डॉ. मुक्ता
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से आप प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की कविता “कैसी विडम्बना ? ”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य – # 14 ☆
☆ कैसी विडम्बना ? ☆
सड़क किनारे
पत्थर कूटती औरत
ईंटों का बोझ सिर पर उठाए
सीढियों पर चढ़ता
लड़खड़ाता मज़दूर
झूठे कप-प्लेट धोता
मालिक की डाँट-फटकार
सहन करता
वह मासूम अनाम बालक
माँ बनकर छोटे भाई की
देखरेख करती
चार वर्ष की नादान बच्ची
जूठन पर नजरें गड़ाए
धूल-मिट्टी से सने
अधिकाधिक भोजन पाने को
एक-दूसरे पर ज़ोर आज़माते
नंग-धड़ंग बच्चे
अपाहिज पति के इलाज
व क्षुधा शांत करने को
अपनी अस्मत का सौदा
करने को विवश
साधनहीन औरत को देख
अनगिनत प्रश्न
मन में कौंधते-कोंचते
कचोटते, आहत करते
क्या यही है, मेरा देश भारत
जिसके कदम विश्व गुरु
बनने की राह पर अग्रसर
जहां हर पल मासूमों की
इज़्ज़्त से होता खिलवाड़
और की जाती उनकी अस्मत
चौराहे पर नीलाम
एक-तरफा प्यार में
होते एसिड अटैक
या कर दी जाती उनकी
हत्या बीच बाज़ार
वह मासूम कभी दहेज के
लालच में ज़िंदा जलाई जाती
कभी ऑनर किलिंग की
भेंट चढ़ायी जाती
बेटी के जन्म के अवसर पर
प्रसूता को घर से बाहर की
राह दिखलाई जाती
आपाधापी भरे जीवन की
विसंगतियों के कारण
टूटते-दरक़ते
उलझते-बिखरते रिश्ते
एक छत के नीचे
रहने को विवश पति-पत्नी
अजनबी सम व्यवहार करते
और एकांत की त्रासदी झेलते
बच्चों को नशे की दलदल में
पदार्पण करते देख
मन कर उठता चीत्कार
जाने कब मिलेगी मानव को
इन भयावह स्थितियों से निज़ात
काश! मेरा देश इंडिया से
भारत बन जाता
जहां संबंधों की गरिमा होती
और सदैव रहता
स्नेह और सौहार्द का साम्राज्य
जीवन उत्सव बन जाता
और रहता चिर मधुमास
© डा. मुक्ता
माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत।
पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com
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