हिन्दी साहित्य – कविता ☆ स्पंदन ☆ सुश्री नेहा यादव

डॉ मौसमी परिहार

(सुश्री नेहा यादव जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है।  6 मार्च 1994 को देवरिया  उत्तर प्रदेश में जन्मी  सुश्री नेहा यादव जी ने हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर हैं। साथ ही शिक्षिका के पद पर निरंतर कार्य का अनुभव हासिल किया।  विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र- पत्रिकाओं में रचनाएं व आलेख प्रकाशित । बाल कथा कहानियों के लेखक यश यादव जी की लिखी किताब संयोग में मुक्तक व भावों को काव्यात्मक तरीके से लिखा।)

 ☆ कविता  – स्पंदन ☆

 

संवेदनाओं से अब बचती हूं,

जिह्वा अर्थपूर्ण हो सदैव,

यही मनोवृत्ति रखती हूं।

 

चित्त में आशाओं को भर,

विरह वेदना से उभर,

मैं हृदय स्पंदन करती हूं।

 

आत्मनिष्ठा भर दृढ़ता से,

शख्सियत से सख्त हो,

आघातों का संहार करती हूं।

 

जो प्रेम अंकुरित बीज है,

राधा,मीरा,भेद में विलीन,

सब हृदय श्वास में अर्पित हूं।

 

©  नेहा यादव

लखनऊ उत्तर प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ समय ☆ डॉ मौसमी परिहार

डॉ मौसमी परिहार

( डॉ मौसमी परिहार जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है।  6 मार्च 1981 को संस्कारधानी जबलपुर में  जन्मी  डॉ मौसमी जी ने “डॉ हरिवंशराय बच्चन की काव्य भाषा का अध्ययन” विषय पर  पी एच डी अर्जित। आपकी रचनाओं का प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन तथा आकाशवाणी और दूरदर्शन से नियमित प्रसारण। आकाशवाणी के लोकप्रिय कार्यक्रम ‘युगवाणी’ तथा दूरदर्शन के ‘कृषि दर्शन’ का संचालन। रंगकर्म में विशेष रुचि के चलते सुप्रसिद्ध एवं वरिष्ठ पटकथा लेखक और निर्देशक अशोक मिश्रा के निर्देशन में मंचित नाटक में महत्वपूर्ण भूमिका अभिनीत। कई सम्मानों से सम्मानित जिनमें महत्वपूर्ण हैं वुमन आवाज सम्मान, अटल सागर सम्मान, महादेवी सम्मान हैं। संप्रति – रवीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक। हम भविष्य में आपकी चुनिंदा रचनाओं को ई- अभिव्यक्ति में साझा करने की अपेक्षा करते हैं। आज प्रस्तुत है उनकी एक अतिसुन्दर कविता ‘समय’ )   

 ☆ कविता  – समय ☆

समय ने आज पूछा…

मुझसे एक सवाल

क्यों, कैसी हो…?

क्या हैं तुम्हारे हाल….?

 

बुझी बुझी सी,

परेशानियों की

झुर्रियां लिये,

मैं देख रही थी

एक टक….,

घड़ी की सुइयों को,

 

जो हंस रही थी

मुझ पर,

मेरी  हालत पर…!!

 

समय ने कहा…

“जरा एक बार,

अतीत को झांक तो जरा,”

और उठ समेट खुद को

मुझको तो हरा…!!

 

बीते कल में,

गुजरा बहुत कुछ,

क्यों भूलूँ उन,

अहसासों को…!!

जो बीता सुखद था

सब कुछ,,, दोष

क्यों दूं..

वक्त के पहरेदारों को…!!

 

© डॉ मौसमी परिहार, भोपाल

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विशाखा की नज़र से # 19 – प्रश्न आत्मा का परमात्मा से ☆ श्रीमति विशाखा मुलमुले

श्रीमति विशाखा मुलमुले 

 

(श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  हिंदी साहित्य  की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है  जीवन दर्शन पर आधारित एक दार्शनिक / आध्यात्मिक  रचना ‘प्रश्न आत्मा का परमात्मा से  ‘।  आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में  पढ़ सकेंगे. )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 19  – विशाखा की नज़र से

☆ प्रश्न आत्मा का परमात्मा से  ☆

 

जिस तरह चुनती हूँ मैं

पूजा के फूल अगली सुबह

हे देव ! क्या तुम भी इसी तरह

चुनते हो आत्मा के फूल मुरझाए हुए ?

 

जिस तरह रखती हूँ मैं

बदले में उसके सुहासित पुष्प

हे देव ! क्या तुम भी इसी तरह

बदलते हो कलेवर को ?

 

यह छोटी सी क्रिया मेरा पूजन है

कुछ अर्पण है तेरे नाम का

क्या तेरी क्रिया भी पूजन है

और ये मन्त्र है बदलाव का ?

 

जिस तरह  करती हूँ जप

रखती हूं व्रत तेरे नाम का

शेष शय्या पर लेटे हुए

या पुष्प पर बैठे हुए

क्या स्मरण तुझे मेरे नाम का ?

 

हम इस धरा के सूक्ष्म से थलचर

पृथ्वी के घ्ररूण संग फिरते है हम, हर पल

जन्म – मरण के इस चक्र में

हे देव ! क्या  रूप बदल

करते हो भ्रमण हमारे लिए ?

 

© विशाखा मुलमुले  

पुणे, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ बालिका दिवस विशेष – बेटियाँ ☆ श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी”  जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती  हेमलता मिश्रा जी की  बालिका दिवस पर विशेष कविता  बेटियाँ )

 

बालिका दिवस विशेष – बेटियाँ

 

फूलों की हैं मुस्कान

मोतियों की आन-बान

सूर्य चंद्र उर्मि की

रोशनी है बेटियाँ ।।

 

आँखो में ब्रम्हांड लिए

देवियों सी अवतारी।

मात औ पिता के द्वारे

कल्याणी सी बेटियाँ।।

 

काल के कपाल पर

कपालिनी दुर्गा सी।

ढाल चमकाती काली

चामुंडा सी बेटियां।।

 

नहीं अब अनागतः

आस लिए भावी प्रातः।

प्राची से उभरती

ऊषा की दमक बेटियाँ।।

 

बालिका वधू ना अब

वैष्णवी सी तेजवान।

असुर संहारक सी

व्योम नापे बेटियां।।

 

© हेमलता मिश्र “मानवी ” 

नागपुर, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 25 ☆ पतझड़ ☆ सौ. सुजाता काळे

सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है  सौ. सुजाता काळे जी एक भावप्रवण कविता  “पतझड़ ”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 25 ☆

☆ पतझड़

 

मैंने देखा,

पतझड़ में

झड़ते हैं पत्ते,

और

फल – फूल भी

छोड़ देते हैं साथ।

बचा रहता है

सिर्फ ठूँस

किसलय की

बाट जोहते हुए।

 

मैंने देखा

उसी ठूँठ पर

एक घोंसला

गौरैया का,

और सुनी

उसके बच्चों की,

चहचहाट साँझ की।

ठूँठ पर भी

बसेरा और,

जीवन बढ़ते

मैंने देखा

पतझड़ में ।

 

© सुजाता काळे

पंचगनी, महाराष्ट्र, मोब – 9975577684

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 31 ☆ हाइकु ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची ‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है उनकी  हाइकू विधा में  दो कवितायेँ   ‘हाइकु ।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 31 – साहित्य निकुंज ☆

☆ हाइकु 

 

[ 1 ]

अभिनन्दन

स्वागत है आपका

रघुनंदन

 

कष्ट अपार

झेल गया ये मन

आईं बहार

 

खुशियां छाए

अब कष्ट न आए

जीवन भर

 

गगन में छा

पन्नों में लिख गया

इतिहास के

 

[ 2 ]

 

वर्षा की बूंदे

मनोरम दृश्य

है हरियाली

 

प्राकृतिक है

थल में जलजला

जल ही जल।

 

माता की याद

आती है हरदम

मन व्यथित

 

माँ की रसोई

जीभ में बसा स्वाद

जीवनभर

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

wz/21 हरि सिंह पार्क, मुल्तान नगर, पश्चिम विहार (पूर्व ), नई दिल्ली –110056

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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हिन्दी साहित्य ☆ कविता ☆ माँ ☆ डाॅ मंजुला शर्मा (नौटियाल)

डाॅ मंजुला शर्मा (नौटियाल)

( डॉ मंजुला शर्मा जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड में जन्मीं डॉ मंजुला जी को  25 वर्षों के अध्यापन कार्य का अनुभव है एवं अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। हम भविष्य में आपके चुनिंदा रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करने की अपेक्षा करते हैं।)

☆ माँ ☆

माँ !

इस शब्द में छिपी है

तुम्हारी सम्पूर्ण आकृति

संसार से जाने के बाद भी

जब भी सुनाई देता है यह शब्द

तुम अपने पूरे वजूद के साथ

सम्मुख आ जाती हो

तुम्हारा प्यार कही अनकही बातें

वो उन्मुक्त हंसी और वो गीत

जब-जब तुम्हें याद कर आँख मूँदती हूँ

सुनाई पड़ने लगते हैं

माँ  प्यारी माँ तु चली गईं

पर जीवित रहोगी मेरी अंतिम साँसो तक

मेरे मन मस्तिष्क में अपनी पूरी क्षमता के साथ

माँ तुम अपनी छाया में रखना मुझे सदा

जहाँ भी हो हमारे शास्त्रों व पुराकथाओं के अनुसार

तुम रह रही हो रहो पर मेरा साथ कभी न छोड़ना

क्योंकि तम्हारे बिना कोई अस्तित्व नहीं मेरा

केवल तुम ही एक सहारा हो मेरा

और तुमसे ही है मेरा सवेरा ।

 

© डाॅ मंजुला शर्मा (नौटियाल)

नई दिल्ली

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हिन्दी साहित्य ☆ कविता ☆ अच्छे लोग ☆ श्री प्रयास जोशी

श्री प्रयास जोशी

(श्री प्रयास जोशी जी भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स  लिमिटेड, भोपाल से सेवानिवृत्त हैं।  आपको वरिष्ठ साहित्यकार  के अतिरिक्त भेल हिंदी साहित्य परिषद्, भोपाल  के संस्थापक सदस्य के रूप में जाना जाता है। 

☆ कविता  –  अच्छे लोग ☆

हम,

अच्छे लोग हैं

और अच्छे लोगों की पहचान

हम से बड़ी और स्पष्ट

किसी और की,

हो नहीं सकती

क्योंकि हम,अच्छे लोग

किसी भी बुरे काम का

कहीं कोई विरोध नहीं करते

और अच्छे काम की भी

कहीं कोई सराहना नहीं करते।

इसलिये इस समय की

हम से बड़ी और स्पष्ट पहचान

कहीं भी ढूँढे नहीं मिलती…

पेंडुलम की तरह

दोनों तरफ मुंडी घुमाना

हर किसी को आसान नहीं

यह हमारे जैसे अच्छे

लोगों के ही वश की बात है…

क्योंकि समय के

हर गलत काम को/टुकुर-टुकुर

देखते रहने का अदभुत

साहस और कला कौशल

हम में ही पाया जाता है।

इसलिये अच्छे लोगो का

अच्छा उदाहरण/सिर्फ

अच्छे और गुनी लोगों में ही

सुरक्षित है/और इसीलिये

यह अच्छे लोग

हर कहीं नहीं पाये जाते

या तो

यह म्यूजियम में पाये जाते हैं

या फिर अपनी

रजाइयों में।

 

©  श्री प्रयास जोशी

भोपाल, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 22 ☆ बुंदेली गीत – सबसे बड़ो गणतन्त्र हमारो ☆ – श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है  उनका एक सामयिक बुंदेली गीत  “सबसे बड़ो गणतन्त्र हमारो”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार पढ़  सकते हैं . ) 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 22 ☆

☆ बुंदेली गीत – सबसे बड़ो गणतन्त्र हमारो ☆

 

जे नापाकी का कर लें हैं

तुरत चीर खें हम धर दें हैं

 

हम अपने सें कबहुँ न लड़ते

छेड़ो बाने तो लर जें हैं

 

दुनिया में पहचान अलग है

ईहाँ मिल खें सब रह लें हैं

 

तिरंगे की है शान निराली

परचम दुनिया में फहरें हैं

 

यू एन ओ का वीटो पावर

ताकत सें सबरो हक लें हैं

 

सबसे बड़ो गणतन्त्र हमारो

गर्व से ऊँचो सर कर लें हैं

 

देश अपना हम खों प्यारा

देश के लाने हम मर जें हैं

 

संभल जाओ देश द्रोहियो

जेल तुम्हे तुरत पर जे है

 

“संतोष” गाए वंदे मातरम

नारा वो जय हिंद लगे है

 

© संतोष नेमा “संतोष”

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मोबा 9300101799

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र # 10 ☆ कविता/गीत – वाणी में संगीत जगा दे ☆ डॉ. राकेश ‘चक्र’

डॉ. राकेश ‘चक्र’

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। अब आप डॉ राकेश ‘चक्र’ जी  का साहित्य प्रत्येक गुरुवार को  उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण गीत  “वाणी में संगीत जगा दे.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 10 ☆

☆ वाणी में संगीत जगा दे ☆ 

 

शब्द-साधना को महका दे

सात स्वरों के दीप जला दे

वीणापाणी जय-जय तेरी

वाणी में संगीत जगा दे

 

सब हो जाएं मेरे अपने

तेरा हर दिन ध्यान करूँ माँ

मन मेरा पावन मंदिर हो

पल-छिन मंगलगान करूँ माँ।।

 

मनुज-मनुज में प्रेम बढ़े माँ

ऐसी कोई रीत चला दे

वीणापाणी जय-जय तेरी

वाणी में संगीत जगा दे

 

तेरा-मेरा सब मिट जाए

सत्य, ज्ञान का अवलम्बन दे।

मिटे तमिस्रा भय-संशय की

ऐसा अर्चन-आराधन दे।।

 

मित्र बने हर शत्रु अंततः

जीत करा दे, प्रीत करा दे

वीणापाणी जय-जय तेरी

वाणी में संगीत जगा दे

 

डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी,  शिवपुरी, मुरादाबाद 244001, उ.प्र .

मोबाईल –9456201857

e-mail –  [email protected]

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