हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #12 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #12 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

 

मन के कर्म सुधार ले, मन ही प्रमुख प्रधान । 

कायिक वाचिक कर्म तो, मन की ही संतान ।।

– आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

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Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आमरण ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – आमरण ☆

 

दो समूहों के बीच

वाद-विवाद,

मार-पीट,

दंगा-फसाद,

बीच बचाव करनेवाला

निर्दोष मारा गया

दोनों तरफ के

सामूहिक हमले में..,

सोचता हूँ

यों कब तक

रोज मरता रहूँगा मैं..?

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

31.7.2016, संध्या 8.05 बजे।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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English Literature – Poetry (भावानुवाद) ☆ अंत्येष्टि /Funerals – श्री संजय भारद्वाज ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।)

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी  द्वारा श्री संजय भारद्वाज जी की कविता “ अंत्येष्टि ”  का अंग्रेजी भावानुवाद  “Funerals?” ई-अभिव्यक्ति  के प्रबुद्ध पाठकों तक पहुँचाने का अवसर एक संयोग है। 

भावनुवादों में ऐसे  प्रयोगों के लिए हम हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी के ह्रदय से आभारी हैं। 

आइए…हम लोग भी इस कविता के मूल हिंदी  रचना के साथ-साथ अंग्रेजी में भी आत्मसात करें और अपनी प्रतिक्रियाओं से कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी  को परिचित कराएँ।

]☆ श्री संजय भरद्वाज जी  की मूल रचना – अंत्येष्टि ☆

 

उसने जलाया

इसने दफनाया,

उसने कुएँ में लटकाया

इसने नदी में बहाया,

आत्मा की शांति के

शीर्षक तले

अपनी-अपनी

संतुष्टि की कवायदें…!

 

  • संजय भारद्वाज

(कवितासंग्रह *मैं नहीं लिखता कविता* से)

 

☆  English Version  of  Poem of  Shri Sanjay Bhardwaj ☆ 

☆  “Funerals – by Captain Pravin  Raghuwanshi 

He cremated it,

They buried it,

Few hung it in the well

Others flowed it in the river,

Under the garb of

Peace of soul

Everyone carried out drills

for their own satisfaction…!

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #11 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

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☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #11 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

धर्म न मंदिर में मिले, धर्म न हाट बिकाय । 

धर्म न ग्रंथों में मिले, जो धारे सो पाए ।। 

– आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ राम आओ फिर एक बार ☆ श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी”  जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती  हेमलता मिश्रा जी की  स्त्री शक्ति को सन्देश देती एक विचारोत्तेजक एवं  भावप्रवण कविता  राम आओ फिर एक बार)

राम आओ फिर एक बार  

राम तुम एक युग हो

राम तुम स्वयं एक युग पुरुष हो।।

एक समाज एक व्यवस्था एक विचारधारा एक मर्यादा हो

माना कि तुम हर युग में आओगे युग पुरुष बनकर।।

पर सोचो,

क्या अपनी चरणधूलि की सार्थकता

जनमत के प्रति अपनी महानता

इन को मनवाने के लिए

हर युग में युग नारी सीता अहिल्या और शबरी भी पाओगे?

नहीं राम जान लो नहीं पाओगे अहिल्या अब किसी भी युग में तुम

नकारी है अहिल्या ने तुम्हारी चरणधूलि

कि–हर युग में छलना इंद्र की

और शाप गौतम का अब नहीं स्वीकार्य उसे।।

राम! रोक लो अपनी चरणधूलि

जो तुम्हे भगवान ठहराती है और – –

पहचानो अहिल्या के कुचले स्वाभिमान को

निर्दोष अभिशप्ता की व्यथा को।।

हाँ सुनो राम – – तुम्हें भी देनी होगी अग्नि परीक्षा अब सीता के लिए

क्योंकि – –

तुम्हारे युग धर्मों ने अब तक बाँधा है परिभाषाओं

और लक्ष्मण रेखाओं में सिर्फ सीताओं को ही।।

अब खरा उतरना होगा तुम्हें भी उन पर

जिन्हें अर्थ दिए है सीता और अहिल्या ने।।

राम सत्य है कि मानवी बनाकर भी

नहीं बदला है अहिल्या के लिए तुम्हारा समाज तुम्हारे मूल्य

शबरी के जूठे बेर तुमने खाकर भी

नहीं बदली है समाज की व्यवस्था।।

अग्नि परीक्षा लेकर भी नहीं रुका है सीता का अपमान

धरती के गर्भ में समाने तक।।

हे राम विनती है तुमसे कि  तुम आओ

पर यह विश्वास लेकर कि

“तुम्हें बदलना है समाज तुम्हें बदलनी है व्यवस्था

तुम्हें उभारना है निष्पक्ष जनमत

तुम्हें बनाना है नये मूल्य

तुम्हें लाना है एक नया युग

सत्याधारित सच्चा नया युग – – ना कि पुराने युगों का नया संस्करण

तुम्हें लाना है सचमुच नया युग

आओ राम फिर एक बार युग पुरुष बन कर

 

© हेमलता मिश्र “मानवी ” 

नागपुर, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अनिर्णय ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

 

☆ संजय दृष्टि  – अनिर्णय ☆

 

सबसे आगे खड़ा था तब

सबसे पीछे खड़ा है अब,

कौनसा सिक्का गलत पड़ा?

निर्णय गलत होने के भय पर

शायद अनिर्णय भारी पड़ा..!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

31.7.2016, संध्या 8.05 बजे।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 37 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है  “ भावना के दोहे ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 37 – साहित्य निकुंज ☆

भावना के दोहे 

 

गुलमोहर

गुलमोहर को देखकर, मुस्काई थी शाम।

तपी दुपहरी जेठ की, लिख दो उसके नाम।।

 

चंचरीक

चंचरीक गाने लगे, धुन में अपना गान।

कलियाँ ऐसी झूमतीं, करते ही रसपान।।

 

अमराई

अमराई की डाल पर, कोयल गाए गान।

अमराई  में बस गई, खुशियों की मुस्कान।।

 

कचनार

मनभावन कचनार का, आया मौसम आज।

औषधि का हर पुष्प में, छुपा हुआ है राज ।।

 

ऋतुराज

मनमोहक मौसम ललित, कण-कण में ऋतुराज।

अनुरागी अनुभूति का, उड़ने लगा जहाज।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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हिन्दी साहित्य☆ साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 28 ☆ होरी खेलें ……… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है  श्री संतोष नेमा जी की होली के रंग में सराबोर भगवान् श्रीकृष्ण जी पर आधारित बृजभाषा में रचित दो भावपूर्ण रचनाएँ  “होरी खेलें ………”। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार पढ़  सकते हैं . ) 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 28 ☆

☆ होरी खेलें ………  ☆

मोरो मोहन रँग रंगीलो

बहियाँ पकरि जबरन रँग डारे, ऐसो श्याम छबीलो

छाय रही छवि छटा छबीली, केसर घोलो पीलो

हिल मिल खें सब सखियाँ आई, करें कृष्ण को गीलो

कटि- लंहगा गल-माल कंचुकी, नैनन सो मटकीलो

केसर कीच कपोलन दीनी, रसिया रँग रसीलो

चरण शरण “संतोष”आपकी, जग को तजा कबीलो

 

होरी खेलें कृष्ण मुरारी

राधा के संग रास रचा कर, विंहसे विपिन विहारी

लाल गुलाल गाल पै चुपरत, रँगी चुनरिया सारी

कृष्ण रँग में रँगी सुरतिया, लगती कारी कारी

तरह तरह के इतर सुहाए, चली प्रेम पिचकारी

फूलों के रँग खूबै बरसें, बहके सब नर नारी

मन “संतोष” हिया अनुरागी, कर कर के जयकारी

 

© संतोष नेमा “संतोष”

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मोबा 9300101799

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #10 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

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☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #10 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

मानव जीवन रतन सा, किया व्यर्थ बरबाद ।

चर्चा कर ली धर्म की, चाख न पाया स्वाद ।।

– आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

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English Literature – Poetry (भावानुवाद) ☆ चिर शांति…/Eternal Silence…☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।)

आज प्रस्तुत है कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी  द्वारा स्वरचित  भावप्रवण कविता “चिर शांति…”  का अंग्रेजी भावानुवाद  “Eternal Silence…” ई-अभिव्यक्ति  के प्रबुद्ध पाठकों तक पहुँचाने का अवसर एक संयोग है। 

आइए…हम लोग भी इस कविता के मूल हिंदी  रचना के साथ-साथ अंग्रेजी में भी आत्मसात करें और अपनी प्रतिक्रियाओं से कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी  को परिचित कराएँ।

भावनुवादों में ऐसे  प्रयोगों के लिए हम हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी के ह्रदय से आभारी हैं। 

☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी की मूल कालजयी  रचना – चिर शांति… ☆

क्या है जीवन की सार्थकता

क्या है अस्तित्व का महासंग्राम

क्या है इसका स्पष्टीकरण

क्या है इसकी पूरकता

परंतु निरंतर मिलती है

निरुत्तरता ही निरुत्तरता…

 

सत्य से पलायन सम्भव नहीं

प्रारब्ध के नियम रहते सतत गतिमान

गंतव्य की निकटता हो

या नियति से भेंट,

परंतु यहाँ भी वही अवरोध:

कर्मफलों का लेखा-जोखा

फिर भी निरंतर चाह

अजरता, अमरता और अमृत्व की…

चिरकालिक प्रश्न:

जन्म-मृत्यु चक्र का फेर

या सम्पूर्णता में विलीनता

या ब्रह्मांड की अनंतता

रहते हमेशा ही अनुत्तरित…

चाहे कितना भी रहो प्रयासरत

अंततः

फिर वही चिरशांति…

 

☆  English Version  of  Classical Poem of  Captain Pravin  Raghuwanshi ☆ 

☆  Eternal Silence… – by Captain Pravin  Raghuwanshi 

Meaningful intent of  life,

Epicenter of battle for the existence

What is the explanation thereof,

What is the complementarity…

But, yet again

the same perennial

silence only…

 

Escape from the truth,

Rules of foreordination,

Proximity to the destination,

Encounter with the rigours of destiny…

 

Accounts of the Karmas,

Desire of the deathlessness, immortality or eternity…

The cycle of ‘Birth-and-Death’

Or merging with the finality…

Infiniteness of the universe

Unanswered questions

yet again,

The same eternal

silence…!

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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