हम ☆ श्री राकेश कुमार पालीवाल

श्री राकेश कुमार पालीवाल

 

(सुप्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक श्री राकेश कुमार पालीवाल जी  वर्तमान में महानिदेशक (आयकर), हैदराबाद के पद पर पदासीन हैं। गांधीवादी चिंतन के अतिरिक्त कई सुदूरवर्ती आदिवासी ग्रामों को आदर्श गांधीग्राम बनाने में आपका महत्वपूर्ण योगदान है। आपने कई पुस्तकें लिखी हैं जिनमें  ‘कस्तूरबा और गाँधी की चार्जशीट’ तथा ‘गांधी : जीवन और विचार’ प्रमुख हैं। श्री राकेश कुमार पालीवाल जी  की समसामयिक कविता प्रकृति और हम  एक विचारणीय कविता है। .)

☆ प्रकृति और हम ☆

 

लॉक डॉउन से

बहुत खुश हुए होंगे

गलियों के आवारा पशु,

कुत्ते, बिल्ली, मुर्गे, मुर्गियां

कोई नहीं है गरियाने लठियाने वाला

जहां तक चाहें वहां तक

घूम फिर सकते हैं बेरोकटोक

 

बहुत खुश हुए होंगे शहरों के पंछी

पार्कों और सड़कों के पेड़ों के आसपास

कोई आदमी नहीं है डरना पड़े जिसकी आहट से

 

खुश हुई होंगी शहर की सड़कें

बहुत कम रौंदी है उनकी देह

दुपहिया और चार पहिया वाहनों ने

 

खुश होंगी हैज की झाड़ियां

खरपतवार लान के

सुबह सुबह नहीं आया माली

बेरहमी से टहनियों पत्तों की कांट छांट करने

 

खुशगवार हैं सुबहो शाम की हवाएं

नहीं घुला जहर वाहनों के धुंए का

आसमान भी साफ है और दिन के मुकाबले

रात में तारों की जगमग है और दिनों से ज्यादा

 

आदमी की जरा सी धीमी रफ्तार से

कितनी खुशी मिली है

असंख्य जानवरों, पक्षियों

पेड़ पौधों और सड़कों और हवाओं को

 

प्रकृति मन ही मन

दे रही होगी धन्यवाद कोरोना को !

 

हमने नहीं समझा

सिसकती प्रकृति का गम

कितने दूर हो गए हैं

प्रकृति और हम !

 

जियो और जीने दो

प्रकृति का रस सबको पीने दो

 

© श्री राकेश कुमार पालीवाल

हैदराबाद

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – वेदनाएं ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – वेदनाएं  ☆

 

नित्य आग में

जलाया जाना,

तेज़ाब में रोज

गलाया जाना,

लहुलुहान

की जाती वेदनाएँ,

क्षत-विक्षत

होती संवेदनाएँ,

अट्टहासों के मुकाबले

मेरे मौन पर

चकित हैं,

कुंदन होने की

प्रक्रिया से वे

नितांत अपरिचित हैं!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

प्रातः 6:29 बजे, 25.3.19

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र # 20 ☆ कविता – ☆ चटपटी चाट की तरह ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

 

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। अब आप डॉ राकेश ‘चक्र’ जी का साहित्य प्रत्येक गुरुवार को  उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  एक समसामयिक रचना  “चटपटी चाट की तरह.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 20 ☆

☆ चटपटी चाट की तरह ☆

 

नित नए आविष्कार

करते चमत्कार

आदमी की तेज रफ्तार

घटता  प्यार

कहीं धन की शक्ति अपार

तो कहीं गरीबी से चीत्कार

सर्वत्र कोरोना से हाहाकार

तो कहीं बढ़ते

आतंकियों के प्रहार

आदमी से आदमी

खाता खार

 

वायु में जहर

धरती में जहर

नदियों में कहर दर कहर

अग्नि

जल

आकाश में

में भी घुल गया

जहर ही जहर

 

बढ़ते धरती पर

कंक्रीट के जंगल

देते अमंगल

डराता

आनेवाला कल

घटता बल

रसातल में पहुँचता जल

 

आदमी की बढ़ती मनमानी

अपने प्रति

प्रकृति के प्रति

गढ़ी जा रहीं हैं

हर दिन नई कहानी

 

बढ़ता पशु पक्षियों पर

अत्याचार

बढ़ता मांसाहार

ला रहा है तबाही

कब तक बचोगे

कोरोना से

नए-नए कोरोना

पैदा होते रहेंगे

 

कलयुगी आहार-विहार

आचार-व्यवहार

ढाएगा नए नए जुल्म

ये

भविष्यवाणी

मैं नहीं कर रहा

बल्कि ये आत्मा है

कर रही

 

वक्त है बहुत कम

सुधर जाना

नहीं भारी कीमत चुकाना

कंक्रीट का जंगल

हरा भरा होगा

बस खाने के लिए

और जल नहीं होगा

होगी प्रदूषित हवा

होंगे वायरस ही वायरस

जो फेंफड़ों को

चाट जाएंगे

चटपटी चाट की तरह

 

डॉ राकेश चक्र ( एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001

उ.प्र .  9456201857

[email protected]

 

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #29 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

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☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे # 29 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

 

जो चाहे सुख ना घटे, होय दुखों का नाश ।

दासी बन तृष्णा रहे, मत बन तृष्णादास ।।

 आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अग्निकांड ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – अग्निकांड ☆

 

शरीर के साथ

धू-धू करके

जल रही थीं

गोबरियाँ,उपले,

लकड़ियाँ,

साथ ही

इन सबमें विचरते

असंख्य जीव..,

पार्थिव के सच्चे प्रेमी

मुर्दे के साथ

ज़िंदा जलने को

अभिशप्त..,

सोचता हूँ

त्रासदियों को

रोज ख़बर बनानेवाला मीडिया,

रोजाना के

इन भीषण

अग्निकांडों पर

अपनी चुप्पी

कब तो़ड़ेगा?

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(2.10.2007)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 40 – आमंत्रण…… ☆ डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है  अग्रज डॉ सुरेश  कुशवाहा जी  के काव्य संग्रह “शेष  कुशल है ”  से एक अतिसुन्दर कविता   “आमंत्रण……। )

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य  # 40 ☆

☆ आमंत्रण…… ☆  

 

समय मिले तो

आ कर हमको पढ़ लो

हम बहुत सरल हैं।

 

न हम पंडित, न हैं ज्ञानी

न भौतिक, न रसविज्ञानी

हम नदिया के बहते पानी

भरो अंजुरी

और आचमन कर लो

हम बहुत तरल हैं। समय मिलेतो …..

 

न मस्जिद , न चर्च शिवालै

ऊंच – नीच के, भेद न पाले

लगे सोच पर, कभी न ताले

निश्छल मन से

छंद मधुरतम गढ़ लो

ये स्वर्णिम पल हैं। समय मिले तो……

 

नहीं समझ से, गूंगे बहरे

न ही उथले, न हम गहरे

हम तो सहज मुसाफिर ठहरे

जीवन पथ पर

कदम मिला कर बढ़ लो

पावन सम्बल है। समय मिले तो……

 

मिलकर खोजें, नई दिशाएं

बंजर भू पर, पुष्प  खिलाएं

जो अभिलाषित है, वो पाएं

कलुषित भाव

विसर्जित सारे कर लो

मन गंगा जल है। समय मिले तो……

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 989326601

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