डॉ भावना शुक्ल
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – # 27 साहित्य निकुंज ☆
☆ माँ तुम याद बहुत आती हो ☆
माँ तुम याद बहुत आती हो
बस सपने में दिख जाती हो .
पूछा है तुमसे, एक सवाल
छोड़ गई क्यों हमें इस हाल
जीवन हो गया अब वीराना
तेरे बिना सब है बेहाल
कुछ मन की तो कह जाती तुम
मन ही मन क्यों मुस्काती हो ।
माँ तुम याद बहुत आती हो
बस सपने में दिख जाती हो .
मुझमे बसती तेरी धड़कन
पढ़ लेती हो तुम अंतर्मन
तुमको खोकर सब है खोया
एक झलक तुम दिखला जाती .
जाने की इतनी क्यों थी जल्दी
हम सबसे क्यों नहीं कहती हो ।
माँ तुम याद बहुत आती हो
हम सबको तुम तरसाती हो ।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
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