(श्री प्रयास जोशी जी भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, भोपाल से सेवानिवृत्त हैं। आपको वरिष्ठ साहित्यकार के अतिरिक्त भेल हिंदी साहित्य परिषद्, भोपाल के संस्थापक सदस्य के रूप में जाना जाता है। आज प्रस्तुत है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर उनकी विशेष कविता – “मन “.)
(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में सहायता की है। आप आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)
☆ कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #13 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆
(हम प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )
आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :
A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.
Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.
Our Fundamentals:
The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga. We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.
Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University. Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। आज प्रस्तुत है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर डॉ मुक्ता जी की एक विशेष कविता “अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस”। )
☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस ☆
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आज प्रस्तुत है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के विशेष अवसर पर कविता “महिला दिवस पर दस दोहे”। )
☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – महिला दिवस पर दस दोहे ☆
(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के लेखक श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।
श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से इन्हें पाठकों का आशातीत प्रतिसाद मिला है।”
हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है इस शृंखला की अगली कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों के माध्यम से हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष ☆
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # 38 ☆
☆ *औरत* ☆
मैंने देखी-
बालकनी की रेलिंग पर लटकी
खूबसूरती के नए एंगल बनाती औरत,
मैंने देखी-
धोबीघाट पर पानी की लय के साथ
यौवन निचोड़ती औरत,
मैंने देखी-
कच्ची रस्सी पर संतुलन साधती
साँचेदार खट्टी-मीठी औरत,
मैंने देखी-
चूल्हे की आँच में
माथे पर चमकते मोती संवारती औरत,
मैंने देखी फलों की टोकरी उठाए
सौंदर्य के प्रतिमान लुटाती औरत,
अलग-अलग किस्से,
अलग-अलग चर्चे,
औरत के लिए राग एकता के साथ
सबने सचमुच देखी थी ऐसी औरत,
बस नहीं दिखी थी उनको-
रेलिंग पर लटककर छत बुहारती औरत,
धोबीघाट पर मोगरी के बल पर
कपड़े फटकारती औरत,
रस्सी पर खड़े हो अपने बच्चों की भूख को ललकारती औरत,
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
(श्रीमती विशाखा मुलमुले जी हिंदी साहित्य की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं. आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर भावप्रवण रचना ‘कुछ इस तरह ‘। आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में पढ़ सकते हैं । )
( ई – अभिव्यक्ति में श्रीमती तृप्ति रक्षा जी का हार्दिक स्वागत है । आप शिक्षिका हैं एवं आपके वेब पोर्टल पर कवितायेँ प्रकाशित होती रहती हैं। संगीत, पुस्तकें पढ़ना एवं सामाजिक कार्यों में विशेष अभिरुचि है। विचार- स्त्री हूँ स्त्री के साथ खड़ी हूँ। आज प्रस्तुत है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आपकी विशेष कविता “हाँ, मैं स्त्री हूँ!” )
☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – हाँ, मैं स्त्री हूँ!☆
हाँ ,मैं स्त्री हूँ !
तभी तो भूल जाती हूँ ,
बार -बार शब्दों के उन तीक्ष्ण बाणों को,
और क्षण भर मौन रहकर समेट लेती हूं,
खुद को रसोईघर के कोने में ।
हाँ ,हूँ मैं स्त्री !
तभी तो साथ देती हूं हर बार,
तुम्हारे घर से निकाल देने की बात पर भी,
आमंत्रण देती हूं साथ निभाने का हर सुख-दुख में,
क्योंकि मेरा अस्तित्व है ज़िन्दा,
तुम्हारे साथ होने में ।
हूँ मैं स्त्री!
इतनी संवेदना तो है,कि भूल जाती हूं ,
कैसे छलते रहे हर-बार तुम मुझे और मैं मुस्कुरा कर माफ कर देती हूं,
डर है मुझे तुम्हारा प्यार खोने में।
हाँ, मैं वही स्त्री हूँ!
जो हर पल इक आस में जीती है,
सुनहरे सपने सजाती है
जिसे पूरा होने के पहले हीं ,
तुम तोड़ देते हो और बुनते हो इक मकड़जाल
अपने झूठे रसूख को बचाने में ।
हाँ ,मैं स्त्री हूँ !
जिसे परवाह नहीं अपने हाथों के छालों की,
वो तो बस तुम्हारे मुस्कान की प्रतीक्षा में है ,
पर कहां समझ पाते हो कि ये छोटी सी फरमाइश भी पूरी होती है,
(युवा साहित्यकार श्री दिव्यांशु शेखर जी ने बिहार के सुपौल में अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण की। आप मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक हैं। जब आप ग्यारहवीं कक्षा में थे, तब से ही आपने साहित्य सृजन प्रारम्भ कर दिया था। आपका प्रथम काव्य संग्रह “जिंदगी – एक चलचित्र” मई 2017 में प्रकाशित हुआ एवं प्रथम अङ्ग्रेज़ी उपन्यास “Too Close – Too Far” दिसंबर 2018 में प्रकाशित हुआ। ये पुस्तकें सभी प्रमुख ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर उपलब्ध हैं। आज प्रस्तुत है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर श्री दिव्यांशु शेखर जी की विशेष कविता “स्त्री तुम हो” )
☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – स्त्री तुम हो☆
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साहित्य की अन्य विधाओं में भी उनका विशेष दखल है। आज प्रस्तुत है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर श्रीमती सिद्धेश्वरी जी की यह विशेष कविता “सृष्टि के विधान में नहीं नारी से सुन्दर रचना”। )
☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – सृष्टि के विधान में नहीं नारी से सुन्दर रचना☆